भदवा चन्दर, खण्ड-3 / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
सरबतिया आँख फाड़ी-फाड़ी केॅ देखै छै। दूर-दूर तांय जेना अन्हारे अन्हार रहेॅ। भदवा के गाँव छोड़लोॅ, की आयकोॅ बात छेकै। पन्द्रह साल संे भी पहिलकोॅ बात छेकै। तखनी तेॅ ऊ दस साल सें ज़्यादा के नै होतै। भादो मैट्रिक में पढ़ी रहलोॅ छेलै। इस्कूल सें छूटै तेॅ कोय-न-कोय बहाना हमरोॅ दुआरी पर ज़रूरे आवी जाय। आरो हर बाते पर हमरोॅ हथेली आपनोॅ हाथोॅ पर राखी केॅ कहै, कुछ देर तक रेखा देखतें-"सरबतो, तोरोॅ हाथोॅ में रानी होवोॅ लिखलोॅ छै। आय भले गरीबी में जीवन बीतौ, मतरकि एक दिन तोहें रानी होय केॅ रहवौ।" तखनी हम्में हाथ उठाय केॅ पूछियै-"जों ई बात सहिये छै तेॅ हमरोॅ राजा कोॅन मुलुक में इखनी बसै छै, यहू बतावोॅ।"
तखनी भादो बोलै, "तोरोॅ घरोॅ के पिछुवाड़ी में।" आरो ठठाय पड़ै।
आय ऊ बात सरबतिया केॅ आरो दुख दै छै।
ओकरोॅ हाथोॅ में एकटा किताब छै। पता नै कहाँ सें लै आनलेॅ छै। जखनी ओकरोॅ मोॅन उदास होय छै, ऊ यहेॅ किताब पड़ेॅ लागै छै। इखनियो ओकरोॅ हाथोॅ में वहेॅ किताब छै। मोॅन एकदम बेकल होय रहलोॅ छै आरो आपनोॅ यहेॅ बेकलता मेटाबै लेली किताब के वहेॅ लोककथा दोहरावै लागलोॅ छै-एकठो राजा छेलात। हुनका दू ठो बेटी छेल्है। एक दिन राजा नंे आपनोॅ बड़की बेटी संे पुछलकै-"बेटी, तोहें केकरा भागोॅ सें खाय छौ।" बड़की बेटीं कहलकै-"बाबुजी ई सारा सुख-भोग तेॅ हम्में तोहरे भागोॅ सें पैनंे छी।" राजा बड़ा खुश होलात। छोटकी बेटी के नगीच गेलात, छोटकी बेटी नें भी खूब आव-भगत करलकै, ऊ बेटी राजा के विशेष दुलारियो छेलै। लूर-ढंग, विवेक, ज्ञान-सब्भे में बढ़ली-चढ़ली। राजा नें वहेॅ सवाल छोटकी बेटी संे भी पुछलकै। छोटकी बेटी, जेकरोॅ नाम महँगी छेलै, माथा झुकाय केॅ बोलली-"बाबूजी, हर कोय आपने भागोॅ के खाय छै, हम्में भी आपनोॅ भाग के खाय छी।" राजा नें एन्होॅ उत्तर सुनै के आशा नै करलेॅ छेलै। क्रोध में आबी केॅ दासी केॅ हुकुम दै देलकात छोटकी बेटी केॅ राज सें बाहर छोड़ी आबै के. सौंसे प्रजा सन्न रही गेलै, लेकिन राजा के बात के टारेॅ पारेॅ। दासी नें महँगी केॅ राज सें बाहर तांय लानी केॅ छोड़ी देलकै।
राजकुमारी आपनोॅ भाग पर भरोसा करी केॅ आगू बढ़ली। सामन्हें में घनघोर जंगल छेलै। गाछ, बिरिछ, पहाड़, पोखर सें देह लस्त-पस्त होय गेलै, गोड़ पर पटपटी पड़ी गेलै, से राजकुमारी एक गाछ नीचें बैठी गेलै। वहीं सें राजकुमारी नंे देखलकै कि कुछु दूर में एकटा खण्डहर बनलोॅ महल खड़ा छै। हिम्मत करी केॅ उठली आरो कोय रहतेॅ होतै, सोची केॅ वहाँ पहुँचली। ऊ महल में एकटा खूब बूढ़ा दरवान छोड़ी केॅ आरू कोय नजर नै ऐलै। दरवानें बतैलकै कि यहाँ केरोॅ राजा आपनोॅ कोठरी में सूती रहलोॅ छै आरू कै बरसोॅ सें उठले नै छै। दरवाजा भीतरोॅ सें बन्द छै। यै लेली हम्में भी घर नै जाबेॅ पारी रहलोॅ छी। " महँगी नंे धीरे सें कोठरी के दरवाजा पर हाथ धरलकै तेॅ देखै छै कि दरवाजा भड़भड़ाय केॅ खुली केॅ गिरी पड़लै। भीतरोॅ में एक आदमी कोठरी के बीचोबीच पलंग पर सुतलोॅ छै। लेकिन सब कुछ भुरभुरोॅ माटी रङ बुझाय छेलै। चारो तरफ घास-फूस, काँटोॅ-कूसोॅ भरलोॅ छेलै आरू राजा के भी साैंसे देह में घास-फूस उगी गेलोॅ छै। मुँहो तक देखाय नै पड़ै छै। ओतना दिन सें बंद कोठरी में गुमसैलोॅ हवा और दुरगन्धोॅ सें वै में साँस लेबोॅ भी मुश्किल होय गेलोॅ छै। राजकुमारी कुछू देर ठाड़ी देखतेॅ रहली, फिरू सोचलकी कि हमरा यहाँ भेजै पीछू भी भागे के हाथ छै आरू दिन रात लगी केॅ राजा के गला सें नीचे तांय जेतना घास-काँटों उगलोॅ छेलै, ओकरा निकाललकी। सौंसे देह केॅ साफ करतेॅ-करतेॅ राजकुमारी एकदम्मे थकी गेलै। तबेॅ आपनोॅ हाथोॅ संे एकठो कंगन उतारी के दरवानोॅ केॅ दै केॅ एक दासी मंगैलकी। दासी अइला के बाद राजकुमारी, जेकरोॅ नाम महँगी छेलै नें सोचलकै कि थोड़ा नहाय-सुनाय लियै, तबेॅ फेनू मुँह के ऊपर के घास-फूस साफ करवै। तब तक कुकुर, सियार राजा नगीच नै घुसी जाय, यै लेली दासी केॅ जोगवारी करैलेॅ बैठाय देलकी आरू नहाय वास्तें चलली गेली।
यै बीच में दासी नें राजा मुँहोॅ के ऊपरोॅ पर के घास-फूस साफ करी देलकै। राजा के पलक के आरू आँखी के नीचेॅ के घास-फूस जबेॅ सब साफ होय गेलै, तबेॅ राजा नें आँख खोली देलकै आरू सामना में दासी केॅ बैठली देखी केॅ सोचलकै कि ओकरा जियाबै वाली यही औरत छेकै। दासी नें आपना केॅ राजकुमारी आरू राजकुमारी केॅ दाय बताय देलकी। एतने देरी में जबेॅ राजकुमारी ऐली तेॅ राजा देखै छै कि सुन्दर राजकुमारी साथें दासी घुली-मिली केॅ बात करी रहलोॅ छै आरू ओकरा पर दासी नाँखी हुकुम चलाय रहली छै। प्रारब्ध समझी केॅ राजकुमारी सब कुछू सही केॅ रहेॅ लागली।
एक दिन राजा सौदा लेली दूर देश जाय रहलोॅ छेलै। जाय वक्ती राजा नें नकली रानी सें पुछलकै कि तोरा लेली वहाँ सें कौन सिनी पसन्द के चीज लेलेॅ अइभौं, बताय देॅ। वैंने अपनोॅॅ ढेरी फरमाइस सुनाय देलकी। फेनू राजा के मनोॅ में अइलै कि है महँगी दाय भी तेॅ दिन-रात खटै छै, ज़रा ओकरो सें पूछी लेलोॅ जाय। अपनोॅ पत्नी धारा सें जबेॅ राजा नें पुछवैलकै तेॅ महंगी नंे राजा सें भानुमती के पेटारा लानै लेॅ कही देलकै। राजा नें पुछवो करलकै कि आरू कोय चीज के ज़रूरत छौं तेॅ बोली दौ। मतरकि महँगी नंे बस यहेॅ कहलकै कि हमरा लेली बस भानुमती के पेटारा ही जों मिलथौं, तेॅ लेलेॅ अइहौ।
राजा नें सौंसे बाज़ार खोजलकै। घूमी-घूमी केॅ सबसें पुछलकै। लेकिन राजा केॅ भानुमती के पेटारी कहाँ मिलतै, पता नै चलेॅ पारलै। आखिरी में हाट उठला के बाद फटलोॅ-पुरानोॅ कपड़ा पहिननंे एकठो आदमी मिललै, जे भानुमती के पेटारी बेचै लेली अइलोॅ छेलै, मतरकि लोगोॅ नें ओकरोॅ मोल नै बुझलकै आरू हौ नै बिकेॅ सकलै। असली में वहेॅ आदमी महँगी राजकुमारी के बाप छेलै। सब्भे कुछ ठगी-पराय गेला के बाद महंगी के बचपन के खिलौना सब भी बेचै लेॅ पड़लै आरू आज राजा महँगी के भानूमती के पेटारी बेचै लेॅ अइलोॅ छेलै, जे कि एक तिलस्मी पेटारी छेलै। ओकरा खेलै के मन्त्रा खाली राजकुमारिये जानै छेलै।
