बोसोन मिल गया! / कमलानाथ
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से जेनेवा, स्विट्ज़रलैंड में ज़मीन के 175 मीटर नीचे बनाई एक 27 किलोमीटर लंबी सुरंग में कई वर्षों से इस बात का पता लगाने के लिए प्रयोग चल रहे थे कि क्या ऐसा कोई चमत्कारी और सूक्षतम कण जिसे “हिग्स बोसोन” का नाम दिया गया था, सचमुच होता है? ब्रह्माण्ड सम्बन्धी जिस ‘स्टैण्डर्ड मॉडल’ की भौतिकशास्त्रियों ने परिकल्पना की थी, इस कण के अभाव में अब तक अधूरा ही था। यह ‘सब-अटॉमिक’ कण वह ‘ईश्वरीय कण’ माना गया है जिसके कारण अन्य कणों को भार मिला और गुरुत्वाकर्षण पैदा हुआ। अगर यह पता लग गया कि वास्तव में ऐसा कण है, तो सिद्ध हो जायगा कि सृष्टि के निर्माण में ईश्वर की कोई भूमिका नहीं है, ‘कुछ नहीं से सब कुछ बना है’। यानी प्रकृति ने वैसे ही एक दिन बैठे बैठे स्वयं को रच दिया और सब कुछ अचानक ही अपने आप होगया। फ़िज़ा ऐसी बन गयी कि बोसोन के मिलते ही अलादीन का जादुई चिराग़ इसी की मानिंद हर आदमी की जेब में आ जायगा।
एक दिन अलसुबह दरवाज़े पर लगातार लंबी घंटी बजी। हमने हड़बड़ाकर जैसे ही दरवाज़ा खोला, सामने गुप्ताजी बदहवास से खड़े थे। हमने पूछा – “क्या हुआ गुप्ताजी, सब ठीक तो है न? पूरी तरह सोने भी नहीं दिया आपने।” गुप्ताजी ने अफ़सोस और आश्चर्य जताते हुए कहा – “अरे, आपको सोने की पड़ी है। भई, अब तो जागो – हिग्स बोसोन मिल गया! जल्दी गाड़ी में बैठो, कपूर साहब को भी इत्तिला करते हैं”। हमने बाहर पड़ा अखबार हाथ में उठाया ही था कि गुप्ताजी ने लगभग घसीटते हुए हमको गाड़ी में धकेला और और कपूर साहब के घर की तरफ़ निकल पड़े।
अखबार में झाँका तो मोटे मोटे अक्षरों में खबर थी कि हिग्स बोसोन मिल गया। कार का रेडियो स्पीकर फाड़ फाड़ कर यही ऐलान कर रहा था। सारे संसार में अचानक हड़कंप मच गया। हिग्स बोसोन मिल गया। दुनियां भर के सारे अखबार, टीवी, रेडियो और इन्टरनेट इस सनसनीखेज़ ख़बर से भरे पड़े थे। पहला ‘बिगबैंग’ चौदह अरब वर्ष पहले हुआ था जब ब्रह्माण्ड की रचना हुई थी और अब जैसे यह दूसरा बिगबैंग हुआ है जब ‘हिग्स बोसोन’ मिल गया, ‘गॉड पार्टिकल’, ‘ईश्वरकण’। अब तो परमाणु ऊर्जा, जीव विज्ञान, रसायन शास्त्र, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य चिकित्सा, कंप्यूटर तकनीक वगैरह में धमाकेदार परिवर्तन आजायेगा और शोध की नई दिशाएं खुल जाएँगी। ग्लोबल वार्मिंग से छुटकारा मिल जायगा। बोसोन मिल गया। सारे वैज्ञानिक खुश हैं कि पार्टिकल फ़िज़िक्स का स्टैण्डर्ड मॉडल पूरा हो गया, मीडिया वाले खुश हैं कि हिग्स बोसोन मिल गया।
