भदवा चन्दर, खण्ड-2 / सुरेन्द्र प्रसाद यादव

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भदवा के जनम होलोॅ छेलै तेॅ भदवा माय के सबटा दुख पार होय गेलोॅ छेलै, एकरो कोय चिन्ता नै रही गेलोॅ छेलै कि ई घनघोर बारिस में ओकरोॅ घरोॅ के कोना-कोना चुवी रहलोॅ छेलै आरो ऊ बड़ा मुश्किल सें एक कोठरी के एक कोना में आपनोॅ बच्चा केॅ लै केॅ सुतली होलोॅ छेलै। भदवा के बाप तेॅ ऊ खटिया के बगलोॅ में खाड़ोॅ दिन आरो रात काटी देलेॅ छेलै।

भदवा के बाप धनुक लाल नें कुछ नै बुझलेॅ छेलै ऊ रात केॅ आरो दौड़ी-दौड़ी केॅ गोयठोॅ-काठी के इन्तजाम करलेॅ छेलै। आगिन-पानी करलेॅ छेलै, माथा पर डलिया के घोघोॅ लेलेॅ कत्तेॅ निहोरा करी केॅ वैनें नाभी काटै वाली केॅ बुलाय लानलेॅ छेलै आरो सबटा काम जनानिये रं करतें रहलै छेलै। बिहाने बारिस थमलोॅ छेलै आरो गांव भरी के जनानी धनुक लाल के दुआरी पर आवी गेलोॅ छेलै, ई जानत्हैं कि धनुक लाल के कनियैनी केॅ बेटा होलोॅ छै। जौंने देखलेॅ छेलै ओकरोॅ भाग केॅ सरहैलेॅ छेलै। आपनोॅ कनियैनी सें की कम गदगद छेलै धनुक लाल। बचलोॅ-छुपलोॅ सब पैसा केॅ छट्टी मंे लगाय देलेॅ छेलै। ऋण-पैचोॅ लै केॅ भोज करलेॅ छेलै आरो सब के हाथ जुट्ठोॅ करैलेॅ छेलै।

जों जों भदवा बढ़ी रहलोॅ छेलै, धनुक लाल के मोॅन बढ़ी रहलोॅ छेलै। एकान्त भेटैतें ऊ अपनी कनियैनी के पास बैठी जाय आरो रकम-रकम के सोच में डूबी जाय।

"की भदवा माय, की सोची रहलोॅ छोॅ"

"वहेॅ जे तोहें।"

"सोची रहलोॅ छौ कि भदवा केॅ जेना होतै, पढ़ैबै। की यही बात नी?"

"तोहें तेॅ एकदम ज्योतिष विद्या जानै छौ।"


"से बात नै छै, असल में एक माय-बाप आपनोॅ सन्तान वास्तें आरो की सोचेॅ पारै छै, यही नी कि ऊ कत्तेॅ सुन्दर पहिनें पारेॅ, कत्तेॅ ज़्यादा पढ़ेॅ पारेॅ। ठीक छै कि नै?"

"तोहें एकदम ठीक कहलौ।"

"मजकि बात एतनै टा नै छै, बात तेॅ ई छै कि———"

"पढ़ाय के इन्तजाम केना होतै यही नी?"

"ठीक सोचलौ।"

"चिन्ता करै के कोय बात नै छै, शुरुआती पढ़ाय तेॅ सकीचन गुरु जी ही करी देतै। गोतिया नाँखी रहलोॅ छै, उतन्हौ टा नै करतै?"

"कैन्हें नी करतै। मजकि एतन्है टा पढ़ाय के तेॅ बात नै छै।"

"तोहें एक बात भुलाय गेलौ।"

"ऊ की?"

"तोरोॅ देलोॅ चांदी वाला हौंसुली।"

"मतरकि ओकरा सें की होय छै।"

"से तेॅ हम्में जानै छियै। मजकि जों एकरा बेची दै छियै तेॅ एकरोॅ मैट्रिक तांय के पढ़ाय तेॅ पूरिये जैतै।"

"से तेॅ तोहें ठिक्के कहै छौ। अच्छा आगू के देखलोॅ जैतै, पहिलें भदवा मैट्रिक तेॅ पास करी जाव।"

"हेनोॅ कैन्हें बोलै छौ। हमरोॅ बच्चा यहाँ सें वहाँ तांय पढ़तै, जेन्होॅ कि बड़ोॅ-बड़ोॅ घराना के बच्चा सिनी पढ़ै छै।"

