बैंक लूटने के अभिनव तरीके / जयप्रकाश चौकसे

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बैंक लूटने के अभिनव तरीके
प्रकाशन तिथि : 04 सितम्बर 2019


दिलीप कुमार ने केवल एक फिल्म 'गंगा-जमुना' बनाई, जिसे क्लासिक का दर्जा हासिल है। उनकी मनपसंद किताब एमिली ब्रान्टे का उपन्यास 'वुदरिंग हाइट्स' है, जिससे प्रेरित फिल्म 'दिल दिया दर्द लिया' में उन्होंने अभिनय किया था। उन्होंने अपने लंबे कॅरिअर में 60 या 70 फिल्मों में भी अभिनय किया, क्योंकि कोई भी फैसला लेने के लिए उन्हें लंबा समय लगता रहा है। यहां तक कि अपने विवाह का निर्णय भी उन्होंने उस समय किया, जब वे 40 के पार पहुंच चुके थे। किसी भी काम में उन्हें जल्दबाजी पसंद नहीं रही। सोचकर किया गया निर्णय भी गलत सिद्ध हो सकता है पर इसका उन्हें कभी मलाल नहीं रहा और जल्दबाजी में लिए गए निर्णय से हो सकने वाले लाभ का उन्हें कभी मोह नहीं रहा।

दिलीप कुमार ने 'बैंक मैनेजर' नामक पटकथा लिखी थी, जिसका नायक बैंक मैनेजर है और अपनी ईमानदारी के लिए सराहा जाता है परंतु वही मैनेजर रात में बैंक लूटने की योजना भी बनाता है। योजना इतनी ठोस होती है कि मुजरिम कभी पकड़ा न जाए। यह कमोबेश आरएल स्टीवेंसन के 1886 में प्रकाशित उपन्यास 'स्ट्रैंज केस ऑफ डॉ. जैकल एंड मि. हाइड' के से प्रेरित काम था। आरएल स्टीवेंसन कविताएं भी लिखते थे। उनकी एक कविता का शीर्षक था- रिक्विम ऑन द सैड डिमाइस ऑफ ए मैड डॉग अर्थात पागल कुत्ते की मृत्यु पर लिखा शोक गीत। राजनैतिक सत्ता पागलों का थोक निर्माण करती रही है। आरएल स्टीवेंसन की सारी किताबें पुस्तक प्रेमी डॉ. सिद्धार्थ शुक्ला ने सहेजकर रखी हैं। आजकल किताबें कंप्यूटर पर पढ़ी जाती हैं और अक्षरों को एनलार्ज भी किया जा सकता है परंतु कागज पलटने की खुशबू हाथों में आ जाती है और खुशबू निर्माण का कोई कारखाना उसे बना नहीं सकता। दिमागी सेहत को बनाए रखने के लिए सप्ताह में कम से कम एक बार किसी वाचनालय की यात्रा करनी चाहिए। विगत कुछ वर्षों में बैंक डकैती के नए मौलिक आविष्कार का जन्म हुआ है कि व्यक्ति अपनी किसी संपत्ति के दस्तावेज बैंक में जमा करके बैंक से ऋण लेता है, जिसे वह चुकाता नहीं। बैंक संपत्ति को अधिकार में ले लेता है जो केवल कागज पर अस्तित्व में थी। वह काल्पनिक संपत्ति खोजने पर कहीं नहीं मिलती। अगर कर्ज का पानी नाक तक आ जाए तो कर्ज में गले तक डूबा व्यक्ति हाथ खड़े कर देता है। गोयाकि दिवालियापन भी कर्ज अदायगी से बचने का एक तरीका है।

किसी दौर में समाज दिवालिए व्यक्ति को घृणा से देखता था और उसके घर कभी कोई रिश्ता लेकर नहीं जाता था। आज तो दिवालिया व्यक्ति अपने बेटी को भारी दहेज देता है और उसके बेटे की बारात में बैंक मैनेजर नागिन डांस करता है। कुछ वर्ष पूर्व 'आंखें' नामक एक फिल्म बनी थी, जिसमें अंधे एक बैंक में डाका डालने में कामयाब होते हैं। बैंक के भवनों का बाजार मूल्य समय के साथ बढ़ता जाता है, जिसके सहारे दिवालिएपन की कगार पर खड़े बैंक भी अपनी बैलेंस शीट मुनाफे की बना लेते हैं। आज बाजार में चांदी, सोने के दाम आकाश छू रहे हैं, क्योंकि अवाम का यकीन कागजी मुद्रा में घटता जा रहा है। अब बचत के रुपए से चांदी-सोना खरीदना अवाम को सुरक्षित लगने लगा है। हीरे-मोती से अधिक सुरक्षित है चांदी-सोने की खरीदारी। चंबल क्षेत्र में डाकू नहीं रहे। वे शहरों में आ गए और वे बैंकों में इस नए ढंग से डकैती करते हैं। सामूहिक अवचेतन में चंबल के बीहड़ हमेशा कायम रहे हैं।