ब्रह्माण्ड भैंस सुंदरी / ललित शर्मा
हमारा दुधवाला सुबह से अधपगला हो गया था, सुबह-सुबह ही अपनी लाठी हाथ में लिए घुम रहा था। मैं बस स्टैंड के रास्ते में था, एक जजमान जो आने वाले थे, मैंने रामजी को खड़े हुए देख लिया, सोचा कि सुबह-सुबह कौन इसके मुँह लगे, दारु पीया हुआ है फ़ालतू समय और दिमाग़ दोनों ही ख़राब करेगा, इसलिए बचकर निकलना चाहता था। मैं सोच ही रहा था कि वह मुझे मत देखे, लेकिन उसने देख ही लिया और ज़ोर से आवाज़ दी-
"महाराज पाय लागी, रुक देवता रुक, चरण छुने दे"। ऐसा कहके उसने पैर पकड़ लिए और दारु के नशे में झूम रहा था।
"ख़ुश रहो, जय हो, राम राम जी की, कैसे सुबह सुबह दारु भट्ठी पहुँच गए?" मैंने पुछा
"क्या बताऊँ महाराज, एक लफ़ड़ा हो गया है, मैं ठहरा अनपढ, हमारे दुधडेयरी के पास एक मास्टर किराए में रहने आए हैं, बहुत पढे लिखे और विद्वान हैं। उसी के कहने से ग़लती कर बैठा। आप कुछ कीजिए तभी मेरी चिंता दूर होगी।" राम जी ने पैर पकड़े-पकड़े कहा-
"अरे पैरों को तो छोड़, सब देख रहे हैं, सुबह-सुबह दारु पीकर मेरा फ़जीता कर रहा है बीच बाज़ार में।" मैंने थोड़ा झिड़कते हुए कहा।
"नई छोड़ता मैं पैर, पहले मेरी बात सुनो और फ़िर समस्या का हल करो।" वह पैर छोड़ने को तैयार नहीं था।
"छोड़ साले पैरों को, तमाशा लगा दिया है बस स्टैंड में। जब तू पैर छोड़ेगा तभी तेरी बात सुनुँगा, मैंने गुस्से से कहा। तब जाकर उसने पैर छोड़े। मैं बड़बड़ाया- "सुबह-सुबह कोई शराबी मिल जाए तो पूरा दिन ख़राब कर देता है।"
वह कहने लगा-" क्या बताऊँ महाराज, 15 दिन पहले मास्टर जी पेपर पढ़ रहे थे, तो मैं उनके घर के पास से गुज़रा, उनको बैठे देखा तो राम राम कर लिया। बस यही राम-राम करना मेरे लिए बहुत बड़ी चिंता में बदल गया।"
"आगे बोल ज़ल्दी, मेरे पास अभी समय नहीं है।" मैंने कहा ज़ल्दबाज़ी करते हुए कहा ।
"मास्टर जी बोले अख़बार में एक समाचार है वो तुम्हारे ही काम का है काका, तुम्हारी डेयरी में 50-60 भैंस हैं एक एक सुंदर, और बम्बई में एबीसीएल ब्रह्माण्ड भैंस सुंदरी प्रतियोगिता आयोजित करवा रहा है, तुम भी अपनी एक भैंस उस प्रतियोगिता में साज संवार कर बतौर प्रतियोगी भेज दो। तुम्हारी जमना भैंस बहुत सुंदर है और उसका फ़िगर भी प्रतियोगिता के लायक है। जमना अगर जीत जाएगी तुम्हे बहुत लाभ होगा, पेपर और टीवी में तु्म्हारी फ़ोटो आएगी,डेयरी का मुफ़्त में प्रचार-प्रसार होगा, तुम्हे घर-घर दूध बेचने जाने की जरुरत नहीं है, जिसे दूध चाहिए वह डेयरी से आकर ले जाएगा और इनाम में लाखों रुपए नगद मिलेंगे, उसके बाद तो जमना टीवी में विज्ञापन करके लाखों कमाएगी। अगर किसी निर्माता निर्देशक की नज़र पड़ गयी तो हीरोईन बनना निश्चित है। बस तुम बैठे बैठे खाना। इस तरह मास्टर जी ने मुझे बहुत बड़ा सपना दिखा दिया।"
"फ़िर आगे क्या हुआ? ज़ल्दी बता, बात को लम्बी मत कर, मेरे जजमान आने ही वाले होगें।"
"मैंने मास्टर को पूछा कि प्रतियोगिता में जाने के लिए क्या करना पड़ेगा?"
