भरोसा / गोवर्धन यादव
एक दिन मुझे आवश्यक काम से बाहर जाना था, बिना पेट्रोल चेक किए मैंने अपनी मोटरसाइकल उठाया और चल दिया, लौटते समय तक सांझ घिर आयी थी और मुसलाधार बारिश भी होने लगी थी, घर से जब चला था, तब आकाश एकदम साफ़ था, पानी में भींगते हुए भी मैं गाडी बमुश्किल चला पा रहा था, थोडी दूर ही जा पाया था कि मोटरसाइकिल बंद पड गयी, पेट्रोल टंकी खोलकर देखा, खाली पडी थी, अब सिवाय उसे घसीटने के कोई विकल्प नहीं था, चलती गाडी में हवा से बात करना कितना आसान होता है, लेकिन बंद गाडी कॊ घसीटना सबसे मुश्किल काम होता है, सांस फ़ूलने लगी थी, थोडी देर रुका रहता, फ़िर चल पडता, किसी तरह गाडी घसीटता रहा, मैं जानता था कि कुछ दूरी पर पेट्रोल-पंप है, बस, उस तक पहुँचने भर की देरी थी, सामने पेट्रॊलपंप देखकर राहत महसूस हुई,
वहाँ पहुँचकर मैंने अटैण्डेन्ट से दो सौ रुपये का पेट्रोल डालने को कहा और जेब से पर्स निकालने के लिए जैसे ही जेब में हाथ डाला, वह नदारत था, अब क्या किया जाए, यह मैं सोच ही रहा था, शायद उसने मेरी मनोदशा पढ ली थी, मैं कुछ बोल पाऊँ, उस लडके ने पहल करते हुए मुझसे कहा:-दादा, ऐसा लगता है कि आप पर्स जेब में डालना भूल गए, ऐसा कई बार हो जाता है, आप बिलकुल भी परेशान मत होइये, आराम से घर जाइये और कल सुबह मुझे रक़म लाकर दे दें, या किसी से भिजवा दें, हिसाब-किताब मुझे सुबह देना होता है, मुझे आश्चर्य इस बात पर हो रहा था कि उस लडके से मेरा कभी वास्ता नहीं पडा और न ही कभी उससे मुलाकात ही हुई थी, मुझ अनजान पर वह इतना भरोसा कर रहा है,
मैंने अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट की, एक किलोमीटर आगे मेरी जान पहचान वाले एक व्यक्ति की किराना दूकान थी, वहाँ से दो सौ रुपये लिए और उस पेट्रोल पंप पर पहुँचकर उसे रक़म लौटाते हुए उसे धन्यवाद देना चाहा तो उस लडके ने कहा"-दादाजी, अब तक मैंने जिस पर भी भरोसा किया, उनसे मैंने कभी धोका नहीं खाया है, रक़म तो कल भी आ सकती थी, आप तुरन्त ही लौट आए, जब भी मैं उस रास्ते से गुजरता हूँ, तो मुझे उस लडके की बराबर याद आ जाती है, हालांकि उसने बाद में वहाँ से नौकरी छोड दी थी , भले ही वह वहाँ नहीं है, लेकिन उसकी स्मृति जेहन में उतर ही जाती है।