बोल मेरी चक्की / अनीता चमोली 'अनु'

Gadya Kosh से
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राजा विशालसिंह के बीमार पड़ जाने से चक्की का हत्था भी थम गया। राजा बूढ़ा जो हो चला था। हर किसी को राजा से ज्यादा चिंता पहाड़ सी विशालकाय चक्की की थी। हर कोई चिंता में घुला जा रहा था। राजा के बाद चक्की को कौन घुमाएगा? यही एक सवाल था, जो हर कोई एक-दूसरे से पूछ रहा था। वह चक्की ही तो थी जो मुंह मांगी इच्छाएं पूरी करती थी। जब आवश्यकता होती तो राजा चक्की के पास जाता। हत्था घुमाते हुए कहता-”बोल मेरी चक्की। क्या देगी। अबकी दस तोला सोना सोना।” बलशाली राजा चक्की के पाट घुमाता और चक्की से सोने की अशरफियां खनखनाती हुई बाहर निकलती। कभी राजा कहता-” बोल मेरी चक्की। क्या देगी। अबकी एक हजार हाथी हाथी।” पल भर में ही हाथियों की फौज चक्की से बाहर निकलने लगती।

एक दिन राजा चल बसा। समूचे राज्य में शोक की लहर दौड़ गई। दुष्ट सेनापति शक्तिसिंह ने राजसिंहासन पर कब्जा कर लिया। लालची और दंभी चक्की के पास जा पहुंचा। लेकिन चक्की का पाट टस से मस न हुआ। नामी-गिरामी पहलवान बुलाए गए। मगर सबने हार मान ली। सबसे ताकतवर पहलवान ने कहा-”महाराज। इस चक्की को हिलाने के लिए सौ हाथियों का बल चाहिए।” चक्की से मनचाही वस्तुएं पाने की लालसा में शक्तिसिंह ऐसे बलशाली की खोज में स्वयं निकल पड़ा जो चक्की के पाट घुमा सके।

आखिरकार शक्तिसिंह एक हाट में जा पहुंचा। वहां गुलाम खरीदे और बेचे जा रहे थे। एक व्यापारी अपने गुलाम की खासियत बता रहा था। उसने बताया-”यह आदमी नहीं असुर है। यह जब चलता है तो धरती कांपने लगती है। यह सांस लेता है तो आंधी चलने लगती है। यह जोर से हंसता है तो मकानों की दीवारे हिलने लग जाती है।” शक्तिसिंह खुश हो गया। जोर से चिल्लाया-”यही है वो जो मेरी चक्की घुमाएगा।” उसने व्यापारी को मुंहमांगी कीमत चुकायी और असुर को अपने साथ ले आया। असुर को लेकर वह सीधे चक्की के पास ले आया।

शक्तिसिंह के आदेश पर असुर ने चक्की का हत्था घुमाते हुए कहा-” बोल मेरी चक्की। क्या देगी। अबकी एक टन सोना सोना।” बस फिर क्या था। एक टन सोना चक्की के पाटों से निकलने लगा। शक्तिसिंह खुशी के मारे जैसे पागल हो गया हो। शक्तिसिंह बार-बार चक्की घुमवाता। सोना-चांदी पाने की लालसा बढ़ती ही चली गई। महल का एक एक कक्ष सोने-चादी से भर गया। लेकिन शक्तिसिंह था कि असुर से कहलवाता-”बोल मेरी चक्की। क्या देगी।” असुर चक्की घुमाते-घुमाते थक गया। उसकी पीठ अकड़ गई। हाथ-पांव ढीले पड़ने लगे। पर शक्तिसिंह था कि असुर को चक्की घुमाने के लिए बार-बार कहता। बेचारा असुर क्या करता। उसे खरीदा जो गया था। वो काम पर जुट जाता।

असुर मन ही मन शक्तिसिंह को मजा चखाने की योजना बनाने लगा। फिर एक दिन असुर को मौका मिल ही गया। शक्तिसिंह खाना खाकर आराम कर रहा था। असुर ने चक्की घुमाते हुए कहा-”बोल मेरी चक्की। क्या देगी। अबकी दस हजार डाकू। डाकू।” बस फिर क्या था। चक्की से हजारों डाकू निकलकर समूचे राज्य में फैल गए। उन्होंने लूटपाट मचा दी। महल में जमा सोना-चांदी भी लूट लिया। शक्तिसिंह सोता ही रह गया। डाकूओं ने लूटपाट का सामान समुद्री जहाज में रखा और समुद्र पार करने लगे। अचानक असुर को याद आया कि चक्की तो राजमहल में ही रह गई। असुर ने फिर चक्की का हत्था घुमाते हुए कहा-” बोल मेरी चक्की। क्या देगी। अबकी एक बड़ा सा समुद्री जहाज। जहाज।” असुर ने चक्की को जहाज पर चढ़ा लिया। डाकू जाने लगे सात समन्दर पार। अचानक एक डाकू ने कहा-”हम जहां भी जा रहे हैं, हो सकता है वहां नमक न हो। तब क्या होगा?” असुर ने फिर चक्की का हत्था घुमाया। अति उत्साह में बोला-” बोल मेरी चक्की। क्या देगी। अबकी नमक। ढेर सारा नमक।” अब ढेर सारे नमक का कोई अंत तो था नहीं। सो चक्की घूमती रही। घूमती रही। नमक के ढेर से जहाज लबालब भर गया। डाकू चिल्लाए-”अरे कोई इस चक्की को तो रोको।” असुर भी दंग था। चक्की का हत्था था कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा था। असुर चिल्लाता रहा। कहता रहा-” बोल मेरी चक्की। क्या देगी। अबकी रुक जा। रुक जा।” लेकिन चक्की नहीं रुकी। असुर की पहली इच्छा जो पूरी नहीं हुई थी। नमक के ढेर से जहाज डूब गया। असुर सहित सारे डाकू भी मारे गए। चक्की है कि अभी भी चल रही है। समुद्र का पानी तभी तो नमकीन है।