भदवा चन्दर, खण्ड-17 / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
दू महीना तांय जेना गाँव में मेला लगले रहलै। एक तरफ शिवाला बनतें रहलै आरो सटले दूसरोॅ तरफ पंचकोठरी इस्कूल। एक भवन में दू-दू इस्कूल। एक कन्या पाठशाला, दूसरोॅ बालपाठशाला। एक्के गुरूआइन बनलै सरबतिया आरो दूसरो के गुरु भदवा चन्दर।
शिवाला के पूरा होत्हैं वैमें पहिलोॅ पूजा देलेॅ छेलै धनुक लाल, मंदिर के पुजारी बनी केॅ आरो जे पहिलोॅ यज्ञ होलोॅ छेलै, ऊ चन्दर-सरबतिया के ब्याह के.
मुखिया जी अपन्है नेता-पातोॅ सौंसे गाँव-टोला में बँटवैलेॅ छेलै। आसपास के इलाका के कै नामी-गिरामी लोगो उपस्थित होलोॅ छेलै। खाली धनुक लाल के घरे में जोॅर-जनानी के गीत नै गूंजलोॅ छेलै। मुखिया जी के घरोॅ में भी गीत-नाद गूंजलोॅ छेलै,
गंगा बही गेल जमुना गे बेटी,
सुरसरि बहै नीर धार हे
हाँ हे, ताही बीच बाबा धिया-संकल्प लै
काँपल कुसवा के तार हे
अच्छत काँपल, चन्दन काँपल, काँपल कुल परिवार हे
हाँ हे, धिया लेनें काँपल बेटी के बाबा
केना पत रहितै हमार हे
कौनें पत राखत देवी दुर्गा, कौनें पत राखत भागवान हे
हाँ हे, मोर पत राखतै भइया सभे भइया
जीनी भइया दाहिनी बाँह हे
कौन ग्रहण बेटी सांझ ही सें लागलै
कौन ग्रहन भिनसार हे
हाँ हे, कौन ग्रहण बेटी मड़वा में लागलै
कब तक होएतै उबार हे
चन्द्रग्रहण बाबा सांझ ही सें लागलै, सुर्यग्रहण भिनसार हे
हाँ हे, कन्याग्रहण बाबा मड़वा में लागलै
धरम सें होइहैं बेड़ा पार हे
कौन ग्रहण बेटी आज की रतिया
कब संग होएतै उबार हे
हाँ हे, धिया ग्रहण अम्मा आज की रतिया
ईश्वर लगैहियैं बेड़ा पार हे
आय ऊ इस्कूल के पास की नै छै। बहुत बड़ोॅ खेल के मैदान, पुस्तकालय, प्रयोगशाला। आरो की-की नै। भदवा चन्दर आरो सरबतिया नें मुखिया जी के मुखिया नै रहला के बाद भागलपुर-पटना दौड़ी-दौड़ी केॅ हौ सब काम करी देलकै, जेकरोॅ कल्पना दस मुखियौं मिली केॅ नै करेॅ पारेॅ।
भदवा चन्दर आरो सरबतिया के कारण ऊ गाँव धरती पर स्वरगोॅ के डीह ही बनी गेलोॅ छै। दोनों के कारण आय सब्भे के मुँहोॅ पर एक्के गीत रहै छै,
गुज-गुज अन्हिरा में
रात के भोर्हरिया में
फुटलोॅ छै किरण एक सरङोॅ के कोरोॅ पर!
गुजरै छै गीत एक धरती के ठोरोॅ पर