बेबी मारे अप्पी / ज़ाकिर अली 'रजनीश'
उसने धीरे से क्लासरूम के अंदर झांका, यह देखने के लिए कि वहां कोई बिल्ली तो नहीं है। दरअसल, वह बिल्ली से बहुत डरती है न, इसलिए। पर अंदर का दृश्य देखकर उसे स्वयं पर हंसी आ गयी। वहां तो उसी के जैसे छोटे–छोटे बच्चे बैठे थे। भला क्लासरूम में बिल्ली कहां से आएगी? वह तो फालतू में ही डर रही थी। भाईजान ठीक ही कहते हैं– ‘लल्ली बहुत डरपोक है।’
अचानक क्लास में बैठे सभी बच्चे जोर–जोर से चिल्लाने लगे। लल्ली का ध्यान भंग हो गया। उसे बच्चों पर बहुत गुस्सा आया। कितने शैतान बच्चे हैं? इन्हें ये भी नहीं पता कि क्लास में कैसे रहना चाहिए। मुझे देखो, आज पहली बार स्कूल आई हूं, पर बिलकुल नहीं रोई। रोते तो हैं गन्दे बच्चे।
लल्ली ने अपने नन्हें से बस्ते को संभाला और क्लास के अंदर पहुंच गयी। उसे देखते ही सारे बच्चे चुप हो गये। लल्ली हैरान रह गयी। उसने पूरी क्लास में नजर डाली। ओफ्फो, इतने सारे बच्चे? इतने सारे बच्चे कहां रहते होंगे?
तभी आगे की सीट पर बैठा एक लडका उठकर लल्ली के पास आया और धीरे से उसका हाथ हिलाकर तुतलाते हुए बोला, “मुदसे दोस्ती कलोगे?”
लल्ली हंस पडी। उसके दांत दिखे, जैसे सफेद बल्बों की झालर झम्म से जल उठी हो। लल्ली के बाल एकदम ब्वाय कट स्टाइल में कटे हैं और उसका चेहरा भी एकदम गोल–मटोल है। इसीलिए लोगों को गलतफहमी हो जाती है और वे उसे लडकी की जगह लडका समझ लेते हैं।
“हां, मैं भी दोस्ती कलूंगा।” लल्ली ने भी उसी तरह तोतली बोली में जवाब दिया। दोनों लोग मुस्करा पडे। फिर दोनों ने हाथ मिलाया। दोस्ती पक्की। सभी बच्चे एकटक उन्हें ही देखे जा रहे थे। एक नन्हीं दोस्ती के ढेर सारे मासूम गवाह।
लेकिन इससे पहले कि दोनों एक दूसरे का नाम पूछते, टीचर के आने की आहट सुनाई पडी। दोनों लोग फटाफट सीट पर जा पहुंचे। कुछ ही पलों में टीचर वहां प्रकट हो गयीं। उन्होंने रजिस्टर मेज पर रखा और हाजिरी लेने लगीं। हाजिरी के बाद उन्होंने क्लास पर एक सरसरी सी निगाह डाली और ए बी सी पढाने लगीं।
“ए फॉर ऐपल, ऐपल माने सेब।”
सेब का नाम सुनते ही लल्ली के मुंह में पानी भर आया। उसका मुंह गोलगप्पे की तरह फूल गया। उसे याद आया पापा को सेब बहुत पसंद हैं। पापा कहते हैं– “लाल–लाल सेब जैसे लल्ली के गाल।”
उसके गालों का रंग गुलाबी होने लगा। जैसे ताजा खिला कोई बडा सा गुलाब। और फिर एक पल के लिए उसने अपनी पलकें भींच लीं। आखिर उसे शर्म जो आ रही थी।
“बी फॉर बेबी।” टीचर की पढाई जारी थी, “बेबी माने....।”
लल्ली ने आगे सुना ही नहीं। वह तो स्कूल के बाहर जा पहुंची थी। सचमुच में नहीं, ख्यालों में। जैसे ही उसने ‘बेबी’ शब्द सुना, उसे ‘बेबी अप्पी’ (दीदी) का ध्यान हो आया। बेबी अप्पी उसके पडोस में रहती हैं। उनकी और लल्ली की पक्की दोस्ती है। सारा दिन वह उन्हीं के साथ रहती है। सुबह तो अप्पी स्कूल चली जाती हैं, लेकिन दोपहर से लेकर रात तक लल्ली का सारा समय बेबी अप्पी के साथ ही बीतता है। खाना–पीना, पढना–लिखना, टीवी देखना, सब कुछ एक साथ।
कल जब बेबी अप्पी अपने स्कूल से लौटी थीं, तो वे लल्ली के लिए लालीपॉप लाई थीं। लल्ली को वह बहुत अच्छा लगा था। लल्ली ने लालीपॉप को एक बार चूसने के बाद कहा था, “अप्पी, कितना अच्छा है ये। आप भी चूसकर देखो न।”
