भदवा चन्दर, खण्ड-8 / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
बरखा गेलै ससुरिया, नैहर अयलै शरद सहेलिया
घुमै अंगना सें अंगना काश रंग पिन्ही केॅ चुनरिया हो राम
नील वितानी अंगिया झलमल, सेफाली रोॅ जाली
मतवारी रस खंजन नयना, पिक बैनि मधु व्याली
नाचै लहर बान्हि पैजनियां, शोभै अमर बेली नथनियां
मारै पंथी केॅ टेबी-टेबी तिरछी कटारी नजरिया हो राम।
संझा सें अंजन मांगी मृगनयनी नयन सजावै
श्याम घटा सम जूरा में चाननि कुसुम लगावै
पपिहा नदी पार में बोलै, पुरवा गंध मदालस पोरै
अचरा लागै जेना झलमल कबई रं मछरिया हो राम।
सितोॅ रोॅ मोती पिन्ही केॅ नाचै पुरइन पत्ता
पागल-पागल जल फूलोॅ पर, मधुलोभी मधुमत्ता
तितर लड़ै बाँस रोॅ बेरी, पढ़ोकी गावै लोरी-शोरी
गोरी कमर धरी केॅ कलशी, मलकी चलै एक पड़िया हो राम।
नदि-बाँध सब नाची-नाची कल-कल गीत सुनावै
भेटमास पर तितली बैठी, सिन्दूर मांग सजावै
विरहन 'अनल' बिछौना, जड़पै साजन लेली कानै-कलपै
ओलती पकड़ी केॅ जोहै, पिया परदेशी रोॅ डगरिया हो राम।
भदवा चन्दर भाव-विभोर होय केॅ गावी रहलोॅ छेलै कि तखनिये लाल बाबां आवी केॅ टोकलकै,
"चन्दर, आय तोरा बहुत खुश देखै छियौ।"
"हों, बाबा राते हम्में फैसला करी लेलेॅ छियै कि हम्में आपनोॅ गाँव लौटी जैवै। आय तांय जतना भूल-भुलैया में पड़लोॅ रहलियै, ओतन्है काफी छै। बाकी जीवन आपनोॅ गाँव के सेवा में लगाय लेॅ चाहै छियै बाबा। सुख-मौज सें जिनगी काटै के सपना लेलेॅ कहाँ-सें-कहाँ आवी गेलियै, मतरकि मिललै की? ई सपना के भूल-भुलैया में पड़ी केॅ हमरा सें आपनोॅ गाँव, आपनोॅ माय-बाप, आपनोॅ संगी-साथी आपनोॅ... सब कुछ तेॅ छुटी गेलै...बाबा, हम्में सोची लेलेॅ छियै कि आबेॅ हमरा गाँव लौटी जाना छै। एक मुट्ठी कम, आकि एक मुट्ठी ज्यादा-यहेॅ नी होतै, भूखेॅ तेॅ नहिये नी मरी जैवै। मतरकि कोय्यो कीमतोॅ पर हमरा गाँव-घर लौटी जाना छै...बाबा, भुखलोॅ रही केॅ जों हम्मंे आपनोॅ गाँव लेॅ कुछ करेॅ पारै छियै तेॅ समझवै कि हम्में आपनोॅ जनमडीह के ऋण, एक्के पैसा सही उतारी देलियै।" एतना कही भदवा चन्दर एकदम चुप भै गेलै, मतरकि ओकरोॅ आँखी में एक अदभुत चमक आरो बढ़ी गेलोॅ छेलै।
भदवा चन्दर के विचार में ई बदलाव देखी केॅ लाल बाबा के खुशी के भी कोय ठिकानोॅ नै रहलै। हुनी भदवा केॅ आपनोॅ छाती सें लगाय लेलकै आरो पीछ केॅ थपथपाय देलकै। फेनू ओकरा आपनोॅ पास वहीं पर बिठैतें कहना शुरू करलकै, "चन्दर, तोरोॅ ई निर्णय सें हमरा एतना खुशी होलोॅ छेॅ कि हम्में बतावोॅ नै पारौं। आदमी दू पैसा के लोभ में जे जीवन जंगली जानवर नाँखी भटकलोॅ फिरै छै, ओकरोॅ किस्मत में सुख-शांति नै लिखलोॅ रहै छै। सुख-शांति तेॅ ओकरे किस्मत में होय छै-जे आधे पेट खाय केॅ आपनोॅ गाँव-घर केॅ नै छोड़ै छै। आरो जे मूल केॅ छोड़ी केॅ आन चीजोॅ के पूर्णता के किंछा करै छै, ओकरा सें सब छूटी जाय छै। चन्दर एकटा किस्सा छै, मन सें सुनोॅ-एक राजकुमार छेलै। वें बीहा करी केॅ एक बहू आनलकै। ओकरी बहुएँ एक दिन खाना बनाय केॅ गरम माड़ सिमी लत्ती में डाली देलकै। वै सिमी लत्ती में करम वास करै छेलै। धीपलोॅ माड़ के पड़ला सें करम वहाँ सें भागी गेलै। करम के भागला सें सब राज-पाट वै राजा के नष्ट होय गेलै। राजा करम केॅ खोजै लेॅ चललात। रास्ता में हुनका एक दोसरोॅ राजा मिललै। दोसरोॅ राजा नें हुनका सें पूछलकै-" तों कहाँ जाय छोॅ? "
पहिलोॅ राजा नें कहलकै-"हम्में करम खोजै लेॅ जाय छी।"
तबेॅ दोसरोॅ राजा नें पहिलोॅ राजा सें कहलकै कि एक समाचार हमरो लेलेॅ जा। हम्में बारह बरसोॅ सें पोखर बनवाय रहलोॅ छी। ओकरा सें पानी कैन्हें नी निकलै छै? "
राजा वहाँ सें चललात तेॅ एक घुड़सवार मिललै। वैनें राजा सें पूछलकै-"तोहें कहाँ जाय छोॅ?"