आरो सच्चे में धनुक लाल आपनोॅ भदवा चन्दर केॅ पढ़ाय लेली कमर कस्सी लेलेॅ छेलै। आरो भदवा निकललै ठिक्के में पढ़ै-लिखै में तेज।

भदवां ओना मां-सी धंग संे जे शुरू करलकै आपनोॅ अक्षर ज्ञान तेॅ पीछू नै मुड़ी केॅ देखलकै। गुरु जी भी दंग छेलै। गाँव भरी में एक्के चर्चा रहै-"धनुक लाल के बेटां तेॅ कमाल करी रहलोॅ छै। अरे वैं तेॅ सकीचन गुरु जी के बेटा केॅ भी किलासोॅ में मांत दै रहलोॅ छै। जेना सबटा किताबे घोकी लेलेॅ रहेॅ। भदवा के जीहा पर तेॅ जेना सरस्वतीये बैठी गेलोॅ छै। बाप रे बाप, बाप तेॅ गुनी छेवे करै, बेटा तेॅ ओकरौ सें पाँच गुना तेज निकललै।" गाँव में जत्तेॅ लोग छेलै, ओत्ते किसम के बातो चलतें रहै।

आखिरकार भदवा मैट्रिको पास करी लेलकै। मैट्रिक पास करै में माय के हौंसलियो नै, कांसा पीतल के कैएक ठो बर्त्तनो बिकी गेलोॅ छेलै, जेकरा वैं बड़ोॅ-बड़ोॅ मुश्किलोॅ के दिनोॅ में नै बेचलेॅ छेलै। मतरकि भदवा माय के चेहरा पर कोय दुख के भाव नै छेलै। आखिर ऊ मैट्रिक जे पास करी गेलोॅ छेलै।

मैट्रिक भी हेना-तेना नै पास करलेॅ छेलै, फर्स्ट क्लास सें पास होलोॅ छेलै। ओकरोॅ ई सफलता पर पंचायत के मुखियां खुद्दे आपनोॅ हाथोॅ सें मुँह मिट्ठोॅ करैलेॅ छेलै।

ई अलग बात छेलै कि है मुँह मिट्ठोॅ कराय के पीछू ई देखैबोॅ ही ज़्यादा रहलोॅ छेलै कि लोगें देखै कि पंचायत के मुखिया कतना उदार दिल वाला छै। बात कुछुवो हुएॅ, ई बात सें तेॅ धनुक लाल आरो धनुक लाल के पंजवारा वाली कनियैन खुशी सें गदगद होय गेलोॅ छेलै।

कहै के तेॅ मुखियां तखनी यहू कहलेॅ छेलै, "जों ज़रूरत पड़तै, तेॅ भदवा के आगू पढ़ाय में हम्मूं मदद करवै, सरकारी मदद दिलाय में जहाँ तक हमरोॅ ज़रूरत पड़तै, ओकरा में हम्में पीछू नै रहवै।"

पंजवारा वाली के खुशी के तेॅ ठिकाने नै रही गेलोॅ छेलै। मतरकि जबेॅ कालेजोॅ में नाम लिखाय के वक्त ऐलै तेॅ धनुक लाल केॅ मुखिया के टेर पान्हैं मुश्किल होय गेलै। केकरौ सें पता लागै कि इखनी हौ गाँव में छै तेॅ कखनू हौ गाँव में। आरो जबेॅ धनुक लाल वहाँ तक पहुँचै तेॅ मालूम हुएॅ, हुनी अभी तुरत हौ गाँव निकली गेलोॅ छै। कभी है द्वार, तेॅ कभी हौ द्वार, मतरकि मुखिया सें भेट नै होलै।

कॉलेजोॅ मंे एडमीशन कराय के आखरी दिन तक धनुक लाल हुनकोॅ द्वारी तांय दौड़लोॅ छेलै, लेकिन हुनका सें भेंट नै होलोॅ छेलै।

लगाय के तारीख खतम होय गेला के बादो चक्कर लगैनें छेलै धनुक लाल नें। वैं समझी रहलोॅ छेलै कि मुखिया चाहेॅ तेॅ तारीख-वारिख के खतम होलो सें की होय छै, नाम कभियो लिखैलोॅ जावेॅ सकै छै।

