बेली डांसर / अंजना वर्मा

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अमेरिका का एक शहर फीनिक्स। गर्मी के दिनों की एक सूखी हुई शाम। रेस्तराओं में काफी भीड़ थी। कई जगह बंद दरवाजों के भीतर डांस के प्रोग्राम चल रहे थे। तन्दूरी टाइम्स रेस्तरां का सारा हॉल भर चुका था। हालत यह थी कि अब आने वाला या तो किसी के उठकर, बिल चुकाकर बाहर जाने का इंतजार करता, इधर-उधर खड़ा रहता या फिर लौटकर चला जाता। सभी कुर्सियों पर औरत-मर्द बैठे हुए थे। हॉल में कुर्सियों के बीच बेली डांसर नाच रही थी। उसके गोरे कंधे खुले हुए थे। वक्ष का अधिकांश भाग और पेट भी दूध की तरह उजला निरावृत्त था। टाँगें भी जाँघों तक शरीर के हिलने के साथ ही कभी ढँक जाती थीं तो कभी खुल जाती थीं। काली झिलमिलाती हुई पोशाक उसके बदन को आधा-अधूरी ढँकती हुई उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रही थी। ‘ओम् नमः शिवाय’ की धुन पश्चिमी वाद्य-यंत्रों पर बज रही थी, इस तरह कि यदि शब्दों पर ध्यान न दिया जाता तो वह जैज़ संगीत ही मालूम पड़ रही थी। बेली डांसर की उम्र मुश्किल से बाइस या तेइस साल की होगी। अधखुले शरीर से नाचते हुए भी उसके सुंदर चेहरे पर दर्शकों को रिझाने का कोई भाव नहीं था, न ही उसकी अदाओं में कोई कामुक आमंत्रण था। लेकिन वहाँ बैठे सभी मर्दों की नज़रें उस पर टिकी हुई थीं। औरतों की भी। सभी के सामने मेज पर कई तरह की डिशें सजी हुई थीं, परन्तु लोगों की दिलचस्पी टेबुल पर सजे व्यंजनों में नहीं, इस नाचती हुई गुड़िया में थी।

इस डांस के दौरान एक दम्पति का खाना खत्म हो गया। औरत और मर्द दोनों जाने लगे तो मर्द बेली डांसर के पास रुक गया। उसने अपने वैलेट से डॉलर निकाला और उसके टॉप के फीते में अपने हाथों से खोंस दिया। कुछ क्षणों तक खड़ी रहकर बेली डांसर ने वह नोट अपने फीते में खोंसवा लिया। वह पुरुष उस स्त्राी के साथ चला गया-वह जो भी रही हो, उसकी पत्नी या प्रेमिका। इसके बाद एक और व्यक्ति बाहर जाने लगा। वह भी डॉलर उसके टॉप के स्ट्रैप में खोंसने की कोशिश करने लगा। ऐसा करते समय जबकि उसकी अंगुलियाँ नोट खोंसने में व्यस्त थीं, आँखें निढाल-सी उसके गोरे वक्ष पर विश्राम करने लगी थीं। नोट खोंसकर वह भी बाहर निकल गया। वह डांसर नोरा सारे नोट एक आभार-भरी मुस्कुराहट के साथ स्वीकार करती चली जा रही थी।

रेस्तरां के हाल में नीम अँधेरा था, फिर भी वहाँ बैठे लोगों के चेहरे देखे जा सकते थे। स्लेटी अँधेरे के बीच कमर लचकाकर नाचती हुई वह कौंधती हुई बिजली जैसी लग रही थी। नाचते-नाचते हॉल के इस छोर से उस छोर तक चली जाती। फिर उसी तरह नाचती हुई उस छोर से इस छोर तक आ जाती। उसकी गोरी कलाइयों में रुमाल बँधे हुए थे। वह अपनी अंगुलियों में कुछ पहने हुई थी जिनसे किटकिटाहट का स्वर निकाल रही थी। नाचते हुए वह अपनी बाँहों को फैला देती, दो क्षण ठमककर खुले हुए बालों को आगे गिराती। फिर सिर झटककर पीछे की ओर फेंक देती। कभी उसका चेहरा बालों से ढँक जाता तो कभी पूर्णिमा के चाँद की तरह निकल आता।

