भाँगटोॅ निस्तार / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
बलराम कापरी घरोॅ के कोना-कोना केॅ देखलकै, केन्होॅ ढनमनाय गेलोॅ छै, ई दस सालोॅ के बीच जेना कोय देखवैये नै रहे एकरोॅ। हुनी मने मन सोचलकै, "वही कहाँ देखेॅ पारलकै, अपनोॅ घरोॅ के. घोॅर तेॅ घोॅर, ओकरा नै अपनी पत्नी दीपा के ख्याल ऐलै, नै अपनोॅ एक्को बुतरु के. यहू नै सोचलकै कि दस साल के बाद ओकरोॅ दोनों बेटी बीहा लायक होय जैती, आरो दू बेटी पर दोनो छोटो बेटा हरिकुसुम तेॅ खैर छोटोॅ छै, मतरकि प्रेमकसुन ऊ तेॅ छवारिक हेनोॅ लागेॅ लागलोॅ छै। ओकरा तेॅ अब तांय कॉलेज के लड़का होना चाही, मतरकि मैट्रिको नै पास करलेॅ छै। दीपा दुख केॅ छिपैतेॅ कहले छेलै, हेडमास्टर बतैलकै कि परीक्षा वास्ते कुछ मिलाय के पाँच सौ टाका लागतै। भला दीपा एत्तेॅ पैसा कहाँ सेॅ आनतियै।"
बलराम केॅ हठाते अपना आप पर गुस्सा आवी गेलै, आरो बायां तरत्थी पर दायां मुट्ठी पटकतेॅ हुएॅ कहलकै, "यै में दीपा आकि प्रेमकिसुन के की दोष। केकरो दोष नै छै, नै बेटा के, नै बेटी के, सब कुफल वास्ते कोय्यो दोषी छै, तेॅ हम्मेॅ। नै हम्में रामखेलावन के फेरोॅ मेॅ पड़तियौं, नै ई दुर्दशा होतियोॅ। हौं-हौं, सब दोष ओकरे छेकै। की रं फुसलाय बहकाय के हमरा आपनोॅ पार्टी में शामिल करी देलकै, पहिलें नारा दिलवैतेॅ रहलै आरो जबेॅ देखलकै कि हम्मू भीड़ोॅ मेॅ अच्छा बोलेॅ पारै छी, तेॅ पार्टी के स्थानीय संयोजक बनाय देलकै। हम्मेॅ ओकरोॅ पार्टी के खमभा खूटी गड़वैतेॅ रहलियै, आरो ऊ देखथैं-देखथैं बड़का नेता बनी गेलै। रामखेलावन सेॅ रामखेलावन बाबू तक। बाहरे-बाहर घूमतेॅ रहै बड़का-बड़का नेता सिनी के साथेॅ, आरो लौटै तेॅ हमरा यही कहै," बलराम, तोरोॅ ईमानदारी आरो निष्ठा के बारे में हम्में पार्टी के आलाकमान केॅ बतैलेॅ छियै, हुनी बहुत खुश छै। तोरा कभियो हुनी बुलावेॅ पारेॅ। तोरोॅ कभियो प्रमोशन हुएॅ पारेॅ। "मतरकि नै कभियो हमरोॅ बुलाहट होलै, आरो नै कोय बड़का प्रमोशन। पता नै हमरोॅ मगज पर रामखेलावन के केन्होॅ जादू समैलोॅ छेलै कि ओकरोॅ हरेक बात हमरा सच्चे लागै। आखिर ओकरा पर अविश्वासो केना करतियै। ऊ जबेॅ भी गाँव आवै, तेॅ हमरा हमेशे साथे राखे। चाहे विडियो एस. डी. ओ कन जाय कि गाँव के थाना-फाड़ी। थाना-फाड़ी मेॅ तेॅ खास करी केॅ हमरोॅ परिचय दरोगा-सिपाही सेॅ करावै; बी. डी. ओ सेॅ मिलै तेॅ हमरोॅ परिचय कुछ बढ़ैये चढ़ैये के दै। ई सब बातोॅ के प्रभाव हमरोॅ मगज पर हेनोॅ होलै कि हम्मेॅ भूलिये गेलियै कि हमरा परिवारो छै। परिवार में हेनोॅ बच्चा-बुतरू जेकरोॅ पढ़ाय-लिखाय के भार हमरे ऊपर छै। रामखेलावन नेॅ तेॅ हमरे बुद्धिये मारी देलेॅ छेलै।"
