भरतू का बक्सा / अशोक कुमार शुक्ला
सैलानियों के लिये खूबसूरत प्राकृतिक दृष्यों केा अपने ऑचल में समेटे पहाड के सुदूरवर्ती क्षेत्रों मे कितनी विपन्नता है इसका अंदाजा कुछ दिनों के लिये पहाड घूमने आये सैलानियों के लिये लगाना सचमुच नामुमकिन है । पहाड का यह दर्द उन बिरले लोगों को ही देखने को मिल सकता है जो पहाड के बहु प्रचारित नगरों अैार कस्बों से दूर जाकर इसे देखने की लालसा रखते हैं।
इसे सौभाग्य कहा जा सकता है कि पिता के राजकीय सेवा में होने के कारण मेरा जन्म एक पहाडी जनपद में हुआ और शिक्षा दीक्षा भी गढवाल और कुमाऊं के चुनिंदा शहरों में। बचपन में पौडी में रहकर नगर क्षेत्रों का पहाडी जीवन देखने का अवसर मिला जिसे मन मष्तिष्क में यह धारणा प्रबल होती चली गयी कि पहाड से पलायन का प्रमुख कारण यहॉ रोजगार के अवसरों की शून्य उपलब्धता है । कदाचित पूर्व से विद्यमान यह धारणा समय के साथ तब और बलवती हो गयी जब पढ लिखकर इसी उत्तराखंड में ही अधीनस्थ प्रशासनिक अधिकारी के रूप में मेरी तैनाती हुयी । जनसाधारण में व्याप्त सरकारी अफसरों के सुरूचिपूर्ण एवं आराम तलब जीवन की धारणाओं के विपरीत इन पदों पर कार्यरत व्यक्तियों को कितना अमानवीय बनकर अपने राजकीय दायित्वों का निर्वहन करना होता है इसका पहला सबक मुझे अपनी पहली तैनाती में ही तब देखने को मिला जब सरकारी धनराशियों की वसूली में अव्वल आने के लिये मैने स्वयं गॉव में जाकर वसूली करने की योजना बनायी।
असल में सामाजिक उत्थान के लिये दिये जाने वाले बैक ऋणों की अदायगी जब बैक कर्मियों के प्रयास से नहीं हो पाती तो उसकी बसूली हेतु सरकारी मशीनरी का उपयोग किया जाता है। सरकारी कारिंदे ऐसी ऋण राशि को बाकीदार की गिरिफतारी ,उसकी चल अथवा अचल संपत्ति की नीलामी करते हुये वसूल करते हैं।
बदले हुये परिवेश में बैंकों पर इस बात का दबाव होता है कि सामाजिक उत्थान के लिये अधिकाधिक बैक ऋणों को बांटा जाय। इस दबाव की आड में बैंकों से ऋण दिलाने के लिये बिचौलियों की बाकायदा एक फौज पैदा हो गयी है जो निरीह ग्राम वासियों को पात्र अथवा अपात्र सभी प्रकार की अवस्थाओं में बैंकों से ऋण दिलाने का कार्य करते हैं । प्रशासनिक अधिकारियों पर इस प्रकार की ऋण राशियों को वसूल करने का बडा दबाव होता है और स्वाभाविक रूप से इन धनराशियों की वसूली उत्पीडक कार्यवाहियों के द्वारा ही की जाती है। ऐसे ही सरकारी बकाया की वसूली की समीक्षा करने पर मैने पाया कि वसूली करने वाले सरकारी कारिंदे जिन्हें अमीन कहा जाता है कोई न कोई बहाना बनाकर वसूली टाल देते हैं जिससे जिले में हमारी तहसील की स्थिति तीसरे या चौथे नंबर पर थी। इसलिये मैने खुद चलकर गांव मे जाकर वसूली की कार्यवाही संपादित करने का निश्चय किया।
अगले दिन प्रातः काल की बेला में अपने लाव लश्कर के साथ मैने वसूली पर चलने का निर्णय तो ले लिया परन्तु यह तय करना आवश्यक था कि कैान से ग्राम में जाकर बकाया वसूली की कार्यवाही की जाय । मैने बाकीदारों की सूची देखी तो भरतू नाम का एक बाकीदार काफी लंबे समय का डिफाल्टर मालूम दिया । जब उसके संबंध में सहयोगियों से जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि यह व्यक्ति गॉव से भाग कर कहीं चला गया है इसके घर पर कुर्की निलामी करते हुये वसूल किये जाने योग्य कोई सामान नहीं है और फिर इसका गॉव भी बहुत दूर है अतः किसी अन्य ग्राम का चयन किया जाय। मुझे उनकी बात गॉव के दूर होने के कारण बहाना जैसी जान पडी सो मैने भी जिद करके उसी गॅाव में चलने का निश्चय किया।
लगभग सूर्योदय के साथ जारी हुआ हमारा सफर सूरज के चढने के साथ जारी रहा। रास्ते में मुझे इस बात का अन्दाजा हुआ कि गॉव सचमुच दूर था और जिस एकमात्र उद्देश्य के लिये वहॉ जाया जा रहा था उसकी पूर्ति न होने की दशा में यह यात्रा कितनी तकलीफदेय साबित हो सकती थी। दोपहर होते होते हम संबंधित गॉव में पहुॅच चुके थे। अब बारी थी बाकीदार का घर ढूंढने की, जिसके लिये हमारे साथ आये कारिंदे गॉव में आवश्यक पूछताछ करने लगे और मैं गॉव के एक छोर पर स्थित एक घर के बाहर रूक गया । थोडी देर बाद सहयोगियों ने आकर बताया कि बाकीदार का घर मिल गया है जहॉ उसके बच्चे हैं लेकिन बाकीदार भरतू कहीं भाग गया है। मैं जोश से भर उठा और उठकर भरतू के घर की ओर चल पडा वहॉ पहुॅच कर मैने देखा कि लगभग फटे कपडों मे एक महिला और उसके पास ही तीन बच्चे जिनमें बडी लडकी की उम्र लगभग पन्द्रह या सत्रह वर्ष की और छोटे बच्चो की लगभग दस या बारह वर्ष की थी घर के बाहर बैठी थी। मैने पहुॅचते ही कडक आवाज में उनसे भरतू के बारे मे पूछा तो उन्होंने अपनी असमर्थता बताते हुये भरतू के बारे में कुछ भी नहीं बताया अब मुझे यह समझ मे आ रहा था कि भरतू जानबूझकर गायब हो गया है सो मैने दबाव बनाने के उद्देश्य से यह ऐलान करा दिया कि यदि भरतू केा उपस्थित नहीं किया जाता तो उससे घर में स्थित सामान को कुर्क कर सरकार की ओर से नीलाम कर दिया जायेगा।
मेरे इस ऐलान का असर भरतू के पारिवारिक सदस्यों के चेहरे पर भय बनकर दिखलायी देने लगा था। मेरा उद्देश्य भी यही था ताकि गॉव मे छिपा भरतू निकल कर सामने आये और सरकारी धन की वसूली की जा सके, और आइन्दा के लिये शेष बाकीदारों को एक संदेश दिया जा सके कि सरकारी धन की अदायगी समय से हो सके। इस बीच भरतू के पारिवारिक लोगों से यह बात पता चली कि भरतू ने सरकारी कर्जा लेकर भैसों का दूध बेचने का कारोबार करना चाहा था परन्तु पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण न तो भैस ले सका और न ही दूध का कारोबार किया गया, अलबत्ता पिछले दिनों बैंक के कुछ लोग आकर इस अनियमितता को छिपाकर रखने की एवज में कर्जे का एक बडा हिस्सा भरतू से ऐंठ कर ले गये । तब से भरतू ने यह रवैया अपना लिया था कि जैसे ही कोई बैंक कर्मी या सरकारी आदमी गॉव में आता तो भरतू घर से गायब हो जाता था। मैने गॉव वालों केा समझाने की कोशिश की कि यदि भरतू सामने आकर बैंक द्वारा किये गये इस अनियमित बर्ताव के संबंध मे अपनी आपत्ति अंकित करायेगा तो मैं इसका संज्ञान लूंगा।
मेरे समझाने का कोई असर न होते देख मैने अपने साथ आये सहयोगियों को हिदायत दी कि भरतू के घर मे रखे चल संपत्तियों की सूची बनानी प्रारंभ कर दें, मेरा विचार था कि इस प्रकार भरतू पर मनेावैज्ञानिक दबाव बनेगा और वह निकल कर बाहर आ जायेगा। कुछ देर घर में रखे सामान की सूची बनायी जाती रही। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान उसकी पत्नी और बच्चे कातर द्वष्ठि से सारी प्रक्रिया को देखते रहे। मैं भी आशा भरी निगाहों से भरतू की उपस्थिति की राह देखता रहा। अंत में मेरा विश्वास खोखला साबित हुआ और भरतू हाजिर नहीं हुआ। यह मेरे लिये आश्चर्यजनक था साथ ही शासकीय सत्ता को चुनौती देने जैसा प्रतीत हो रहा था। जैसे जैसे समय व्यतीत हो रहा था मुझे अपना बनाये हुये दबाव का असर प्रतिफलित न होते देख खीज उत्पन्न हो रही थी। आखिर में हारकर मैने अपने साथ आये सहयोगियों को आखिरी दबाव बनाने के लिये भरतू के घर के सारे सूचीबद्ध सामान को बाहर निकालने का आदेश दिया। मुझे लगता था कि इस प्रकार अपने घर का सारा सामान नीलाम होने की सूचना पाकर भरतू जरूर निकलकर सामने आ जायेगा।
