भदवा चन्दर, खण्ड-9 / सुरेन्द्र प्रसाद यादव

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भदुआ चन्दर के संझा टीशन में उतरै के बात बिजली नाँखी सौंसे गाँव में फैली गेलै। धनुक लाल आरो ओकरोॅ जनानी के खुशी के तेॅ जेना कोय ठिकाने नै रही गेलोॅ छेलै। जेना दोनों के गोड़ोॅ में पंख लागी गेलोॅ रहेॅ। दौड़ी-दौड़ी केॅ जानै वाला सें संवाद लै रहलोॅ छेलै आरो दूसरा केॅ संवाद दै रहलोॅ छेलै।

रामखेलावन कापरी सें ई खबर पहिलें गाँव में ऐलै, स्वयं कापरी ने आवी केॅ धुनक लाल केॅ बतैनें छेलै। रामखेलावन कापरी मायने-गाँव के सरपंच। आबेॅ गाँव के सरपंरच स्वयं आवी केॅ बतैलकै तेॅ झूठ केना हुएॅ पारेॅ। सुनत्है धनुक लाल नंे सबसें पहिलें विरजू मड़र केॅ हँकारोॅ दै ऐलोॅ छेलै-कल नै, अइये हमरोॅ दुआरी पर कीर्त्तन होतै।

विरजू मड़र धनुक लाल कन कीर्त्तन करते, ई खबर साथें-साथ गाँव में फैली गेलोॅ छेलै। है कोय सामान्य बात नै छेलै कि विरजू मड़र भजन गैतै। सोलह बरस होय गेलोॅ छै-कीर्त्तन में भाग लेना छोड़ी देनें छै, आपनोॅ दुआरिये पर कुछ गैलकोॅ-भजलकोॅ, मतरकि आय एत्तेॅ सालोॅ के बाद भदवा चन्दर गाँव लौटी रहलोॅ छै। धनुक लाल केॅ ओकरोॅ हरैलोॅ सम्पत मिली रहलोॅ छै तेॅ भला विरजू मड़र ऊ खुशी में केना नै सम्मलित होतै।

गाँव भरी में दोहरा खुशी छै-भदवा चन्दर के घोॅर वापसी साथे, विरजू भजनिया के कीर्त्तन। खुद धनुक लाल जहाँ-जहाँ खबर दै लेॅ जाय छै, रास्ता भरी भजन ओकरोॅ ठोरे पर गूँजै छै,

जय जयति हर-हर करुणा सागर
चन्द्रधर, परमेश्वर
स्फटिक तन पेॅ भस्म पगधर
डमरू शूल धूल शीकर
पीत जट पेॅ गंग सुन्दर
हेम गत हीरक तर।
वासव निज कर करत चामर
छत्र पेॅ धर श्रीधर
रमत वृष पेॅ प्रेत सहचर
पूजत सुर नर खेचर।
अर्द्धनारीश्वर करी चर्माम्बर
त्रिनेत्र त्रिगुण गुणाकर
तारहू पामर भवप्रीता नर"
पतित पावन शंकर।

आरो भदवा के गाँव के सीमाना में गोड़ रखना छेलै कि जेना बिन्डोवोॅ उठै छै, होने खुशी के विन्डोवोॅ उठी गेलै। केकरोॅ मुँहोॅ पर भदवा आरो ओकरोॅ बड़भागी माय-बाप केे चर्चा नै उठलै। ऊ दिन पूरे गाँव चर्चा सें गनगन करतें रहतै। पुवारी टोलोॅ के तेॅ बाते कुछ आरो छेलै। धनुक लाल के ऐंगन सें हरमुनियम, ढोलक, झाल-झांझर के आवाज उठी रहलोॅ छेलै आरो वैं बीचोॅ में विरजू मड़र के होने ठनकोॅ आवाज,

सपना सगुन देखी,
हरषी उठली सखी,
दूती सें कहथी बतिया;
फरकी उठलोॅ बाम अँखिया,
आजु रे आवतो कालिया।
उरेखी बांधली जूरा,
लगावली पानक बीरा,
बिछावली झारी सेजिया;
जागि रहली धनी रतिया;
आजु रे आवतो कालिया।
श्याम शब्द सुनी,
चमकी उठली धनी,
मिलली आगू लागिया;
प्रेमें छल-छल चारी अँखिया;
आजु रे आवलोॅ कालिया।
अंग परश सुखें मुरछिता पति बुकें,
मुख सें नें फुटे बतिया;
भवप्रीता भावे वनमलिया;
आजु रे आवलोॅ कालिया॥