अप्पी उस समय आटा गूंथ रही थीं। पर लल्ली ने इतने प्यार से कहा था, फिर भला वे कैसे टाल जातीं? उन्होंने अपना काम रोक कर एक बार लालीपॉप चूसा और फिर बोलीं, “सच्ची बहुत मीठा है। एकदम तुम्हारे गालों की तरह।”
“छि, गाल भी कहीं मीठे होते हैं?” लल्ली मन ही मन बडबडाई, “पर जब अप्पी कह रही हैं, तो...” और फिर वह मुस्करा पडी थी। लगा था जैसे बहुत सारे फूल एक साथ झर पडे हों।
लल्ली के लिए बेबी अप्पी ही सब कुछ हैं। वे जैसा कहती हैं, लल्ली वैसा ही करती है। अगर वे कहें लल्ली बेटा पढाई करा लो, तो लल्ली पढने बैठ जाएगी। अगर वे कहें लल्ली बेटा टीवी बंद कर दो, तो लल्ली टीवी बंद कर देगी। फिर चाहे टीवी पर कितनी अच्छी कार्टून फिल्म क्यों न आ रही हो।
लल्ली बेबी अप्पी का जितना कहना मानती है, उतना तो अपने अम्मी–पापा का भी नहीं मानती। लल्ली तो स्कूल आने के लिए तैयार ही नहीं थी। लेकिन जब अप्पी ने समझाया, तो वह मान गयी। अप्पी ने ही ड्रेस पहनाकर लल्ली को तैयार किया और फिर उसके आग्रह पर वे उसे स्कूल तक छोडने भी आईं।
अचानक लल्ली की तन्द्रा टूटी। उसने देखा टीचर जी उसके सामने खडी हैं। वे पूछ रही थीं, “आप पहली बार स्कूल आई हैं?”
लल्ली ने ‘हां’ की मुद्रा में सिर हिला दिया।
“क्या नाम है आपका ?”
“लल्ली।” वह मुस्कराई।
“ये तो घर का नाम है। स्कूल का नाम बताइए।”
“स्कूल का नाम?” लल्ली सोच में पड गयी। अगले ही क्षण उसे स्कूल का नाम याद आ गया। वह बोली, “बाल विकास मांटेसरी स्कूल।”
सभी बच्चे हंस पडे। टीचर भी हंसे बिना न रह सकीं। वे बोलीं, “ये तो आपने सही बताया। पर मेरा मतलब है कि जैसे आपने नाम....” सही शब्द न मिल पाने के कारण टीचर ने अपनी बात बीच में ही काट दी। एक पल के अंतराल के बाद उन्होंने नये सिरे से अपनी बात उठायी, “मेरा मतलब है कि जैसे घर में लोग आपको लल्ली कहते हैं, वैसे स्कूल में क्या कहेंगे?”
लल्ली को टीचर की समझ पर दया आ गयी। इतनी सी बात इनकी समझ में नहीं आ रही। अरे, जब घर में लल्ली कहते हैं, तो क्या स्कूल में लल्ली नहीं कह सकते? बेबी अप्पी जब एक बार उसे अपने स्कूल ले गयी थीं, तो उन्होंने वहां पर भी उसे लल्ली ही कहा था। उसने स्कूल के नाम के लिए भी वही नाम दोहरा दिया, “लल्ली।”
टीचर का मन खीझ उठा। लल्ली को और ज्यादा समझाकर पूछना उनके बस के बाहर था। उन्होंने लल्ली का बैग खोला और उसमें से एक कॉपी निकाल ली। उस पर नाम लिखा था– तबस्सुम बानो।
“ये देखो, इसमें लिखा है तबस्सुम बानो। यही आपका स्कूल का नाम है।” टीचर ने कॉपी पर लिखा नाम दिखाते हुए कहा।
“लेकिन टीचर जी, ये तो कॉपी–किताब वाला नाम है।” लल्ली ने मासूमियत से अपना पक्ष रखा, “आपने तो मेरा नाम पूछा था। अगर आप कॉपी–किताब वाला नाम पूछतीं, तो मैं फौरन बता देती।”
लल्ली के इस भोलेपन पर टीचर मुस्करा कर रह गयीं। उनका मन हुआ कि वे उसे गोद में उठाकर ढेर सारा प्यार करें। लेकिन उन्होंने अपनी भावनाओं को दबा दिया और मुस्कराकर बोलीं, “अच्छा, अब मैं कॉपी–किताब वाला नाम ही पूछूंगी। ...चलो, अब पढाई करो। बी फॉर बेबी, बेबी माने बच्चा।”
टीचर की बात सुनकर लल्ली का मन अचकचा गया। बेबी तो उसकी अप्पी का नाम है। फिर बेबी माने बच्चा कैसे हो सकता है? बेबी माने अप्पी होना चाहिए।
टीचर बार–बार बच्चों को वही लाइन रटवाने लगीं– “बी फॉर...”