यहाँ आनेवाले अधिकतर भारतीय थे। एक छोटा भारतीय परिवार हॉल के भीतर दाखिल हुआ। भीड़ देखकर और बैठने की जगह न पाकर वह दम्पति वहीं इंतजार करने लगा। उनके साथ एक चार साल का बच्चा था, दूसरा बच्चा गोद में था। अभी-अभी एक व्यक्ति बाहर गया था तो उसकी मेज खाली हुई थी। जार्ज वहाँ आकर मेज साफ करने लगा था। मेज साफ करके उसने इनलोगों को बैठने का संकेत किया। वे सब बैठ गये और मुग्ध होकर नृत्य देखने लगे। अलबत्ता उस दम्पति के चार वर्षीय बेटे को वहाँ कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। वह कोल्ड डिं्रक की माँग करने लगा था और ऊबने जैसा मुँह बना चुका था।

नोरा ने देख लिया था इस छोटे-से परिवार को और यह भी देखा कि ये लोग गोद में एक नन्हा शिशु लेकर आये हैं। उसने अनुमान लगा लिया कि ये लोग अपने छोटे बच्चे को पहली बार बाहर लेकर निकले हैं। शायद सेलेब्रेट करने के लिए। यहाँ से कुछ अधिक ही मिल सकता है। वह उनकी मेज के पास आकर नाचने लगी थी। इस जोड़े की औरत ने उससे कहा,

“तुम बहुत अच्छा नाचती हो और बहुत सुंदर हो।”

नाचते हुए ही नोरा ने जवाब दिया था, “सुंदर तो तुम भी हो।”

फिर उसने बच्चे को देखकर पूछा था, “यह कितने दिनों का है?”

“एक महीने का” उस औरत ने कहा था।

“ओह, कम ऐंड डांस।” नोरा ने उस औरत को नाचने के लिए आमंत्रित किया।

वह औरत उठी। उसने बच्चे को पति की गोद में दे दिया। वह नोरा के साथ कुछ सेकेंडों के लिए नाची। फिर वापस अपनी जगह बैठ गयी। नोरा ने उस औरत की रेशमी साड़ी को देखते हुए कहा, “ब्यूटीफुल। योर ड्रेस इज वेरी प्रेशस।”

उस औरत ने मुस्कुराकर कहा, “थैंक्स।”

वे सब खाना खाने लगे। खाना खत्म करके जब वह परिवार जाने के लिए खड़ा हुआ तो नोरा वहाँ थिरकती हुई पहुँच गयी। औरत ने अपने पर्स से एक पाँच हजार डॉलर का नोट निकाला और उसके टॉप के फीते में खोंस दिया। नोरा मुस्कुरा उठी। उसने कहा, “थैंक्स।”

वह परिवार बाहर चला गया। नोरा नाच तो जरूर रही थी, लेकिन उसका मन कहीं और अटका हुआ था। जार्ज यहाँ पहुँचने वाले लोगों के ऑर्डर पूरे कर रहा था। आज वह भी अनमना था। अपना काम करने के बाद जब वह एक कोने में खड़ा होकर सुस्ताने लगता तो नोरा को देखते हुए सोचने लगता। वह जान रहा था कि आज क्या उथल-पुथल उसके दिल में मची होगी। आज किस तरह वह पैसे बटोर रही है। उसके टॉप के फीते में दबे हुए थे कितने सारे नोट! उसे जरूरत भी थी इन पैसों की।

नोरा आज का प्रोग्राम नहीं करना चाहती थी। उसकी माँ अस्पताल में भर्ती थी और आज अचानक उसकी हालत बिगड़ गयी थी। नोरा सुबह से माँ के पास ही बैठी हुई थी, लेकिन उसकी विवशता थी कि अपराह्न में उसे अपने प्रोग्राम के लिए निकलना था। रस्सी से बँधे पशु की तरह वह परवश थी। उसे अपने शो के लिए जाना ही पड़ेगा। अपनी दुखद सच्चाई बताने पर भी छुटकारा न मिलने वाला था। इसलिए कराहते हुए मन से जब वह रेस्तरां जाने के लिए तैयार होने को उठी थी तो बेड पर पड़ी माँ ने हाथ बढ़ाकर उसकी स्कर्ट का किनारा पकड़ लिया था और कहा था, “नोरा, आज शो करने के लिए मत जाओ। पता नहीं मैं रहूँ या न रहूँ। मैं तुम्हारी अनुपस्थिति में मरना नहीं चाहती।”

