भदवा चन्दर, खण्ड-6 / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
"भादो" लाल बाबां नें हाँक देलकै।
"आवै छियै लाल बाबा।" ई कही भादो जबेॅ बाहर निकललै तेॅ बाबा कहलकै, "भादो जल्दी तैयार हुऐं। आपनोॅ मुलुक सें एक युवती ऐलोॅ छै। ऐलोॅ तेॅ छै ऊ यहाँकरोॅ राजा सें मिलै लेॅ, मतरकि ओकरोॅ दू दिन के प्रवचन छै, यही पास वाला धर्मशाला में। जनानी सिनी के बीच ओकरोॅ भाषण होतै। आबेॅ हमरोॅ देश सें ऐलोॅ छै तेॅ हमरो सिनी केॅ वहाँ जानाहै छै, फेनू ऊ युवती नंे हमरा वहाँ आवै के खास नेतोॅ भेजलेॅ छै। तोरो चलना छै।"
"एकदम चलना छै बाबा।"
"सुनोॅ, तोहें पीछू सें आवोॅ। हम्में आगू बढ़ै छियौं।"
भदवा चन्दर जखनी धर्मशाला पहुँचलोॅ छेलै, तखनी ऊ युवती मंचोॅ पर आवी चुकलोॅ छेलै। भदवा नें दूरहे सें सुनलेॅ छेलै कि आबेॅ तोरा सिनी के सामना अपर्णा जी आवी रहलोॅ छै, जे पूर्णिया सें चली केॅ यहाँ ऐलोॅ छै
भदवा के वहाँ सभास्थाल पर पहुँचना छेलै कि युवती के भाषणो शुरू भै गेलै। बड़ी धीर, शांत स्वरोॅ में अपर्णा जी नें बात कहना शुरू करलकै, "घटना दिसम्बर के पहिलोॅ सप्ताह के छेकै। माय आपनोॅ बेटा के बीहा बड़ी धूम-धामोॅ सें करी रहलोॅ छेलै। दुर्भाग्यवश माय विधवा छेलै। लड़का जखनी शादी करै लेॅ जावेॅ लागलै सब्भे विवाहित महिला नें एक-एक करी केॅ परछेॅ लागलै। माय केरोॅ परछै के बारी ऐलै तेॅ सब्भे महिला नें एक्के साथें कहेॅ लागलै-" हो-हो विधवा नै परछै। तोहें कथी लेॅ परछै छौ। " ई सुनी केॅ माय केॅ तेॅ झांव लागी गेलै। बेटा आपनोॅ एक जिद्द पर अड़लोॅ रहलै, माय परछतै तबेॅ हम्में बीहा करै लेॅ जैबै। अंत में माय नें परछलकै।
अरुणा के बीहा एक जमींदार परिवार में होलोॅ छेलै। अरुणा आपन्हौ जमींदार परिवार के छेलै।
अरुणा के पति एक्के भाय छेलै। पति के लीवर केंसर में देहान्त होय गेलोॅ छै। अरुणा पर चार जवान बेटी केरोॅ बीहा के भार आरू घोॅर-गृहस्थी चलाय के जिम्मा लै लेॅ पड़ी गेलै। निभाय रहलोॅ छै। अरुणा सें जबेॅ हमरोॅ भेंट भेलै, कानै लागलै। कानते-कानतें कहलकै-"सासु माय जखनी मोॅन होतौ कही दै छै-हमरोॅ बेटा केॅ यही खाय गेलै, विधवा भै गेलै। ई डायन छै। रंगीन नुंगा पीन्हलेॅ छै। लाजो नै लागै छै। दुल्हा केॅ खाय केॅ सजै के शौख ढुकलोॅ छै।" जबकि सासु माय आपन्हौ विधवा छै।
रीना २७ बरसोॅ के उमरोॅ में ही विधवा होय गेलै। पति शराबी छेलै। लेकिन जब तांय जित्तोॅ छेलै, रीना केॅ शराबी होतेॅ हुवेॅ भी कहियो तकलीफ नै देलकै। यहेॅ बुझियै कि रीना जों केकरोॅ बीहा में जाय छेलै तेॅ मोहल्ला के लोग एक बार रीना केॅ ज़रूर देखै छेलै। ओकरोॅ खूबसूरत चेहरा, सोना के जेबरोॅ सें लादली रीना। एकदम रानी रंगे रहै छेलै।
