बोंजाई/ सुकेश साहनी
मम्मी जाने दो न !” मिक्की ने छटपटाते हुए कहा, “ मैदान में सभी बच्चे तो खेल रहे हैं!”
“कहा न, नहीं जाना ! उन गंदे बच्चों के साथ खेलोगे?”
“मम्मी ----वे गंदे नहीं हैं”, फ़िर कुछ सोचते हुए बोला, “ अच्छा---घर के बाह्रर सेठ अंकल के बरामदे में तो खेलने दो—“
“नहीं---सामने बिजी रोड है, किसी गाड़ी की चपेट में आ जाओगे।“ मिसेज आनंद ने निर्णायक स्वर में कहा, “ तुम्हें ढेरों गेम्स लाकर दिए हैं, कमरे में बैठकर उनसे खेलो ।”
“मिक्की !” ड्राइंग रूम से मिस्टर आनंद ने आवाज दी।
“जी ---पापा।”
“कम हिय…।”
ड्राइंग रूम के बाहर मिक्की ठिठक गया। भीतर पापा के मित्र बैठे हुए थे। वह दाँतों से नाखून काटते हुए पसीने-पसीने हो गया।
उसने झिझकते हुए ड्राइंग रूम में प्रवेश किया।
“माय---सन!”आनंद साहब ने अपने दोस्त को गर्व से बताया।
“हैलो यंग मैन,” उनके मित्र ने कहा,” हाऊ आर यू?”
“ज---जा---जी ई!” मिक्की हकलाकर रह गया। उसे पापा पर बहुत गुस्सा आया- क्या वह कोई नुमाईश की चीज है, जो हर मिलने वाले से उसका इस तरह परिचय करवाया जाता है ।
मिस्टर आनंद फ़िर अपने मित्र के साथ बातों में व्यस्त हो गए थे। गमले में सजाए गए नींबू के बोंजाई के पास खड़ा मिक्की खिड़की से बाहर मैदान में क्रिकेट खेल रहे बच्चों को एकटक देख रहा था ।