भदवा चन्दर, खण्ड-10 / सुरेन्द्र प्रसाद यादव

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"मुखिया जी, आयकल ई भदवा चन्दर तेॅ गाँव में एक नये गुल खिलाय रहलोॅ छै।" चपरासी ओझां आँख मटकाय केॅ मुखिया केॅ कहलकै।

"कहिनें, की करी रहलोॅ छै भदवां?"

"गाँव के शिवाला मंे आयकल गाँव के मोॅर-मजूर केॅ पढ़ाय-लिखाय के काम करी रहलोॅ छै, मालूम नै छौं?"

"हों, मालूम छै, मतर यै में बुरा की छै। सरकारो तेॅ है काम करी रहलोॅ छै।"

"मतरकि एकरोॅ परिणाम बुरा हुवेॅ पारेॅ की नै?"

"की बुरा हुवेॅ पारेॅ।"

"देखोॅ मुखिया जी, पढ़ला-लिखला के बाद तेॅ सबकेॅ पाँख निकली आवै छै, जों ई मोॅर-मजूर पढ़ी-लिखी लेलकै, तेॅ कल सें खेती या आरो काम वास्तें तेॅ मजूर मिललोॅ मुश्किल होय जैतै।"

"हेनोॅ बाद नै होतै ओझा जी, पढ़ला-लिखला सें खेती के काम आरो बढ़िया ढंगोॅ सें हुवेॅ पारतै। आरो है जे समझे छौ कि पढ़ला-लिखला के बाद सब मजूर भागी केॅ शहर चललोॅ जैतै, ई तेॅ आरो झूठ छेकै। शहरोॅ में की गाँव सें ज़्यादा मजूरी छै। जों छेवो करै तेॅ खर्चो कत्तेॅ छै, है केकरा नै मालूम छै।"

"बात एतन्हैं नै छै मुखिया जी, सुनै छियै, आयकल भदवां गाँव के छौड़ासिनी केॅ इकट्ठा करी केॅ मुखिया के करतूत पर नाटको करैवाला छै।"

"की हमरा पर?"

"ई बात तेॅ साफ-साफ नै छै, मतरकि गाँव के मुखिया जी पर नाटक करै के मतलब तेॅ यहेॅ होय छै कि घुमाय-फिराय केॅ।"

"हेनोॅ बात नै छै ओझा जी. कोय पंडित जी विरुद्ध नाटक करै छै तेॅ एकरोॅ मतलब ई कहाँ होय छै कि तोरे खिलाफ नाटक करी रहलोॅ छै।"

"तोरोॅ बात सही हुवेॅ पारेॅ। मतरकि हमरा तेॅ यहेॅ मालम होलोॅ छै कि है नाटक जेकरोॅ नाम 'समाज-सुधार' छेकै, वैमें मुखिया के रूपोॅ में तोर्हे उतारलोॅ गेलोॅ छै। यही लेली गाँव में तोरोॅ विरोधी सिनी यै नाटक के होय में कुछ ज्याद्है रुची लै रहलोॅ छै।"

"गाँव में हमरोॅ विरोधियो छै कि ओझा जी?"

"यै में आचरज के की बात छै। अयोध्या में राम के विरोधी नै छेलै? नै छेलै तेॅ सीता केॅ वनवास केना गेलै।"

"ठीक कहलोॅ ओझा जी, जबेॅ राम हेनोॅ राजा के विरोधी हुवेॅ पारेॅ तेॅ हमरोॅ हेनोॅ मुखिया के भी विरोधी छै तेॅ यै में आचरजे की।"

"तोहें समझी नै रहलोॅ छोॅ मुखिया जी. विपत्ति आरो विरोधी केॅ कभियो छोटोॅ नै समझना चाहियोॅ।"

