बैशाखोॅ के ऊ रौद / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
"जनानी जाते बड़ी अख्खज होय छै, ओकरो पर मोसमास ...? कहै छै वराहमन विदवानें सीनी, सात हाथ धरती छूतै छै।" जैवा दी आँखी रो लोर अंचरा सें पोछलकै आरो आगू कहना शुरू करलकै।
"जेकरा देहें छूतै, भूत-प्रेत संसार, ओकरा की करतै जूड़ी, ताप, बुखार" जैवा दी ई फेंकड़ा बराबर पढ़ै छेलै। महिना बीततें जैवा स्वस्थ होय गेली रहै आरो फेरू घर भरी के नौड़पनोॅ पहिलके नांकी शुरू होय गेलोॅ रहै। जैवा केॅ पते नै चलै कि कखनी सांझ आरो कखनी भियान होलै। सुक्खी के करंख होय गेली जैवा रो गोरोॅ लाल टूह-टूह मुँह कारो सियाही पोतला जुगतां होय गेलोॅ छेलै। सौसे घरें ऐन्होॅ व्यवस्था करलें छेलै कि कोय भी हालतोॅ में मोसमासोॅ के कोनोॅ समाचार या संवाद मिर्जापुर नै जावेॅ पारै। भूललोॅ-भटकलोॅ जौं कोय नैहरा सें आबियो जाय तेॅ जैवा केॅ भेंट नै करेॅ दै। लालजी मड़रें दू-तीन दाफी आदमी भेजी केॅ संवाद जानै के कोशिश करलकै। जवाब में ' सब ठीक-ठाक छै" सुनी केॅ आपनोॅ गिरस्ती के कामोॅ में लागी जाय।
बड़ोॅ घरोॅ के बेटी-पुतोहू लेली तेॅ ऐंगना के चौखट पार होना मरजादा के खिलाफ छेलै। नैहरा सें कोय एैतेॅ, के आशोॅ में जैवा केॅ भियान सें सांझ होय जाय। रात अंचरा सें लोर पोंछतें बीतै आरो दिन भर घरोॅ के देहतोड़न काम करतें। जैवा मनेंमन कानै, बोलै-"हमरा लेली कोय नै, आगू नाथ नै पीछू पगहा, कहाँ छोॅ भगवान। हमरा नैहरा सें भाय-भतीजा केकरोह तेॅ भेजोॅ।"
माघोॅ के दिन छेलै। दांत बजै वाला ठंडा छेलै। तिलसकरांत सात-आठ रोज खतम होलें होय गेलौ रहै। घरोॅ भरी के लोगें बच्चा-बुतरू समेत लड़ुआ मूढ़ी कचाहीन करी केॅ खाय रहलोॅ छेलै। जैवा रो मोॅन ललची-ललची रही जाय। याद आवै बापोॅ रो राज, को रंग ऐंगना में बूली-बूली लाय-मूढ़ी खाय छेलै, अतन्हें नै भोर-भिनसरवैं ठुनकतें बाबू लड़ुआ हाथोॅ में थमाय दै छेलै आरो जैवा रजाय तरोॅ में कुटुर-कुटुर खैतें रहै छेलै।
खेसाड़ी के साग आरो केसौर चौरोॅ के भात जैवा के बहुते पसंद छेलै। हाव दिन उ$ बड्डी खुश होलै जबेॅ सुरजी केॅ भरी खोछोॅ लहलह टूसगरोॅ खेसाड़ी के साग लानतें देखलकै। बीछी-बाछी, धोय-धाय साग बनैतें जैवा सोचलकै, कैन्हें कि वे जानै छेलै कि बनलोॅ हड़िया में साग तेॅ नहियें बचतै यही लेलोॅ जैवा ने थोड़ोॅ-सा साग एक कटोरी में नुकाय केॅ कोठी सांनी में राखी देलकैं। जै घरोॅ में जैवा सूतै छेलै ओकरा में धान-चौेॅर राखै लेली कोठिये बेशी राखलोॅ छेलै। रात केॅ सांप, बिच्छोॅ, अखरी-पिपरी डरै वै घरोॅ में कोय नै जाय छेलै। कोय नै जानतै, जैवा नीफिकर छेलै।
मतुर दैवोॅ के ई मंजूर नै छेलै। पहपट्टी केॅ बच्चा-बुतरू आरो मरदें सीनी सब भात खींची लेलकै। हड़िया सून होय गेलोॅ रहै। जनानीये भरी खाय लेॅ बची गेलोॅ रहै। सासू गोड़ पटकतें हड़िया हुलकी केॅ बोललै-" भात केनां घटी गेलोह? केना बनाय छोॅ?
