भगवान आरो देश / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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तीरथ करै के क्रम जैवा के अबाध चली रैल्होॅ छेलै। साल में सात-आठ महिना लालजी मड़रोॅ साथें तीरथ भ्रमण में ही बीतै। परिवार के अन्य सदस्य भी क्रम सें मड़रोॅ साथें जाय छेलै। कभी-कभी बीच में साल-दू-साल के विराम भी हुअेॅ मतुर बीततें उम्र के साथें तीरथ सें जैवा के मनोॅ केॅ शांति मिली गेलोॅ रहै। संसार एक विशाल रंगमंच छेकै आरो जीव मात्रा एक पात्रा भर छेकै जे आपनोॅ करलोॅ करनी के फल भोगै लेॅ दुनिया में ऐलोॅ छै। आपनोॅ बैधव्य केॅ पूर्व जनमोॅ के फल मानी केॅ जैवा जिनगी जीयै लागलै। बढ़िया कर्म करोॅ, अगला जनम सोगारथ होतौं। सतकर्म ही जैवा के जीवन होय गेलै। जीव मात्रा पर दया उनकोॅ धर्म होय गेलै।

सौसे भारत भर के तीर्थ करला के बाद बद्रीनाथ केदारनाथ के यात्रा सें जैवा एैली छेलै। लगभग सभ्भेॅ तीर्थ पूरी गेलोॅ छेलै। अधिकोॅ ठिंया बैठली छेलै जैवा। अधिकेॅ पूछलकै, "की पैल्हेॅ? की मिलल्होॅ?"

"दुनिया देखलौं, आँख जुड़ैलोॅ। कश्मीर सें कन्या कुमारी तांय, एक से एकैस देखै लायक चीज छौं अपना देशोॅ में भैया।"

"हमरोॅ प्रश्न के ई उत्तर नै होलै।"

गंभीर होय गेलै जैवा। क्षणभर चुप्पी रहलै। जैवा कहलकै, " शांति पैलिहों। संसार मिथ्या छै। झूठे के मारामारी छै। जै देहोॅ पर आदमी अहंकार करै छै, सच में वहेॅ क्षणभंगूर छै।

"तबेॅ देहोॅ के देखभाल छोड़ी केॅ ऐकरा खतमें होय लेॅ छोड़ी देना चाहियोॅ।"

"देह मंदिर छेकै। यै मंदिरोॅ में परमात्मा बसै छै। आत्मा परमात्मा के ही रूप छेकै। यै मंदिरोॅ केॅ स्वस्थ, सुन्दर, साफ-सुथरा, निर्मल, पवित्रा राखी के ही परमात्मा के उपस्थिति के अनुभव संभव छै। बढ़िया कर्म करोॅ। प्रेम, दया, सेवा सबसें बड़ोॅ धर्म छेकै।" जैवा जे पैनें छेलै, उ$ बांची देलकै।

हुनी प्रसन्न होलै, कहलकै, "बरसोॅ के तीरथ भ्रमण सार्थक सफल होलौं। आबेॅ हम्में दूनोॅ भाय तोरा चिंता सें मुक्त होलियै। ई पैलोॅ तत्व ज्ञान संसार केॅ बाँटोॅ। गाँव, समाज, परिवार लेली आदर्श बनोॅ। सत्यं, शिवं, सुंदरम भाव सें भगवान शिव के आराधना करोॅ।"

"मतुर कभी-कभी देशप्रेम के भाव ऐन्होॅ तीव्र रूप सें उभरै छै कि सब भाव फीका पड़ी जाय छै। तीरथ के क्रम में अंग्रेजों के अत्याचार देखी केॅ मनोॅ में विद्रोह के भाव जगी जाय छेलै। मोॅन करै कि सब कुछ छोड़ी केॅ देशोॅ के आजादी लेली प्राण दै वाला भारत के संघर्ष सेनानी के साथ दै वास्तें तैयार होय जांव।" जैवा के चेहरा पर देशोॅ के आजादी लेली बलिदान दै के भाव साफ-साफ झलकी रैल्होॅ छेलै।

