ब्रेक पांइट / सुकेश साहनी
"माँ जी, आपके पति बहुत बहादुर हैं..." राउण्ड पर आए डॉक्टर ने नाथ की पत्नी से कहा, "एक बारगी हम भी घबरा गए थे, पर उस समय भी इन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी। अब खतरे से बाहर हैं।"
पूरे अस्पताल में नाथ की बहादुरी के चर्चे थे। चलती टेªन से गिरकर उनका एक बाजू कट गया था और सिर में गम्भीर चोट आई थी। घायल होने के बावजूद उन्होंने दुर्घटना स्थल से अपना कटा हुआ बाजू उठा लिया था और दूसरे यात्री की मदद से टैक्सी में बैठकर अस्पताल पहुँच गए थे। चार घण्टे तक चले जटिल ऑपरेशन के बाद वह सात दिन तक आई.सी.यू. में ज़िन्दगी और मौत के बीच झूलते रहे थे। आज डॉक्टरों ने उन्हें खतरे से बाहर घोषित कर जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया था।
"विक्की दिखाई नहीं दे रहा है...?" दवाइयों के नशे से बाहर आते ही उन्होंने पत्नी से बेटे के बारे में पूछा।
"सुबह से यहीं था, अभी-अभी घर गया है।" शीला ने झूठ बोला, जबकि सच्चाई इससे बिल्कुल उलट थी। माँ-बाप को छोड़कर सपत्नीक अलग रह रहा पुत्र अपनी नाराजगी के चलते पिता के एक्सीडेंट की बात जानकर भी उन्हें देखने अस्पताल नहीं आया था।
थोड़ी देर तक दोनों के बीच मौन छाया रहा।
"मेरे ऑपरेशन की फीस किसने दी थी?" उन्होंने फिर पत्नी से पूछा।
इस दफा शीला से कुछ बोला नहीं गया। वह चुप रही। नाथ ने आँखें खोलीं और सीधे पत्नी की आँखों में झाँकने लगे। शीला ने जल्दी से आँखें चुरा लीं। उनको अपनी जीवनसंगिनी का चेहरा पढ़ने में देर नहीं लगी। उनकी आँखें पत्नी की कलाई पर ठहर गईं, जहाँ से सोने की चूड़ियाँ गायब थीं।
"शाबाश पुत्रा!" उनके मुँह से दर्द से डूबे शब्द निकले और उनकी आँखें डबडबा आईं।
शीला ने पैंतीस वर्ष के वैवाहिक जीवन में पहली बार अपने पति की आँखों में आँसू देखे तो उसका कलेजा मुँह को आने लगा। यह पहला अवसर नहीं था जब जवान बेटे ने उनके दिल को ठेस पहुँचाई थी, पर हर बार बेटे की इस तरह की हरकतों को उसकी नादानी कहकर टाल दिया करते थे।
एकाएक उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। डयूटी रूम की ओर दौड़ती हुई नर्सें...ब्लड प्रेशर नापता डाक्टर...इंजेक्शन तैयार करती स्टाफ नर्स...
उनकी साँस झटके ले लेकर चल रही थी...
डॉक्टर ने निराशा से सिर हिलाया और चादर से उनका मुँह ढक दिया। वह हैरान था, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि जिस आदमी ने अपनी बहादुरी और जीने की प्रबल इच्छा के बल पर सिर पर मँडराती मौत को दूर भगा दिया था, उसी ने एकाएक दूर जाती मौत के आगे घुटने क्यों टेक दिए थे!