"हम्में करम खोजै लेॅ जाय छी" -राजा नें कहलकै। "हमरोॅ एक समाचार लेलेॅ जा कि हमरोॅ घोड़ा कैन्हें नी हिनहिनाय छै?" -घुड़सवारें कहलकै।
वहाँ सें राजा फेनू आगू बढ़लात। रास्ता में एकटा बूढ़ी भेटलै। वें नें राजा सें पूछलकै कि कहाँ जाय छोॅ? राजा नें ओकरा भी वहेॅ जवाब देलकै, जे दोसरोॅ राजा आरो घुड़सवार केॅ देलेॅ छेलै। तबेॅ बूढ़ी नें कहलकै-"हमरो एक समाचार लेलेॅ जा कि हमरोॅ हाथोॅ के बाला कैन्हें नी चमकै छै?"
वहाँ सें राजा आरो आगू बढ़लात। रास्ता में एक माड़वाड़ी भेटलै। मारवाड़ी नें भी राजा सें पूछलकै कि आपनें कहाँ जाय छी, तेॅ राजा नें भी ओकरा वहेॅ जवाब देलकै। तबेॅ मरवाड़ी नें भी आपनोॅ एक समाचार राजा केॅ बताय देलकै-"हमरोॅ कपड़ा कैन्हें नी बिकै छै?"
राजा चलतें-चलतें बहुत दूर चललोॅ गेलै। हुनका एक घनघोर जंगल में करम सें भेंट होलै। राजा नें करम सें पूछलकै कि तोहें हमरोॅ घरोॅ सें कैन्हें चललोॅ ऐलोॅ?
तबेॅ करम नें राजा केॅ बतैलकै कि तोर्होॅ पत्नी नें हमरा गरम माड़ सें जराय देलकौं, यहीं सें हम्में तोरोॅ घरोॅ सें चललोॅ ऐलियौं।
राजा नें करम केॅ भरोसा दिलैलकै कि आबेॅ तोरा पर कोय गरम मांड़ नै डालथौं, तोहें घर घुरी चलोॅ। बहुत खुशामद करला पर करमें कहलकै-"तों आगू बढ़ोॅ, हम्में पीछू सें आवै छियौं।" राजा नें करम सें दोसरोॅ राजा, घुड़सवार, बुढ़िया आरो मारवाड़ी के प्रश्न कहलकै। तबेॅ करम नें एक-एक करी केॅ सब सवाल के उत्तर देना शुरू करलकै-"राजा बारह बरसोॅ सें पोखर खनाय रहलोॅ छै, लेकिन पानी नै निकलै छै। हेकरोॅ कारण ई छेकै कि हुनकोॅ बारह बरसोॅ के लड़की कुमारी छै। जबतक हुनी लड़की के बीहा नै करतै, तब तक पानी नै निकलतै। घुड़सवार के घोड़ा नै हिनहिनावै छै, हेकरोॅ कारण ई छै कि वें कभियो दोसरा केॅ आपनोॅ घोड़ा पर नै चढ़ाय छै। बुढ़िया के कंगन नै चमकला के कारण ई छै कि ऊ केकरो आपनोॅ कंगन पिन्है लेॅ नै दै छै। मारवाड़ी दान नै दै छै, यही कारणें ओकरोॅ कपड़ा नै बिकै छै।"
सब बात सुनी केॅ राजा लौटलात। रास्ता में फेरू सब मिल्है। सब्भें नें आपनोॅ-आपनोॅ प्रश्न राजा सें पूछलकै, तबेॅ राजा नें सबकेॅ करमोॅ के कहलोॅ बात सुनाय देलकै। बात सुनला के बाद दोसरोॅ राजा नें आपनोॅ बेटी के बीहा राजा साथें करी देलकै। घुड़सवारें आपनोॅ घोड़ा राजा केॅ चढ़ै वास्तें दै देलकै। बुढ़िया नें आपनोॅ बाला राजा केॅ पिन्है लेॅ दै देलकै आरो मारवाड़ी दान दियेॅ लागलै।
राजा घोॅर ऐलात। करम फेरू सें हुनकोॅ घर लौटी ऐलै। राजा के सब राज-पाट लौटी ऐलै आरो ऊ सुख सें रहेॅ लागलै।
"बाबा, हम्में तोरोॅ बात समझी गेलियै। आदमिये के गलती सें ओकरोॅ भाग्य ओकरा सें दूर भागी जाय छै। समझदारी सें काम लै तेॅ जिनगी के सब सुख घेरे में छै। आबेॅ हम्में आपनोॅ सुक्खोॅ के राज समझी गेलोॅ छियै। सच्चे बाबा, जे आदमी आपनोॅ घोॅर-परिवार, गाँव-पड़ोस के कल्याण के बाद छोड़ी केॅ आपनोॅ कल्याण केॅ ढूँढलेॅ फिरै छै, ओकरोॅ कल्याण सपनाहौ में पूरा नै हुएॅ पारेॅ। बाबा हमरा आशीर्वाद देॅ कि हम्में आपनोॅ मकसद में सफल हुएॅ पारौं।" ई कही भदवा चन्दर नंे लाल बाबा के गोड़ोॅ पर झुकी गेलै। लाल बाबाहो चन्दर केॅ उठाय केॅ आपनोॅ गल्ला सें लगाय लेलकै।