अधिक मड़रोॅ केॅ जैवा के बातोॅ सें सुख आरो संतोष मिललै। कहलकै, "तोरोॅ भाय हम्में, भतीजा गजाधर आरो चकरधर तेॅ यै आंदोलन में छेवेॅ करियै। विचार सें तेॅ तहूँ छेवेॅ करोॅ। ई गुरिल्ला युद्ध छेकै जेकरा में विचार से साथ देवोॅ भी कम महत्त्वपूर्ण नै छै। ऐकरा सें ईश्वर के आराधना में बाधा कहाँ पहुँचै छै। मातृभूमि के पूजा, देशोॅ के लेली जीयै-मरै के संकल्प के साथें जिनगी बितैवोॅ सत्य शिव भाव ही तेॅ छेकै, सच में यहेॅ ईश्वर के पूजा छेकै। तोरा में ई भाव के एैवोॅ ईश्वरीय प्रेरणा ही छेकै। यै शुभ भाव के हिरदय सें स्वागत करोॅ।"

"महेन्द्र गोप के हाल-चाल सुनावोॅ भैया। बत्तीस सें बियालीस पूरे दस साल तीरथ ही तीरथ में बितलै। आजादी लेली ई भाव जागरण के प्रेरक हुनिये छेकै।"

"1932 के 15 फरवरी केॅ तारापुर थाना भवन पर तिरंगा फहरावै के प्रयास में अंग्रेज़ी फौज के गोली सें लगभग पचास के संख्या में स्वतंत्राता सेनानी मारलोॅ गेलै। हाव दिन लागलै सौसे तारापुर आजादी लेली जान हथेली पर लैकेॅ जागी गेलोॅ छै। ई गोलीकांड के प्रतिक्रिया में सम्राट महेन्द्र गोप ने २५ॉ-३ॉॉ साथी के साथें अमरपुर थाना केॅ जलाय केॅ राख करी देलकै आरो थाना परिसर में तिरंगा झंडा फहराय केॅ ही दम लेलकै। बलूची फौज मंगाय केॅ महेन्द्र गोपोॅ केॅ पकड़ै लेली अंग्रेज खिसियाय केॅ भिड़लै, मतुर हुनका पकड़वोॅ की अतना आसान छेलै। शेर जंगलोॅ में छिपी गेलोॅ छेलै। वही में भागलोॅ-छिपलोॅ सम्राट दू रात लेली एकाक सौ साथी के साथें मिर्जापुर भी ऐलोॅ छेलै। तोरा खोजै छेलौं। भैया नै छेलै, यही लेलोॅ खुली केॅ खाना-पीना, स्वागत-सत्कार होलै।" अधिकें सौसे कहानी गौरव के साथ जैवा केॅ सुनैलकै।

"बहुतेॅ कष्ट में जियै छै ई सीनी हो।" कहि केॅ लंबी सांस लेलकै जैवा नें।

"१९४२ के" अंग्रेजो भारत छोड़ोॅ"आंदोलन के कारण ही तोरोॅ तीरथ यात्रा के कार्यक्रम रूकी गेलोॅ छौं। आजादी के सेनानी सीनी सड़क, पुल तोड़ी रेल्होॅ छै। जथ्था रो जथ्थ लोग घरोॅ सें निकली केॅ सड़कोॅ पर नारा लगैतें निकली गेलोॅ छै। जहेॅ नै आबी रैल्होॅ छौं गोप जी. एैथौं आरो कार्यक्रम शुरू कराय केॅ तुरत लौटी जैतौं।"

रात होय रैल्होॅ छेलै। जैवा केॅ नीन आबी रैल्होॅ छेलै। जाय लेली तैयारेॅ होय रैल्ही छेलै कि गामें के गोप दल के संघर्ष सेनानी तारणी यादव हाथों में रायफल तानलें हंफसलोॅ-दपसलोॅ आगू में खाड़ोॅ होय गेलै। देखतैं अधिक बोललै, "की बात छै तारणी?"

"गोपजी, पचास-साठ चुनौटा साथी साथें आबी केॅ पछियें बहियारी वाला कुइयां पर रुकलोॅ छौं। सब दिन भर के भुखलोॅ छै। गोपजी कहनें छौं, तुरत कुछ्छू खाय-पियै के इन्तजाम होना चाहियोॅ आरो घोड़ा सीनी के सानी-पानी अपना भोजन सें भी जादा ज़रूरी कहलकौं।"