लेकिन एक दिन जबेॅ मुखिया जी सें भेंट होय गेलोॅ छेलै आरो हुनी कहलेॅ छेलै, "देख धनुक लाल, कालेज में नाम लिखाय-उखाय के बात जे छै, आबेॅ तेॅ ओकरो तारीखे खतम होय गेलै। आरो जबेॅ तारीख खतम होय गेलै तेॅ केना केॅ नाम प्रिंसिपले लिखतै। सोच्हैं, जों हमरोॅ बात मानियो लै छै प्रिंसिपलें, तेॅ एक तोरहे केस तेॅ नै छै, तोरहो हेनोॅ ढेरे केस छै। आरो जबेॅ तोरोॅ काम होय जैतै तेॅ एकेक करी केॅ सब ऐतै हमरोॅ पास। तखनी बोलें हम्में केकरोॅ-केकरोॅ काम करवै। चाहवो करवै तेॅ की हमरोॅ बात मानतै प्रिंसिपले? यही वास्तें ई दाफी नाम लिखाय के बात छोड़। अगला दाफी समय ऐतै तेॅ कहियैं।"

धनुक लाल एकदम दुखी होय गेलोॅ छेलै आरो पंजवारा वाली केॅ ई जानतें देर नै लागलोॅ छेलै कि मुखिया जी साफ-साफ इनकार करी देलेॅ छै,

"नै साथ देलकै तेॅ ई में मोॅन छोटोॅ करै के की ज़रूरत छै।"

"केना नै छोटोॅ करै के ज़रूरत छै, केकरो दूसरा के बात छेकै? आपनोॅ बेटा के बात छेकै।"

"से तेॅ हम्मूं जानै छियै। मजकि एकरोॅ वास्तें आबेॅ प्राणे देला सें की होय छै। जबेॅ भगवाने चाहतै, तेॅ होतै।"

"ठीक कहै छौ भदवा माय। आबेॅ जे होना छै ऊ सब अगले साल, तबेॅ इखनी माथे-कपार धुनला सें की फायदा छै।"

"जो बुरा नै मानोॅ तेॅ एक बात कहियौं।"

"कहौ, बुरा मानै के की बात छै, तोहें जे भी कहभौ, भदवा के हिते वास्तें तेॅ कहवौ।"

"अगला साथ बैठलोॅ-बैठलोॅ बेटां की करतौं, तोहें एकरा साथ राखलोॅ करोॅ आरो तबेॅ तांय आरो कुछ नै होतै तेॅ नै होतै, सत्संग सें ज्ञान तेॅ बढ़तै। होनौ केॅ इस्कूल-कॉलेज सें कहीं ज़्यादा ज्ञान सत्संगे सें मिलै छै। तुलसी दास आरो कबीर दास कौन इस्कूली-कालेज में पढ़ी केॅ विद्वान बनलोॅ छेलै।"

"भदवा माय, तोहें हमरोॅ मनो के बात कही देलौ। हम्मू यहेॅ सोची रहलोॅ छेलियै।"

"तबेॅ तेॅ ठिक्के छै।" भदवा माय के मनोॅ पर पड़लोॅ आय कै दिनोॅ के बोझ जेना हठाते उतरी गेलोॅ छेलै। नै खाली ओकरे मनोॅ पर सें, मतुर धनुक लाल के भी मनोॅ पर सें।

धनुक लाल गांव के भारी भक्त। गाँव भरी में जहाँ भी कीर्तन-संकीर्त्तन हुवै, धनुक लाल के बिना ऊ पूरा हुवै नै पारै। ओकरोॅ एक मंडली ही छेलै जे ओकरोॅ साथ-साथ रहै। मंडली के आपनोॅ हारमोनियम, तबला, मृदंग छेलै। गल्ला तेॅ धनुक लालोॅ नें बचपने सें अद्भुत पैलेॅ छेलै। जबेॅ हारमोनियम पर अंगुरी धरी वैं गाना शुरू करै तेॅ सुनवैया केॅ आँख-कान ओकरा सें बंधी केॅ रही जाय छेलै। आबेॅ भदवा केॅ वही रास्ता पर लानलेॅ छै, से धनुक लाल आबेॅ सांझियो-बिहानी तुलसी के पद गाना शुरू करी देलेॅ छै।

भदवा बड़ी मोॅन लगाय केॅ सुनी रहलोॅ छै आरो धनुक लाल बड़ी मोॅन लगाय केॅ गावी रहलोॅ छै,

