ब्रह्माण्ड के स्रष्टा / चित्तरंजन गोप 'लुकाठी'

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मैं देर रात तक टीवी देखता रहा

महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग्स पर एक कार्यक्रम चल रहा था। कई दिनों से उन्होंने दुनिया में तहलका मचा रखा है। सर्वांग-विकलांग उस व्यक्ति ने दुनिया के समस्त धर्मों को विकलांग और लाचार साबित कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि इस ब्रह्माण्ड की सृष्टि में ईश्वर जैसे किसी स्रष्टा का कोई हाथ नहीं है बल्कि एक निश्चित भौतिकीय सिद्धांत से इसकी रचना हुई है।

मैं तल्लीन होकर कार्यक्रम को देख रहा था। मगर बीच में कब आँख लग गई, पता ही नहीं चला। सुबह देर से उठा तो हड़बड़ाकर दूध लाने निकल गया। रास्ते में रामनाथ उस्ताद से भेंट हो गई। वे तालाब से नहाकर आ रहे थे। चूँकि मेरे दिमाग़ में स्टीफन हॉकिंग्स के 'ग्रैंड डिजाइन' का सिद्धांत घूम रहा था, इसलिए मेरा ध्यान उधर नहीं गया। उस्ताद ने ही टोका, "राम-राम,मास्टरजी।" मैंने नज़र उठाकर देखा। वे ठंढ से कांप रहे थे। पूछा, "उस्तादजी, आप इतनी सुबह-सुबह क्यों नहाते हैं?" उन्होंने जवाब दिया, "मास्टरजी, रौआ त जान तनि कि हम कंपनी के गाड़ी चलावेनी। जे उ बड़का गाड़ी के बनावले बा और जेकरा किरपा से हम चला सेकनी, उ भगवान के हम सबेरे-सबेरे एक घंटा पूजा ज़रूर कर लेनी। आख़िर उहे त हवै इ ब्रह्माण्ड के रचयिता!"

"हूँ...!" मैंने लंबी हामी भरी और खटाल की तरफ़ बढ़ गया। उधर से रसूल मियाँ मॉर्निंग वॉक करके लौट रहे थे। वे मस्ती से गुनगुना रहे थे

दुनिया बनाने वाले,

क्या तेरे मन में समाई...

काहे को दुनिया बनाई ...

तूने, काहे को दुनिया बनाई... ?