अधिक मड़र अतना सुनतैं देह-हाथ झाड़ी केॅ खाड़ोॅ होय गेलै। दुआरी पर सुतलोॅ दस-बारह नौकरोॅ केॅ जगाय केॅ नादी में पानी भरै केॅ हुकुम देलकै। ओकरोॅ बाद तारणी केॅ कहलकै, "चैतोॅ के ई खरमांसू दिनोॅ में बहियारोॅ में चारा नै होयके कारण ही घोड़ा के दाना-पानी रो वेवस्था करै वास्तें गोपजी केॅ बोले लेॅ पड़लै। तारणी, गजाधरोॅ सें कहोॅ कि खमारी पर खेसाड़ी आरो चना खेतोॅ सें उखड़ी केॅ एैलोॅ छै। घोड़ा सभ्भेॅ केॅ वही में लगाय देतै आरो नादोॅ में पानी भराय रेल्होॅ छै पानी पिलाय देतै।"

तारणी के गेला के बाद अधिक जैवा दिस मुड़लै, "चलें जैवा, खाना केॅ इंतजाम करलोॅ जाय।"

"दस सें कम नै बजतेॅ होतै। की इंतजाम करभोॅ।"

"अखनी तुरत चूड़ा, घी, गूड़ खिलैबेॅ आरो अलमू केॅ दाल, भात आरो सब्जी बनाय लेॅ भिड़ाय दै छियै। अत्तेॅ नौकर-चाकर छै एक डेढ़ घंटा में तेॅ पक्का खाना बनी केॅ तैयार होय जैतेॅ।"

तब तांय चकरधर दू-तीन आदमी साथें आबी गेलोॅ रहै। हँसतें हुअें बोललै, "गोपजी आरो जेठौर जमुआ के परदुमन सिंहें कहलकौं कि दूध, चूड़ा आरो गूड़ोॅ सें दिनकोॅ उपास तोड़वै, दोसरोॅ दौर के खाना में चावल, दाल, तरकारी बनी जाय।"

तीस पाथा सें कम दूध घरोॅ में नै होतै। सब दूध आरो चूड़ा पहुँचतें देर नै लागलै। गोपजी केॅ दूध आरो शक्कर बहुतेॅ पसंद छेलै। हुनी मोॅन भरी दूधेॅ पिलकै।

फेरू मींटीग एक घंटा चललै। पुनसिया के सिगेंसर केशरी, दुर्गापुर के चुनचुन ठाकुर आरो गजाधरोॅ केॅ आंदोलन केॅ यादगार बनाय के जिम्मेवारी सौंपी केॅ सभ्भेॅ पूवारी बाखर में आबी केॅ खाना खैलकै। खाना परोसै में जैवा केॅ शामिल देखी केॅ खाना खैतें हुअें गोपजी दूनोॅ हाथ जोड़ी केॅ प्रणाम करतें कहलकै, "दीदी, आबेॅ आजादी चौखट पर आबी केॅ खाड़ोॅ छै। तोरा नांकी माय, बहिन के आजादी के लड़ाय में साथ देवोॅ यै बातोॅ के प्रमाण छेकै।"

जैवा कुछ्छू बोलेॅ नै पारलै; नै जानौं कैन्हेॅ हुनका आँखी में भरी आँख लोर आबी गेलै। गोपजी स्थिति केेॅ ताड़ी गेलै। खाना समाप्त करतें हुअें हुनी बोललै, "ई लोरोॅ के सौगात कैन्हेॅ दीदी?"

"तोरा सबकेॅ देखी केॅ। भाय, भतीजा जान जोखिम में डाली केॅ लड़ाय के मैदानोॅ में रहतै आरो बहिन के आँखी में लोर नै ऐतेॅ।"

महेन्द्र गोप ठठाय केॅ हँसलै, "सम्राट के पद ऐन्हेॅ नै मिली जाय छै दीदी। बज्र नांकी कठोर होय लेॅ पड़ै छै। माय लेली, मातृभूमि लेली लड़ै के उन्माद में प्राणोॅ के चिन्ता नै रहै छै। देखोॅ न, दुबरोॅ होय के बजाय स्वस्थ, तन्दुरूस्त मोटेलौेॅ जाय रेल्होॅ छियै।" सम्राट ऐकरोॅ बाद शांत, गंभीर होयकेॅ हाथ जोड़ी केॅ कहलकै, "हमरा भैगनी सें भेंट करावोॅ दीदी। एक नजर ओकरा देखी लिये, फेरू के जानै छै, मौका मिलतै की नै मिलतै।"