भारतीय वैज्ञानिक खुश भी हैं और दुखी भी। खुश इसलिए कि सत्येंद्रनाथ बोस के नाम पर बोसोन नाम पड़ा, और दुखी इस बात से कि हिग्स बोसोन में हिग्स का एच तो कैपिटल में है पर बोसोन का बी छोटा। भला उनका एच हमारे बी से बड़ा कैसे? उन्होंने बाक़ायदा इसकी शिक़ायत दर्ज़ करादी है। वैसे भी बी तो हमेशा केवल ‘बिग बी’ ही होता है। पूछ लो किसी से भी। उसी समय किसी मिल्नर नाम के सज्जन ने आकस्मिक रूप से एक नया मिल्नर पुरस्कार स्थापित कर दिया जिसके पुरस्कार की धनराशि उन्होंने तीस लाख डॉलर रख दी जो नोबल पुरस्कार से भी तीन गुना ज़्यादा है। और तो और, आननफानन में उन्होंने बोसोन खोजने वाली इस टीम में लगे प्रत्येक वैज्ञानिक को यह पुरस्कार देने की घोषणा भी कर दी। इसलिए खोजी दस्ते के अशोक सेन खुश हैं कि बोसोन मिल गया और उन्हें अन्य आठ वैज्ञानिकों के साथ साथ लगे हाथों अचानक छप्पर फाड़ कर टपके तीस लाख डॉलर भी मिल गए। अन्य वैज्ञानिक दुखी हैं कि वे चूक गए। बोसोन किसी और को मिल गया।
पार्क में ‘ठहाका क्लब’ के लोग अचानक हँसते हुए रुक गए। सब लोग समवेत स्वर में बोले – ‘बोसोन मिल गया’ और फिर ठहाका लगाने लगे। गृहणियां खुश होगईं कि बोसोन मिल गया, अब मंहगाई कम हो जायगी, रसोई गैस के दाम गिर जायेंगे। बाज़ार में मोहनलालजी ने चमन बहार गुटका माँगा तो पान वाले कहा – “अरे सा’ब, अब चमन बहार का क्या काम। नया गुटका लीजिए – बोसोन बहार पान गुटका। दूसरा भी है – हिग्स पराग गुटका। मुंह में रखते ही सुगंध भर देगा और चटक नशा भी देगा देखते ही देखते”। पास वाले छगनलालजी के छगन किराना भंडार के नाम का बोर्ड उतार कर उनका बेटा नया बोर्ड चढ़ा रहा था – ‘बोसोन डिपार्टमेंटल स्टोर’। अंदर देखा तो आटे के पैकेट पर लिखा था – बोसोन भोग आटा। रेवड़ियों के पैकेट पर लिखा था – हिग्स रेवड़ीज़।
अख़बारों में विज्ञापन आने शुरू होगये – “बोसोन थैरापी से दो दिन में गारंटी से अपना मोटापा कम करिये”, “नई बोसोन पिल्स और हिग्स पिल्स से अपना वज़न 15 किलो तक कम करिये”, “बवासीर के पुराने रोगियों के लिए खुशखबरी – हमारे यहाँ बोसोन से गारंटी के साथ इलाज किया जाता है”, “नामर्दी से निराश न हों – आकर मिलें, बोसोन से 10 दिनों में शर्तिया इलाज कराएँ”, “गंजेपन से छुटकारा पायें, हिग्स बोसोन हेयर ट्रांसप्लांट की नई तकनीक से चार घंटे में बिना तकलीफ़ गारंटी के साथ बाल उगायें”, “बांझपन से दुखी? आओ, और बोसोन चिकित्सा से सात महीने में ही मोटाताजा बच्चा पाओ”। बाज़ार में चहलपहल अचानक बढ़ गयी। जम कर बिक्री होरही है। सारे दुकानदार मिल कर रात को बाज़ार में सजावट करेंगे। बोसोन मिल गया।
अखिलेशजी के घर पर उनके नवजात पुत्र का नामकरण संस्कार समारोह था जिसमें ‘बोसोन कुमार’, ‘हिग्स मोहन’, ‘बोसोन प्रकाश’ आदि नामों पर चर्चा हुई और अंत में बड़े हर्षोल्लास के साथ बच्चे का नाम रखा गया ‘बोसोनेश’। मिस्टर ओबेरॉय की हालत नाज़ुक है और उनको अपने बेटे के पास इलाज के लिए अमरीका जाना था, पर हवाईजहाज़ से इतनी लंबी यात्रा करने में झिझक हो रही थी। बेटे ने लिख भेजा – “पापा, कुछ दिन और इंतज़ार कर लीजिए, अब तो हवाई जहाज़ प्रकाश की गति से उड़ेंगे। बोसोन मिल गया”। ओबेरॉय जी खुश हैं, चलो अच्छा हुआ बोसोन मिल गया।