बीहा के ५ बरसोॅ के बादे रीना के दुल्हा होकरा छोड़ी केॅ चल्लोॅ गेलै। जेन्है रीना के दुल्हा के सांस रुकलै, ओकरो सास-जेठानी नें कानतें-कानतें कहलकै-"अरे, जल्दी पोछैं, होकरोॅ माथा के सिनूर। चूड़ी तोड़ी दहीं, बिछिया-पायल सब खोली दहीं। टिक्का मेटी दहीं।" रीना उप्सी-उप्सी कानतें-कानतें सब चीज खोलबाय लेलकै।
थोड़ोॅ दिन पहिनें रीना सें भेंट भेलै, करीब एक सालोॅ के बाद। हम्में पूछी देलियै-रीना, ई उमर में हेनो उजरोॅ नुंगा कहिनें पिन्लहें छै? रीना के जवाब छेलै-"अबेॅ हम्में कुच्छू नै पीन्हे पारै छी। केकरा लेॅ पिन्हबै, जों सजी-संवरी केॅ रहवै, रंगीन नुंगा पिन्हवै तेॅ समाज आरू परिवार के लोगें कोसतै। भगवानोॅ केॅ जबेॅ हमरोॅ सजलोॅ-संवरलोॅ अच्छा नै लागलै, तब्हैंनि हमरा सें हमरोॅ दुल्हा छीनी लेलकै।"
है तरह के हजारो उदाहरण समाजोॅ में छै, जहाँ एक विधवा के निखरलोॅ रूप या शृंगार लोगोॅ केॅ बरदाश्त नै होय छै। लड़की केॅॅ बीहा में सुहाग चिन्होॅ सें सजाय वाली महिला होय छै, वहेॅ महिला छेकै कि विधवा होला पर सबसें पहिनें वहेॅ सुहाग चिह्नो के नोचै लेॅ तैयार रह छै। एतनै नै, सुहाग चिह्नोॅ केॅ नोची दै छै। ओकरोॅ मंगलसूत्र, सिनूर, टिक्का, बिछिया आरू चूड़ी सब खोली दै छै। काहीं-काहीं तेॅ विधवा महिला के बालोॅ मुड़ी दै छै। एक सजलोॅ-संवरलोॅ गुड़िया केॅ, समाज पल भरी में शृंगारविहीन करी दै छै। जबकि शृंगार कोय भी नारी के जीवन के हिस्सा छेकै।
वांही दोसरोॅ तरफ एक मरद के जों कनियांय मरी जाय छै, तेॅ ओकरा विधुर देखाय के समाज में कोय प्रथा नै छै। एतने नै, श्राद्ध में जे लोग पहुँचै छै, वै में विधुर मरद के दोसरोॅ बीहा के गप्पो शुरू होय जाय छै। कोनो मरदोॅ के विधुर होय के कोय पहचान नै, लेकिन एक महिला जों विधवा होय जाय छै तेॅ ओकरा पहिनें 'बेचारी' ज़रूर जोड़ी दै छै, ई समाज ने। वांही पुरुष के साथें 'बेचारा' नै जुड़ै छै, कैन्हें की ऊ मरद छेकै।
पुरुष सत्तात्मक समाज मंे एक मरद कोय भी समय में, सुख या दुख में, आपनोॅ इच्छा सें काम करेॅ पारेॅ लेकिन वांही विधवा होत्हैं कोय औरत के इच्छा के कत्ल करी देलोॅ जाय छै आरो औरतोॅ पर हर चीज थोपी या लादी देलोॅ जाय छै। रस्ता मंे एक विधुर केॅ कोय नै चिन्हेॅ पारेॅ, मतरकि एक विधवा केॅ ओकरोॅ वेश-भूषा सें सब्भे चिन्ही लै छै। समाजोॅ में विधवा के वेश-भूषा बनैलोॅ होन्हे गेलोॅ छै। जत्तेॅ बेसी-सें-बेसी ऊ महिला कुरूप झलकै, ओत्ते अच्छा। आरू हेनोॅ वेश-भूषा पीन्है लेॅ मजबूर करै छै ई पुरुष सत्तात्मक समाज नें। जबेॅ कि जाय वाला (मरै वाला) आरो वेश-भूषा के कोय ताल-मेल नै बेठै छै।
सबसें तेॅ आश्चर्य लागै छै कि केना केॅ कोय औरत दोसरा औरत केॅ कुरूप बनाय लेॅ आरू शृंगार मेटाय लेॅ आगू आवै छै। आखिर कैन्हेॅ होय छै हेनोॅ? कैन्हें कोय औरत दोसरोॅ औरत के दुश्मन बनी जाय छै। जबेॅ कि महिला ई बातोॅ केॅ जानै छै कि सब्भे महिला के सजै-संवरै के मोॅन करै छै। हेना कहलोॅ जाय छै कि जियै लेॅ चटकीला रंग ज़रूरी छै। चटकीला रंग-उमंगोॅ के प्रतीक होय छै। ई बात एकदम सच छै कि जायवाला (मरैवाला) के याद दिलोॅ में होय छै, मनोॅ में होय छै, नै कि पिनहावा आरू लोक-दिखावा में।