माँ की घरघराती हुई आवाज़ नोरा के दिल के भीतर तक उतर गयी थी। माँ को इस हालत में छोड़कर जाना तो वह भी नहीं चाहती थी। लेकिन यह संभव नहीं था। उस रेस्तरां की भीड़ बेली डांस देखने के लिए ही होती थी। इसलिए वह शो छोड़ नहीं सकती थी। शो नहीं करने का मतलब था काम से छुðी। काम छूट जायेगा तो वह कहाँ जायेगी? क्या करेगी? अपना और अपनी बीमार बूढ़ी माँ का खर्च कैसे चलायेगी? वह कुछ देर के लिए माँ के बेड के किनारे बैठ गयी। उसे कुछ जवाब देते हुए नहीं बना। मन कर रहा था, काश! वह माँ की बात मानकर रुक सकती। अब माँ को बच्चे की तरह फुसलाना था।

वह बोली, “ऐसा क्यों बोलती हो माँ? तुम्हें कुछ नहीं होगा। कुछ घंटों की ही तो बात है। मैं शो पूरा करके तुरंत चली आऊँगी। आज जल्दी आऊँगी। घबराओ मत मेरी प्यारी माँ।”

यह कहकर उसने माँ के झुर्रीदार पीले चेहरे को सिर पर चूम लिया था। माँ ने कुछ कहा नहीं। चुपचाप वैसी ही लेटी रही। नोरा की आँखों में पानी भर आया जिसे छुपाने के लिए उसने विपरीत दिशा में अपना चेहरा घुमा लिया। फिर वह पर्स उठाकर धीरे-धीरे कमरे से बाहर चली गयी-अपने को बहुत ही बेबस और कमजोर महसूस करते हुए।

उसकी काँपती बेल-सी देह और सुंदर चेहरे को देखकर कोई उसके उजाड़ मन का अनुमान नहीं लगा सकता था जिसमें रेत-ही-रेत भरी हुई थी। जिन्दगी उसके लिए बियाबान हो चुकी थी। आज से कई वर्ष पहले जब वह पढ़ रही थी उसे नहीं मालूम था कि दुनिया की कई बुराइयाँ प्यार का मुखौटा लगाकर भोलेपन को लूट लेती हैं। ऐसे मुखौटों के भीतर धोखा, फरेब, बेईमानी और कुटिलता छिपी रहती है। नोरा भी इसी तरह ठगी गयी थी। अगर समय पर जार्ज ने सहारा नहीं दिया होता तो पता नहीं वह जी भी पाती या नहीं। वह अकस्मात् विधवा हो गयी माँ को भी सँभाल नहीं पाती। तब माँ का क्या होता? पिता इसी सदमे में गुजर गये थे।

उस समय का सिर्फ एक गलत कदम एक डांसर के जीवन की नींव रख गया था। शरीफ दिखने वाला वह शैतान स्कूल के बाहर खड़ा होकर उसका इंतजार किया करता था। बातें तो ऐसी करता था मानो नोरा ही उसके लिए सब कुछ थी। शराफत का अभिनय भी ऐसा कि शक की कोई गुंजाइश न बचती। उस उम्र में नोरा ही नासमझ थी कि उसने कभी उसे जाँचने-परखने की कोशिश नहीं की। इसीलिए प्यार को अंधा भी कहा गया है। उस फरेबी ने उसे सुनहले स्वप्न दिखाये। साथ-साथ जीने और मरने की कसमें खायीं। इस तरह वह उसे अपने जाल में फँसा रहा था। नोरा का विश्वास जीतने के लिए वह उसे उपहार देता रहता। फिर बात उलट गयी। वह नोरा से पैसे निकलवाने लगा। वह नशाखोर था। अब उसे जब पैसों की जरूरत होती थी, कोई-न-कोई बहाने से उससे माँग लेता था।

एक दिन उसने नोरा के सामने प्रस्ताव रखा कि वह अपने पिता के घर से जितने पैसे ले सकती है, लेकर उसके साथ भाग चले। वे लोग कहीं और जाकर रहेंगे और अपनी अलग दुनिया बसायेंगे। नोरा उसके साथ निकल गयी थी। कई दिनों तक वे खाते-पीते घूमते रहे। एक दिन उसे वह होटेल में सोती हुई छोड़कर गायब हो गया था। उसके पर्स के पैसे निकाल लिये गये थे। सिर पर होटेल का बिल था चुकाने को। तब जार्ज ने उसे इस संकट से उबारा था।