"चौेॅर नापी केॅ तेॅ सब दिन तोहीं दै छोॅ माय जी."
सासू माय टीन देखै लेॅ गेलै। टीन खाली छेलै। गुस्सा सें टीन बजाड़तें सुरजी माय बोललै-"घरोॅ में सब रो पेट हड़िया नांकी बड़ोॅ होय गेलोॅ छै। की बरक्कत होतै यै घरोॅ में। कुलछनी ।" सासू जैवा हिन्नें ऐन्हों गोस्सलोॅ नजरोॅ सें गुर्राय के ताकलकै जेनां सब ऐकरे कारण सें होय रहलोॅ छै। डरी गेलै मोसमास। सासू सूप हाथों में लैकेॅ सुरजी के पुकारलकै-"सुरजी! आव, कोठी बिना खोलनें कोय उपाय नै छोॅ।"
कोठी रो नाम सुनतैं जैवा के परान हक सें उड़ी गेलै। तब तांय दूनोॅ माय-बेटी कोठी नगीच पहुँची चुकलोॅ छेलै। चौेॅर नीचू गिरी केॅ मांटी-धूरा में खराब नै हुअेॅ सुरजी बोढ़नी सें बोढ़ेॅ लागलै। जैवा भगवानोॅ सें बिनती करी रेल्होॅ छेलै। "जिनगी के पैल्होॅ चोरी माफ करोॅ भगवान"। मतुर जे होना छेलै, होय केॅ रहलै। कोठी के मुन्नन खोली केॅ जे मांटी गिरलोॅ छेलै ओकरा बोढ़ै के क्रम में साग राखलोॅ कटोरी मिली गेलै आरो दून्होॅ माय-बेटी खाली गरियैवेॅ नै करलकै बलुक बाल पकड़ी के खींचलें कोठी नगीच लानलकै आरो अनपट्टोॅ केॅ बोढ़नी-बोढ़नी डंगाय देलकै। जैवा नै कानलै, नै कुछ बोललै। कत्तेॅ कानतिहेॅ? रोजे कानतें लोर सुक्खी गेलोॅ रहै।
यहेॅ रंग भूखलोॅ-पियासलोॅ रोज नया-नया उत्पात सहतें जैवा के दिन भाय-भतीजा आबै के आसोॅ में टांगलोॅ बीती रहलोॅ छेलै। चैतारोॅ हवा केॅ विदा करी केॅ बैशाखोॅ केॅ कड़कड़िया उमस, लू सें भरलोॅ रौद आबी गेलोॅ रहै। चैतारोॅ फसल, बूट, खेसाड़ी, रैंचा, गहूँम किसानें खमारी पर, कोय-कोय ऐंगना में दौरी करी रहलोॅ छेलै। दौरी में गाड़लोॅ खूंटा केॅ जेकरा मिहों कहै छै, में बैलोॅ केॅ बान्ही केॅ घुमैतें दौरी करलोॅ जाय छै। जैवा के ऐंगना में मिहों गाड़लोॅ छेलै आरो दौरी होय रहलोॅ छेलै। चारों तरफ सें घोॅर बनलोॅ छेलै आरो बीचोॅ में बैलोॅ केॅ जैवां हांकी रहलोॅ छेलै। रौदी-बतासोॅ में पानीये के सहारा पर चली रहलोॅ जैवा केॅ लागै कि बनासोॅ सें लहू चूवी जैतेॅ। माथोॅ लागै उड़ी जैतेॅ मतुर डर आरो भय सें दम रहतें बैलोॅ पीछू उ$ घूमै लेली मजबूर छेलै। खुओ जैवा के एक ठो भतीजा उटकी रहलोॅ रहै।
वही कड़कड़िया रौदी में चकरधर द्वारी पर एैलेॅ। हुनी आपनोॅ ससुराल
