बोनी-श्रीदेवी पुत्री खुशी का शुभारंभ / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 30 अप्रैल 2019
श्रीदेवी और बोनी कपूर की छोटी पुत्री खुशी अभिनय क्षेत्र में प्रवेश करने जा रही हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि वे करण जौहर की फिल्म करेंगी। उनकी बड़ी बहन जाह्नवी ने भी मराठी भाषा की 'सैराट' के हिंदी संस्करण 'धड़क' से प्रवेश किया था। 'सैराट' में अन्य जाति के युवा से प्रेम के 'संगीन अपराध' में दोनों का कत्ल कर दिया जाता है। उनके शिशु का जीवित रहना जातिविहीन आदर्श समाज का प्रतीक माना गया परंतु सफल फिल्म का भाग दो बनाने के मोह में 'धड़क' में ऐसा नहीं किया गया। फिल्म उद्योग बाजार तंत्र का ही हिस्सा है। अतः उसमें प्रचार द्वारा 'ब्रैन्ड' बनाए जाते हैं। कुछ फिल्मकार कलाकारों को अवसर देने वाले स्वयंभू मसीहा हो गए हैं। अभी तक सितारों और फिल्मकारों की संतानों को ही अवसर दिए गए हैं। किसी आम आदमी के प्रतिभाशाली युवा को अवसर नहीं दिया गया है। जाने क्यों राजनीति में वंशवाद को मुद्दा बना दिया गया है, जबकि सभी दलों के मुखिया के वंश के लोग ही अपने परिवार का चुनावी व्यवसाय कर रहे हैं।
प्रतिभा और परिश्रम को मानदंड नहीं माना जाना हमारी परंपराओं का हिस्सा है। राजा का बेटा राजा ही होता रहा है और कभी-कभी कोई रजिया सुल्तान भी हो जाती है। झांसी की रानी भी अपनों द्वारा दिए गए धोखे के कारण शहीद हो जाती हैं। सदियों से हम अपने गुणों के साथ दोषों को भी जतन से पालते रहे हैं। हमारे सामूहिक अवचेतन के दूध के बर्तन में मलाई गैरों के लिए होती है और अपनों का गुजारा बर्तन के पैंदे में जमा दूध से ही होता है।
बोनी कपूर मात्र 20 वर्ष की उम्र में फिल्म निर्माता बने, क्योंकि उनके पिता की फिल्म 'फूल खिले हैं गुलशन गुलशन' के निर्देशक का असमय निधन हो गया और उन्हें उस फिल्म को अन्य निर्देशक की सेवा लेकर पूरा करना पड़ा। अपने भाई अनिल कपूर को सितारा बनाने के लिए उन्होंने दक्षिण भारत के फिल्मकार के. बापू की 'वो सात दिन' बनाई। इसके पूर्व अनिल कपूर एमएस सथ्यू की फिल्म 'कहां-कहां से गुजर गया मैं' अभिनीत कर चुके थे। उस समय अनिल कपूर ने कल्पना भी नहीं की थी कि अभिनय यात्रा में वे कहां-कहां से गुजरेंगे। अनिल कपूर अभिनीत चरित्र भूमिकाएं भी फिल्म की सफलता में भारी योगदान देती हैं। पांच दशक तक जमे रहने के लिए बड़ा दमखम लगता है।
हाल ही में उन्होंने लंदन में 'पागलपंती' की शूटिंग के लिए लगभग 2 माह गुजारे हैं। कुछ दृश्य सौरभ शुक्ला के साथ करते हुए उन्हें लगा कि इस विलक्षण कलाकार के सामने टिके रहने के लिए विशेष तैयारी की आवश्यकता है। रंगमंच से सिनेमा में आए कलाकार की आधारशिला बहुत मजबूत होती है। गौरतलब है कि तीन दर्जन फिल्मों को बनाने वाले बोनी कपूर अपनी छोटी बेटी खुशी को स्वयं ही क्यों नहीं प्रस्तुत करते? क्या वे स्वयंभू नए कलाकारों के गॉडफादर से कमतर फिल्मकार हैं या स्वयं उन्हें अपनी पुत्री को प्रस्तुत करने में कोई संकोच है?
श्रीदेवी और बोनी कपूर ने अपनी छोटी पुत्री का नाम खुशी रखा और उसी दौर में एक मुख्यमंत्री ने 'खुशी मंत्रालय' स्थापित करने की घोषणा भी की थी। आय-व्यय व उत्पादन-बिक्री इत्यादि का हिसाब-किताब रखा जा सकता है परंतु खुशी को आंकने का कोई मानदंड नहीं है। संगमरमरी गगनचुंबी अट्टालिका में सेवकों की फौज के साथ रहने वाला व्यक्ति भी दुखी हो सकता है और फुटपाथ पर जीवन बसर करने वाला व्यक्ति, जिसे भूख ने बड़े प्यार से पाला है, खुश रह सकता है।
खुशी और दुख मानव मस्तिष्क की दशाएं हैं और उन पर उसका अपना ही नियंत्रण है। सारी सुविधाओं के बीच भी कोई व्यक्ति दुखी हो सकता है। इस तथाकथित दुख से वजन घटने पर कहते हैं कि उसे 'सुख रोग' हो गया। बेघरबार, बेरोजगार और आधा पेट रहने वाला व्यक्ति भी सुखी नज़र आ सकता है। क्रूर व्यवस्था पूरे जतन करती है कि अवाम दुखी रहे परंतु अवाम मस्तराम बनकर अपनी ही धुन में मनमौजी बना रहता है। उसकी यह ताकत कोई तानाशाह तोड़ नहीं पाया है।