भगवान के नाम / गोवर्धन यादव
एक सरकारी कार्यालय में काम कर रहे बडे बाबू ने अपनी नौकरी के दस साल में लाखों का बैंक बैलैंस, शहर में तीन आलीशान बंगले, मोटर गाडियाँ आदि का जखीरा इकठ्ठा लर लिया था, किसी दिलजले ने उसकी शिकायत विजिलेंस में कर दी, इन्क्वारी हुई, जांचकर्ता अधिकारी ने उससे इतनी बेशुमार दौलत कैसे इकठ्ठा की, यह जानना चाहा तो उसने बडे इतमिनान से जबाब देते हुए कहा-सर, मैंने अपने जीवन में कभी किसी भी मुवक्किल से एक नया पैसा भी नहीं मांगा, एक बडी-सी पेटी जिसमे ताला जड़ा हुआ है जिस पर देवी-देवता का चित्र चस्पा किया गया था दिखाते हुए कहा-मैं हर मुवक्किल से कहता कि, जो भी आपकी श्रद्धा हो इस पेटी में डाल दो, इससे जो भी रक़म इकठ्ठा होगी, उससे एक विशाल मंदिर का निर्माण होगा, लोग दस-बीस-पच्चीस-पचास के नोट डाल जाते, इस तरह मैंने जमीनें खरीदी और आलिशान भवन का निर्माण करवाया, जो कुछ भी (सम्पत्ति) आप देख रहे हैं, वह सब भगवान के नाम हैं, मेरा इसमें कुछ भी नहीं है, मैं तो केवल भगवान का भक्त हूँ, बस उन्हीं की सेवा करता हूँ और उन्हीं के आश्रय में रहता हूँ" , बडॆ बाबू की बात सुनकर जांच अधिकारी ने अपनी फ़ाईल बाँधी और उलटे पैर लौट गए थे।