“लगता है टीचर को मालूम नहीं कि बेबी माने अप्पी होता है। तभी तो वे पढा रही हैं, बेबी माने बच्चा।” लल्ली मन ही मन बुदबुदाई। एक बार उसने सोचा कि टीचर को बता दे कि बेबी माने अप्पी। लेकिन फिर अगले ही पल उसे ख्याल आया– ‘कहीं डांट दिया तो?’ और वह चुप रह गयी।
पर लल्ली का मन शांत न रह सका। वहां पर विचारों की उठा–पटक चल रही थी– पता नहीं कैसी टीचर हैं, जो गलत–सलत पढा रही हैं? वह तो कभी ऐसा नहीं पढेगी। सारे बच्चे पढते हैं तो पढने दो। वह तो कहेगी– बेबी माने अप्पी। प्यारी–प्यारी अप्पी। मेरी अच्छी अप्पी।
अचानक टीचर का ध्यान लल्ली पर गया। वे बोलीं, “क्या बात है तबस्सुम? तुम पढ नहीं रही हो?”
लल्ली चौंक पडी। जैसे उसकी चोरी पकड ली गयी हो। वह धीरे से बोली, “बेबी माने अप्पी।”
सारे बच्चे हंस पडे। टीचर के चेहरे पर भी मुस्कान की रेखाएं खिंच गयीं। वे बोलीं, “आपको कैसे मालूम कि बेबी माने अप्पी होता है?”
“क्योंकि बेबी मेरी अप्पी का नाम है।”
लल्ली का जवाब सुनकर टीचर चकरा गयीं। एक पल के अंतराल के बाद वे बोलीं, “बेटे, वह तो सिर्फ नाम है। और हर नाम का अलग–अलग मतलब होता है। जैसे ऐपल माने सेब। वैसे ही बेबी माने बच्चा। चलो, अब पढो, बी फॉर...”
पर लल्ली इतनी जल्दी हार कैसे मान लेती? वह अपने मन से यह बात कैसे निकाल दे कि उसकी अप्पी का नाम बेबी है? उनके अम्मी–पापा बुद्धू तो हैं नहीं, जो उल्टा–सीधा नाम रख देंगे? उसे लगा टीचर उसे उल्लू बना रही हैं।
टीचर ने लल्ली से पुन: पूछा, “बेबी माने?”
“अप्पी।” लल्ली ने धीरे से जवाब दिया।
“बेटी, अप्पी नहीं, बच्चा। बेबी माने बच्चा।”
पर लल्ली नहीं मानी। उसने अपने मन में गांठ बांध ली थी– बेबी माने अप्पी।
टीचर ने एक बार बताया, दो बार बताया... बार–बार बताया। और जब लल्ली फिर भी नहीं मानी, तो उन्हें गुस्सा आ गया। वे झुंझला कर बोलीं, “बडी बदतमीज लडकी हो तुम। मैंने पचास बार कहा, बेबी माने बच्चा। पर तुम अपनी ही रट लगाए पडी हो। अब जल्दी से बोलो, बेबी माने बच्चा।”
टीचर के कडे रूख को देखकर लल्ली घबरा गयी। वह कुछ न बोली। यह देखकर टीचर का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। वे बोलीं, “पढती है या लगाऊं एक चाटा?” कहते हुए उन्होंने अपना दाहिना हाथ जोर से ताना।
लल्ली डर के कारण कांप उठी। उसने अपनी आंखें बंद कर लीं। उसे लगा– अब पडा चाटा, तब पडा...
पर टीचर ने लल्ली को मारा नहीं। लल्ली का सहमा हुआ चेहरा देखकर वे अपना गुस्सा पी गयीं। उन्होंने प्यार से लल्ली के गालों को सहलाया। लल्ली का डर कुछ कम हुआ। उसने धीरे से आंखें खोलीं।
“बोलो बेटे, बेबी माने...?” टीचर ने दसवीं बार लल्ली से पूछा।
लल्ली ने पलकें झपकाईं, टीचर की ओर देखा, धीरे से बोली ‘अप्पी’ और फिर जोर–जोर से रोने लगी।