भागते भूत की लंगोटी / सुशील यादव

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बेगम......! ‘ताजमहल जरुर बनेगा’....... ये शाहजहाँ का वादा है|

पिछले चार-सौ सालो सुनते आ रही हूँ, ताजमहल जरुर बनेगा,ताजमहल जरुर बनेगा ......

लेकिन ताजमहल बनेगा कब ....?

बेगम की यह कोफ्त, अकेले निरीह उखड़े हुए शंहशाह पर नहीं है|

सैकड़ों छोटे-छोटे शंहशाह हैं, जिनकी बेगमो को “छोटे-मझोले किस्म के ताजमहल” बनाने का वादा आये दिन किया जाता है|या यूँ कहे कि अनेको बेगमें इस दौर में, झासे में रखी जा रही हैं |

कहीं लोंन का चक्कर है तो कही मुनिस्पेलटी वाले नक्सा पास नहीं कर रहे हैं|

‘धांसू शहंशाह’ लोग अगर इनका काट ले भी आयें तो, प्लाट में जाकर देखने पर, अलग नजारा, देखने को मिलता है|

भैसे बंधी हैं,भइय्या जी काबिज हैं|दूध दुहे जा रहे हैं|

प्लाट पर पहुचते ही,वे कहने लगते हैं, गरमी के दिनों में भैसे कम दूध देती हैं, अभी नये ग्राहक को दूध-सप्लाई नही की जा सकती|

आप कहेंगे,भाई जी ये प्लाट हमारा है ...हम इसमे काम करवाने के लिए नक्शा पास करवा लाये हैं|

वे दो-चार भैस लगाने वालो को, बुलवा लेते हैं,हमें डाटने लगते हैं,प्लाट लेने में जल्दबाजी काहे करते हैं आप लोग ?प्लाट लेके खुले भैस –सांड को चरने के लिए छोड़ देते हैं|कोई आके ‘खूटा’ गडिया दे, तो पलट के देखने नहीं आते|अब गरिया रहे हैं| प्लाट लिए तो फिर देखना मागता कि नइ ?पिछले बीस साल से झांकने काहे नहीं आये ?अब कहोगे प्लाट छोडो....... ऐसा होता है क्या ....?

बीस साल पहले आते बाबू,.... तो हम अपना कब्जा बड़े आराम से कहीं,नजूल जमीन में नही न कर लेते,,,,,|

अब तक हमें,.... वो क्या कहते हैं,सरकार से पट्टा- वट्टा भी मिल गया होता|

देखो साफ कहे देते हैं .......मतलब की बात सुन लो .......अब अगर अपनी जमीन छुडवाना हो, तो तब और अब की कीमत का डिफरेंस दे दो|किस्सा खतम कर देंगे,,,,,, खूटा-खम्भा सब उखाड़ लेगे ....|

भैइय्या के कहने के अंदाज से हमे लग गया कि,खूटा जोर का गडा है,उखाड़ने में नानी जरुर याद आ जायेगी|

हम उनके डिफरेंस मागने के गणित पर, तीस से चालीस लाख का अनुमान लगा के हकबका गए ?

पुचकारने- धमकाने के तरीको पर आगे अध्ययन-मनन, करने की सोच के वहां से लौट जाना, बेहतर लगा सो लौट आये|

“कोर्ट –कचहरी की सोचना भी मत”,..... ये हमारे सभी मिलाने –जुलने वालो की राय थी|

जमीन का मामला पचासों साल खीच लेता है, इसमे हमारी भी राय ‘दो’ नहीं थी,.......क्या करते ?

मान-मनव्वल पर, वे ‘दस’ में राजी हुए|

भैय्ये के लिए ‘भागते-भुत की लंगोटी’ हमारे लिए ‘दस लाख’, यानी पूरे कपडे के शो रूम में रखे, कपड़ों की थान के बराबर की पड़ी|

हमें सहगल साहब का गाना “एक बंगला बने न्यारा......” इस वाकिये को हरदम याद दिलाता रहेगा|