बंधुडीह लेली भियानिये पैदले चल्लोॅ छेलै। रसतै में बाजा पड़ै छेलै, से हुनी सोची केॅ ही चललोॅ छेलै कि जैवा दी सें भेंट करिये के आगू बढ़वै। दीदी केॅ दौरी हाँकतेॅ देखी केॅ हुनकोॅ तरवा रो लहर मगजे पर तेॅ चढ़ी गेलोॅ रहै। आवाज सुनी केॅ धन्नोॅ मड़र धरफड़ैलोॅ ऐलै। खटिया, बिछौना, पानी धांय-धांय आवेॅ लागलै। मोसमासोॅ केॅ दौरी सें छोड़ाय केॅ घरोॅ में बैठलकै। कोय भी, यहाँ तांय कि जैवा भी नै बूझेॅ पारलकै। चकरधरें भीं तत्काल चूपेॅ रहना अच्छा समझलकै। हमरा समाज में बेटी वाला के ई मजबूरी छेकै कि बेटी पर अत्याचार होतें देखी के भी कुछ ऐन्हों भीतरिया बात छै कि चुप रहै लेॅ पड़ै छै।
दुपहरोॅ सें साँझ होलै, साँझोॅ सें रात होलै। घरवैंया खिलौन-पिलौन, स्वागत-सत्कारोॅ में कोय कमी नै करी रहलोॅ छेलै लेकिन दीदी के भेंटोॅ रो कोय मौका नै दै छेलै। राती खाय बखती चकरधरें खोली केॅ कहलकै-"हमरा सांझै बंधुडीह ससुराल विदागरी वासतें निकलना छेलै मतुर बिना सवासिन सें मिलनें हमरोॅ चललोॅ जैवोॅ अच्छा लागतै। हम्में दीदी सें बिना भेंट करनें जाय वाला नै छियौं। हम्में अपना सवासिन सें दुख-सुख बतियैवोॅ। बोलावोॅ दीदी केॅ, हम्में हुनका एैलें बिना खाना नै खैभौं।"
"रात होय गेलै। तोरोॅ सवासिन खाय-पीवी केॅ सूती गेलोॅ छौं। भियानी मिलियो बेटा।" सुरजी माय निहोरा करलकै।
"हमरा सें बिना मिललैं आरो खिलैनें हमरोॅ सवासिन सूतै नै पारै। है संस्कार हमरा खानदानोॅ के बेटी-बहिन रोॅ हुअेॅ नै पारै।" चकरधरोॅ केॅ अतनै गोस्सा आबी रहलोॅ छेलै कि जों देर होलै तेॅ सबकेॅ एक-एक करी केॅ उठाय केॅ पटकी केॅ मारी दै। आँख कड़ा होय गेलोॅ रहै हुनको-"तोंय सीनी आदमी छेकोॅ कि जानवर, हम्में कहै छियौं कि भियानी भोरे हम्में निकलवै ।"
स्थिति केॅ समझतें हुअें हारी-पारी केॅ धन्नोॅ मड़रें कहलकै-"चकरधरें ठीक तेॅ कही रहलोॅ छौं। भियानी धरफड़ जाय के हूलोॅ में की बातचीत करतै।"
लाचार मोसमासोॅ के लैकेॅ सास सुरजी माय एैलेॅ। जैवा पाँच सालोॅ पर ऐलौ भतीजा के देखतैं बुक नै बान्हेॅ पारलकै आरो बिछलोॅ खटिया के पासी लुग बैठी केॅ बिनाय-बिनाय कानें लागलै। शांत, स्तब्ध रातोॅ में मोसमास के कानवा सें टोला भरी जानी गेलै कि ओकरोॅ कोय भाय-भतीजा आबी गेलोॅ छै। सबसें बेशी खुश छेलै काकी हरिया माय। काकी सरंगोॅ हिन्नें दोनों हाथ उठाय केॅ कहलकै-"भगवान बहुत बड़ोॅ छै। दुखिया के मालिक सीताराम।"
चकरधरें लोर पोछी केॅ चुप करलकै दीदी केॅ आरो केवाड़ी चौखट लागी बात सूनै के कोशिश में छिपी केॅ खाड़ोॅ सास आरो ननदोॅ से कहलकै-"कनसुओॅ की लै छोॅ माय-बेटी. जा आपनौ काम करोॅ, खा, पीओ. हमरा दीदी खिलाय देतै।"
