बोझ / शिवजी श्रीवास्तव
इकतारे पर एक बिलकुल नये फ़िल्मी गीत की धुन सुनकर मैं चौंका, मैं ही क्या शायद गली में और भी लोग चौंके होंगे क्योंकि अब तक सब लोग वही एक पुरानी धुन...-"इक परदेशी मेरा दिल ले गया..." सुनने के अभ्यस्त हो चुके थे। शम्भू फेरी वाला पिछले बीस वर्षों से वही एक चालीस साल पुराने गाने की धुन बजाता चला आ रहा है। इन बीस वर्षों में बहुत कुछ बदल गया पर नहीं बदली थी तो उसके इकतारे की धुन। जब हम लोग छोटे थे तब उसके इकतारे की धुन सुनकर पागलों की तरह घर से बाहर की ओर दौड़ पड़ते थे, सारी गली के बच्चे शम्भू को घेरे हुये उसके साथ-साथ चलते, उससे गाने की धुन सीखते और घर आकर ज़िद करके इकतारा खरीद लेते और वही धुन बजाने का प्रयास करते, लाख कोशिशों के बाद भी हम बच्चों से वह धुन नहीं निकलती। दो-चार दिनों में इकतारा भी टूट जाता, लोग शम्भू के प्रति गुस्से का प्रदर्शन करते...पर चार छह दिनों बाद गली में फिर से वही धुन गूँजने लगती और हम सारे बच्चे फिर पागलों की तरह उसके पीछे दौड़ पड़ते।
अम्मा अकसर खीझ उठतीं और शम्भू को खरी-खोटी सुनातीं कि क्यों वह बार-बार गली में आकर उनका ख़र्च बढ़ाता है, शम्भू हँसता रहता फिर बरामदे में बैठ जाता और पानी पीने को माँगता। अम्मा उसे डाँटती भी जातीं और मुझसे पानी लाने को भी कहतीं, मैं पानी ले आकर आता तो अम्मा मुझे झिड़कतीं-"खाली पानी ले आया, उसके पेट में लगेगा कि नहीं बेचारा सुबह से गली-गली घूम रहा है..." ...और तुरन्त ही अम्मा उसे कुछ खाने को देतीं, शम्भू खा-पीकर तसल्ली से बैठता और घण्टों अम्मा के साथ दुनिया जहान की बातें करता रहता।
...अजीब रिश्ता थाम्मा औेर शम्भू का। गली भर में केवल अम्मा ही शम्भू को डाँटतीं और शम्भू भी गली भर में केवल अम्मा से ही अपने सुख दुख की बातें करता था ...पर...पर ये तो सब बहुत पुरानी बातें हैं।
इन बीस सालों में बहुत कुछ बदल गया, हम किशोर से युवा होने लगे, शम्भू के चेहरे पर भी झुर्रियाँ पड़ गईं पर नहीं बदली तो उसके गाने की धुन। अब घर-घर में टी0वी0 आ गया था, दुनिया भर के गैजेट्स बाज़ार में आ गए थे, उन्माद पैदा करने वाली धुनें आ गयी थीं...छोटे-छोटे बच्चे भी नई धुनों पर थिरकने लगे थे अतः शम्भू की 'इक परदेशी' की धुन किसी बच्चे को पसंद नहीं आती, फिर भी इकतारे का आकर्षण बच्चों को खींचता था, वे शम्भू से नई-नइ धुनें बजाने की ज़िद करते तो शम्भू के चेहरे पर एक खिसियाहट आ जाती वह चुपचाप आगे बढ़ जाता। धीरे-धीरे बच्चों की भीड़ उससे दूर हटती गई, अब वह भी बहुत कम ही गली में दिखाई पड़ता। पहले वह अम्मा के पास आकर अपना दुखड़ा रो लेता था, पर अब अम्मा उसे देखते ही घृणा से मुँह फेरकर कहतीं..."हत्यारा कहीं का" ...और शम्भू भी जब हमारे घर के सामने से निकलता तो उसका इकतारा ख़ामोश हो जाता था...
