बेदुली / शायक आलोक
लगातार बारिशों वाले उस जंगल के आस पास सात छोटे गाँव थे। कहते हैं वहीं किसी मराग्वे नामक गाँव में एक रात शोर उठा - 'चोर चोर' .. कोई राहगीर आया था जो पहले तो उस चालीस पार औरत बेदुली के घर दो दिन रुका रहा औरबेदुली उस पर अपनी ख़त्म होती उम्र के बचे हुए प्रेम उड़ेलती रही और फिर वह अचानक गायब हो गया। राहगीर ने चिट्ठी रख छोड़ी थी - “ तुम प्रेम से भरी पड़ी हो बेदुली और अच्छा लगा तुम्हारे साथ.. पर उतना प्रेम नहीं जितना है तुम्हेंअपनी उस पड़ोसन लड़की से जो उस पहाड़ किनारे रहने वाले दो बच्चों के पिता से दैहिक लगाव में है। तुम्हारे मेरे प्रति प्रेम और उसके प्रति मोह में तुम्हें मुझे चुनना था ” .. राहगीर को खोकर बेदुली को खूब दुःख हुआ और वह रो पड़ी.. वह दिन रात रोती रहती थी और यह बात पड़ोसियों के बीच फैलने लगी। जब उसके आंसुओं को राहगीर से उसका बिछोह समझा जाने लगा तो बेदुली को चिंता हुई। तो बेदुली ने एक रात शोर मचा दिया- 'चोर चोर' .. गाँव के स्त्री पुरुष जमाहोने लगे.. बिछोह से गुजरती बेदुली के पास आंसुओं की कमी तो थी नहीं.. उसने सबके सामने खूब आंसू बहाए.. उसने लोगों से कहा कि राहगीर तो चोर था। बेदुली के आतिथ्य के बदले उसने बेदुली के गहने कपडे चुरा लिए और इसलिएवह रो रही है। कहते हैं धीरे धीरे राहगीर की इस चोरी की कहानी सातों गावों में फ़ैल गयी और सब गाँव के दरवाजे राहगीरों के लिए बंद हो गए। उन सात गावों में आज भी लोग बेदुली के आतिथ्य और उस राहगीर चोर की कृतघ्नता कोयाद करते हैं।