एकांत नै मिलै, यै कोशिश में जे जहाँ छेलै सब हटी गेलै। मोसमासोॅ केॅ दुख दै में कोय पीछू नै छेलै, यही लेली सबकेॅ डोॅर छेलै। आपनो गोतिया भैयारी ईस्सर मड़रोॅ के बेटी सें लालजी मड़रें आपनोॅ संझला बेटा किशोरी के बियाह ई सोची केॅ करनें छेलै कि मोसमासोॅ के देखरेख करतै, मरलोॅ सम्बंध बहुरी जैतेॅ। वही बाराती में चकरधर आरो गजाधर दोनों भाय के बसठ्ठी मार बाजावाला देखनें छेलै। सौसे घोॅर डरोॅ सें सहमी गेलोॅ छेलै। खैवोॅ-पीवोॅ छोड़ी केॅ वहेॅ रंग सिटपिटैलोॅ छेलै जेनां कोय चोर चोरी करतें पकड़ाय गेलोॅ रहेॅ।
जैवा सब बात खोली केॅ बतैलकै। सुनी केॅ चकरधर के भी आँखी से लोर चूवेॅ लागलै-"दीदी, हम्में कांही नै जैवेॅ। तोंय भोरें हमरा साथें मिर्जापुर चलोॅ। हम्में तोरा एक क्षण लेली भी यहाँ नै छोड़वौं। मारपीट करला सें कोय फायदा नै छै। तोंय तड़के भियानिये तैयार होय जा।"
"हम्में दू दिन सें भुखली छियौं। अन्नोॅ बिना हमरा देहोॅ में उठै के सामरथ नै। भियानी केनां चलभौं।" कहतें भरी-भरी आँख लोर आबी गेलै जैवा केॅ। कानलोॅ गेलै आरो बोललोॅ गेलै जैवा-"हम्में तोरा साथें जैभौं मतुर एक शर्त।"
"की दीदी?"
"हम्में नैहरा के देहरी सेववै। गोबर-काठी करभौं बेटा। भाय-भतीजा के देहरी नीपी खैबै लेकिन ई कसाय घर हमरा फेरू कहियो नै भेजिहोॅ। वचन देॅ, वादा करोॅ।" ई कहतें जैवा कानतें धरती पर बच्चा नांकी लोटी गेलै आरो ओकरोॅ दूनोॅ हाथ चकरधरोॅ के गोड़ोॅ केॅ पकड़ी लेलकै।
धरफड़ाय केॅ चकरधरें आपनोॅ गोड़ पीछू करलकै आरो दीदी के हाथोॅ केॅ अपना हाथों में लै केॅ कहलकै-"दीदी, तोंय हमरा सें बड़ी उमर आरो कर्म दूनों में, तोंय गोड़ नै पकड़ोॅ, आशीरवाद देॅ। तोरोॅ भावना के आदर होतै। अतना बड़ोॅ संपत में तोरोॅ भी तेॅ अधिकार छौं दीदी। वचन देलिहौं। चलोॅ भियानकोॅ तैयारी करोॅ।"
घरोॅ में सभ्भेॅ जागले छेलै। चकरधरें हकाय केॅ खाना मंगवैलकै। भरपेट जैवा दी केॅ खिलैलकै आरो खुद खाय केॅ धन्नो मड़रोॅ ठिंया पहुँची केॅ कहलकै-"दीदी के विदागरी चाहियोॅ। भियानी दीदी हमरा साथें जैतेॅ।"
चौखटी के पार ऐंगना तरफें सुरजी माय आरो सुरजी खाड़ी छेलै। सुरजी माय कहलकै-"काम-धंधा के समय छेलै नुनू। कहलोॅ कि ससुराल जाना छै। है अनचोके मोॅन केनां फिरी गेल्होॅ? मोसमासें कुछ्छू झूठ-फूस कही देलखौं की?"