"तोहें कहै लेॅ की चाहै छोॅ? ओझा जी, एक बात जे हम्में समझै छियै कि आदमी केॅ हमेशा अच्छाई के रास्ता पर चलतें रहना चाहियोॅ। जों तोरोॅ नीयत में खोंट छौं तेॅ तोरा ओकरोॅ परिणाम भोगै लेॅ पड़थौं-आय न कल। हमरी माय नें हमरा बच्चा में एकटा किस्सा सुनैलेॅ छेलै, तहूँ जानतेॅ होब्हौ, तहियो संक्षेपोॅ में सुनी लेॅ-एक अझोला बूढ़ी छेली। हुनका एक नाती छेलै। बेचारा नाती जंगल सें लकड़ी काटी केॅ हटिया में बेची लै, जे टा पैसा होय छेलै होकरा सें नाती आरू नानी के गुजर होय जाय छेलै। एक दिन नाती बोललै-" अगे नानी, तों खिचड़ी पकाय केॅ हमरा जंगले में पहुँचाय देलोॅ करैं, कैन्हें की वहाँ भूख लागी जाय छै। "

नानी बोलली-"ठीक छै बेटा, आजू सें वही करबौ।"

अझोला बूढ़ी खिचड़ी बनाय केॅ चलली। जंगल रोॅ पैन्हें गीदड़ के जेरोॅ भेटलै। गीदड़ बोललै-"की छेकौ बुढ़ी।"

बुढ़ी बोललै-"खिचड़ी छेकै, नाती केॅ खिलाय लेॅ जाय छियै।"

गीदड़ बोललै-"धर बुढ़िया खिचड़ी, पकड़ मोर पुछड़ी।"

बुढ़िया नें डर सें ठीक वहेॅ करलकै। रोज रोॅ यहेॅ किस्सा। एक दिन नातीं पुछलकै-"अगे नानी, है पूछै छियौ, खिचड़ी घिकलोॅ-मथलोॅ रोज कैन्हें लागै छौ।"

नानी नें सब बात बताय देलकै। नाती नें कहलकै-"हेनोॅ कर, सब गीदड़ केॅ नौता दै केॅ घरोॅ पर बोलावैं।"

दोसरोॅ दिन बुढ़िया नें गीदड़ोॅ सें कहलकै-"घरोॅ पर कल आबें बेटा, सपरिवार, कल हमरोॅ परब छै वहाँ। बढ़िया सब चीज खिलैबौ।"

गीदड़वा दोसरोॅ दिन सपरिवार पहुँची गेलै। बुढ़िया बोललै-"अरे बेटा, तोरा सब केॅ खुट्टा में बान्ही दै छियौ, नै तेॅ आदत मोताबिक तोरा सिनी आपना में लड़बे।"

गीदड़बा बोललै-"ठीक छौ बुढ़िया।" बुढ़िया नें सब केॅ अलग-अलग बान्ही देलकै आरू कहलकै-"एक ठो पैन्हें गीत सुनि ले बेटा।"

बुढ़िया गाबेॅ लागली-"उखर समाठ लेॅ केॅ दौड़िहें रे...दौड़िहें रे।"

गीत सुनथैं बुढ़िया रोॅ नाती समाठ लै केॅ दौड़लै आरो सब गीदड़वा केॅ मारना शुरू करलकै। गीदड़ सब कोय हिन्नंे भागलै, कोय हुन्नें। ठीक कहलोॅ गेलोॅ छै-करनी रोॅ फल मिलै छै। "

कहानी कहला के बाद मुखिया जी गंभीर होतें कहलकै, "ऊ चाहे भदवा हुवेॅ की हम्में मुखिया। ग़लत खयाल आरो अनिष्ट करै वाला केॅ भोगै लेॅ पड़तै ओझा जी. ई बात हम्में आपनोॅ बेटा के ऊ रं के दुर्घटना सें आरो समझी गेलोॅ छियै। होन्हौ केॅ भदवा चन्दर हमरा सें कथी लेॅ विरोध करतै, ऊ तेॅ हमरोॅ बेटा दाखिल छै...होनो केॅ जबेॅ तोहें कहै छोॅ तेॅ ओकरा सिनी केॅ नाटक करै सें तेॅ नै रोकवै, हों, नाटक देखै लेॅ जैवै ज़रूर। आखिर की छै नाटक में। तहूँ हमरोॅ साथ रहियोॅ ओझा जी." ई कही मुखिया जी उठलै तेॅ ओझा जी उठी केॅ आपनोॅ घोॅर दिश चललोॅ गेलै।