वह उस होटेल में ही सफाई का काम करने लगी थी। दुःख और शर्म से वह वापस घर नहीं लौटी थी। कुछ समय बाद पता चला कि उसके पिता इस आघात से चल बसे थे। यह सुनने के बाद वह दुःख से सनी जार्ज के साथ माँ को देखने गयी थी अपने घर। आँसुओं का वेग थम नहीं रहा था। इन कुछ वर्षों के भीतर ही माँ कितनी टूटी-बिखरी दिखायी दे रही थी। वह माँ को अपने साथ ले आयी थी। उसने अपने मन में सोचा था कि पिता को तो उसने गहरी चोट पहुँचायी अपनी नासमझी से, कम-से-कम माँ को तो दुःख से उबार ले!

माँ को अपने साथ लेकर वह आयी थी तो उसे बहुत सुकून मिला था। जार्ज ने उसे दूसरा जीवन दिया था। उसी से मिलने के बाद उसे लगा था कि सभी पुरुष एक-से नहीं होते। एक ने उसे तोड़कर बिखेर दिया था तो दूसरे ने फिर से जोड़कर खड़ा कर दिया था। वह होटेल में काम करते हुए कैसे डांसर बन गयी थी-इसका एहसास उसे नहीं हो सका था। डांसर का अर्थ दुनिया के शब्दकोश में चाहे जो कुछ भी हो, उसके लिए इसका अर्थ था जीवन। रोजी-रोटी।

आज नोरा शो कर रही थी, पर उसके दिमाग में बीमार माँ का पीला चेहरा एक पेनिं्टग की तरह टँगा हुआ था। जिन्दगी की पिछली बातें उठी हुई किसी भयंकर आँधी की तरह याद आ रही थीं। बीच-बीच में उस धोखेबाज का चेहरा उभर आता था। उसकी याद आते ही वह तिलमिला जाती थी। खून खौल उठता था उसका। लेकिन अब वह रोयेगी नहीं-उसने कसम खा ली थी। बहुत रो चुकी थी। अब उस जिन्दगी का सामना करेगी जो उसके सामने हैं। नोरा सोच रही थी। दुःख में डूबे हुए पिता का चेहरा कैसा हो उठा होगा? वह कल्पना की नजरों से देख रही है। इधर वह मशीन की तरह बाँहें फैला देती है। बालों को पीछे से आगे, फिर आगे से पीछे झटकार देती है। पिता की मृत्यु का कारण वही थी-नोरा के अभ्यस्त पैर थिरक रहे हैं। अंगुलियों को बजा रही है-किट्-किट्-किट््-किट्। कमर हवा से हिलती हुई लतर की तरह लचक रही है। लोग उसे देख रहे हैं। उसकी आँखें न जाने कहाँ देख रही है!

जिन्दगी उसके लिए उलझा हुआ ऊन का गोला बनी हुई है। वह अभी तक उसके सूत सुलझा रही है। उसके पास एक सवाल है। हमेशा औरत को ही कीमत क्यों चुकानी पड़ती है? टूटती है औरत ही। फिर भीतर से लहरें उठ रही थीं उसे भिंगाने के लिए। पति, बच्चे, घर, परिवार। यही सपना तो उसका भी था। कैसे वह फिसल गयी कि गिर पड़ी! उसके साथ-साथ उसके सपने भी गिरकर टूट गये। अभी उसने देखा था एक छोटा-सा परिवार। एक छोटा मासूम शिशु! दिल में आया था उसे हाथों में लेकर देखे और चूम ले। वह सोया हुआ बच्चा बार-बार उसकी आँखों के आगे आ-जा रहा था।

शो खत्म होते ही वह जार्ज के पास गयी। उसने उससे पूछा, “कोई कॉल आया था क्या माँ की ओर से?”

जार्ज ने गंभीर चेहरा बनाये हुए कहा, “नहीं।”

वह अपने से बुदबुदाने लगी, “पता नहीं, माँ की तबीयत कैसी होगी?” फिर उसने जार्ज का हाथ पकड़कर उसे अपने साथ चलने के लिए खींचते हुए कहा, “चलो मेरे साथ। जा रही हूँ। माँ मेरा इंतजार कर रही होगी किसी बच्चे की तरह।”