बेताल / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(अनुवाद :सुकेश साहनी)

(एक)

दोस्त! हम ज़िन्दगी भर एक दूसरे के लिए अपरिचित ही बने रहेंगे क्योंकि तुम बोलते रहोगे और मैं तुम्हारी आवाज को अपनी आवाज समझकर सुनता रहूंगा। मैं तुम्हारे सामने खड़े होकर यह समझता रहूंगा कि मैं एक दर्पण के सामने खड़ा हूँ।

(दो)

हम असंख्य सूर्यां की गति से समय का अनुमान लगाते हैं जबकि वे अपनी जेबों में रक्खी छोटी-सी घड़ी (मशीन) से समय की गणना करते हैं।

अब आप ही बताइए क्या हम कभी भी नियत समय और स्थान पर मिल सकते हैं?