बलराम के मोॅन लागलै जेना ऊ उठतै आरो सीधे रामखेलावन के पास जाय पहुँचेॅ। ओकरा सेॅ पूछतै, "तोहें तेॅ विधायक बनी गेलौ वहू मेॅ परिवहन मंत्राी मतरकि हम्मेॅ। हम्मेॅ तेॅ वहा सड़क आरो पगडण्डी के आदमी, धूल उड़ावै वाला आदमी। बोलै तेॅ यहा छेलै कि हम्मेॅ एक न एक दिन गॉमोॅ के भाग्य विधाता बनवै, यहाँ तेॅ अपनोॅ भाग्य विधाता नै बनेॅ पारलौं। जानै छौंµतोरोॅ फेरोॅ मेॅ हमरोॅ परिवार केन्होॅ बिखरी-बिखरी गेलोॅ छै, जेकरा हम्मेॅ चाही के भी नै संभरेॅ पारौं।"
आरो ऊ समय बलराम कापरी केॅ यहा लागलै कि सचमुचे मेॅ रामखेलावन के सामनोॅ मेॅ खड़ा छै। रामखेलावन के देखथैं ऊ चीखी उठलै, "रामखेलावन तोहें आरो वास्तेॅ रामखेलावन बाबू आरो मिनिस्टिर विधायक होवे, हमरो वास्ते तोहे वहा रामखेलावन छेकै, दू-दू दिन तक मुट्ठी भर जण्डा के भुज्जा फाँकी केॅ रही जाय वाला। आय तोहें हॉटल छोड़ी केॅ केकरो घरोॅ में खाना नै खाय छै। तोरा मालूमो छै कि तोहें हमरोॅ मगज मारी केॅ हमरोॅ घोॅर परिवार केॅ कहाँ पहुँचाय देलेॅ छै।"
बलराम केॅ लागलै कि ओकरोॅ ई सब बात सुनथै रामखेलावन के सिपाही ओकरो दिस बढ़ेॅ लागलोॅ छै, मतरकि रामखेलावनें हाँसी के ऊ दोनों सिपाही केॅ रोकी देलेॅ छै, फेनू ओकरोॅ दिश बढ़ी केॅ कहलेॅ छै, "बलराम राजनीति मेॅ मुकाम पावै लेली घोॅर दुआर नै देखलोॅ जाय छै। नै अपनोॅ घोॅर नै दूसरा के. ई तेॅ कुरुक्षेत्रा छेकै यहाँ अपनोॅ-पराया, कुछ नै, बस राजगद्दी। राजगद्दी लेॅ भाय-भाय के काटलेॅ छेलै। की यहू तोरा बताय लेॅ लागतौ। तोहें तेॅ हमरोॅ लंगोटिया छेकै आरो हमरा सेॅ ज़्यादा पड़लोॅ लिखलोॅ। घरोॅ के चिन्ता छौ, तेॅ घोॅर लौटी जो, आगे हजार दू हजार के ज़रूरत हुऔ तेॅ शर्मेय्ये नै।"
बलराम कापरी केॅ लागलै, जेना ओकरोॅ गालोॅ पर कोय चमेटा मारी देलेॅ रहेॅ। ओकरोॅ कनपट्टी गरम होय उठलै। सावधान होलै तेॅ बलराम के मुँहोॅ सेॅ निकललै "हमरा कुरुक्षेत्रा के बारे में सब मालूम छै, रामखेलावन यहू मालूम छै, राजपाट के मालिक होथौ दुर्योधन निहत्था पाण्डव के सामना हारी गेलोॅ छेलै। तोरोॅ पास धोॅन-सिंहासन छौ तेॅ की, हमरोॅ पास हमरोॅ विवेक बुद्धि के कृष्ण साथेॅ छै। हम्मेॅ हारियो केॅ नैहारवौ, रामखेलावन।" अभी ऊ आरो की-की सोचतियै कि तखनियै दरवाजा सेॅ आवाज ऐलै, "बलराम बाबू छोॅ, हम्में सुमित सिंह।"
"अरे सुमित सिंह आवोॅ आवोॅ। यहाँ बैठोॅ।" बलराम ने अपनोॅ पिण्डा पर बैठतेॅ हुएॅ सुमित सिंह केॅ बैठे के ईशारा करलकै, "हौं, आबेॅ बोलोॅ, की बात छै?"
