बॉलीवुड गानो में साहित्य का छौंक / नवल किशोर व्यास

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बॉलीवुड गानो में साहित्य का छौंक


गुलजार और जावेद अख्तर ने पिछले कुछ समय से फिल्मो के लिये लिखना कम कर दिया है। उम्र के उत्तरार्द्ध का सृजन अब उनके करीबी मित्रो को ही समर्पित है। उनकी कम सक्रियता ने ही नये गीतकारो को इस उधोग में स्थापित होने के अवसर प्रदान किए। उनकी जमात वाले गीतकारो में प्रसून जोशी, मुन्ना धीमन पीयूष मिश्रा, राजशेखर और स्वानंद किरकिरे को शामिल कर सकते है जबकि इरशाद कामिल और अभिताभ भट्टाचार्य अभी के गीतकारों में सर्वाधिक सक्रिय और व्यावसायिक रूप से सफल है। दरअसल हिन्दी फिल्मों में गीत लिखना गीतकार की व्यक्तिगत और साहित्यिक रूचि पर निर्भर करता है। औसत दर्जे के गीतकार के लिये गीत लिखना आज भी शब्दो की तुकबंदी ही है जबकि गीत में भावना की त्रीवता और शब्दों  द्वारा चमत्कार पैदा करना शब्दों के जादुगरो का काम है। शैलेन्द्र, साहिर, नीरज, गुलजार शब्दों के ऐसे ही जादुगर है। इंदीवर, अनजान और समीर ने भी अपनी सीमीत प्रतिभा के बावजूद अपना खुद का वर्ग तैयार किया। वैसे हिन्दी फिल्म उधोग में गीतकार को उसका यथेष्ट सम्मान साहिर लुधियानवी ने दिलाया। वे पूरी फिल्म पर अपने लिखे गीतो को भारी मानते थे और अपनी तय की हुई शर्तो के अनुसार ताजिन्दगी अपने गीतो का भुगतान संगीतकार से ज्यादा लिया। उन्होने तो लता मंगेशकर और सचिन देव बरमन को भी अपने से कमतर समझा। प्रतिभा का अतिरेक प्राय; अपने साथ सनक भी लेकर आता है। गुरबत के दिनो में लुधियाना के खालसा स्कूल से उन्हे निकाल दिया गया था और बदले वक्त और हालात में उसी स्कूल में बतौर मुख्य अतिथि बन कर आए और दिल की टीस शब्दों में इस तरह बयां की.....


इस सर जमीं पर आज हम इक बार ही सही दुनिया हमारे नाम से बेजार ही सही लेकिन हम इन फिजाओ के पाले हुए है गर यहां नही तो यहा से निकाले हुए तो है....


साहिर की तरह साहित्यिक पृष्ठभूमि होने के बावजूद हसरत जयपुरी, मजरूह सुल्तानपुरी, शैलेन्द्र और आनंद बक्षी ने हमेशा आम अवाम को ध्यान में रखकर गीत लिखे। सरल शब्दों के सहज अर्थ लिये उनके गीत हमेशा बहुत जल्दी लोगो की जबान पर चढे। जब शैलेन्द्र का हीरामन कहता है कि दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई, काहे को दुनिया बनाई तो लगता है कि ये भारत के विशुद्व आम आदमी के शब्द है। इसके ठीक उलट गुलजार हमेशा अटपटे शब्दों से गहरी स्थितिया रचते है। उनकी ही जादुकारी चड्डी पहन कर फूल खिलाती है तो कभी बीडी को जिगर से जलाती है। इजाजत के गाने मेरा कुछ सामान को पहली बार पढकर आर डी बर्मन ने गुलजार से मजाक में कहा कि तुम फिल्म के निर्देशक और गीतकार हो इसका मतलब ये नही है कि तुम मुझे अखबार की कटिंग लाकर के कहोगे कि यार पंचम, इसकी धुन बना दो, और आर डी बर्मन ने भी इस अटपटे गीत की क्या धुन बनाई। तीन अंतरे, तीनो अलग तरह के और तीनो से एक दुसरे पर भारी पडते। आज ये गीत आशा भोंसले, गुलजार और आर डी के सर्वश्रेष्ठ गीतो में शामिल है तो कोई आष्चर्य की बात नही है। विशाल भारद्वाज और गुलजार के गीतो के प्राइवेट एलबम सनसेट पाइंट में भी गुलजार प्रेमिका को थोडी देर और रूकने के लिये कहते है। 

कलाईयो से खोल दो ये नब्ज की तरह तडपता वक्त,  तंग करता है.... 

गुलजार के लिये शब्दों से चमत्कार उत्पन्न करना कोई नई बात नही है। निदा फाजली ने हिन्दी सिनेमा में बहुत कम मगर अर्थपूर्ण गीत लिखे। इधर प्रसून जोशी ने बहुत कम समय में सूरज को निगला और धौंकनी वाली धक धक सांसो पर मस्ती की पाठशाला रची। गुलजार की ही तरह उन्होने अपने गीतो में मिश्री की डली, मस्सकली, मोबाइल लाइब्रेरी, दफतन, डिबिया, सिक्के जैसे गैर पारम्परिक शब्दो का प्रयोग अपने गीतो में किए है। अभिनेता पीयूष मिश्रा के अभी तक लिखे ज्यादातर गीत उनके लिखे नाटको से मोडीफाई होकर सिनेमा में आये है। उनके नई मौलिक रचनाओ से ही उनका गीतकार के रूप में आंकलन हो पायेगा। सिनेमा में साहित्य का प्रवेश श्रेयस्कर है।