...इसीलिये आज अचानक इकतारे की धुन सुनकर मैं चौंक गया। बाहर झाँककर देखा बारह-तेरह वर्ष की एक लड़की इकतारे पर एक बिल्कुल नई धुन बजा रही है, शम्भू अपने सर में एक डलिया में इकतारे रखे उसके साथ चल रहा है। गली के बच्चे उस लड़की को धेरे हुए हैं और लड़की इकतारे पर एक से एक नई धुने निकाल रही है...उसके इकतारे बिकते जा रहे हैं। लड़की को पहले नहीं देखा था, पर अचानक ही समझ गया...ओह! तो ये वही लड़की है जिसके मरने की कामना शम्भू किया करता था...जिसके कारण अम्मा उसे हत्यारा कहा करतीं थीं...मेरे सामने अतीत के अनेक पृष्ठ खुलने लगे।
...जब यह लड़की पैदा हुई थी...नहीं ये तो बहुत बाद की बात है...मेरा बचपन शम्भू के जीवन की एक-एक घटना का साक्षी है। आज भी शम्भू के हर्ष-विषाद के एक-एक क्षण मेरी स्मृतियों में अंकित हैं ...जब शम्भू की शादी हुई थी तब वह अपनी पत्नी को लेकर अम्मा का आशीर्वाद लेने हमारे घर आया था, अम्मा ने उसे मुँह दिखाई में साड़ी-ब्लाउज, रुपये और मिठाई दी थी, मैंने भी घूँघट की ओट से झाँकती हुई शम्भू की बहू को देखने का असफल प्रयास किया था ...पूरा चेहरा तो नहीं देख पाया था पर घूँघट की ओट से झाँकती उसकी बड़ी-बड़ी आँखों को मैं कभी नहीं भूल पाया। उस दिन शम्भू ने मुझे मुफ़्त में एक इकतारा दिया था और देर तक बैठकर इकतारे पर गाने की धुन बजाना सिखाता रहा था। उसके बाद एक-एक कर शम्भू के तीन लड़के हुए.।हर बार शम्भू ने मुझे मुफ्त में इकतारा दिया था ओर वह खुश होकर सारी गली में नाचता फिरा था।
मैं शम्भू से अकसर पूछने लगा था-"शम्भू तेरी बहू के लड़का कब होगा..." अम्मा मुझे डाँटतीं पर शम्भू मुस्करा देता और कहता कि भैया अब जब लड़का होगा से मैं तुम्हें पूरे दस इकतारे दूँगा। ...सच्ची...पूरे दस...मैं आश्चर्य से कहता तो शंभू मुस्करा कर कहता बिल्कुल सच्ची पूरे दस, एक भी कम नहीं...और मुस्कराकर इकतारा बजाते हुए आगे बढ़ जाता।
और फिर एक दिन शम्भू ने मुझे बतलाया कि बहुत जल्दी मुझे दस इकतारे मिलने वालेहैं...
...सारी गली को मालूम हो गया था कि शम्भू की बहू के फिर लड़का होने वाला है...पर इस बार शम्भू की आशाओं पर वज्रपात हो गया... उसकी बहू ने लड़के की जगह लड़की को जन्म दिया...शम्भू के चेहरे पर मुर्दनी-सी छा गई... वह बहुत उदास हो गया था, उससे अधिक उदास हुआ था मैं क्योंकि मेरे दस इकतारे जो मारे गये थे।
शम्भू कई दिनों तक गली में नहीं आया, और जब आया भी तो कई दिनों तक उसके इकतारे से उदासी भरी धुन निेकलती रही। अम्मा टोकतीं-"अरे शम्भू! इतना उदास क्यों रहता है? लड़की तो लक्ष्मी होती है लक्ष्मी..."
शम्भू फीकी हँसी हँस देता-मैं उदास कहाँ हूँ अम्मा...फिर क्षण भर रुक कर कहता-पर एक बात तो है अम्मा, लड़के बड़े होकर सहारा बनते हैं, काम-काज में हाथ बँटाते हैं...बुढ़ापे की लकड़ी होते हैं, पर लड़की तो बस बोझ होती है बोझ...
अम्मा झिड़कतीं-"कैसी बात करता है रे, आज के ज़माने में लड़के-लड़की सब बराबर होते हैं...लड़कियों में जितनी माया-ममता होती है उतनी लड़कों में नहीं होती। आजकल लड़कियाँ भी पढ़-लिख कर कितना आगे बढ़ रहीं है।"
शम्भू ठण्डी साँस भर कर कहता-"...तो भी अम्मा होती तो कर्जा ही हैं..." इतना कह कर इकतारे पर उदासी भरी धुन छेड़कर आगे बढ़ जाता।
अब शम्भू गली में बहुत कम दिखता, लोग बताते कि वह ख़ूब नशा करता है और रोज़ ही अपनी बीबी से मारपीट करता है। फिर सुना रोज-रोज की किचकिच से तंग आकर एक दिन उसकी बीबी ने कुएँ में कूदकर अपनी जान दे दी, तब उसकी लड़की बरस भर की भी नहीं थी। उसी दिन से अम्मा ने उसे हत्यारा कहना शुरू कर दिया था। अम्मा मानती थीं कि इसकी बीबी अपने आप कुएँ में नहीं कूदी होगी इसी ने ढकेल दिया होगा।
... बहुत दिनों बाद एक बार शम्भू अपने लड़कों को लेकर गली में आया तो अम्मा क्रोध से बोलीं-"हत्यारे, बिटिया को कहाँ छोड़ आया? उसकी माँ को तो मार ही दिया क्या उसे भी मार डाला?"