जाके प्रिय न राम वैदेही
सो त्यागिये कोटि वैरी सम जदयपि परम स्नेही
तज्यो प्रह्लाद विभीषण बंधु भरत महतारी

भदवा मने-मन सोचै छै, सचमुचे सब कुछ तेजै लायक छै, जे राम सें नै जोडै़ं। नै, वें राम केॅ नै छोड़ेॅ पारेॅ, भले सब कुछ केॅ छोड़ी दै। भदवां बापोॅ सें पूछै छै, " बाबू जी, ई राम केॅ केना पैलोॅ जावेॅ सकै छै?

"भक्ति सें।"

"भक्ति केना करलोॅ जावेेॅ सकै छै।"

"भक्ति के रास्ता एक नै छै, ऊ तेॅ कै तरह सें करलोॅ जावेॅ सकै छै।" '

"कै तरह सें।" भदवा केॅ आचरज होय छै।

"हों बेटा, कै तरह सें।" आरो धनुक लाल बेटा के उत्सुकता जानी केॅ कहना शुरू करै छै,

"भक्ति तेॅ यहू छेकै बेटा, जे तोहें अभी करी रहलोॅ छोॅ, यानी भगवान राम के गुनगान मनोॅ सें चुपचाप सुनवोॅ। नौ प्रकार के भक्ति में भगवान के कीर्त्ति सुनवो भी भक्तिये छेकै।"

"दोसरोॅ बाबू जी."

"दोसरोॅ छेकै-कीर्त्तन, जे हम्में करै छियै। दिन रात प्रभु के गुनगान करवोॅ।"

"तीसरोॅ बाबूू जी."

"तीसरोॅ कहावै छै स्मरण। भगवान के रूप-गुण के स्मृति करवोॅ।"

"चौथोॅ?"

"चौथोॅ छेकै-वन्दना। यानी भगवान केॅ प्रणाम, नमस्कार करवोॅ। प्रभु केॅ माथोॅ झुकाय केॅ नमस्कार करतें रहवोॅ भक्तिये छेकै बेटा।"

"आरो पांचवोॅ बाबू जी?"

"पांचमोॅ भक्ति छेकै-आपना केॅ प्रभु के दास समझवोॅ। जे भजन कीर्त्तन करियो केॅ अहंकार सें भरलोॅ छै, अभिमान सें भरलोॅ छै, ओकरा सें भक्ति नै हुवेॅ पारेॅ।"

धनुक लाल बड्डी तन्मयता के साथें बेटा केॅ समझाय रहलोॅ छेलै आरो बेटाहौ ओतन्है तन्मयता के साथ सुनी रहलोॅ छेलै, जेना एक-एक बात केॅ आजे समझी लैलेॅ चाहै छेलै। भदवा नें ओतन्है लीनता सें पूछलकै, "आरो छठा की छेकै?"

धनुक लाल नें आँख मुनी केॅ कहलकै, "छठा छेकै पाद सेवन। यानी पैदले तीर्थ जातरा। जहाँ-जहाँ प्रभु गेलै, वहाँ-वहाँ क जातरा करला सें भी भक्ति पूरा होय छै।"

"आरो सातमोॅ?"

"सातमोॅ छेकै-भगवान रोॅ विधिवत पूजा-अर्चना। जे तोरोॅ मांय रोजाना करै छौं।"

"बाबू जी, आठमोॅ भक्ति तबेॅ की होतै?"

"आठमोॅ भक्ति छेकै-भगवान सें दोस्ताना व्यवहार। कोय तेॅ भगवान साथें दास्य के व्यवहार राखै छै, आरो कोय-कोय हुनका दोस्ताना व्यवहार राखी केॅ हुनकोॅ भक्ति में लीन रहै छै।"

भदवा केॅ घोर आचरज होय छै, भला भगवान सें दोस्ती केना करलोॅ जावेॅ सकै छै, तभियो वैंनें आपनोॅ बाबू सें पूछलकै, "आरो नौमोॅ भक्ति की होय छै?"