धनुक लाल नें सोचलेॅ छेलै-भदवा चन्दर केॅ विरजू मड़र के साथें लगाय दै केॅ। कंठ तेॅ भगवानें देलै छौ, विरजू जी के साथें रहतै तेॅ बहुत कुछ सीखी लेतै आरो जो भजन-कीर्त्तन सीखी लेतै तेॅ परिवार के सब दुख दलिद्दर पार होय जैतै।

पर होलै हेनोॅ नै। भदवा तेॅ दिन-रात खेतिहर मोॅर-मजूर के साथ बैठी केॅ ओकरोॅ सुख-दुख के बारे में जानै लेॅ चाहै छौ। एतन्है नै, गाँव के छोरी पर बनलोॅ शिवाला में वै रात के वक्ती मोॅर-मजूर केॅ बुलावै भी छै आरो वांही ऊ सब केॅ बहुत कुछ बतावै छै। आपनोॅ गाँव सें बाहर की होय रहलोॅ छै, बाहर में कत्तेॅ दुख छै, बाहर में कत्तेॅ सुख छै।

"धुर, भदवा की पढ़ैतेॅ होतै, खुद तेॅ मैट्रिक पास छै, आरो मैट्रिक वाला की पढ़ावेॅ सकै छै, हम्में नै जानै छियै।" हँसी उड़ैतेॅ बंटियां कहै छै।

"नै रे, हम्में सुनलेॅ छियै, बड़का-बड़का बात करै छै वै, हेनोॅ कि दिल्ली तांय पढ़लोॅ वाला नै करेॅ पारेॅ।" सुन्दरवा कहलकै।

"तेॅ ठीक छै, अइये ओकरोॅ सब बुद्धि के परीक्षा करी लेलोॅ जैतेॅ। तोहें आय ऊ रातकोॅ इस्कूल में रहियै। हम्मू पाँच-छोॅ पढ़लका के साथंे वहाँ तोरोॅ बाद पहुँचवोॅ। हमरोॅ पहुँचला के कुछ देर बारे पूछियैं कि मातृभाषा के प्रति महात्मा गाँधी के की विचार छै, फेनू देखवै कि ओकरोॅ ज्ञान कत्तेॅ दूर तांय जाय छै। अरे ऊ मैट्रिक पास होय केेॅ लोगोॅ केॅ धूर बनाय रहलोॅ छैतेॅ हम्में बीॉ एॉ पास होय केॅ चुप तेॅ नहिये नी बैठवै।" बंटिया कहलकै। आरो ठीक वहेॅ होलै।

जखनी साँझ केॅ शिवाला में रात्री पाठशाला चली रहलोॅ छेलै, सुन्दर साव पहिलौं एक दू दाफी ई इस्कूली में आवी चुकलोॅ छेलै, यै लेली नै भदवा चन्दर केॅ आचरज होलै नै आरो केकरो। मतरकि जब बंटिया केॅ आरो पाँच लोगोॅ के साथ वहाँ पहुँचतें देखलकै तेॅ सब के मनोॅ में कुछ-न-कुछ ज़रूरे उठलै। मतरकि चंदर बतैतें रहलै, देश दुनिया के बात। बंटिया के ऐला आरो बैठलोॅ के बाद सुन्दर साव बीचे में पूछी बैठलकै, "अच्छा भदवा, एक बात तेॅ बताव कि मातृभाषा के सम्बंध में गाँधी जी के की विचार छेलै?"

भदवा जबेॅ सुन्दर साव के मुँहोॅ सें ई प्रश्न सुनलकै तेॅ ओकरा सबकुछ समझै में कुछुवो देर नै लागलै, मतरकि जल्दिये सब भावोॅ केॅ सुनैतें हुएॅ ओकरोॅ प्रश्न के जवाब देतेॅ कहेॅ लागलै, " देखोॅ-गाँधीजी के ई साफ-साफ मान्यता रहै कि अंग्रेज़ी शिक्षा सें राष्ट्र के उन्नति केन्हौ केॅ नै हुवेॅ सकै छेॅ। हुनी बस यहेॅ कहै कि अंग्रेज़ी शिक्षा नें आयकोॅ शिक्षित भारतीय केॅ निर्बल आरो नपुसंक बनाय देलेॅ छै। गाँधीजी अंग्रेज़ी शिक्ष्हे के विरोधी नै छेलात, मतरकि हुनी यही कहै छेलात कि मातृभाषा के जग्घा पर अंग्रेज़ी शिक्षा केॅ लागू करवोॅ, अंग्रेजसिनी के भयंकर षड़यंत्र आरो भूल छेकै। गाँधीजी देशीभाषा के घोर समर्थक छेलात आरो हुनी यहेॅ चाहै छेलात कि देशीभाषा केॅ हटाय केॅ वहाँ अंग्रेज़ी लागू करवौ एकदम अनैतिक आरो असहनीय छै।