उस दिन शम्भू ने अम्मा का लिहाज नहीं किया तीखे स्वर में बोला-"मरती भी तो नहीं ससुरी, मरे तो छुट्टी मिले।"
"तेरा दिमाग़ चल गया है, जो ऐसी बात कर रहा है-" अम्मा के क्रोध का पारा चढ़ रहा था-"आखिर किसके घर लड़कियाँ पैदा नहीं होतीं...सब लड़कियों को मार ही देते हैं क्या?"
शम्भू चुप हो गया फिर सर झुकाकर बोला-"मेरे ख़ानदान में किसी को लड़की नहीं है, पता नहीं मेरे घर में ये करमजली..."
अम्मा बात काटती हुयी बोलीं-"ओफ्फो...बहुत बोझ लग रही हो लड़की तो मुझे दे-दे मैं पाल लूँगी, माँ को तो मार ही डाला, बच्ची को मत मारना।"
"मुझे हत्यारा नहीं कहा करो अम्मा, उसे मैंने नहीं मारा अपने आप कूदी थी वह..." उसके स्वर में वही तीखापन था ..." ।पर अम्मा तुम कुछ भी कहो, लड़की होती तो बोझ ही है, खिला-पिला कर, पाल-पोस कर बड़ा करो फिर दूसरे के घर
भेज दो, अरे, वही ख़र्चा लड़कों पर करो तो बड़े होकर कुछ काम तो आयेंगे। " ...इतना कहते-कहते शम्भू ने ज़ोर से इकतारे का तार खींचा, तार खट की आवाज़ के साथ टूट गया...और शायद अम्मा और शम्भू के बीच का रागात्मक तार भी उसी दिन टूट गया। धीरे-धीरे शम्भू ने गली में आना छोड़ दिया, और अगर आता भी होगा तो हमारे घर नहीं आता था। हम लोग भी शम्भू को लगभग भूल ही गए थे।
...आज वर्षों बाद शम्भू को बिटिया के साथ देखकर मैं चौंक गया, मैंने अम्मा से कहा-"अम्मा, शम्भू अपनी बिटिया के साथ गली में आया है...इतना अच्छा इकतारा वही बजा रही है।" अम्मा बोलीं-"बुलाना तो ज़रा शम्भू को..."
शम्भू आया तो अम्मा के पैरों पर गिरकर फफक-फफक कर रो पड़ा, जब कुछ शान्त हुआ तो अम्मा ने धीरे से कहा-"ये तो वही लड़की है न शम्भू...और तेरे लड़के कहाँ हैं...?"
-"हाँ, अम्मा यही है मेरी लक्ष्मी, ..." कहते-कहते उसकी रुलाई फूट पड़ी..."सच अम्मा, आप सही ही कहती थीं लड़कियों में बड़ी माया-ममता होती है...लड़कों की जात बड़ी नालायक होती है...एकदम मतलबी... मैने लड़को को पढ़ाया-लिखाया, काबिल बनाया...जब हाथ बंटाने का समय आया तो ससुरे मेरी सारी जमा-पूँजी लेकर भाग गये, सुना है दिल्ली में टैक्सी चलाते हैं, मुझे टी0बी0 हो गई थी पर उन लोगों ने कोई ख़बर नहीं ली...तब इसी लड़की ने जिसे मैं पानी पी-पी कर कोसता था...मुझे नई ज़िन्दगी दी..."
एक क्षण को वह रुका, आँसू पोंछे, फिर बोला-"पता नहीं अम्मा, इसने इतना अच्छा इकतारा बजाना कैसे सीख लिया, जब मैं बहुत ही बीमार हो गया तो यह वहीं सड़क के किनारे बैठकर इकतारा बजा कर बेचती थी, इसकी नई धुनों के कारण ख़ूब बिक्री बढ़ी...अम्मा ये इकतारा बनाती भी थी...बेचती भी थी...मेरी सेवा भी करती थी...इस नन्हीं जान ने बहुत मेहनत की तभी मैं जिन्दा बच पाया ... मैं बेकार लड़कों के पीछे पागल था अम्मा...मुझे आपकी बातें रह-रह के याद आतीं थीं...सच कहूँ अम्मा आज मैं आपसे ही मिलने आया था पर हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि कैसे मुँह दिखाऊँ...आपने अच्छा किया जो मुझे बुला लिया...मेरे मन का बोझ हल्का हो गया।"
इतना कहते-कहते वह फिर रो पड़ा अम्मा ने उसे स्नेह से फटकारा-"अब काहे को रोता है रे, इतनी गुणी लड़की है तेरी।"
बाहर खड़ी उसकी लड़की मुस्कराई और उसने इकतारे पर एक मस्ती भरी धुन छेड़ दी,
वातावरण का सारा विषाद उसमें धुल गया और गली के सारे बच्चे उल्लास में भर कर नाचने लगे।