बॉक्स ऑफिस के घाट पर बकरी आैर शेर / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 23 अगस्त 2014
सफल निर्देशकों का मेहनताना इतना बढ़ चुका है कि अनेक निर्माता उन्हें अनुबंधित करने का साहस नहीं करते। चतुर आैर सावधान निर्माता उन्हें लेते हैं जिन्हें काम तो आता है परंतु सफलता नहीं मिली है। एकता कपूर राम गोपाल वर्मा के साथ फिल्म बनाने का विचार कर रही हैं। रामू एक वीडियो लाइब्रेरी चलाते थे। उन्होंने रमेश सिप्पी की 'शोले' अनेक बार देखी आैर प्रेरित होकर 'शिवा' की पटकथा लिखी जो एक दक्षिण भारतीय निर्माता को पसंद आई आैर माध्यम से अनभिज्ञ रामू को निर्देशन का अवसर दिया। कॉलेज परिसर में हिंसा की यह कथा सफल रही। सदैव दक्षिण के बॉक्स ऑफिस पर निगाह रखने वाले बोनी कपूर ने रामू के साथ 'द्रोही' बनाई जिसमें पहली बार उर्मिला मातोंडकर ने रामू के साथ काम किया। उनकी अंतरंगता को मजबूत किया 'रंगीला' की भव्य सफलता ने, जिसके बाद दोनों की कई फिल्में आईं। रामू ने चेन्नई से मुंबई पहुंचकर 'फिल्म फैक्ट्री' स्थापित की आैर सनसनीखेज फिल्मों का अंबार लगाया। ज्ञातव्य है कि फिल्म उद्योग के प्रारंभिक दशक में फिल्म निर्माण की जगह को 'फैक्ट्री' कहते थे आैर उसी के नियम उस पर लागू होते थे। स्टूडियो कहलाने के लिए वर्मा खूब तेजी से भागे आैर उतनी तेजी से ही उनका पतन भी हुआ। नियति का व्यंग्य देखिए कि जिस 'शोले' को दोबारा बनाने के कारण ही उन्हें मुंबई छोड़कर दक्षिण लौटना पड़ा, उनकी हिमाकत का नाम था 'राम गोपाल वर्मा की आग' जिसमें अमिताभ बच्चन ने गब्बर सिंह की भूमिका निभाई। पहले भी उनकी रुचि गब्बर बनने में थी पर सलीम-जावेद ने उन्हें जय बनने की सलाह दी।
बहरहाल अब रामू 'एक्सेस' नामक साहसी फिल्म से मुंबई उद्योग में वापसी करना चाहते हैं। हवाई यात्रा में 15 किलो से ऊपर सामान होने पर एक्सेस बैगेज के पैसे देने होते हैं। यों जीवन में भी कुछ संगी साथी आैर आदतें आप का एक्सेस बैगेज बन जाती है जिसकी कीमत चुकानी पड़ती है। मसलन चेतन आनंद जैसे महान फिल्मकार की जिद होती थी कि उनकी हर फिल्म में नायिका प्रिया राजवंश हो आैर इसी 'एक्सेस बैगेज' के कारण उन्हें फिल्में मिलनी बंद हो गईं। बहरहाल रामू संभवत: एक्सेस को 'अति' के अर्थ में प्रयोग कर रहे हैं आैर सेक्स इसका केंद्रीय विचार है,। अत: यह सेक्स का उनका बनाया हुआ बहुवचन हो सकता है। ऐसे भी 'अति' उनके सिनेमाई विचार के साथ जीवनशैली का हिस्सा भी रहा है।
एकता कपूर छोटे परदे की महारानी हैं आैर उन्होंने कुछ सफल फिल्में भी बनाई हैं। वे बहुत से धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करती हैं आैर उन्होंने अंधविश्वास को टेलीविजन पर बहुत भुनाया है। अब वे रामू के साथ फिल्म करने जा रही हैं जो अपनी फिल्मों से अधिक अपनी अनास्था के लिए भी जाने गए हैं। वे किसी रीति-रिवाज में यकीन नहीं करते। यहां तक कि उनकी फिल्मों में कभी कोई पात्र पूजा-प्रार्थना करते नजर नहीं आता। रामू को लीक से हटकर काम करने का जुनून है आैर उन्होंने कई बार किसी फिल्म में केवल क्लोज-अप के इस्तेमाल का विचार किया था परंतु व्यावहारिक नहीं होने के कारण छोड़ दिया। कथा चयन में भी उन्होंने प्रयोग किए हैं जैसे अमिताभ बच्चन आैर जिया अभिनीत 'निशब्द'। कई बार वे अपनी जिद के कारण भी फिल्में बनाते रहे हैं, जैसे 'डरना जरूरी है' के प्रयोग की असफलता के बाद 'डरना मना है' बनाई। उनका अहंकार कई बार उन्हें ठग चुका है। प्राय: सितारे अपनी सफल छवि को दोहराते रहते हैं आैर अपनी प्रतिभा को मांजने का प्रयास नहीं करते। रामू ने भी 'रंगीला' की सफलता के बाद अपनी अक्खड़ मिजाज छवि बनाई आैर परंपराओं के प्रति अनादर भी इस छवि का हिस्सा रहा। यहां तक कि उन्होंने "रंगीला' जैसी आनंद देने वाली फिल्म दोबारा नहीं बनाई जबकि 'सरकार' के दो भाग बनाए। 'सत्या' 'कंपनी' संगठित अपराध पर बनी श्रेष्ठ फिल्में हैं। संगठित अपराध उनका प्रिय विषय हो गया। रामू पर 'शोले' से अधिक प्रभाव 'नोए सिनेमा' अर्थात मनुष्य अवचेतन के अंधकार की फिल्मों का है।
बहरहाल उनके फिल्म वनवास के बाद आशा कर सकते हैं कि वे दोबारा निष्कासन को निमंत्रण नहीं देंगे। एकता से अधिक योग्य निर्माता उन्हें नहीं मिल सकता था। रहा सवाल एक के 'आस्तिक' दूसरे के 'नास्तिक' होने का तो 'बॉक्स ऑफिस' के घाट परबकरी आैर शेर दोनों पानी पीते हैं। मीनल बघेल ने नीरज ग्रोवर हत्या कांड पर अपनी किताब 'डेथ इन मुंबई' लिखने के लिए एकता रामू से अलग-अलग साक्षात्कार लिया था आैर उनका ख्याल है कि एकता की 'आस्तिकता' रामू की 'नास्तिकता' एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यही सच है, दोनों ही मुखौटे हैं।