श्रीधरजी महीनों से अपने दफ़्तर का चक्कर लगा रहे थे। उनकी पेंशन के कागज़ अभी तक भी नहीं बने थे। आज पहली बार बड़े बाबू ने बड़ी शांति के साथ उन्हें कुर्सी पर बैठा कर बात की, चाय पिलाई और आश्वासन दिया – “देखिये श्रीधरजी, थोड़ी शांति रखिये, बोसोन मिल गया है, अब सब ठीक हो जायगा”। श्रीधरजी खुश होकर लौट आये और पत्नी से बोले – “तुमको खुशखबरी देनी है, बोसोन मिल गया है, पेंशन के कागज़ अब जल्दी ही बन जाएंगे”। पत्नी ने प्रसन्नता से गणेशजी को लड्डुओं का भोग रखा- “हे गणपति बप्पा, आपका लाख लाख शुक्र है, बोसोन मिल गया”।
रमणलालजी बुढ़ापे से परेशान हैं, पर बेटा कहता है चिंता मत करिये, बोसोन मिल गया है। सब बूढ़ों की उम्र पीछे लौटने लगेगी। रमणलालजी तब भी चिंतित हैं – “बेटा, बोसोन तो मिल गया, पर मेरे स्वास्थ्य बीमे की किश्त भरना मत भूलना। और हाँ, हिग्स बाबू से बोसोन का पूरा पता ज़रूर मालूम करके नोट कर लेना”। हमारा दूधवाला घासीराम भी खुश है कि अब जल्दी ही बोसोन मिला चारा आने लगेगा और उसकी एक गाय और एक भैंस का दूध उस चारे से इतना बढ़ जायेगा कि वह अलग से अपनी एक बड़ी डेयरी खोल लेगा।
डाक्टर कंसल अपने मरीज़ों से कह रहे थे – “आप लोग बरसों से शिक़ायत कर रहे हैं न कि आप लगातार दवाइयां लिए जारहे हैं पर अभी तक आपकी बीमारी ठीक नहीं हुई। अब देखिये कैसे आपकी शिक़ायत ख़ुशी में बदल जायगी। अब बोसोन मिल गया है”। सारे मरीज़ अचानक ही बेहतर महसूस करने लगे और ख़ुशी से एक दूसरे की ओर देखने लगे। रामलाल भी, जिसका ऑपरेशन बिगड़ गया था, अब खुश था – बोसोन मिल गया। कैंसर के सारे मरीज़ भी खुश हैं, कीमो थैरापी की बजाय अब बोसोन थैरापी होगी, बोसोन मिल गया।
मानव विकास संघ के अध्यक्ष, जिनके एक हाथ और एक आँख का जन्म से ही विकास नहीं हुआ था, अचानक ही भावुक होगये। संघ की साधारण सभा में उन्होंने कहा – “अभी तक हम मानव उत्थान के लिए कितना सब काम कितने समय से कर रहे थे, अब जाकर हमारी मेहनत रंग लाई है। आख़िरकार बोसोन मिल ही गया। अब देखना, मानवता का विकास और उत्थान कितनी तेज़ी से होता है”। सारे सदस्यों ने समवेत स्वर से हामी भरी और ताली बजाई। वे एक दूसरे को बधाई देने लगे – बोसोन मिल गया, मुबारक हो।
उधर, बड़े अफ़सरों की पत्नियाँ इकट्ठी होकर क्लब में किटी पार्टी कर रही थीं। वहीँ क्लब की अध्यक्षा ने बड़ी गंभीरता से कहा – “आपको यह बताते हुए मुझे बेहद ख़ुशी हो रही है कि हिग्स बोसोन मिल गया है। अब स्टैण्डर्ड मॉडल पूरा हो गया है”। सारी महिलाओं ने स्टैण्डर्ड मॉडल के पूरे होने पर ख़ुशी से तालियाँ बजायीं और फिर समोसों पर टूट पड़ीं। मिसेज़ वर्मा अपनी पड़ौसन सदस्या से शिक़ायत कर रही थीं – “ये मरा स्टैण्डर्ड मॉडल तो पूरा होगया, पता नहीं मेरा ये स्वेटर कब पूरा होगा”।