तेॅ धनुक लाल नें भदवा केॅ आपनोॅ छाती सें लगैतें कहलकै, "बेटा नौमोॅ भक्ति छेकै-भगवान के सामना में भक्त के पूरा-पूरा आत्मसमर्पण। जे आपना केॅ भगवान केॅ समर्पित करै छै, ओकरा भगवान मिली जाय छै।"

आरो धीरें-धीरें भदवा के पढ़ै दिश सें एकदम मन उचाट होय गेलै। माय कहवो करै कि बेटा है रं खाली भजन-कीर्त्तन में मन लगैला सें की होतौं, पढ़लोॅ-लिखलोॅ करोॅ। तोरा पढ़ी-लिखी केॅ मोर मिनिस्टर बनना छौं, नै कि भगत।

लेकिन भदवा पर आबेॅ कोय असरे नै होय वाला छै केकरो बातोॅ के. यहेॅ कारणें बापो ओकरा कभियो नै कहै-किताब उलटावै लेॅ। आबेॅ तेॅ ओकरोॅ ठोरोॅ पर बस एक्के भजन रहै,

तलफै बिन बालम मोर जिया
दिन नहीं चैन रात नहीं निदिया
तलफ तलफ के भोर कियातन मन मोर रहंट अस डोले
सून सेज पर जनम छिया
तलफै बिन बालम मोर जिया।

आरो एक दिन सचमुचे में भदवा घर-द्वार छोड़ी केॅ चललोॅ गेलै। रात भरी तेॅ आपनोॅ बिछावन पर छेवे करलै, माय-बाप नें आँखी सें देखलेॅ छेलै।

बिहाने आपनोॅ बिछावन पर नै दिखैलोॅ छेलै। माय-बाप सोचलकै-दिशा मैदान गेलोॅ होतै। लेकिन दिन चढ़ला के बादो नै ऐलै तेॅ धनुक लाल केॅ शंका होलै। पूछताछ जारी होलै। कोय कुछ बोलै, कोय कुछ। कोय कहै-भदवा एकदम बिहानी पछियारी टोला सें होय सड़कोॅ दिश जैतें देखलेॅ छियै, कोय कहै, भोररिया एक आदमी, छिनमाने भदवे हेनोॅ, दक्खिन बहिया दिश जाय रहलोॅ छेलै। जे-जे कहलकै, ओकरे अनुसार धनुक लाल नें भदवा के खूब खोजबीन करवैलकै, लेकिन नै मिललै। कोय कहलकै-थाना में नाम लिखाय दौ-पुलिसे खोज करी देतौं। लेकिन कोय यहू कहलकै-मानी ला जांे भदवा लौटिये केॅ आविये जांव। हिन्नें थाना में नाम लिखाय छौ तेॅ बाद में झूठ-मूठ के तोरा आरो भदवा केॅ परेशान करतौं, तरह-तरह के बातोॅ पर।

धनुक लाल केॅ ई बात सही लागलोॅ छेलै, से वैनें थाना में जाय केॅ रिपोर्ट नैं लिखवैलेॅ छेलै। हों, सब ईलाका में आपनोॅ गोतिया-लोहिया के ई बात के जानकारी ज़रूरे दै देलेॅ छेलै आरो कहले छेलै कि जों जरियो टा टेर लागौं तेॅ तुरत खबर करियो, मतरकि टेर नै लागलोॅ छेलै। भदवा जे गेलै तेॅ चललेॅ गेलै। माय-बापें आपनोॅ छाती पर पत्थर राखी लेलकै।

गाँव वाला तेॅ बस यहेॅ कहलकै, जबेॅ बापें भदवा केॅ संत बनाय पर उतारू छेलै तेॅ आबेॅ कथी लेॅ बेकल होय छै। मने मोताबिक तेॅ बिरागी बनी गेलै। धनुक लाल केॅ तेॅ खुशी मनाना चाही, खुशी। गाँव में जे लोग धनुक लाल के विरोधी छेलै-ओकरा तेॅ कूट काटै के मौका मिली गेलोॅ छेलै, आरो ऊ सब जखनी नै तखनी ओकरोॅ चर्चा निकाली केॅ कूट काटत्हैं रहै। कभियो-कभियो सनैयो केॅ, मतरकि धनुक लाल केॅ जेना यहू सब बातोॅ पर ध्यान नै रही गेलोॅ छेलै, मौने बनलोॅ रहै। एकदम मौनी बाबा बनी गेलोॅ छेलै। आबेॅ तेॅ गाँव में कन्नो भजन-कीर्त्तन हुऐॅ आरो ओकरा बोलैलोॅ जाय, तेॅ ऊ कम्मे जाय के प्रयास करै।