आपनोॅ एक लेख में गाँधीजी नें लिखनें छोॅत कि राजा राम मोहन राय आरो लोकमान्य तिलक आरो महान जननेता बनेॅ सकेॅ छेलात जों हुनकासिनी अंग्रेज़ी रास्ता नै पकड़ी केॅ देशीभाषा के माध्यम सें जनता के बीच ऐतियात। हुनकासिनी आरो भी विद्वान सिद्ध होतियात जों अंग्रेज़ी हेनोॅ टेढ़ोॅ रास्ता सें घुमी केॅ नै ऐतियात। गाँधीजी यहेॅ सबकेॅ बोलतेॅ रहलात कि-अंग्रेजी सीखै में जत्तेॅ माथोॅ भारतीय लगावै छै, ओकरा सें कहीं अच्छा छै कि ओकरोॅ जग्घा पर कोय भारतीय भाषा के ज्ञान पावी लै, कैन्हेंकि अंग्रेज़ी सिखला सें कोय महान नै बनेॅ पारेॅ आरो नै ओकरा में महानता के कोय गुण आवी जाय छै।

राजा राम मोहन राय आरो तिलक के अंग्रेजी-ज्ञान के उल्लेख करै वक्ती गाँधीजी कहने छोॅत कि यैमें कोय शक नै कि दोनों विद्वानोॅ केॅ अंग्रेज़ी साहित्य के समृद्ध भंडार के ज्ञान अर्जित करला सें हिनका दोनों केॅ लाभ होलै, मतरकि ई भण्डार तांय हिनका दोनों के पहुँच मातृभाषा के माध्यम सें होना चाहतियौं।

गाँधीजी के यहेॅ विचार रहै कि कोय्यो देश नकलची के जात पैदा करी केॅ ऊ राष्ट्र नै बनलोॅ रहेॅ पारै छेॅ। हुनके कथनानुसार जों अंग्रेजीसिनी के पास बाइबिल के अधिकृत संस्करण नै होतियै, तेॅ हुनकासिनी के की होलोॅ होतियै? गाँधीजी के विचारोॅ में चैतन्य, कबीर, नानक, गुरु गोविन्द सिंह, शिवाजी, प्रताप-ई सब राजा राम मोहन राय आरो तिलक सें बड़ोॅ आदमी छेलात, कैन्हें कि कबीर आरनी के जे प्रभाव जनमानस पर छै, होनोॅ ई दोनों महान मनुष्य के नै। राष्ट्रपिता गाँधीजी ई मानै लेॅ कभियो तैयार नै छेलात कि जे विचार राय आरो तिलक जी नें अंग्रेज़ी भाषा के माध्यम सें रखनें छेलात, ऊ विचार मातृभाषा केरोॅ माध्यम सें संभव नै छेलै।

मातृभाषा के कट्टर समर्थक गाँधीजी के स्पष्ट मान्यता रहै कि भारत में जत्तेॅ भी गड़बड़ विचार फैली रहलोॅ छै, ओकरा में एक यहू विचार छेकै कि अंग्रेज़ी भाषा के ज्ञान बिना नै तेॅ स्वतंत्रता के ज्ञान हुवेॅ सकै छै आरो नै स्वतंत्र विचारोॅ के जनम हुवेॅ पारेॅ। गाँधीजी लिखतैं रहलात कि हमरोॅ जे समृद्ध शिक्षा पद्धति छेलै, ओकरा हमरासिनी नै जोगेॅ पारलियै। हमरासिनी में आपनोॅ स्वतंत्रता, संस्कृति केॅ बचाय के ताकते नै रही गेलोॅ छै। एकरोॅ कारण अंग्रेज़ी शासन-पद्धति आरो ओकर्हौ में दूषित अंग्रेज़ी शिक्षा-प्रणाली छेकै। कैन्हें कि अंग्रेज़ी शिक्षा नें देशी संस्कृति केॅ हटाय केॅ भारतीय के मानसिक स्थिति आरो आत्मा केॅ पंगु बनाय केॅ राखी देलोॅ गेलोॅ छै। आय ई स्थिति तेॅ एकदम सच बनी केॅ भारत केॅ पददलित करी रहलोॅ छै। "

भदवा चन्दर जखनी ई सब बोली रहलोॅ छेलै, तखनी ओकरोॅ चेहरा पर एक अजीब तरह के गंभीरता आवी गेलोॅ छेले। वहाँ पर पहिलें सें उपस्थित आरो-आरो ग्रामीण ही नै, बंटिया आरो सुन्दरवो हैरान छेलै। एकदम सें विमुग्ध होलोॅ चललोॅ गेलै दोनों। ई हद तांय कि दोनों भदवा चन्दर के पकिया दोस्त बनी गेलै।