भगवान / सुधा भार्गव
एक गिद्ध अपने माता-पिता को भगवान के समान समझता था। उनके लिए कुछ भी करने को तैयार था। उसका नाम था सिद्धू।
एक बार वह मुर्दा घाट पर अपने माता पिता के लिए मांस के टुकड़े लेने गया।
उसी समय इतनी ज़ोर से तूफान उठा कि बेचारा उसमें फंस कर रह गया। मूसलाधार पानी में वह बुरी तरह भीग गया और ठंड से काँपता हुआ नगर की ओर उड़ चला। पंख भीगे होने के कारण उससे ज़्यादा उड़ा भी नहीं गया। इसलिए चार दीवारी की ओट में एक तालाब के पास बैठ गया।
उधर से एक अमीर सेठ गुजरा। उसे सिद्धू पर दया आ गई. उसने सूखी जगह पर आग जलवाकर उसे गरम किया और गिद्ध को वहाँ ले गया। उसके लिए मांस के कुछ टुकड़े भी अपने नौकर से मँगवाए. गरमाई पाने से वह चेतन हो उठा और पेट भरकर खाने से उसमें ताकत आ गई. सेठ को मन ही मन धन्यवाद देता हुआ वह माता-पिता के पास लौट गया।
उसने साथियों और माँ-बाप को बताया-सेठ ने मेरी जान बचाई है, इसके बदले मुझे भी उसके लिए कुछ करना चाहिए. सलाह मशविरा के बाद अंत में यह निश्चय हुआ कि नगर में गिद्धों को जो भी कपड़े और आभूषण मिलेंगे वे सेठ के आँगन में डाल देंगे।
मौका पाते ही गिद्ध, घर-घर से धूप में डाले कपड़ों को उठाकर ले जाते और सेठ के आँगन में गिरा देते। सेठ को मालूम हो गया कि रोज-रोज कपड़ों और जेवर को गिराने वाला कौन है। उसने उन्हें अपने काम में नहीं लिया। सावधानी से उन्हें अलग रखता गया ताकि बाद में जिसकी जो चीज है उसे लौटाई जा सके. वह दूसरों की चीजें नहीं हड़पना चाहता था।
चीजें गायब होती देख नगर में शोर मच गया कि गिद्ध चोरी-डकैती कर रहे हैं। वहाँ के राजा ने उन्हें पकड़ने के लिए जाल बिछवा दिये। दुर्भाग्य से माता-पिता का भक्त बेटा सिद्धू भी पकड़ा गया।
सेठ ने जब यह सुना तो वह चिंतित हो उठा। राजा उसके साथ कोई अन्याय न करे यह सोचकर सेठ राजदरबार में जा पहुंचा।
उस समय राजा का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वह गरजा-
-गिद्ध, तुम नगर में घर-घर से कपड़े-जेवर उठा कर ले जाते हो क्या?
-हाँ महाराज, हम उन्हें उठाकर सेठ के आँगन में डाल देते हैं। इसने एक बार मेरे जीवन की रक्षा की थी, मैं ऐसा करके उसका ऋण चुकाना चाहता हूँ।
-महाराज, यह सिद्धू सच कह रहा है। मेरे पास सब कपड़े-जेवर ज्यों के त्यों रखे हैं। जिन-जिन के वे हैं उनको दे दिये जाएँगे पर सिद्धू को सजा मत दीजिये। यह अपने माता-पिता का भक्त है। उनका पालन पोषण बहुत अच्छी तरह करता है। इसके बिना इसके माँ-बाप भूखे मर जाएँगे। सेठ बोला।
ऐसी लायक संतान को देखकर राजा का गुस्सा शांत हो गया। उसने उसे माफ कर दिया। सिद्धू ने भी राजा और सेठ को धन्यवाद दिया।