"बात लखना के छेकै, जानवे करै छोॅ हमरा एक्के सन्तान, यहे लखना। जों नै पढ़तै-लिखतै, तेॅ अपनोॅ जिनगी केना काटतै। सोचै छियै, इंगलिसे इस्कूलोॅ में नाम लिखाय देलियै। ई सरकारी मेॅ जानवे करै छौ, की पढ़ाय-लिखाय होय छै। दिन भरी छौड़ा इमली गाछी के नीचे इमली झड़ैतेॅ रहै छै।" सुमित के माथा पर हाथ धरतेॅ कहलकै।
"तोरोॅ मगज मारलोॅ गेलोॅ छौं सुमित। अरे इंगलिस इस्कूल में पढ़ाय केॅ की लखना केॅ अंग्रेज बनैवौ। जो बनिये गेलौं तेॅ खेतोॅ के मिट्टी छूतौं की। वैन्होॅ पढ़ाय पढ़ावौ सुमित केॅ कि माँटी के लाजो बचेॅ पढ़ी लिखी केॅ अफसरो बनेॅ। आरो सरकारी इस्कूली में पढ़ाय लिखाय नै होय छै तेॅ एकरो विरुद्ध आन्दोलन करोॅ। सरकारें झलारोॅ की गप्प हाँकै लेॅ दै छै। सुमित हमरो सिनी के गलती छै। अंग्रेज़ी इस्कूलों मेॅ बच्चा के नाम लिखाय छै, तेॅ बच्चा केॅ अपनोॅ पढ़ावै छै। सरकारी इस्कूलोॅ में नाम लिखाय के मतलब होय छै, सब भार गुरुवेजी सहेॅ। ई तेॅ एकदम ग़लत।" अभी बलराम आरो कुछ बोलतियै कि सिंघेसर आवी गेलै।
सिंघेसर केॅ देखथै बलराम समझी गेलै कि मामला गरम छै। अभी सिंघेसर कुछ बोलतियै कि बलरामे बोली पड़लै, "बात नै बनलौं की सिंघेसर?"
"नैं। आबेॅ थानै-कचहरी मेॅ फैसला होतै। यहे कहै लेॅ हम्मेॅ ऐलोॅ छियौं। बाद मेॅ ई नै कहियौ कि हममेॅ तोरा नै कहैलियौं।"
"सिंघेसर मगज ठण्डा करेॅ। पंचमत छै नी।"
" की पंचायत। तोहें नै जानै छौ कि पंचायत केकरोॅ पक्षोॅ मेॅ जैतै। पंचायतो आबेॅ पैसेवाला के.
"तेॅ थाना-कचहरी की हमरोॅ-तोरोॅ होयवाला छै, बिना पैसा के. एक मुट्ठी जमीन लेॅ डीह बेचै लेॅ लागै सिंघेसर; तेॅ ई बात अच्छा नै। अरे परशुरामो तेॅ आदमिये नी छेकै। सब मानी जैतैं। इखनी केकरो पेसलोॅ भूत ओकरोॅ माथोॅ पर नाची रहलोॅ छै, वहू उतरतै।"
"तेॅ हम्मे परशुरामोॅ केॅ कुछ कहै लेॅ नै जैवौं।"
"तोरा जाय के ज़रूरत नै पड़तौं।"
ओकरा समझाय-बुझाय केॅ बलरामें घोॅर भेजलकै, तेॅ सुमित सिंह सेॅ कहना शुरू करलकै, "देखोॅ, हम्मेॅ अपनोॅ बेटा-बेटी के सरकारिये इसकूलोॅ मेॅ नाम लिखैलेॅ छेलियै। साल भरी पहिलेॅ यहे तीनो बच्चा पढ़ै में एकदम बोगस छेलै, मतरकि आय देखोॅ। ई सब होन्है केॅ होलोॅ छै, दिन-रात एक करी केॅ हेनोॅ बनैलेॅ छियै। खाली गुरुवेजी पर निर्भर नै रहलियै, हम्मू बच्चा बुतरू के पीछू मेहनत करलेॅ छियै, तब ई तीनोॅ कॉलेजोॅ में ऐलोॅ छै। सुमित जीवन रोॅ सबसेॅ बड़ोॅ गलती की छेकै, जानै छौ?"
"की?"
