बॉन्ड ब्रांड की आधी सदी / जयप्रकाश चौकसे

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बॉन्ड ब्रांड की आधी सदी
प्रकाशन तिथि : 01 नवम्बर 2012


दूसरा विश्वयुद्ध साथ मिलकर लडऩे वाले मित्र राष्ट्र शांतिकाल में एक-दूसरे से भयभीत रहने लगे। पूंजीवादी अमेरिका और साम्राज्यवादी ब्रिटेन को कम्युनिज्म से भय लगता था। उस समय युद्ध में शामिल सभी देशों की आर्थिक हालत खस्ता थी। उन दिनों ही क्रेडिट कार्ड का जन्म हुआ, जिसके परिणामस्वरूप 'आज खर्च करो, कल पैसे दो' की भयावह प्रवृत्ति शुरू हुई। आज यह सुविधाभोगी प्रवृत्ति में बदल चुकी है। अमेरिका ने अपनी जनता का ध्यान विषम आर्थिक यथार्थ से हटाने के लिए रूस का हौवा खड़ा किया। ब्रिटेन अमेरिका की शक्ति और भय दोनों का साझेदार रहा है। उन दिनों इयान फ्लेमिंग नामक साधारण लेखक ने 'जेम्स बॉन्ड-००७' पात्र रचा, जो अकेला एक फौज के बराबर था तथा अमेरिका और ब्रिटेन के शत्रुओं का नाश कर सकता था। अर्थात शीतयुद्ध की संतान है जेम्स बॉन्ड। इस जांबाज जासूस को लडऩे की सारी कलाओं के साथ प्रेम के पैंतरे भी आते हैं। यानी उसे शिव की शक्ति के साथ कामदेव का रूप भी दिया गया। उसे कत्ल करने की इजाजत भी प्राप्त है।

दरअसल फ्लेमिंग महोदय की यह रचना कुछ ही दिनों की सनसनी साबित होती, परंतु फिल्मकारों ने इसमें व्यावसायिक सफलता प्राप्त करने वाली मसालेदार फिल्मों की संभावना देखी, अत: आज से पचास वर्ष पूर्व पहली जेम्स बॉन्ड फिल्म 'डॉ. नो' का प्रदर्शन हुआ और शॉन कॉनेरी नामक अभिनेता ने अपने व्यक्तित्व से इस पात्र में जान डाल दी। फिल्म को मिली विराट सफलता के कारण जेम्स बॉन्ड एक ब्रांड बन गया और फिल्मों की शृंखला शुरू हुई। पहली ही फिल्म में उर्सुला एंद्रेस बिकनी पहने समुद्र की लहरों से निकलकर दर्शकों के दिलोदिमाग पर छा गईं। तबसे आज तक बॉन्ड फिल्मों में नायिका बनने का जुनून अभिनेत्रियों पर छा गया।

जेम्स बॉन्ड के आगमन के बाद फिल्मांकन की टेक्नोलॉजी का विकास भी तेजी से हुआ, क्योंकि जेम्स बॉन्ड फिल्में भावना के जोर पर नहीं वरन गैजेट्स के इस्तेमाल के आधार पर सफल होती हैं। इसी निरंतर विकास करती टेक्नोलॉजी के कारण १९६८ के बाद अमेरिका में विज्ञान-फंतासी और सुपरमैन फिल्मों की बाढ़ आ गई। इसी दौर में अमेरिकी बॉक्स ऑफिस पर बच्चों को पसंद आने वाली फिल्मों का दबदबा हो गया, अर्थात दर्शक संरचना में बच्चे सबसे अधिक महत्वपूर्ण हो गए।

अमेरिका में स्टीवन स्पिलबर्ग का उदय भी उसी दौर में हुआ और उन्होंने अपने बचपन में पसंद आई किताबों पर फंतासी रचना शुरू किया, परंतु उनकी विराट प्रतिभा केवल फंतासी में नहीं सिमटी, वरन उन्होंने विविध फिल्में बनाईं। उन्होंने फंतासी में भी मानवीय करुणा के स्पर्श रचे। इसलिए जेम्स बॉन्ड फिल्मों ने परोक्ष रूप से फिल्म निर्माण और फिल्मकारों की सृजन प्रक्रिया में अंतर ला दिया। टेक्नोलॉजी के चमत्कार को प्रस्तुत करते हुए फिल्में नई दिशा में चली गईं और आम आदमी केंद्र में नहीं रहा। क्या इस बात का संबंध राजनीति के बदलते हुए फोकस से भी है? सरकारों के नजरिये के बदलने से भी इस बात का संबंध संभव है? सरकारी गलियारों में टेक्नोक्रेट लोगों की पदचाप सुनाई देने लगी। क्या शाइनिंग इंडिया की परिकल्पना भी इसी विचार का हिस्सा है?

बहरहाल जेम्स बॉन्ड रूस में घुसकर उनकी योजनाएं चुराकर लौटता है और रूसी महिलाओं का दिल भी जीत लेता है। दरअसल तमाम योद्धाओं की परिकल्पना में शत्रु पक्ष की औरतों की इज्जत से खेलना शुमार किया गया है। सारे युद्धों का कारण भी जर, जोरू और जमीन को बताना भी इसी सोच का हिस्सा है। अत: जांबाज जेम्स बॉन्ड को जिस देश में भी साहसी कारनामा करते फिल्मों में दिखाते हैं, वह उस देश की किसी महिला के साथ अंतरंगता के क्षण अवश्य बिताता है। बॉन्ड की जन्मभूमि के दर्शकों को इसमें बड़ा मनोवैज्ञानिक आनंद प्राप्त होता है।

बहरहाल, तमाम सामाजिक और राजनीतिक रंगों के परे जेम्स बॉन्ड फिल्मों ने अपने थ्रिल से मनोरंजन जगत में स्वयं को लोकप्रिय ब्रांड की तरह स्थापित किया है। जेम्स बॉन्ड जैसे रोचक और अत्यंत पौरुषीय नायक के चलते बेचारी आगाथा क्रिस्टी का मृदुल स्वभाव का पायरो नामक जासूस या वृद्ध महिला मिस मारपल द्वारा रहस्य की तह में बुद्धिबल से जाने वाले पात्र को कोई क्यों भाव देगा। मिस मारपल बुद्धिमान हैं और एक निगाह से अवचेतन की तह तक पहुंच जाती हंै, परंतु उसके पास उर्सुला एंद्रेस का नशीला जिस्म नहीं है।