भगीरथ: लघुकथा के समर्पित सर्जक / सुकेश साहनी

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
आधुनिक हिन्दी लघुकथा को गति प्रदान करने वालों में भगीरथ जी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उनके और रमेश जैन के सम्पादन में प्रकाशित लघुकथा संग्रह ‘गुफाओं से मैदान की ओर’ को आधुनिक लघुकथा के प्रस्थान बिन्दु के रूप में रेखांकित किया जा सकता है।

‘गुफाओं से मैदान की ओर’ से मेरा परिचय भाई जगदीश कश्यप ने कराया था। सारिका में मेरी लघुकथा ‘डरे हुए लोग’ प्रकाशित हुई तो जगदीश कश्यप ने मुझसे संपर्क किया और फिर ‘मिनीयुग’ से जुड़ाव के साथ ही लघुकथा की मुख्य धारा में सक्रिय लघुकथा लेखकों से मेरे परिचय की शुरूआत हुई। इसी सिलसिले में भगीरथ जी से मेरी पहली मुलाकात 1988 में आयोजित पटना सम्मेलन में हुई। उस समय तक मैंने उनकी गिनी-चुनी लघुकथाएँ ही पढ़ी थीं। पटना सम्मेलन में डॉ. शंकर पुणतांबेकर जी के साथ-साथ भगीरथ जी के उदबोधन से भी काफी प्रभावित हुआ था।

1989 में आयोजित बरेली सम्मेलन में उनको और करीब से जानने का अवसर मिला। विवादों से दूर उनके सीधे सरल, हँसमुख व्यक्तित्व ने बहुत प्रभावित किया था। 11 फरवरी 89 को तीसरे सत्र में उन्होंने ‘गर्म हवाओं में नमी’ लघुकथा का पाठ किया था। लघुकथा के लिए तय किए गए मानदण्डों का अतिक्रमण करती यह लघुकथा मुझे बहुत पसंद आई थी और मैंने अपनी प्रतिक्रिया से तत्काल उनको अवगत भी कराया था।

बरेली में दो दिन उनके सत्संग में बीते। लघुकथा सम्बन्धी उनके विचारों को जानने का मौका मिला। यह उनके व्यक्तित्व का चुम्बकीय प्रभाव ही था कि मैं उनसे मिलने घाटशिला (झारखंड) उनके निवास पर पहुँच गया और पूरा दिन उनके साथ लघुकथा- विमर्श में कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला।

भगीरथ जी से मिलने-जुलने का सिलसिला मिनी त्रैमासिक के अर्न्तराज्जीय लघुकथा सम्मेलनों के कारण बना रहा। पंजाब में प्रति वर्ष किसी न किसी शहर में आयोजित ‘जुगनुओं के अंग-संग’ कार्यक्रम में हम सबकी सक्रिय भागेदारी रही। पढ़ी गई लघुकथाओं पर तत्काल टिप्पणियों के माध्यम से भी भगीरथ जी की लघुकथा विषयक कसौटी को जानने का अवसर मिलता रहा। पांडित्य प्रदर्शन से दूर भगीरथ पंजाबी लघुकथाओं पर टिप्पणी करते समय अतिरिक्त सजगता बरतते थे ,ताकि पंजाबी भाषी के साथ अन्याय न हो।

वर्ष 2000 में बरेली में आयोजित लघुकथा सम्मेलन में उनका अविस्मरणीय योगदान रहा।

लघुकथाओं पर भगीरथ जी का विचार पक्ष बहुत प्रबल है। यही कारण है कि विभिन्न सम्मेलनों और सम्पादित संकलनों में उनके आलेखों का लघुकथा की विकास यात्रा में बहुत बड़ा योगदान कहलाएगा। अपनी जीवन -यात्रा में भी उन्हें काफी संघर्ष करना पड़़ा। व्यवस्था के विरुद्ध उनके संघर्ष का प्रभाव उनकी लघुकथाओं में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। भगीरथ कई लघुकथाओं में लिखते हैं पर लघुकथा के प्रति उनका समर्पण रेखांकित करने योग्य है।

उन्होंने अनेक कालजयी लघुकथाएँ साहित्य जगत को दी है, सबका उल्लेख यहाँ संभव नहीं है। वैसाखियों के पैर, तानाशाह और चिड़िया, शिक्षा, दोजख और पिता, पति और पत्नी मुझे बहुत प्रिय है। भगीरथ जी की जीवन यात्रा के 75वें वर्ष पर उनको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ। लघुकथा विधा को उनके जैसे समर्पित सर्जक का प्यार निरंतर मिलता रहे, इसी कामना के साथ!

-0-