जैबां गोपजी केॅ लेनें चकरधरोॅ के कोठरी तरफें चल्लोॅ गेलै।

थोड़ोॅ देर बादेॅ तारणी दौड़लोॅ एैलेॅ। गोपजी केॅ ने देखी केॅ प्रदुमन सिंहोॅ सें कहलकै, "पूवें पक्की सड़कोॅ तरफोॅ सें अंग्रेेजोॅ के सिपाही आबी रैल्होॅ छौं।"

सुनतैं गजाधर गोपजी केॅ सूचना दै लेली दौड़लै। सौसे घोॅर डरोॅ सें सहमी गेलै। भगदड़ मची गेलै। खटिया पर बैठलोॅ गोपजी खाड़ोॅ होय गेलै, "गजाधर! सबकेॅ कहोॅ, आपनोॅ-आपनोॅ घोड़ा पर सामान लैकेॅ तैयार होय जैतेॅ। यहाँ रूकै के सब निशान मिटाय दै लेॅ कहोॅ। हम्में तुरत आबै छियौं।"

एकांत पावी केॅ पार्वती गोपजी केॅ दूनोॅ गोड़ पकड़ी केॅ कानी उठलै, "मामू हो... ऽ ... ऽ आ। मोॅन भरी बतियावेॅ भी नै पारलौं।"

गोपजी केॅ समय नै छेलै। माथा पर हाथ धरि केॅ अतनै टा बोलै पारलै, "फेरू एैभौं। कानोॅ नै। अखनी जावेॅ देॅ।" आरोॅ जी कड़ा करि केॅ कोठरी सें बाहर होय गेलै।

बाहर सभ्भेॅ साथी तैयार छेलै। पता चललै चारोॅ तरफोॅ सें अंग्रेज सिपाहीं घेरी लेनें छै। सम्राट कठिन परिस्थिति में घोड़ा पर उलटा बैठेॅ छेलै। हुनी एक क्षण व्यर्थ गंवैलेॅ बिना तारणी सें पूछलकै, "कोंन तरफें कम सिपाही होयके सूचना छौं।"

"पछियें गाँव नै छै। गाँव कहिकेॅ सिपाही सीनी गाँव में धरेॅ तरफें आपनोॅ पूरेॅ ताकत लगैलेॅ छै।"

सम्राट नें समझी गेले कि सिपाही सीनी ई सोची केॅ गाँव घूसलोॅ छै कि डरोॅ सें गामें-घरोॅ में न नुकैतेॅ, खोजी केॅ पकड़ी लेवोॅ। ओकरा ई पतेॅ नै छेलै कि सम्राट महेन्द्र गोप जहाँ जाय छै, पूरे तैयारी के साथ। क्षण भर लेली सोचलकै आरो पछियें दिस आपनोॅ तेज उड़ाक साढ़े छोॅ फूट के घोड़ी पर उलटे बैठी केॅ बेगवान गति सें चली देलकै। शेष सब हुनका पीछू-पीछू रात के अन्हारा में विलीन होय गेलै।

पछिये गाँव सें थोड़ोॅ दूरी पर एक गैढ़ी डाड़ छेलै जेकरा शेखा लद्दी गाँव वाला कहै छेलै। शायद वही ठिंया कुछ सिपाही घात लगाय केॅ बैठलोॅ होतै। धुरछक गोली चलेॅ लागलै। ठांय ... ठांय ... ठांय के आवाज सें सौसे इलाका दहली गेलै।

रात केॅ कोय डरोॅ सें बाहर नैं निकललै। भियानी पता चललै कि केकरोह कुछ्छु नै होलोॅ छेलै। सब लोग जीतनगर-जेठौर पहाड़ के वियांवान जंगलोॅ में छिपी गेलोॅ रहै। लेकिन अंग्रेज फौजें गाँव घेरनैं रहि गेलै। गाँमों में जेकरा-तेकरा अन्हें मुन्ने बलूची फौजें जानवरोॅ नांकी डंगाय देलकै। दोस-निरदोश कुछ्छू नै बूझलकै। तारणी, अधिकलाल भैया के पकड़ी केॅ लेनें गेलै। हमरा पर दफा 107 रो केस चार्ज करी केॅ जमींदारोॅ के जमानत देला पर छोड़ी देलकै।

