भाईचारा / शशि पुरवार
रोहित का परिवार आज थोडा डरा हुआ था, पास वाले घर में मुसलमान परिवार डॉ. अली रहने आ गए थे , वह सोचने लगे कि संभल कर रहना पड़ेगा वह डॉ. है पर, है तो मुसलमान और सावधानी से रहना पड़ेगा। आते जाते उनका सामना अली साहब के परिवार से हो जाता था, उच्च शिक्षित परिवार दिख रहा था, पर सावधानी जरूरी थी। कभी कभी वह मुस्कुरा देते थे परन्तु रोहित मन ही मन में डरा हुआ था, दंगे फसाद को वह पहले भी देख चूका था, ऐसे समय शिक्षा भी साथ छोड़ देती है। दीपावली आ रही थी वह अपने काम और तैयारी में लग गए, और अपने में रहने लगे।
एक दिन सुबह 8 बजे दरवाजे की घंटी बजी, रोहित ने दरवाजा खोला तो सामने अली साहब का परिवार खड़ा था, वह कुछ कहता इसके पहले वह लोग बोले की क्या हम अन्दर आ सकते है और मिठाई का डब्बा रोहित के हाथों में दे दिया। रोहित असमंझस में पड़ा देख रहा था, अन्दर बुलाया --
“हाँ हाँ आईये और यह क्या?“ डब्बे को इशारा करके बोला
“अरे रोहित जी यह दीपावली की मिठाई है और आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये"
“जी बहुत बहुत शुक्रिया"
"हमने सोचा कि त्यौहार में शामिल होकर हम भी अच्छे दोस्त बन जाएँ। आपके संकोच और डर को कई दिनों से महसूस कर रहे थे, पर इसमें हमारी क्या गलती है, हम सभी इंसान ही है और यह जात पात बनाने वाले भी इंसान ही होते है, आप हमें पराया न समझे, हम आपकी ख़ुशी में शामिल होने आये है।"
रोहित निरुत्तर हो गया और गले मिलकर भाईचारे को निभाया।