चकरधरोॅ केॅ गोस्सा बरदाश्त करना मुश्किल होय रहलोॅ छेलै। तहियोॅ धीरें, शांत आवाजोॅ में ही कहलकै-"दौरी हाँकै लेली हमरोॅ फूआ तोरा यहाँ नै एैली छै।"
"है कि कहै छोॅ बेटा? है हुअेॅ नै सकै, मोसमासें झूठोॅ के लुतरी लारनें छौं।"
"हाव रौदी में दौरी हाँकतें दीदी केॅ हम्में अपना आँखी सें देखनें छियै। जनानी घरोॅ के इज्जत-मरजादा होय छै। माय, बेटी, बहिन, बहू, दुर्गा, काली सब ऐकरे रूप छेकै। तोरा सीनी हमरोॅ मरजादा केॅ मांटी में मिलाय देलोह। सत के वै मूरती पर तोंय लांछन लगाय केॅ हमरोॅ गोस्सा नै बढ़ावोॅ। तोंय हाव करनें छोॅ जे एक इन्सान भला आदमी मरलौ पर नै करेॅ सकेॅ। बतकुटरी करी केॅ झगड़ा-फसाद बढ़ैला सें की फायदा।"
कुछ ऐन्होॅ जनानी होय छै जेकरा समय, परिस्थिति के नब्ज पकड़ै के लूर बूढ़ारियो तक नै होय छै, ऐन्हेॅ सुरजी माय छेले आरो सुरजी, माइयोॅ से बीस छेलै। बात केॅ आगू बढ़ाय देलकै-" ... तेॅ तोंय मारपीट करभोॅ की?
चकरधरें चाहै छेलै कि शांतिये से काम होय जाय तेॅ अच्छा। दस लोगोेॅ के जुटला सें धीकवामंथन होय जैतियै। उनका आवाजोॅ में कड़क तेॅ छेलै मतुर समझावन रो भाव जादा छेलै। गोस्सा केॅ पीतें हुअें हुनी कहलकै-"कहावत छै कि" ड़ाड़ें ड़ड़खोपोॅ खेंपी लियेॅ जौं कुटनी खेपें दियै"। जनानी होयकेॅ तोंय जनानी के दुख-दर्द केॅ नै समझलोॅ, तोंय सीनी कत्तेॅ छोटाही छोॅ। बेचारी एक मोसमासोॅ के पेट तोरा सीनी केॅ भारी लागल्हों। हमरा ई समझी केॅ सबसें जादा दुख होय रहलोॅ छै कि जनानी ही जनानी के दुख रो कारण कैन्हें होय छै।"
बतफरोस जनानी केॅ समझाना बहुत मुश्किल होय छै। बात बढ़ले जाय रहलोॅ छेलै। आवेॅ सुरजी भी बोलेॅ लागलोॅ छेलै। जनानी साथें मारपीट करबोॅ अच्छा नै समझी केॅ चकरधर बोललै-"मरदाना के बीचोॅ में जनानी के नै बोलना चाहियोॅ। हम्में तेॅ धन्नो बाबू सें बात करी रहलोॅ छियै। हमरा ई बतावोॅ ई घरोॅ में मालिक के छेके; जनानी या मरदाना?"
धन्नो मड़रोॅ केॅ ई बात लागलै। माय-बेटी दोनों केॅ धोपतें हुअें बोललै-" ठीक्के तेॅ हिनी बोली रहलोॅ छै। मरदोॅ बीचोॅ में जनानी के बोलवोॅ अच्छा परिवारोॅ के लक्षण नै छेकै। जा, सूतोॅ बेटा। भियानी विदागरी होय जैतेॅ।