उ$ रात हमरा याद छै दीदी के आँखी में नीन्द नै छेलै। कुछ ऐन्होॅ घटलोॅ छेलै जेकरोॅ प्रत्यक्ष गवाह हुनी छेलै आरो बात ठोरोॅ पर आवै के पैन्हेॅ लागै छेलै हुनी कपसी-कपसी केॅ कानें लागतै। जीवन के दुखद दौर के कौन ऐन्होॅ बात छेलै, कैन्हेॅ कि उनको जिनगी के दुख-सुख सिरिफ व्यक्तिगत ही नै, बलुक परिवार, गाँव आरो सार्वजनिक स्तर पर भी बँटलोॅ छेलै जैमें राष्ट्रधर्म आरो भगवत भक्ति प्रमुख रूप सें शामिल होय गेलोॅ छेलै। लगातार खोज करी केॅ हुनी यै निष्कर्ष पर पहुँचलोॅ छेलै कि भगवान रो भक्ति सें मन केॅ शांति मिलै छै आरो राष्ट्रधर्म आदमी के कर्तव्य छेकै, माय के भूमि में जनम लै के कर्ज जेकरा उतारै में प्राण भी चल्लोॅ जाय तेॅ कम छै। दीदी के मानना छेलै कि यै सब भाव सें जबेॅ आदमी भरी जाय छै तेॅ उ$ मानवतावादी होय जाय छै। हुनका गाँधी आरो भगत सिंह दूनोॅ एक समान प्रिय छेलै। विवेकानन्द के विचार सें दीदी अतनैं प्रभावित छेलै कि हुनी उनकोॅ आदमकद तस्वीर रहै वाला आपनोॅ घरोॅ के ओसरा पर ही टांगलेॅ छेलै।

दीदी के चुप्पी केॅ बहुत देर तांय एकटक ताकतें रहलियै हम्में। सच में हुनी काहीं खोय गेली छेलै। हम्में उनकोॅ मौन साधना केॅ झकझोरी केॅ तोड़ै लेॅ नै चाहै छेलियै मतुर थोड़ोॅ देर बाद माथोॅ झटकी केॅ हुनी चैतण्य होतें हुअें आगू कहना शुरू करलकै, "डेढ़-दू बरस तक महेन्द्र गोपें आजादी रो लड़ाय ई रंग लड़लै कि ब्रिटिश हुकूमत तक थर्राय गेलै। बारह-तेरह हाथ तक बेलाग, बेखटक फानी केॅ निकली जायवाला भारत माय रो ई बीर, बहादुर बेटा सुइया के घनघोर जंगल में एक ठो सौतारोॅ घरोॅ में १ॉ४ डीग्री बुखारोॅ से बेहोश आराम करी रेल्होॅ छेलै। हमरा सीनी केॅ खबर होलोॅ छेलै मतुर केकरोह जाय के पैन्हें राधे नाम रोॅ एक मुखविर नें ईनाम के लोभोॅ में पुलिस केॅ खबर करी देलकै आरो चारोॅ तरफोॅ सें घेरी केॅ उनका पुलिसें पकड़ी लेलकै। ८ सितम्बर १९४४ के उ$ दिन हम्में भूलेॅ नै पारौं, आधोॅ सें बेशी गाँमों में हड़िया नै चढ़लोॅ छेलै।"

कुछ देर तांय रूकी केॅ दीदी लंबा सांस लेतें हुअें कहलकै, "१९४४-४५ के साल देशोॅ लेली बड़ी भयानक आरो दुख सें भरलोॅ बितलै। भागलपुर सेंट्रल जेलोॅ में जहाँ उनकोॅ साथी साल भर पैन्हें बौंसी के कचनासा फागा गाँव के जागो शाही आरो लक्खी शाही केॅ फांसी देनें छेलै वाहीं १३ नवम्बर १९४५ केॅ गोपजी केॅ भी फांसी दै देलकै। मोॅन बड़ी तीत्तोॅ होय गेलै। विपत में भगवान ही सहारा होय छै। भगवानोॅ आगू में कानतें-कपसतें कखनी नीन्द आबी गेलै, पतेॅ नै चललै। महिना-महिना तांय लागै कि महेन्द्र गोप आगू में आवी केॅ खाड़ोॅ होय गेलोॅ रहेॅ आरो हाथ जोड़ी के कहतें रहेॅ कि" तेॅ दीदी, आबेॅ जाय छियौं। चिन्ता नै करिहोॅ। हम्में सीनी तेॅ, बलिदानी पाठा छेवेॅ न करियै। "हाँसै, जित्तेॅ-जिनगी नांकी आरो फेरू छाया गुम होय जाय।"