राजा नें ऊ पेटारी खरीदी केॅ दासी केॅ दै देलकै। रात केॅ सब्भे के सूतला रोॅ बाद महँगी नें ऊ पेटारी खोललकी तेॅ सुन्दर दृश्य देखाय पड़ेॅ लागलै। रंग-बिरंग के फूल-पत्ती, तालाब, किसिम-किसिम के महल-अटारी, झिलमिल चाँद-सितारा, गीत-संगीत के आवाज वै पिटारी सें आबेॅ लागलै। ओकरोॅ बाद वैसें दू ठो कारी-गोरी पुतरी निकललै, जेकरा देखी केॅ मोॅन मुग्ध होय जाय छेलै। घुंघरू के झुमझुम आवाजोॅ साथें मीठा कण्ठोॅ संे आवाज आवै-
कारी गोरी पुतरी सुन कविराज
फिर-फिर होइहैं महँगी के राज।
महँगी राजकुमारी ऊ सब सुनी केॅ आपनोॅ दुख भूली जाय छेली। रोज रात केॅ ई सब आवाज दरवान के कानोॅ में जाय, तेॅ कुच्छु समझै नै पारै। एक दिन ऊ महँगी के घर सें सटी केॅ कान लगाय केॅ सुनेॅ लागलै। अन्दर सें गाना-बजाना आरू घुंघरू के आवाज सें ओकरोॅ मन में कुच्छु शंका उत्पन्न होलै आरू वै नें दरवाजा पर धक्का देलकै। महँगी नें जल्दी सें पेटारी बन्द करी केॅ खटिया नीचें लुढ़काय देलकी। पेटारी के बन्द होथैं सब कुछ बिलाय गेलै, तिलस्मी जादू खतम होय गेलै। दरवान चुपेचाप निकली गेलै। अगला दिन फेनू वहेॅ रङ आवाज होलै तेॅ बात राजा सें कहलकै। राजा नें भी घर के दीवार सें सटी केॅ सब आवाज सुनलकै, लेकिन बाहर सें केकरो जैतेॅ तेॅ देखेॅ नै पारै। राजा नें सीधा दासी सें परिचय पुछलकै-"तोहंे के छेकौ आरू तोरोॅ पेटारी में की रहस्य छौं।" तबेॅ असली राजकुमारी नें आपनोॅ एक कंगन देखाय केॅ सब बात बताय देलकै कि केना केॅ वें आपनोॅ कंगन बेची केॅ दासी मंगैलकी आरू दासी ओकर्है सें काम करवाबेॅ लागली आरू राजा जिलावै के जस लैकेॅ रानी बनी केॅ सुख भोगेॅ लागली। भानुमती के पेटारी ओकरोॅ बचपन के खेल के साथी छेकै आरू बाप के क्रोध के कारण आकि आपनोॅ भाग्य के कारण आज वें दुख भोगी रहलोॅ छै।
राजा नें महँगी केॅ महल में आनी केॅ मान-सम्मान दै केॅ रानी बनैलकात। नया महल बनाय बेरा मजदूर के जेरा में महँगी के बाप अइलोॅ छेलै, जै नें आपनोॅ अहंकार संे महँगी केॅ देशनिकाला देलेॅ छेलै। महँगी आपनोॅ बाप केॅ चीन्ही गेली आरू इज्जत सें बुलाय केॅ राजा सें मिलवैलकै। पिता केॅ प्रणाम करी राजकुमारी नें कहलकै-"पिताजी, आबेॅ आपनंे समझी गेलोॅ होबोॅ कि आपनोॅ भाग्य सें लोग सुख आरू दुख भोगै छै, दै आरू दिलाय वाला कोय नै छेकै। आजों तोहें आपनोॅ भाग्य के खाय रहलोॅ छौ।" कहानी खतम होतें-होतें ओकरा लागै छै कि ओकरोॅ लागै छै कि ओकरोॅ जिनगी के दुख जल्दिये दूर होय जैतै। ओकरोॅ राजा ओकरोॅ भाग्य लै केॅ जल्दिये लौटतै-डोली कहार साथें लेेलेॅ आरो ओकरा पर चढ़ी केॅ ऊ आपनोॅ राजा के घोॅर चल्ली जैतै।
सोचतें-सोचतें सरबतिया के आँखी में एक जानलोॅ-पहचानलोॅ चमक आवी जाय छै। वही चमक, जे कभी भदवा केॅ देखला के बाद ओकरोॅ आँखी में आवी जाय छेलै।