भगतसिंह का स्मरण और आवाज़ में असर / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
भगतसिंह का स्मरण और आवाज़ में असर
प्रकाशन तिथि :25 मार्च 2017


प्राय: महान व्यक्तियों के स्मृति दिवस मनाए जाते हैं और सारा क्रियाकलाप महज रस्म-अदायगी बनकर रह जाता है। सभा भवन से बाहर निकलते ही सुधार की वह भावना भुला दी जाती है। सारा उपक्रम श्मशान वैराग्य की तरह रह जाता है। हम सांसारिकता के चक्र में फंसे हुए व्यक्ति हैं। हम प्राय: अपनी भूख और आवश्यकताओं के गुलाम बनकर रह जाते हैं। जानवर भकोसे हुए की जुगाली करते हैं परंतु मनुष्य जुगाली नहीं करता। जानवर खाए हुए को पुन: अपने जबड़े में चबाता है, जिसे जुगाली कहते हैं। यह आश्चर्यजनक है कि कुछ फिल्मों के चरित्र-चित्रण हमारे साथ ही सिनेमाघर से बाहर निकलते हैं और लंबे समय तक हमारी परछाई की तरह साथ चलते हैं। यह हमसफर, हमसाया प्राय: हमजाद भी हो जाता है। हमजाद अवधारणा इस्लाम से जुड़े साहित्य की है कि मनुष्य के जन्म समय से ही उसकी मृत्यु भी साथ-साथ जीती है और किसी क्षण हमजाद हम पर हावी हो जाता है। सबसे अधिक बड़ा सत्य यह है कि हम जानकर भी उससे अनजान बने रहते हैं, क्योंकि अवश्यंभावी मृत्यु के साये में भी सानंद जीना ही एकमात्र रास्ता है।

23 मार्च को इंदौर के मानस भवन में शहीद भगतसिंह स्मृति दिवस मनाया गया और आनंद मोहन माथुर द्वारा इस आयोजन में तय हुआ कि हर मोहल्ले में सकारात्मकता की अलख जगानी है। वहां एकत्रित होकर मोहल्ला सुधार का काम करें और भगतसिंह के जीवन-मूल्यों को कुछ क्षणों मात्र के लिए ही सही हृदय में स्मरण करके बेहतर समाज के लिए छोटे-छोटे काम करें। सारांश यह कि भगतसिंह की पिस्तौल को विचार-प्रक्रिया में जीवित रखें और इससे निकली गोलियां अंधविश्वास और कुरीतियों पर निशाना साधें इस क्रांति में कहीं कोई खून नहीं रिसेगा परंतु विचार प्रक्रिया में भगतसिंह के समाजवाद को साकार करने का प्रयास होगा। वर्तमान में पूंजीवादी समाज संरचना का बोलबाला है। पूरे विश्व में वामपंथी विचारधारा लुप्त होती जा रही है। जिस किसी व्यक्ति की विचारधारा में साधनहीन के लिए करुणा है, वही समाजवादी विचार का बीज है गोयाकि यह हृदयहीनता के खिलाफ एक युद्ध है। दुनिया के तमाम कवि, लेखक एवं विचारक साधनहीन के प्रति संवेदनशील होते ही वामपंथी हो जाते हैं। मुंशी प्रेमचंद के पात्र साधनहीन व्यक्ति हैं और उनमें जीवटता है अत: वे समाजवादी हैं।

