ब्रह्म राक्षस का वरदान / मधु संधु
ब्रह्मराक्षस ने शिष्य के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया, "मैं तृप्त हुआ वत्स। तुम्हें नीति ज्ञान देकर मेरी आत्मा मुक्त हुई। अब तुम न मीटिंग में हारोगे, न चीटिंग में, न स्टेज पर हारोगे, न इमेज पर, न अर्थ में हारोगे, न स्वार्थ में, न तर्क में हारोगे, न टरक (टरकाना) में- और देखते ही देखते गुरुदेव गाड़ी में बैठ कर विलीन हो गए।
शिष्य अति शक्तिशाली और तेजस्वी आचार्य बना। पुस्तकों से पृष्ठों के पृष्ठ उड़ाकर उसने ढेर सारे ग्रन्थों की रचना की। पुरानी अनुपलब्ध कृतियों की प्रतियाँ अपने नाम से प्रकाशित करवा साहित्य जगत को देदीप्यमान किया। उसकी योग्यता का डंका सर्वत्र बजने लगा। वाक्युद्ध में बड़े-बड़ों की बोलती बंद कर देता।
नीति पटु होने के कारण वह पल-पल अपनी स्टेटमेंट बदल सबको अपने वश में रखता। उसकी विद्वता, पटुता, कूटता, बौद्धिकता, प्रतिष्ठा, पापुलरिटी से सज्जन घबराने लगे। एक दिन उन्होने देवाधिदेव इन्द्र से उपाय के लिए प्रार्थना की। भगवान इन्द्र ने इन अपराधों के दस्तावेज़ ढूँढने के लिए सी०आई०डी० के प्रशिक्षित कुत्ते छोड़े। तब मिथ जगत से हंस बुलाये गए, जिन्होंने दूध का दूध और पानी का पानी किया। तब से दुनिया का ब्रह्म राक्षस के वरदानों के स्थायित्व से विश्वास उठ गया है।