भाई बनाम भाई का कुरुक्षेत्र / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :17 अगस्त 2015
हॉलीवुड की 'वॉरियर्स' के विधिवत अधिकार खरीदकर करण जौहर ने कुछ और भागीदार लेकर 'ब्रदर्स' बनाई है। जैकी श्राफ, अक्षय कुमार, सिद्धार्थ मल्होत्रा और शेफाली शाह अभिनीत फिल्म की पृष्ठभूमि स्ट्रीट फाइटिंग है। ऐसा लगता है कि हॉलीवुड ने पहले स्ट्रीट फाइटिंग रची फिर अमेरिका में भी यह होने लगा। यह भी संभव है कि रंगभेद और गरीबी के आंचल में पलने वाले काले लोगों के मन में गहरा असंतोष और क्रोध था, जो स्ट्रीट फाइटिंग के द्वारा अभिव्यक्त होता होगा। इसी से प्रेरित होकर हॉलीवुड में फिल्में बनीं। भारत में मनमोहन देसाई ने अपनी फिल्म 'नसीब' में स्ट्रीट फाइटिंग के दृश्य रखे और अभिताम बच्चन के विश्वसनीय अभिनय के कारण यह लोकप्रिय हुआ। अनेक देशों में यह 'खेल' प्रतिबंधित है। भारत में केवल सिनेमा में दिखता है। यहां फाइटिंग संसद में होती है। फिल्म में संवाद है कि भारत में आम आदमी जिंदगी की जद्दोजहद में फाइटर है।
बॉक्सिंग और फ्री स्टाइल के तत्वों की भेल से यह खेल रचा है। दमखम के साथ चपलता जरूरी है परंतु निर्णायक तत्व, फाइटर के दिमाग में किलर इन्सटिंक्ट होना जरूरी है। सारे खेल और युद्ध पहले दिमाग में लड़े जाते हैं फिर मैदान पर उतरते हैं। मनुष्य में छुपे पशु को सरेआम उजागर करने का यह खेल रक्तरंजित होता है और हड्डियों के चटकने की आवाज ही इसका असली पार्श्व संगीत है। इसमें दर्शक जीत पर दांव लगाते हैं। पैसा आते ही हर खेल आईपीएल की तरह राष्ट्रव्यापी घपले में बदल जाता है। हमारे यहां घपलेबाजी ललितकला की तरह साधी जाती है। मूल कथा रोचक और भावना का द्वंद्व उसमें मौजूद है परंतु इसका सीधा सादा प्रस्तुतीकरण भावना को धार दे सकता था। परिचय से कथा ली है तो प्रस्तुतीकरण की पेचीगदी भी वहीं से ली है। जब भी हॉलीवुड का भारतीय संस्करण बनाएं तो पटकथा विशुद्ध भारतीय होनी चाहिए। जैकी की पत्नी है और बेटा है परंतु एक दिन वह एक छोटा बच्चा घर ले आता है, जो उसके प्रेम प्रकरण का नतीजा है। आहत पत्नी विश्वासघात को पी जाती है और अन्य के बच्चे को भी भरपूर प्रेम से पालती है। दोनों भाइयों में प्रेम है परंतु अपने अपराध बोध से ग्रस्त जैकी शराब नोशी में डूबकर एक दिन पत्नी को करारा थप्पड़ मारता है और वह मर जाती है। इस संक्षिप्त भूमिका को शेफाली शाह ने जीवंत कर दिया है। हादसा भाइयों के बीच दीवार बन जाता है, जो तेज घटनाक्रम के बाद क्लाइमैक्स में गिरती है। फिल्म में जैकी और 'बड़े भैया' अक्षय कुमार ने जीवन का श्रेष्ठतम अभिनय किया है। सिद्धार्थ ने सीमित अवसर को जमकर भुनाया है। उसकी भूमिका उलझी हुई है, वह विवाह के बाहर प्रेम-संतान है परंतु एक कड़वाहट से व्याकुल है और क्रोध को अभिव्यक्त करने की राह उसे अनचाहे कुरुक्षेत्र में फेंक देती है जैसे महाभारत में कर्ण का लाया जाना है। भाई बनाम भाई के युद्ध के समय असहाय पिता की वेदना को जैकी श्रॉफ बखूबी प्रस्तुत करते हैं। उसके लिए हार-जीत से जरूरी है कि इस जानलेवा खेल में उसका कोई बेटा मारा नहीं जाए। खेल पर पैसे का दांव लगाने वाले दर्शक खून के प्यासे हो जाते हैं। यह कितनी अजीब बात है कि आप अपने तमाशे में मृत्यु देखना चाहते हैं। हर खेल के दर्शक किसी न किसी स्तर पर उन्मादी हो जाते हैं। खिलाड़ियों में भले ही खेल भावना हो परंतु दर्शक अंधे उन्माद की लहर पर सवार होता है। राजनीति में भी नेता भीतर से मिले होते हैं परंतु समर्थक उन्मादी होते हैं।
इस फिल्म का एक गीत मधुर भी है और गीत गहरा भी है। एक पंक्ति है कि 'सरगम में है गम', संगती का केंद्र सरगम है और शब्द में गम है। क्या इसीलिए कहते हैं कि हमारे वे गीत सबसे सुरीले होते हैं, जिन्हें दर्द के स्वर में गाते हैं। प्रार्थना गीत भी आंखें नम करते हैं, नाद भी नम करते है। आनंद में अवसाद का स्पर्श होता है। जोर से ठहाका लगाने पर आंख से पानी बहने लगता है। भावना संसार परिभाषाओं से परे है। इस फिल्म में लंबे अरसे बाद एक कैमिओ में कुलभूषण खरबंदा देखने को मिले। स्कूल के नियम के अनुसार प्राचार्य खरबंदा भौतिक शास्त्र के काबिल टीचर को नौकरी से निकालने पर विवश हैं परंतु वह अपने प्रिय टीचर का फाइनल देखने आते हैं। एक शिक्षक को स्ट्रीट-फाइटर के रूप में प्रस्तुत किया गया है और देश में शिक्षा के भी क्षेत्रों में अच्छे शिक्षक का अभाव खटकता है। शिक्षक जीवन के फाइटर बनाता है, आजकल वह यह काम महंगे ट्यूशन क्षेत्र में कर रहा है। बहरहाल, ब्रदर्स रोचक है। सभी सितारे समझ रहे हैं कि मात्र स्टाइल से काम नहीं चलेगा, सब्सटेंस जरूरी है।