ब्रोकन हॉर्सेस ने किया सपना साकार / जयप्रकाश चौकसे

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ब्रोकन हॉर्सेस ने किया सपना साका
प्रकाशन तिथि : 21 जनवरी 2013


विधु विनोद चोपड़ा दशकों से हॉलीवुड में उन्हीं के कलाकारों के साथ फिल्म बनाने के सपने को 'ब्रोकन हॉर्सेस' द्वारा पूरा कर चुके हैं। शूटिंग पूरी हो चुकी है और अब पोस्ट प्रोडक्शन का काम होगा। विगत कई वर्षों से विनोद हॉलीवुड की अनेक यात्राएं कर चुके हैं। उनके पहले अनेक लोगों ने प्रयास किए हैं, परंतु वे सारी फिल्में मुख्य स्टूडियो के गिर्द परचूने की दुकान पर बनी हैं। मीरा नायर और दीपा मेहता की फिल्मों में भारत के कलाकार रहे हैं, परंतु ये दोनों हॉलीवुड द्वारा मान्यता प्राप्त फिल्मकार हैं। भारत के अनेक सफल कलाकार तथा फिल्मकार हॉलीवुड स्वप्न से ग्रस्त रहे हैं और एक बार तो मसाला-मेकर प्रकाश मेहरा कैसियस क्ले से भी मिलने पहुंचे थे और उनका मेहनताना सुनकर ही उन्होंने अपने मुगालतों से मुक्ति पाई। बहरहाल विधु विनोद चोपड़ा ने पुणे फिल्म संस्थान में अपनी पढ़ाई के दौरान एक 22 मिनट की फिल्म बनाई थी, जिसे अपनी श्रेणी में ऑस्कर नामांकन भी मिला था। उस समय वे सरकारी खर्च पर अमेरिका गए थे। विधु विनोद चोपड़ा ने कम बजट की थ्रिलर से कॅरियर शुरू किया, परंतु 'परिंदा' की कामयाबी के बाद उन्होंने '१९४२ ए लव स्टोरी' का निर्माण किया, जो राहुलदेव बर्मन के मधुर संगीत के लिए लंबे समय तक याद की जाएगी। उन्होंने पुणे से आए नवयुवकों को अवसर दिया। संजय लीला भंसाली को भी '१९४२ ए लव स्टोरी' के गीतांकन का अवसर दिया और अपनी 'मिशन कश्मीर' में राजकुमार हीरानी को सहायक लिया, जिन्होंने उनके साथ मिलकर 'मुन्नाभाई एमबीबीएस', 'लगे रहो मुन्नाभाई' और '३ इडियट्स' के रूप में तीन सफल फिल्में गढ़ीं। इस दौरान विधु विनोद चोपड़ा ने केवल 'एकलव्य' निर्देशित की।

दरअसल विधु विनोद चोपड़ा का फिल्म दृष्टिकोण हमेशा ही हॉलीवुडनुमा रहा है और फिल्म के भारतीय मुहावरों का वे इस्तेमाल भी नहीं करते। उनकी कला अभिरुचियां भी हमेशा पाश्चात्य रही हैं, परंतु सिनेमा माध्यम के प्रति वे हमेशा समर्पित रहे हैं। भारत में प्रस्तुतीकरण में सरलीकरण और भावना का वेग अतिरेक के साथ मौजूद रहता है, परंतु हॉलीवुड में हर दृश्य या पात्र के अवचेतन का सरल रूप कभी स्कूल शिक्षक की तरह पूरे स्पष्टीकरण के साथ नहीं प्रस्तुत किया जा सकता। सर रिचर्ड एटनबरो की 'गांधी' पूरी दुनिया में सफल रही और अनेक पुरस्कार भी प्राप्त किए, परंतु भारत में अपेक्षाकृत ज्यादा सफल नहीं रही। भारत की अनेक भाषाओं में डब संस्करण लगाए गए, परंतु उस वर्ष की किसी मसाला फिल्म के समान आय नहीं हुई। फिल्मकार को लगता था कि सबसे अधिक सफल भारत में होगी, परंतु ऐसा हुआ नहीं और इसके सतही कारण पर्याप्त नहीं हैं। मसलन यह कहना कि प्रदर्शन के समय तक भारत गांधीवाद से ही विमुख हो गया था, कोई ठोस वजह नहीं है। गांधी की भूमिका में विदेशी अभिनेता बेन किंगस्ले को लिया जाना भी कोई वजह नहीं है। हॉलीवुड की एक्शन फिल्में हमारे यहां सफल रही हैं और जेम्स कैमरॉन की 'टाइटैनिक' को भी सर रिचर्ड एटनबरो की 'गांधी' से ज्यादा व्यावसायिक सफलता भारत में मिली। कारण स्पष्ट है कि 'टाइटैनिक' की प्रेमकथा और उसका प्रस्तुतीकरण हमारे दिल के नजदीक रहा है और दर्शक उससे भावनात्मक तादात्म्य भी बना पाए, क्योंकि उसका फिल्म मुहावरा हिंदुस्तानी था और सरलीकरण भी था। दूसरी ओर एटनबरो की 'गांधी' का विषय घोर भारतीय था, परंतु उसका फिल्मी मुहावरा व कलात्मकता संवेदना भी विदेशी थी। शायद यही कारण है कि भारत में बनी विदेशी फिल्में, जिनमें भारतीय कलाकार भी होते हैं, हॉलीवुड में ऑस्कर पाती हैं, क्योंकि फिल्मकार की कलात्मक संवेदना और मुहावरा ऑस्कर मतदाता का जाना-पहचाना है। दरअसल अभिनय के भी दोनों स्कूल जुदा हैं। हॉलीवुड में वे अंडरप्ले करते हैं और अभिनेता द्वारा दृश्य की भावना को महसूस करने मात्र से उसके चेहरे पर आए भाव संप्रेषण के लिए यथेष्ट हैं, जबकि हमारा अभिनेता थोड़ा मुखर होता है, भाव की अभिव्यक्ति के लिए प्रयास भी करता ै। अंतर प्रयास और प्रयासहीनता का है। हमारे यहां भी अभिनय की इस शैली के मोतीलाल, संजीव कुमार, ओमपुरी और इरफान खान जैसे अभिनेता रहे हैं। फिल्म अभिनय ऐसा अखाड़ा है, जहां अधिक दंड पेलने से नहीं वरन अखाड़े की मिट्टी को महसूस करने से बात बनती है। इसी तरह 'स्लमडॉग मिलियनेअर' भी घोर भारतीय फिल्म थी, परंतु अपने मुहावरे के कारण वह भारत में आशानुरूप सफलता नहीं प्राप्त कर पाई। सारा मामला 'अंदाजे बयां' का है। बहरहाल 'स्लमडॉग मिलियनेअर' की मूल पटकथा में एंकर भारतीय झोपड़-पट्टी बालक के खिलाफ इसलिए है कि एंकर कभी एक प्रसिद्ध अभिनेत्री से इश्क फरमाते थे और उन दिनों यह बालक उसका नौकर था। एंकर को भय है कि 'करोड़पति' होने पर यह मीडिया को उनके अवैध प्रेम की बात बता देगा, इसीलिए वह उसे गिरफ्तार करवाता है, परंतु इसी प्रकरण के कारण एक लोकप्रिय सितारे ने यह भूमिका नहीं की, क्योंकि यह उसी के जीवन की घटना थी और एंकर की भूमिका में अन्य कलाकार आने के बाद मूल कथा का यह प्रकरण हटा दिया गया। बहरहाल अब विनोद को अपनी मंजिल मिल गई है। इसके लिए उन्हें बधाई।