ज्योतिषी कुछ परेशान नज़र आये। शर्माजी, गौतमजी, भट्टजी, शास्त्रीजी, स्वामीजी और कई ज्योतिषी और पंडित एक सभा में चिंता व्यक्त कर रहे थे – “भई जोशीजी, कुछ करो। इन वैज्ञानिकों ने तो नाक में दम कर दिया है। पहले प्लूटो को ग्रह मानने से इंकार कर दिया था और अब तो इनको बोसोन ही मिल गया है। देखिये तो, ये लोग कहते हैं ‘कुछ नहीं’ से सारा ब्रह्माण्ड अपने आप बना है, भगवान से नहीं बनाया। जब सृष्टि को ही भगवान ने नहीं बनाया और लोग भगवान को ही नहीं मानेंगे तो ग्रहों के जाल में फंसाए गए कुक्कुट लोग हम ज्योतिषियों के घरों पर बांग देना ही बंद न कर दें। वैज्ञानिक तो कहते हैं कि अब तो लोग खुद मिनटों में किसी भी ग्रह पर विद्युत की गति से पहुँच सकेंगे। ‘देवकण’, यानी बोसोन जो मिल गया”। शास्त्रीजी ने भी अपना मत प्रस्तुत किया - ”मित्रों, मैं पूर्णतः इस बात से सहमत हूँ कि हमें अब कोई नया ही विकल्प सोचना पड़ेगा। क्यों नहीं अपने विज्ञापनों में हम हिग्स बोसोन के नाम पर इस तरह कहने लग जाएँ – ‘एच बी पद्धति द्वारा प्रश्नकुंडली से अपनी समस्या का समाधान पायें’ या ‘बोसोन पंचांग से अपनी सही जन्मपत्री बनवायें’। और फिर अब लाल पीली नीली किताबों से काम नहीं चलने वाला। कहना होगा ‘हिग्स किताब’ से अपना भविष्य जानें”। सभी ने तालियाँ बजा कर उनकी बात का समर्थन किया।
उधर मंदिर के ट्रस्टी भी चिंतित थे। शिवजी की खंडित मूर्ति के बदले पिछली मीटिंग में डेढ़ लाख की नई संगमरमर की मूर्ति का प्रस्ताव पारित हुआ था। अब ट्रस्टी कहते हैं अगर वैज्ञानिक लोगों ने ये साबित कर दिया कि भगवान ही नहीं हैं, तो नई मूर्ति की क्या ज़रूरत है? पता नहीं कोई भक्त मंदिर में आयेगा कि नहीं। अब सोचना पड़ेगा कि क्या मंदिर की बजाय इस जगह मॉल बना दी जाय। काफ़ी वादविवाद के बाद यह निष्कर्ष निकला कि उनको सरकार ने यह ज़मीन मंदिर के लिए आवंटित की थी इसलिए किसी और उपयोग के लिए उनको इजाज़त नहीं मिलेगी। अतः यह स्थान तो मंदिर का ही रहेगा, सिर्फ़ अब इस मंदिर के स्थान पर श्रीबोसोनदेव मंदिर बनेगा!
मिस्टर जोन्स भी प्रसन्न थे – “देखा, मैं कहता नहीं था कोई भगवान वगवान नहीं होता। अब तो बोसोन मिल गया है। सारे ब्रह्माण्ड का रहस्य पता चल गया।”
“कौन सा रहस्य?”
“......”
“पर मि। जोन्स, अभी तो वैज्ञानिक भी नहीं कह रहे कि भगवान का इससे कोई लेना देना है, या वो है या नहीं है। और वो वैज्ञानिक जिन्होंने खुद बोसोन ढूँढ़ा है वे ही कह रहे हैं कि इस बोसोन से हम ब्रह्माण्ड के केवल चार प्रतिशत के बारे में ही थोड़ा बहुत जान पाये हैं, छियानवे प्रतिशत तो डार्क मैटर और डार्क एनर्जी है जिसके बारे में कुछ पता नहीं”।
“.......”
“यह बोसोन तो शायद मानव कल्याण के भी किसी काम का साबित न हो। वैज्ञानिक लोग तो कहते हैं यह एक सेकण्ड के खरबवें भाग तक भी टिक नहीं सकता, फिर इसका उपयोग कैसे हो सकेगा?”
“........”
