बेरोजगार और कुछ आविष्कार / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :15 अक्तूबर 2015
उमाशंकर सिंह की नई पटकथा में नए व्यवसाय का जिक्र है कि ठेका लेकर इंटरनेट पर किसी भी व्यक्ति की आलोचना फर्जी अकाउंट से की जाती है। इस नए व्यवसाय की अभी अलसभोर है और विगत राष्ट्रीय चुनाव में इस तरह की घोस्ट एजेंसियों का जमकर प्रयोग किया गया है। विज्ञापन एजेंसी राजनीतिक प्रचार की विशेषज्ञ होती हैं और विगत चुनाव में उन्होंने नेता को किस अवसर पर कैसे कपड़े पहनना, यह भी तय किया था। अब चुनाव और फिल्म की शूटिंग में काफी समानताएं आ रही हैं। कलाकार के सारे वस्त्र निर्देशक से सलाह करके विशेषज्ञ पोशाक बनाता है। ज्ञातव्य है कि हमारी भानु अथैया को रिचर्ड एटनबरो की 'गांधी' के लिए कास्ट्यूम बनाने के लिए ऑस्कर अवॉर्ड मिला था। इसी तरह सितारे के संवाद किसी और के द्वारा लिखे होते हैं, वस्त्र किसी और ने बनाए हैं और कैमरामैन फर्श पर चाक से निशान बनाता है कि उसे यहां तक चलकर संवाद बोलना है। इसी तरह आजकल नेता के भाषण लिखने के लिए घोस्ट लेखकों का एक दल होता है। केवल जवाहरलाल नेहरू ने अपने भाषण हमेशा स्वयं लिखे हैं। उन्होंने अपने सभी मुख्यमंत्रियों को प्रतिमाह दो पत्र लिखने की रीति का पालन 1947 से 1963 तक किया है और अब उन पत्रों का संकलन किताब के रूप में प्रकाशित हो चुका है। पेंगुइन का प्रकाशन है।
बिहार के चुनाव में प्रधानमंत्री तथा अन्य दलों के नेता उतनी भीड़ नहीं जुटा पाए, जितनी फिल्म अभिनेता अजय देवगन के लिए जमा हुई थी और अव्यवस्था हो जाने के कारण उन्होंने भाषण नहीं दिए। इस बिहार चुनाव में अभी तक बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा के चुनावी दौरे के बारे में कहीं कुछ खबर नहीं आई और वे आकर भाषण देते। इससे बड़ी खबर यह बन गई है कि इस बार शत्रुघ्न सिन्हा खामोश हैं और उनकी खामोशी खूब बोल रही है। परेश रावल ने कभी भाषणबाजी की ही नहीं और हेमा मालिनी अपने पौत्र की सेवा में लगी हैं। जिस व्यापक पैमाने पर बेकारी जा पहुंची है, उससे अधिक लोग बेरोजगार अगले वर्षों में होने वाले हैं। मसलन बीफ व्यवसाय में कार्यरत चार लाख लोग घर बैठने वाले हैं। आज भारत में जो विश्व का सबसे अधिक संख्या में युवा वर्ग है, वह अगले पांच वर्षों में और अधिक बड़ा होगा।
आजकल प्राय: खबरें आती हैं कि चपरासी पद के लिए आवेदन करने वालों में अनेक अत्यंत पढ़े-लिखे लोग हैं और कैसी दुखद स्थिति में उन्होंने चपरासी पद के लिए आवेदन किया है। कल्पना कीजिए कि एम.ए. तथा शोध करके डॉक्टरेट हासिल करने वाले की नियुक्ति चपरासी पद पर होती है और वह अपने से कमतर अफसर को चाय और पानी देता है। बताइए देने वाले को अधिक शर्म आएगी या पाने वाला भी थोड़ा-सा शरमाएगा? आजकल लोगों ने शरमाना इस कदर छोड़ दिया है कि वर के सामने वधु पारम्परिक चाय की ट्रे लेकर आती है, तो वह मुश्किल से शरमा पाती है। अब हम किसी भी पतन पर शर्मसार नहीं होते। हाय रे कहां चली गई हया?
बेरोजगार युवा किसी सफल राजनीतिक दल का सदस्य बने, तो बिना योग्यता के ऊंचा पद मिल जाता है। अब बेरोजगार लोगों को अपनी कल्पना शक्ति से नए अवसर स्वयं बनाने होंगे, क्योंकि सरकारों से कुछ भी अपेक्षा करना ठीक नहीं, वे अन्य कार्यों में व्यस्त हैं। महानगर मुंबई की भव्य इमारतों में रात की पाली में कई सुरक्षा कर्मचारी होते हैं। एक चाय वाले के यहां नौकरी करने वाला व्यक्ति सायकिल पर भवन दर भवन रात पाली के सुरक्षा कर्मचारियों को चाय पिलाता है। हर दो घंटे में चाय उपलब्ध कराई जाती है। कमाई का काम है। धन्य हैं नाना पाटेकर, जो गांव दर गांव हताश किसानों का नैराश्य दूर कर रहे और भारत का अवाम भी उन्हें जी खोलकर धन उपलब्ध करा रहा है। इस क्षेत्र में भी नौकरी के अवसर हैं। चुनाव जीतकर सत्ता में आने वाले नेता तो बेरोजगारी दूर नहीं करते, परंतु चुनाव की प्रक्रिया में रोजगार मिल जाता हैं, इसलिए नेता वर्ष भर चुनाव-चुनाव खेल सकते हैं और उनका काला धन रोजगार दे सकता है और ये उनकी एकमात्र देश सेवा होगी। क्या हम सब शर्मसार हैं?