मेरा इशारा पाकर सहयोगी घर का सामान निकाल कर बाहर ढेर करने लगे। इस दौरान भरतू के बच्चे रोते सिसकते रहे। मैने भी जैसे आज न पिघलने का व्रत ले रखा था सो सामान की कुर्की करते रहने का उपक्रम जारी रखा। जब सारा सामान निकाल लिया गया और फिर भी भरतू हाजिर नहीं हुआ तो भी मैं मनेावैज्ञानिक दबाव बनाये रखने के उद्देश्य से एक खलनायक की तरह अपनी कुर्सी से उठा और बोलाः-
‘‘ जरा अंदर जाकर देखो ,कमरे में कुछ और सामान तो नहीं है ? खाने के बर्तनों और सारा सामान बाहर निकाल लो ? ’’
मेरे यह कहने की देर थी और साथी कांिरदे घर के अंदर जाकर एक एक सामान बाहर निकालने लगे । जब सारा सामान बाहर निकाल लिया गया तो मैं उठकर भरतू की झोपडी में गया , देखा लोहे का एक टूटा हुआ बक्सा कोने में पडा था जिसे किसी ने नहीं छुआ था। मैने आगे बढकर कहा:-
‘‘ देखो कोने में एक बक्सा अभी भी रखा हुआ है, उसे भी उठाकर ले आओ।’’
मेरे यह कहने पर वहां उपस्थित भरतू की पत्नी और उसके बच्चे रोने लगे। उसकी पत्नी के रोने की परवाह न करते हुये मेरे साथ आये कारिंदों ने बक्से को अब तक बाहर निकाल लिया था। इसके बाद तो जैसे भरतू की पत्नी अपना आपा खो बैठी और उसने लपककर उस बक्से को छीन लिया । अब वह पागलों की तरह बक्से को खोलकर उसमें से एक एक कपडा निकालकर बाहर डालने लगी और साथ ही चिल्लाने लगीः-
‘‘लो ले जाओ सब कुछ नीलाम कर दो, मैं भी इस नीलामी के साथ अपने आप को जलाकर मार डालूंगी।’’
मैने देखा ,उस बक्से से कुछ नये कपडे निकल रहे थे, पूछने पर मालूम हुआ कि अपनी किशोरवय लडकी के विवाह हेतु यह सारे कपडे और अन्य सामान भरतू और उसकी पत्नी द्वारा एकत्र किया जा रहा था। शीघ्र ही उसकी बेटी का विवाह किया जाना था, अब मेरी समझ में आया कि भरतू ने सरकारी कर्जा क्यों लिया था और उस कर्जे से व्यवसाय क्यों नहीं किया था ? मेरी समझ मे नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाय । मेरे सामने भरतू का बक्सा बिखरा पडा था और उस पास लगभग विक्षिप्त सी उसकी पत्नी रो रही थी , पास ही उसके बच्चे खडे थे जिनमें शायद वह बच्ची भी थी जिसके विवाह के सपनेा ने भरतू और उसकी पत्नी केा आज कैसी विषम स्थिति में लाकर खडा कर दिया था। मैं मन में उस क्षण को कोस रहा था जिस पल मैने स्वयं चलकर वसूली करने का निर्णय लिया था। मुझसे यह द्वष्य देखा नहीं जा रहा था । मैने उन बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा:-
‘‘तुम लोग अपनी मां को चुप कराओ । हम लोग यहॉ अत्याचार करने नहीं आये हैं भरतू के आने पर ही आगे की कार्यवाही की जायेगी।’’
मैने चुपचाप अपने कारिंदों को बुलाया और कहा कि कुर्की के कागजातों में इस आशय का उल्लेख कर दिया जाय कि भरतू के घर पर उसके द्वारा अर्जित कोई सामान नही पाया गया, उसकी पत्नी द्वारा अपनी पुत्री के विवाह हेतु जरूरी सामान का प्रबंध किया गया है जो बकाये दार का नहीं होने के कारण कुर्क और निलाम नहीं किया जा सकता। थोडी देर बाद सरकरी कर्ज की असलियत से रूबरू होकर मैं अपने काफिले के साथ भरतू के गांव से वापिस लौट रहा था।