लेखकों के विश्व में ऐन रैंड एकमात्र लेखिका हैं, जिनका विश्वास यह है कि व्यक्ति की कार्यकुशलता ही उसका चरित्र है। एेन रैंड के विश्व में अपंगता दंडनीय अपराध है। आलस्य घोर अपराध है। इस पैमाने पर संस्कृति साधक आलस्य प्रेमी ख्यात संपादक राहलु बारपुते को जीवन पर्यंत जेल में रखा जाता। रैंड की हिमाकत यह भी थी कि असाधारण प्रतिभाशाली व्यक्ति पर सामान्य न्याय व कानून प्रक्रिया लागू नहीं होती गोयाकि एक महान लेखक को हत्या करने पर भी सजा नहीं देनी चाहिए। एक दंड संहिता सामान्य जन के लिए और दूसरी प्रतिभाशाली लोगों के लिए होना चाहिए। यह कितने अचरज की बात है कि अमेरिका की नागरिकता प्राप्त ऐन रैंड और रूस के महान उपन्यासकार दोस्तोवस्की एक-सी बात करते हैं। उनके 'क्राइम एंड पनिशमेंट' में प्रतिभाशाली लोगों को सामान्य दंड विधान से मुक्ति की पैरवी की गई है। दरअसल, यह घातक विचारधारा है, जो समानता के आदर्श के विपरीत है। क्या महान रवींद्रनाथ टैगोर, शरतचंद्र, जयशंकर प्रसाद और सआदत हसन मंटो को उनके असाधारण लेखक होेेने के कारण हत्या करने पर मृत्युदंड नहीं दिया सकता था? दरअसल, यह कुटिल विचार समानता एवं स्वतंत्रता के आदर्श की धज्जियां उड़ा देता है। अगर गोडसे ने कभी कोई मुक्तक लिखा होता तो क्या उन्हें गांधीजी की हत्या का दोषी मानकर भी दंड नहीं दिया जाता?

आजकल के हुक्मरान यह मानते हैं कि प्रगतिवादी मानवता से ओत-प्रोत विचार जिस भी व्यक्ति के हों, उसे हाशिये पर डाल दें या समानांतर हुड़दंगी व्यवस्था द्वारा दंडित कराया जाए। पुणे में कुरीतियों के खिलाफ बोलने वाले की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई और अपराधी दंड विधान से बच गया। बम ब्लास्ट के लिए जिम्मेदार दंडित व्यक्ति को जेल में सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं और पैरोल पर रिहा भी कर दिया गया। नया अघोषित समानांतर दंड विधान एक धर्मविशेष के अनुयायी या इत्तेफाक से परिवार विशेष में जन्मे को अपराधी ही माना है। भारत की जेलों में हजारों लोग कैदी हैं, जिनकी न एफआईआर दर्ज हुई और न ही उन्हें कभी अदालत में प्रस्तुत किया गया। ऐसे ही एक व्यक्ति को जेल में ठूंसा गया था और आनंद मोहन माथुर ने हाईकोर्ट से उसे न्याय दिलाया। उस व्यक्ति का नाम दीपक असीम है।

भगतसिंह स्मृति समारोह में धार के मुजीब कुरैशी, श्रीमती अर्चना जायसवाल, विजय सिंह यादव, एएसआई पॉल एवं दीपक असीम ने अपने विचार अभिव्यक्त किए। इस कार्यक्रम में लोगों ने शपथ ली कि वे प्रतिदिन प्रात:काल शहीद भगतसिंह और साथियों का पावन स्मरण करके सामाजिक सार्थकता का कार्य करेंगे। अब देखना यह है कि कितने लोग वचन निभाते हैं। कहीं न कहीं समाज में विचारों की एक चिन्गारी तो भड़के। अनावश्यक वस्तुओं की खरीदी को बढ़ावा देेने वाला बाजार अजगर की तरह मूल्यों का भक्षण कर रहा है और हम यह सुखद कल्पना करें कि भगतसिंह एवं साथियों का पुनरागमन आज होता है तो उनका युद्ध पहले लड़ी लड़ाई से ज्यादा कठिन होगा! उस समय केवल अंग्रेजी शासन ही हमारा शत्रु था। हम उसे जानते थे और भीड़ में भी पहचान सकते थे परंतु आज उस शत्रु को हम चिह्न ही नहीं सकते। वह सर्वत्र व्याप्त है परंतु अदृश्य रहता है। अगर हम आईना देखें तो वह शत्रु नज़र आएगा। इसलिए युद्ध का यह दौर कठिनतम है। सभा में एक वक्ता डॉ. आनंद राय थे, जिन्होंने कुख्यात व्यापमं घोटाले के खिलाफ आवाज उठाई थी। क्या उस घोटाले का असल अपराधी दंडित हुआ या उसे और अधिक शक्ति दे दी गई है? प्रोफेसर सरोजकुमार ने सभा की कार्यवाही का उपसंहार किया।