फिर भी सभी की तरह मि. जोन्स खुश थे - बोसोन मिल गया।
फ़िज़िक्स के प्रोफ़ेसर सक्सेना खुश थे कि हिग्स बोसोन मिल गया और स्टैण्डर्ड मॉडल पूरा होगया। कई सालों से इस दुर्ग्राह्य बोसोन के कारण उन्हें सांस की दिक्क़त थी, अब जाकर वे खुलके चैन की सांस ले सकते थे। उन्होंने अपने यहाँ इस ख़ुशी में प्रोफ़ेसरों की एक पार्टी रखी जिसके लिए मिसेज़ सक्सेना सबको निमंत्रण दे रही थीं – बोसोन मिल गया है, आज शाम को हमारे घर पर पार्टी में आप ज़रूर आना।
हिंदी के प्रोफेसर की पत्नी मिसेज़ जोशी ने उनसे पूछा – “बोसोन आपका खोया हुआ देवर था?”
“नहीं, ऐसा नहीं है”।
“तो भाईसाहब को कोई बोसोन नाम का बड़ा इनाम मिला है क्या? अब तो वे प्रिंसिपल बन जायेंगे।”
“नहीं, ये कोई इनाम नहीं है”।
“तो ये कोई नयी बंगाली डिश है क्या, या कोई कीमती नग था? अरे बताइए भी, ऐसा क्या राज़ है मिसेज़ सक्सेना?”
“नहीं, नहीं, ये कुछ बता तो रहे थे, पता नहीं, शायद कोई मॉडल था”
“भाईसाहब की मॉडलिंग की कोई एजेंसी भी है?”
“नहीं, ये तो इनके फ़िज़िक्स की कोई बात है। शायद कोई मॉडल वॉडल पूरा होगया। खैर, आप ज़रूर आना”।
विद्यार्थियों में भी एक नया जोश आगया था। अब उनको लगने लगा था कि बोसोन मिल गया है, ज़रूर ज्ञान प्राप्ति के और परीक्षाओं के तरीके में आमूलचूल फेरबदल होजायगा। मुरारीलालजी के सुपुत्रश्री तीन साल से आई आई टी की परीक्षा दे रहे हैं, पर नंबर ही नहीं आता। उनको विश्वास है कि अब उन्हें किताबों से रट्टा लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। चूंकि हर बच्चा च्यवनप्राश की बजाय बोसोन के सेवन से अचानक बुद्धिमान तो हो ही जायगा, इसलिए इम्तिहान में कठिन सवालों के उत्तरों के लिए सिर खुजाने की नौबत भी नहीं आयेगी। सिर्फ़ केमिस्ट के यहाँ या किसी पुस्तक भंडार पर जा कर कहना पड़ेगा – “एक केमिस्ट्री का बोसोन देना”, “एक हिग्स फ़िज़िक्स का और एक हिग्स मैथेमेटिक्स का देना”। बच्चे कहेंगे - “आठवीं की संस्कृत का बोसोन देदो”। बस बोसोन और हिग्स निगल लो और काम होगया, सारा किताबी ज्ञान एक बार में ही अंदर घुस गया। हुर्रर्रर्रे... बोसोन मिल गया।
वर्माजी अपने बेटे की मोटर साईकिल गुम होने की रपट लिखाने पास के थाने में गए तो उन्होंने देखा थानेदार ने अपने सारे सिपाहियों को इकट्ठा कर रखा था और उनसे पूछ रहा था – “अरे बीरसिंग, सब जगां हल्ला होरया है, बोसोण मिल ग्या। कोई ड्रग के केस में था के? कौंण था यो बोसोण ?”
बीरसिंह ने जवाब दिया – “सर, नाम सैं तो कोई अंग्रेज पादरी सा लागै सै”।
थानेदार ने फिर पूछा – “कौण से थाणे मैं पड़ै था यो बोसोण केस?”
बीरसिंह ने कहा – “सर, यो तो पता ना सै”।
थानेदार अगला प्रश्न किया – “कितणे का इनाम राख्या था सरकार नैं इस बोसोण की पूंछ पै?”
बीरसिंह बोला – “सर, इतणा हल्ला होरया सै तो इनाम तो अच्छा ही होणा चैये”।
थानेदार को ग़ुस्सा आगया – “साळे तुम सारे के सारे लोग हरामी हो। कामधाम करते ना हो। अगर तुम में से कोई इस बोसोण को पकड़ लेत्ता तो इस थाणे का नाम होजात्ता। दस परसेंट तुमको भी मिळ जात्ता”।
सारे सिपाही अपना मुंह लटका कर अपनी नाक़ामयाबी पर शर्मिंदा से खड़े थे।
पर दुनियां खुश है कि बोसोन मिल गया।