भंसाली की 'गुजारिश' और ताबिश / जयप्रकाश चौकसे

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सम्राट बनाम रिवाल्वर रानी और कांची
प्रकाशन तिथि : 22 अप्रैल 2014


मुंबई में फिल्म लेखक संघ के सदस्य ताबिश रोमानी ने 2004 में अपनी पटकथा 'गूंज उठी शहनाई' पंजीकृत की थी और 2010 में संजय लीला भंसाली की रितिक-ऐश्वर्या अभिनीत 'गुजारिश' का प्रदर्शन हुआ और ताबिश का दावा था कि भंसाली की फिल्म उनकी कथा की नकल है। लेखक संघ की कमेटी ने सारे कागज देखे और भंसाली को पत्र लिखा कि वे ताबिश को दस लाख दे। भंसाली मामले को कोर्ट में ले गए और कहा जाता है कि लेखक तथा फिल्मकार के बीच अदालत के बाहर एक समझौता हुआ जिसके तहत ताबिश को तीन लाख मिले परंतु उन्होंने लेखक संघ में पांच प्रतिशत अर्थात पंद्रह हजार नहीं जमा किए जबकि उनका मुकदमा लेखक संघ के वकील ने लड़ा था। लेखक संघ का कहना है कि ताबिश उनके खतों का जवाब नहीं दे रहे हैं। ज्ञातव्य है कि प्राय: फिल्म उद्योग के विभिन्न संगठनों के ट्रीब्यूनल बोर्ड होते हैं जिनका फैसला प्राय: अदालतें मानती हैं। कई उद्योग संगठनों के कुछ चुने हुए सदस्यों ने रिश्वत लेकर पक्षपात भी किया है परंतु भारत महान में जीवन का यही तौर तरीका है। कहते हैं कि जो मछुआरा दुष्यंत के शाही चौके के लिए वह मछली बेचने आया था, जिसमें अंगूठी थी जो उन्हें शकुंतला की याद दिलाता, उसने भी रिश्वत देकर ही मछली बेची थी। भरत शकुंतला-दुष्यंत के पुत्र थे जिनके नाम पर देश का नाम पड़ा भारत गोयाकि डीएनए ही में रिश्वत है।

बहरहाल फिल्म उद्योग में कहानियों की चोरी, गीतों की चोरी सामान्य बात है। अनुभवी लेखकों का कहना है कि जिस कथा का मूल स्रोत नहीं मालूम, वह मौलिक है। मूल के स्रोत को छुपाए रखना ही मौलिकता है। दरअसल अन्य जगह से प्रेरणा लेकर भी कुछ ऐसा रचा जा सकता है जो कि मौलिक है। मसलन शेक्सपीयर के पहले अन्य किसी भाषा में लिखी रोमियो-जूलियट में त्रासदी पांच वर्ष तक चलती है और शेक्सपीयर का विचार था कि प्राय: प्रेमी कहते हैं कि प्रेमिका के बिना एक क्षण भी जीना कठिन है तो कोई विशुद्ध प्रेम कथा इतने समय तक कैसे रेंग सकती है। उनकी रोमियो जूलियट चार दिन की कथा है और दोनों प्रेमी अपने युद्धरत परिवारों द्वारा मार दिए जाते हैं परंतु शेक्सपीयर के पहले वाले नाटक में प्रेमियों की कब्र के नीचे सुरंग है और वे बचा लिए जाते है जैसे के. आसिफ ने अपनी अनारकली को बचाया था।

कुछ दिन पहले गुजरात के युवा जडेजा ने दावा किया था कि मोदी का चुनावी गीत वे उन्हें भरी सभा में सुना चुके हैं और गीत उन्हें भेंट कर चुके है परंतु जडेजा के गीत में कुछ शब्दों की हेराफेरी करके जो भाजपा एंथम जारी की गई है, उसे प्रसून जोशी की रचना कहकर प्रचारित किया गया। इसी तरह 'दिल्ली 6' के ससुराल गेंदाफूल' को भी रायपुर आकाशवाणी में ध्वनिबद्ध रचना माना जाता है। इस तरह के प्रकरण होते रहते है और यह भी संभव है कि एक ही विचार दो कवियों के दिमाग में आया हो।

बहरहाल मौजूदा हालात पर विष्णु खरे की ताजा कविता 'दज्जाल'की बहुत चर्चा है जिसका आधार है कि इस्लामी कयामत के पहले दज्जाल नामक दानव का वध मेहदी करेंगे। कविता की कुछ पंक्तियां इस तरह है,

"लेकिन दज्जाल अपनी असली किमाश को, कब तक पोशीदा रख सकता है, जब उसका दहशत नामक चेहरा सामने आयेगा और वही सब करेगा जिसके खिलाफ उतरने का उसने दावा किया था बल्कि और भी बेखौफ उरियानी और दरिंदगी से, तो अगर तबाही से बचे तो खून के आंसू रोते हुए अवाम, जमीन पर गिरकर छटपटाने लगेगा, किसी इब्ने मरिअम, किसी मेहदी किसी काल्की की दुहाई देते हुए, जो आज भी तभी आएंगे जब कौमें पहले खुद नहीं खड़ी हो जायेंगी, दज्जाल की शिनाख्त कर शय्याद मसीहा के खिलाफ,"


विष्णु खरे ने यह कविता महेश भट्ट को भेजी है किसी फिल्म की प्रेरणा के लिए।