तो उन्होने बताया कि- "जमना को रोज़ दिन में तीन टाईम पीयर्स साबुन से रगड़-रगड़ के नहलाना और उसकी पूँछ को सनसिल्क शैंम्पु से धोना, फ़िर देखना 10-15 दिन में एक दम चकाचक हो जाएगी, कोई भी नहीं कह सकता कि गँवई गाँव की मुर्रा भैंस है। एक दम विदेशी लगेगी।"
"मैंने भी वही किया महाराज, मेरी जमना बहुत ख़ुबसूरत है, बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें, कटारी जैसी भौंह, जो देखे वह दीवाना हो जाए, रोज़ सुबह-शाम फ़ेयर एन्ड लवली लगाता था, रात को मास्चराईजर, इससे फ़र्क यह पड़ा कि एकदम गोरी हो गयी थी, त्वचा चिकना गयी थी, पूँछ के बाल ख़ुले ख़ुले हवा में लहराते थे जैसे कोई नागिन आसाढ में झूम रही हो।"
"फ़िर क्या हुआ?"- मैंने पूछा ।
"उसे मुंबई भेजते समय आयोजकों ने कहा कि उसके साथ एक मैनेजर भेजना पड़ेगा, अब मैनेजर के काम के लिए मैंने अपनी डेयरी में काम करने वाले बरातु को तैयार किया, वह पढा लिखा है अँगरेज़ी जानता है, नौकरी नहीं मिली तो गोबर-कचरा करता है। जमना आख़िर भैंस ठहरी चारा पानी के बाद गोबर तो करेगी ही और कोई उसका समय निश्चित नहीं है, कहीं कैटवाक करते समय ही पतले गोबर का एक छर्रा मार कर पूँछ हिला दिया तो फ़िर हो गया काम सबका। इसलिए उसके लिए एक बरमु्डा पेंट भी सिलाया। उसके चारे पानी की व्यवस्था करना बरातु के ज़िम्मे कर के मैंने जमना को मुंबई भेज दिया महाराज।"
"चलो ठीक किया, अगर जमना जीत जाएगी तो तुम्हारी किस्मत बदल जाएगी, इनाम के पैसे और भी भैंस खरीद लेना। इसमें चिंता की क्या बात है?" मैंने कहा ।
"आप चिंता कहते हैं मेरे यहाँ प्राण निकल रहे हैं"।
"क्यों?"- मैंने उसके सामने एक प्रश्नवाचक चिन्ह खड़ा किया ।
"मेरा नाती कालेज में पढता है, अभी घर आया तो बता रहा था कि जो भी सुंदरी प्रतियोगिता में मुंबई चल देती है, वह वापिस नहीं आती, हारे चाहे जीते, वहीं रहकर संघर्ष (स्ट्रगल) शुरू कर देती है, अगर कामयाब नहीं होती तो मैनेजर या आयोजक के साथ ही लिविंग इन रिलेशनशिप बना कर रह जाती है। बता रहा था कि प्रतियोगिता के निर्णायक के रुप में देश-विदेश से तरह-तरह के पड़वे भी आ रहे हैं, उद्घाटन के लिए फ़क्तिकपूर और चमन वर्मा को बु्लाया गया है, कहीं कास्टिंग काऊच हो गया तो मेरी इज्जत का क्या होगा महराज? मैं गाँव में किसी को मुँह दिखाने के ला्यक नहीं रहुँगा। गांव की बदनामी होगी सो अलग, मेरी जमना भोली भाली है कोई सहरावत या बिबासा थोड़ी है।"
"नाती बता रहा था कि अगर वापस आ गयी तो दुहाती नहीं है, फ़िगर ख़राब होने का डर हो जाता है, क्योंकि प्रतियोगिता तो हर साल होती है,हो सकता है अगले साल फ़िर जाना पड़ जाए। अब इस फ़िगर के चक्कर में मेरा शुद्ध नुकसान हो रहा है। मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है, इसलिए सुबह से पी-पी कर घुम रहा हूँ और आपको ढूँढ रहा था।"
"अब मैं क्या कर सकता हूँ तुम्हारे लिए"।
"आपकी जजमानी मुंबई तक चलती है महाराज, मैं जानता हूँ आप मुंबई आते-जाते रहते हैं, मेरी जमना को आप ही वहाँ के खलनायकों से बचा सकते हो, मुझे नहीं बनाना उसे ब्रह्मान्ड सुंदरी। हाय मेरी जमना, जबसे तू गयी है कोठा है सूना, उसे वापस ला दो महाराज, मैं वादा करता उसके लौटते ही 10 किलो फ़ेयर एण्ड लवली, 5 किलो लिपिस्टिक, 20 किलो माश्चराईजर लेकर आऊँगा, हर महीने उसका गोल्डन फ़ेसियल करवाऊँगा, चाहे इसके लिए मुझे कर्जा लेना पड़े या डेयरी बेचना पड़े लेकिन एक दम मिलेट्री बीबी जैसे सजा कर रखूँगा भगवान, एकदम सजाकर।"
"हाँ तो हो गयी तेरी बात पूरी कि और भी कुछ बचा है, मैं तेरी जमना को वापस लाने का प्रयास करता हूँ, तू सुबह से दारु पी के मत घुम, जाकर घर में सो जा, तेरी जमना वापस आ जाएगी कहीं नहीं जाएगी।'-अब शराबी से पीछा छुड़ाने के लिए मुझे नेता की तरह आश्वासन देना पड़ा।
"ठीक है महाराज, आप कह रहे हैं तो जा रहा हूँ नहीं तो और भी पीने का मन था, मेरे को चिंता है कि जमना आएगी तो दुहाएगी नहीं ऐसा कहते हैं, उसको इनाम मिले या न मिले, ब्रह्माण्ड सुंदरी बने या न बने, लेकिन मेरा तो रोज़ का शुद्ध नुकसान हो रहा है, दुहना नीचे रखते ही, दोनों समय 20 किलो दूध दुहाती थी। बहुत नुकसान हो गय महाराज।"
"भैंसी चाहे कोठा (डेयरी) की हो या ब्रह्माण्ड सुंदरी, वो जहाँ जाएगी उसे दुहाना ही पड़ेगा, यहाँ तो डेयरी में तुम एक ही दुहने वाले, बाहर देखो कितने सारे दुधवाले भैंसे हाथ में दुहना धरके घुम रहे हैं कि कोई भैंस मिलती और दूह डालते, जाओ राम जी तुम भी घर जाओ और मुझे भी जाने दो जजमान के आने का समय हो गया है।"- उसे आश्वस्त करके मैं चल पड़ा जजमान की ओर...