"आपनोॅ बच्चा-बुतरु केॅ छोड़ी केॅ राजनीति के चक्कर में समाज सेवा के ढोंग करवोॅ आरो अपनोॅ जिनगी साथेॅ घोॅर भरी केॅ तबाह करवौ। ई बात हम्मेॅ बड़ी देर करी केॅ बूझेॅ पारलियै।"
"तेॅ रामखेलावन तेॅ हमरोॅ अयोध्ये के जलाय देतियै, जों आरो देर होय जैतियै। कल की होतियै, हमरे नाँखी हमरो बेटा लफंगई करतेॅ रहतियै। ऊ तेॅ ठीक वक्ती पर चेत आवी गेलै, आरो आय देखतै छोॅ, हमरोॅ तीनो बेटा-बेटी केॅ। सुमित, खाली गाछ रोॅ पत्ते काफी नै होय छै, गाछ केॅ फलदार बनावै लेली, ओकरोॅ देखभाल कत्ते ज़रूरी छै, ई बतावै के ज़रूरत छै की।"
"यही वास्तेॅ तेॅ हम्मेॅ अपनोॅ बच्चा केॅ अंग्रेज़ी इस्कूली मेॅ डालै लेॅ चाहै छी।"
"तेॅ एकरा सेॅ की होय जाय छै। सुमित अंग्रेजियो इस्कूल मेॅ तेॅ यहाँ करे लोगें पढ़ावै छै। जत्तेॅ कॉनवेन्टोॅ के गुरु जानै छै, ओत्तेॅ सरकारियो इस्कूलोॅ के. आरो खाली लाल वाला ड्रेस पिन्हला सेॅ थोड़े मगज खुली जाय छै। ई सब तेॅ पैसा के फिजुलखर्ची छेकै, सुमित। ई देश के गरीब केॅ आरो कंगाल बनावै के तरीका। ई बात लोगें बुझै नै पारै छै।"
"तेॅ एत्तेॅ-एत्तेॅ लोगें जे अंग्रेज़ी स्कूली में अपनोॅ लड़का-लड़की केॅ पढ़ाय-लिखाय रहलोॅ छै, से।"
"की तहूँ चाहै छैं कि अपनोॅ गाँव, बस्ती के गाछ पहाड़ कटी जाय। अरे, अंग्रेज़ी स्कूल आरो कॉलेजोॅ में जे लड़का-लड़की पढ़ी लिखी केॅ तैयार होय रहलोॅ छै, वै सिनी की करी रहलोॅ छै? वै सिनी धरती के पेट फाड़ी रहलोॅ छै, गाछ काटी रहलोॅ छै, पहाड़ ढहाय रहलोॅ छै। कथी लेॅ पैसा के पहाड़ खड़ा करै लेॅ। सुमित कहिया लोग चेततै? अबेॅ धरती पर जंगल नै रहतै? जीव नै रहतै? पर्वत नै रहतै?" जानै छोॅ हम्मेॅ अपनोॅ बेटा केॅ कथी के पढ़ाय-पढ़ाय रहलोॅ छेलियै कृषि के. ऊ कृषि वैज्ञानिक बनतै। वहू मेॅ, वै ई बात के खोजी करी रहलोॅ छै कि बिना रसायन के ढेरे फसल पैदा करलोॅ जावेॅ। " कहतेॅ-कहतेॅ बलराम के चेहरा पर खुशी फैली गेलै।
सुमित केॅ भी कम आचरज नै होय रहलोॅ छेलै। वैं कभियो बलराम केॅ एत्तेॅ गुनी के बात करतेॅ नै देखलेॅ छेलै। रहलोॅ नै गेलै, तेॅ पूछी बैठलकै, "एक बात पूछियौं?"
