भव्यता की अघोषित प्रतिस्पर्धा के साइड इफेक्ट / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 14 अगस्त 2014
आजादी के बाद के वर्षों में फिल्म का औसत बजट लगभग तीन या चार लाख रुपए होता था। उस दौर में दक्षिण भारत में बनी "चंद्रलेखा' का बजट तीस लाख था और उस पर लगी लागत ही उसका सबसे बड़ा प्रचार था। तमिल, तेलुगु और हिन्दी में बनी इस फिल्म ने इतनी बड़ी लागत पर भी मुनाफा कमाया। वर्ष दर वर्ष बजट बढ़ते गए और रंग आने के बाद लागत और अधिक बढ़ गई। यह सिलसिला ऐसे ही जारी है, परंतु यह भी सच है कि निरंतर बढ़ते हुए बजट के साथ कम बजट में सार्थक फिल्में भी बनती रहीं। गर्म हवा, अर्थ, सारांश और श्याम बेनेगल की तमाम फिल्में इस तरह बनीं और अपनी लागत वापस लाती रहीं। शाहरुख खान ने अपनी "रा. वन' पर सौ करोड़ लगाए, जिसमें उनका मेहनताना शामिल नहीं था और प्रमोशन पर तीस करोड़ का खर्च हुआ था, परंतु नतीजा अच्छा नहीं रहा। शाहरुख ने "चेन्नई एक्सप्रेस' पर भी खूब धन लगाया और मुनाफा भी कमाया।
अब बताया जा रहा है कि उनकी "हैप्पी न्यू ईयर' जो दीपावली पर प्रदर्शित होगी पर 125 करोड़ की लागत आई है और उसमें उनका मेहनताना शामिल नहीं है। अभी प्रमोशन पर क्या खर्च होगा, यह बताना कठिन है। बाजार में इतनी लागत वाली फिल्म खरीदने को कोई तैयार नहीं था और शाहरुख खान ने अपने मित्र आदित्य चोपड़ा को पूरे विश्व में प्रदर्शन के अधिकार कमीशन पर दिए हैं अर्थात् आदित्य चोपड़ा द्वारा उन्हें दी गई रकम का पूरा जोखिम शाहरुख खान का है क्योंकि यह अग्रिम राशि है। आदित्य चोपड़ा ने आमिर खान को भी "धूम-3' में अभिनय के एवज में मुनाफे का 25 प्रतिशत दिया था और इस तरह के सौदे में आमिर खान अपने औसत मेहनताने से अधिक पैसा पा चुके हैं। हाल ही में चीन में फिल्म सफलता से दिखाई गई थी और आमिर खान को उसका शेयर मिला है। आदित्य चोपड़ा की पारदर्शिता के कारण ही शाहरुख खान ने अपनी फिल्म उन्हें दी है। हाल में कुछ लोगों को "हैप्पी न्यू ईयर' के तीन गाने दिखाए गए और उनका कहना है कि भव्यता की कल्पना भी बिना देखे नहीं की जा सकती। दीपिका पादुकोण पर फिल्माए एक गीत में उतना ही धन लगा है जितने में अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म पूरी बन जाती है। कोई आश्चर्य नहीं है कि इस फिल्म के बाद दीपिका पादुकोण नायक के बराबर मेहनताने का दावा करे।
यह भी सुना है कि स्वयं शाहरुख खान अब भव्यता की प्रतियोगिता से स्वयं को हटा रहे हैं और भविष्य में वे मध्यम बजट की फिल्में नए कलाकारों के साथ बनाएंगे। सफल सितारों की आपसी प्रतियोगिता का एक दूसरा पहलू काफी चौंकाने वाला है। इन सितारों के मेकअप मैन, स्पॉट बॉय, ड्राइवर, ट्रेनर और हेयर स्टाइलिस्ट भी इस प्रतियोगिता का लाभ उठाते हैं और आज एक सितारे के व्यक्तिगत स्टाफ पर निर्माता लगभग दो लाख रुपए रोज खर्च करता है। मेकअप मैन विज्ञापन फिल्म बनाने वालों से चालीस हजार प्रतिदिन लेते हैं। फिल्म उद्योग का यह विभाग खूब धन प्रतिदिन कमाता है। यह तौर-तरीका आज का नहीं है। छठे दशक में शम्मी कपूर के मित्र निर्माता ने उनके ड्राइवर को सौ रुपए नहीं दिए तो दूसरे दिन ड्राइवर घर देर से आया। जब भी निर्माता फोन करता, शम्मी कपूर कहते कि वे तैयार हैं परन्तु ड्राइवर नहीं आता। शम्मी कपूर के निकटतम मित्र निर्माता ने भी दूसरे दिन से ड्राइवर को सौ रुपए प्रतिदिन देना आरंभ किया। इस प्रकरण में यह तथ्य भी सामने आया है कि ऋषि कपूर के मेकअप मैन जो राज कपूर के मेकअप मैन के सुपुत्र हैं, का पुत्र स्विट्जरलैंड में पढ़ रहा है।
सितारों के व्यक्तिगत स्टाफ के सदस्य कितने अमीर हो जाते हैं कि हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। जिस देश के ग्रामीण अंचल में मेहनतकश व्यक्ति की वार्षिक औसत आय बमुश्किल पचास हजार होती है, उसी देश में सितारों की छाया में कुछ लोग पचास लाख रुपए प्रति वर्ष कमाते हैं। अजब-गजब भारत में आर्थिक खाई में समाई मानवता की सिसकियां भी बाहर सुनाई नहीं देतीं। क्या सभी लोगों को समान स्वतंत्रता प्राप्त है? सन 1947 में मिली आजादी का पुन: आकलन किया जाना चाहिए।