कत्तेॅ दिन, महीना, बरस-बीती गेलै, अरूणा आरू रीना आपनोॅ पति के चर्चा करी केॅ आइयो फूटी-फूटी कानै छै। घर-परिवार, खेत-खलिहान सब सम्भाली रहलोॅ छै। वांही रीना, बेटा के बिजनेस में खूब मदद करी रहलोॅ छै। पटना आकाशवाणी में कार्यरत राजकुमारी एक विधवा औरत छेकै। तीनों भिन्न-भिन्न जाति-वर्गो के छेकै, लेकिन तीनों के वेश-भूषा एक्के रहै छै। एकरोॅ सिनी के कपड़ा चटकीला रंगोॅ के नै होय छै, नै देहोॅ पर कोय साज-सज्जा। गाँवोॅ के बात छोड़ी दियै, शहरो में विधवा के वेश-भूषा पर कोय गुणात्मक बदलाव नै भेलोॅ छै आरो नै तेॅ विधवा के प्रति सामाजिक अवधारणा में। आखिर कैन्हें? जवाब दौ, हमरोॅ समाजोॅ के महिला नें।
भदवा चंदर नें बड़ी ध्यान दै केॅ सुनलेॅ छेलै भाषण। बाप रे बाप, एत्तेॅ कम उमरी में केन्होॅ-केन्होॅ क्रांतीकारी बात। उमिरे की होतेॅ-होतेॅ ज़्यादा सें ज़्यादा चालीस वर्ष आरो फूनू भदवां आपनोॅ बारे में सोचलेॅ छेलै। पाँच छः सालोॅ के छोटे छै ऊ आरो करी की रहलोॅ छै तेॅ साधू गिरी जबेॅ कि मरदाना होय केॅ ऊ आरो भी बड़ोॅ-बड़ोॅ बात करेॅ पारै छेलै ऊ। ओकरोॅ मनोॅ में आपनोॅ प्रति एक हीनता के भाव उपजी ऐलै।
लेकिन नै, है हीनता के भाव पालल्है सें कुछ नै होय वाला छै, ओकरा कुछ करना छै। आरो वैं निर्णय करी सभा खतम होला के बादो ऊ स्थान सें नै हटलोॅ छेलै आरो प्रायः सब के गेला के बाद भदवा सीधे अपर्णा जी के पास पहुँची गेलोॅ छेलै आरो सीधे ई कहलेॅ छेलै, आबेॅ हम्में आपनोॅ देश आपनोॅ गाँव लौटै लेॅ चाहै छियै। तोहें हमरा बतावोॅ कि गाँव लौटी केॅ हमरा की करना चाहियोॅ।
अपर्णा जी नंे भदवा केॅ आपनोॅ बगल में बैठलेॅ छेलै आरो ओकरोॅ बात के सीधे उत्तर नै दै केॅ दोसरे बात कहना शुरू करलकै।
हमरोॅ भारतीय संस्कृति में ब्याह भगवान के एक बनैलोॅ व्यवस्था छिकै, जेकरा सामाजिक मान्यता मिललोॅ छै। ई एक साफ-सुथरा सम्बन्ध पुरानोॅ जमाना सें आवी रहलोॅ छै, जौनें कि परिवार आरू समाज केॅ हर वक्त एक गति दै छै। मतरकि कहियो-कहियो दिमागोॅ में ई बात घुरतें रहै छै कि आखिर ई गतिशीलता कब तक रहतै? ई व्यवस्था (बिहा) सें बंधलोॅ महिला आय ई पुरुष प्रधान समाज में, जहाँ ओकरा पर अत्याचार, अन्याय आरू शोषण रं सब्भे जुलुम होय रहलोॅ छै, वहीना में एक महिला की करतै? की है एक सोचै वाला बात नैं छेकै? अहिनोॅ स्थिति में, बिहा के समय पंडितें जे सप्तपदी के मंत्र के किरिया खवैनें छेलै, होकरा औरतें दोहरैतें रहेॅ? जे किरिया हमेशा पुरूष के पीछू-पीछू चलैलेॅ आरू पुरुष के अधीन जियै लेॅ सिखाय छै। आकि कि फेरू...?