"हों, हों, पूछोॅ की।"
"तोरा ऐत्तेॅ ज्ञानोॅ के बात करतेॅ कभियोॅ नै देखलियौं।"
"केना केॅ देखतियौ, राजनीति मेॅ है सब बात करना पाप मानलोॅ जाय छै। हम्मेॅ तोरा कत्तेॅ भरमावेॅ पारौं, अपनोॅ तिजोरी भरेॅ पारौं, यही नी राजनीति छेकै, सुमित। सबसेॅ बड़ोॅ बात तेॅ छेकै कि राजनीति मेॅ रही केॅ तोहें सत्य के सहारा जीयै नै पारौ। हर घड़ी झूठ, हर घड़ी छल। आरो जे हम्मेॅ करै छियै, वहे हमरोॅ बुतरु सीखै छै। तोहें कोय राजनीतिज्ञ के बच्चा केॅ विद्वान, दार्शनिक होतेॅ देखलेॅ छौ। छेलै एक समय जबेॅ राजनीति मेॅ रही केॅ राजनेता, राजधर्म केॅ भी निभावै छेलै, आरो कुलधर्म केॅ भी मतरकि आयकोॅ राजनीति मेॅ रही केॅ नै तेॅ अपनोॅ धर्म केॅ बचावेॅ पारोॅ नै राजधर्म केॅ। जों समय पर नै चेती गेलोॅ होतियै, सुमित; तेॅ आय हमरोॅ घोॅर भंगटी गेलोॅ होतियै।" पता नै बलराम आरो कत्तेॅ-कत्तेॅ बोलतेॅ चल्लोॅ जैतियै, जों अखबार वाला हुनकोॅ सामना मेॅ अखबार राखी केॅ नै चल्लोॅ गेलोॅ होतियै।
"लेॅ अखबारो आवी गेलै। ज़रा देखियौ तेॅ आय राहत ऋण गामोॅ के पंचायत भवन मेॅ बाँटलोॅ जैतै, बीडियो साहब आपनोॅ हाथोॅ सेॅ बाँटतै। हुनी आवी रहलोॅ छै कि खाली झुट्ठे के खबर छेकै?" सुमित नेॅ एक दाफी हुनका दिश देखी केॅ अखबारोॅ पर आँख गड़ाय देलकै।
मतरकि बलराम के आँख एक दाफी अखबार के उपरला पन्ना पर गड़लै, तेॅ गड़ले रही गेलै, आँखी के डिम्मी बड़ी तेजी सेॅ बायां सेॅ दायां दिश बारी-बारी सेॅ होय रहलोॅ छेलै। पलक झपकारै के जेना फुर्सते नै छेलै। जबेॅ बलराम के मुहोॅ सेॅ 'हे राम' निकललै, तेॅ डरतेॅ हुएॅ सुमित नेॅ पूछलकै, "की होलै, हे भगवान कोय बुरा खबर तेॅ नै छै?"
"हों, बुरे खबर छै, सुमित।"
"की भेलै?"
"रामखेलावन गिरफ्तार होय गेलै।"
"है की बोलै छोॅ। एत्तेॅ बड़ोॅ मंत्राी, भला गिरफ्तार केना होतै।"
"कत्तोॅ बड़ोॅ मंत्राी रहेॅ। कानून सेॅ तेॅ बड़ोॅ नहिये नी छै।" ' बलराम अपना पर नियंत्राण पैतेॅ कहलकै।
"मतरकि है सब होलै केना?"
"नदी पर पुल बनवैला सें। ठेकेदारी दिलवैलेॅ छै अपने बेटा के. उद्घाटन के दूसरे दिन ऊ चार बांस के पुल ढनमनाय केॅ गिरी पड़लै।"
"हाय राम, तबेॅ तेॅ आदमियो मरलोॅ होतै।" सुमित के आँख-मुँह अबकी दाफी खुललै, तेॅ खुलले रही गेलै।
"बीस आदमी तखनिये मरी गेलै। सौ आदमी केॅ अस्पताल भेजलोॅ गेलोॅ छै। लाश गायब करवाय के जुर्म में रामखेलावन के साथें ओकरो बेटाहौ गिरफ्तार होय गेलोॅ छै।"
" हे राम, ई तेॅ बड़का जुलुम होय गेलै। बेटाहै केॅ बचाय मेॅ नी है सब होय गेलै।
"सुमित, सबके जड़ोॅ में एक्के मूल कारण छै कि सत्ता और सुख के हाही, हमरा आदमी नै रहै लेॅ देलेॅ छै। हम्मेॅ यहे भूली गेलोॅ छियै कि हमरोॅ घोॅर छै, हमरोॅ समाज छै, हमरोॅ देश छै। आरो ई सब हम्मेॅ केना जानेॅ पारौं, जों जड़ी सेॅ कटलोॅ रहवै। सुमित घोॅर जा आरो अपनोॅ बेटा केॅ ऊ शिक्षा दौ जे कल तोरोॅ घोॅर देखेॅ सकौं, समाज देखेॅ सकौ, देश देखेॅ सकौं।" एतना कहतेॅ हुए बलराम कापरी बड़ा उदास मनोॅ सेॅ अखबार उठैलेॅ ऐंगना दिश बढ़ी गेलै।