सच्चे, जों सोचै छियै तेॅ लागै छै कि आय कौन स्थिति छै हमरोॅ समाज में। एक तरफ ई समाज आरू लोगें, जे आज सभ्य होय के दावा करै छै; तेॅ दोसरोॅ तरफ महिला सें जुड़लोॅ समस्या-दहेज, बलात्कार, अत्याचारी, आरू हत्या रँ सनी कुकरम, जे रोज-रोज बढ़ले जाय रहलोॅ छै। मतरकि योहो बात केॅ हम्में नै नकारै पारै छौं कि महिला अपना पर होय रहलोॅ अन्याय के खिलाफ आपन्हैं आवाज उठाय रहली छै। आपन्हैं घरोॅ में आपनोॅ दुल्हा केॅ, जे अत्याचार करै छै, होकर्हौ सहै लेॅ तैयार नै छै। अहिने कुछ लोगोॅ सें ई लेखिका के भेंट होय छै। "हुनी नाय छोड़नें छै, हम्में छोड़नंे छियै हुनका। परित्यक्ता हम्में नाय, परित्यक्त हुन्हीं छै। खाली दुल्है कनियाँ केॅ नाय छोड़ै छै, कनियनियो दोषी दुल्हा केॅ छोड़ै छै।" ई वाक्य छेकै, पटना के एक विद्यालय के शिक्षिका वीणा के. वीणा के पुस्तैनी घर अंगिका क्षेत्र मुंगेेर जिला में छै। चालीस साल के वीणा सुन्दर, शिक्षित, सुसंस्कृत आरू मीट्ठोॅ बोली के धनी छै। पूछला पर वीणा कहै छै-"उनासी में हमरोॅ बिहा भेलै, जखनी अग्नि फेरा लै रहलोॅ छेलियै, तखनिये वेॅ 'दहेज?' मुँह से निकाललकै। हमरा तखनिये लागलै, जौनें एखनी हेना बोलै छै, वें बाद में की करतै। तैइयो हम्में सहनें गैलियै। वही घुटन भरलोॅ जिनगी में एक बेटी भेलै।" वीणा बात करतें-करतें ओजपूर्ण मुद्रा में आवी गेलै। फेरू कहै छै-खैतें-पीतें, उठतें-बैठतें-जखनी सुनोॅ, एक्के बात- 'दहेज' । हम्में सुनतें-सुनतें उबी गेलियै। आखिर में हम्में हुनका छोड़ी देलियै'।
आय वीणा बड्डी खुश छै। आय समाज में भी वीणा के भावना रोॅ कदर होय छै। आय वीणा के बेटा दिल्ली के एक बढ़िया स्कूलोॅ में पढ़ै छै।
स्वाति, भागलपुर शहर के छेकी। याँही एक नामी-गामी स्कूल में नाच के शिक्षिका छेकी। नृत्य-कला में निपुण स्वाति नें अपनोॅ विद्यालय केॅ कै बार प्राइजो दिबैलकी छै, प्रतियोगिता सनी में। छोटोॅ कद, गोरोॅ रंग, बियालिस सालोॅ केरी स्वाती सें जबेॅ पूछलियै कि तोंय दुल्हाकेॅ छोड़नै छौ आकि वें तोरा छोड़नें छौं? ई सवाल के जवाब में कहलकी-"हम्में छोड़नें छियै। वें तेॅ आबिहो बोलाय छै। परित्यक्त तेॅ ऊ छै, हम्में परित्यक्ता नै"। स्वाति नें आगू कहलेॅ छेलै-"हमरोॅ भाय-भौजाय केॅ पता नै छेलै कि ऊ सड़क पर के लड़का छेलै। ऊ तेॅ बिहा करी केॅ कनियाँसिनी सें मुम्बई में देह-व्यापार करवाय छेलै। ई काम हमरोॅ सोच के खिलाफ छेलै"।
मध्यवर्गीय किसान के बेटी सुनीता आपनोॅ मायके ताड़र में रहै छै। होकरा सें भेंट भागलपुरोॅ में एक बिहा में भेलै। सवाल पूछला पर कि ससुराल में कहिनेंनी रहै छैं? सुनीता के गल्लोॅ भरी गेलै। आँख डबडबाय गेलै। कहलेॅ छेली-"साल भर दुल्हा ठीक रहलै। एकटा बेटियो भेली। एकरे बाद होकरोॅ सम्बन्ध एक दोसरी महिला सें भै गेलै। जबतक सम्बन्ध छेलै तब तांय तेॅ सहतें रहलियै। मतरकि जबेॅ होकरा सें बिहा करी लेलकै तेॅ हम्में हुनका छोड़ै के ठानी लेलियै आरू छोड़ी देलियै"।
आय सुनीता कोर्ट-कचहरी के दरवाजा पर जाय केॅ आपनोॅ हक लेॅ लड़ी रहलोॅ छै। कुछ हक मिलियो गेलोॅ छै, कुछ बाकियो छै। सुनीता के साथ में पूरा गांव आरू परिवार के लोग छै। यहेॅ सिलसिला में हमरोॅ मुलाकात एक अनपढ़ महिला सें होय छै। पूर्णिया जिला के चन्दवा गांव के गुलिया देवी सें। गुलिया देवी नें सात बार बिहा करनें छै। जाति के मुसहरिन। गुलियां कहै छै-"हमरोॅ बिहा भेलोॅ छै। एक टा बेटी छै। तेसरोॅ दुल्हा सें भेलोॅ छै"। सात बार बिहा के कारण गुलिया सें पुछलियै तेॅ वें कहलकी "दुल्हा मारै छेलै। हम्में कहिनें रहतियै? हमरा कि दोसरोॅ नै मिलतियै। हेन्हैं करी केॅ सात बिहा भै गेलै"।
आय हमरोॅ अंग क्षेत्र में कतनांय वीणा, स्वाति, सुनीता, गुलिया छै गिनन्होॅ मुश्किल छै। हिकासिनी के अनुभव बताय छै कि यें सिनी आपना केॅ परित्यक्ता नै मानै छै, पुरूष (पति) केॅ ही परित्यक्त मानै छै। अंग क्षेत्र केरोॅ महिला रोॅ ई सोच आय खाली वही महिला केॅ ही नै बल्कि सौंसें अंगक्षेत्रहे केॅ ऊपर उठाय में मदद करतै। "
'अंग क्षेत्र' -भदवा चन्दर के माथोॅ में जेना ई शब्द काटोॅ नाँखी लसकी गेलै।
ऊ आपनोॅ अंग क्षेत्र केॅ ही छोड़ी केॅ यहाँ आवी गेलोॅ छै, साधू-सन्यासी रं जीवन जीयै लेॅ आरो ओकरोॅ देश में कत्तेॅ-कत्तेॅ दुख छै। ऊ आपनोॅ मुलूक में रही केॅ बहुत कुछ करेॅ पारेॅ। ई युवती परदेश में आवी केॅ आपनोॅ देश के दुख-दर्द वहाँ ऐलोॅ सवासिन सिनी केॅ कहेॅ पारेॅ तेॅ हम्में कैन्हेें नी आपनोॅ देश में जाय केॅ लोगोॅ केॅ जगाबेॅ पारौं। आपनोॅ देश के स्थिति याद करी केॅ ओकरोॅ आँख लोराय गेलै। अर्पणा जी नें ओकरोॅ डबडबैलोॅ आँख केॅ गमलेॅ छेलै, मतरकि बोललै कुछ नै। बस, उठै वक्ती एतने टा कहलकै कि आपनोॅ देश में भुखलोॅ रही केॅ आदमी आपनोॅ माँटी लेॅ कुछ करेॅ पारेॅ तेॅ एकरा सें बढ़ी केॅ दुनिया में कुछ आरो पुण्य हुवै नै पारेॅ।
एतना कही ऊ आपनोॅ दू संगी साथें सभा सें बाहर निकली गेलोॅ छेलै, मतरकि भदवा के माथोॅ में जेना कोय प्रश्न रही-रही केॅ उधियावेॅ लागलोॅ छेलै। उठलै, तेॅ ढेर सिनी सवाल आरो शंका मनोॅ में लेलेॅ।