भागी हुई लड़की / सुधाकर राजेन्द्र
रमा बाबू की सोलह वर्षीय लड़की विभा भाग गई । यह खबर जंगल के आग की तरह पूरे गाँव में फैल गई। सुबह होते ही पूरे गाँव में इसी बात की चर्चा थी। कोई रमा बाबू को दोषी ठहरा रहा था, कोई उनकी पत्नी और कोई उनकी बेटी विभा को।
पता चला कारू रविदास का लड़का वसंत जो विभा के साथ इन्टर में पढ़ता था वह भी गाँव से पफरार है। लोग अनुमान लगा रहे थे दोनों साथ ही भागे होगे, उच्च जाति की लड़की और दलित का लड़का गाँव से भाग जाने की चर्चा लोगों के जुबान पर थी। लड़की लाख दोषी रहे दोष लड़के पर ही मढ़ा जाता है। दोनो के परिजनों के बीच तनाव चरम सीमा पर था। काफी खोजबीन के बाद दोनों का कोई अता पता न चल सका। कारू दास को दबंगों के द्वारा कुछ अनहोनी की आशंका घेरे थी। वह काफी डरा सहमा था। पर सजातीय लोगों के हिम्मत पर डटा था।
घर से भागने के बाद विभा और वसंत पहुँचे पटना, वहीं एक डेरा लेकर पति-पत्नी के रूप में रहने लगे। विभा भागते वक्त माँ के सारे गहने ले कर भागी थी। उसी को बेच कर दोनों मौज मनाने लगे। उम्र का दोष दोनों युवाओं को और भटकने के लिए मजबूर कर चुका था। भटका हुआ आदमी परस्थितियों का दास हो जाता है। कुछ दिनों के बाद दोनों के पास पैसे समाप्त हो गए। अब वासना के उन्माद का ज्वर उतरने लगा था। दोनों कभी घर लौट जाने की बात सोचते तो कभी उसी शहर में काम ढूढ़ने की बात। अब दोनों को अपने परिजनों व गाँव टोले की याद सताती। विभा भागने के लिए वसंत को दोषी ठहराती तो वसंत विभा को। इस बिन्दु पर दोनों में दूरियाँ बनने लगी। विभा सोचती वसंत को छोड़ कर घर लौट चलें, किन्तु परिजनों के कोप का डर सताने लगता। एक रात विभा वसंत को छोड़ कर घर के लिए भाग निकली, किन्तु रास्ता भटक गई। भटका हुआ आदमी भटकता ही जाता है। अब वह रेड लाइट एरिया के एक दलाल के हाथ लग गई। दलाल अपनत्व का स्वांग रचते हुए उसे बड़े प्रेम प्यार से एक कोठे वाली महिला के हाथों बेच दिया। उस महिला ने विभा को दो दिनों तक एक कमरे में कैद रखा। उसके बाद उसे ग्राहकों के समक्ष पेश करने लगी। पहले तो विभा तीखा विरोध् करती पर धीरे-धीरे परिस्थितियों की दासी बन गई। कोठे पर विभा अब नाचने गाने व मुजरा भी सुनाने लगी। अपने बहके कदमों के कारण पूरे तौर से भटक चुकि विभा को अपने माता पिता, भईया-भाभी और परिजन याद आते तो आँखों में आसुओं के तूफान आ जाते। पर उस तूफान के बाद के वीरान जंगल में वह बुरी तरह भटक चुकी थी। वसंत के साथ बीता पल भी अब पतझड़ बना था । क्या भागी हुई तमाम लड़कियों को इसी दौर से गुजरना होता है। विभा के मन में प्रश्न कौंधते रहते। वह भागने वाली तमाम लड़कियों को न भागने के लिए कुछ कहना चाहती पर अब तो वह जिस्मफरोशी के पिंजड़े में कैद थी।
उधर वसंत विभा की बेबपफाई से घायल तड़प रहा था। उसने विभा को खोजने की बहुत कोशिश की पर अब तो विभा के साथ बीते पल ही उसके साथ थे। बहुत दिनों तक वह विभा की याद में तड़पता रहा। उसे अब एहसास हुआ कि बड़े घर की लड़कियां कितनी बेवफा होती हैं। बहुत सोच विचार कर वसंत ने पटना में ही एक प्राईवेट नौकरी ढूढ़ लिया और वही मन लगा कर काम करने लगा।
उधर विभा अब पूरे तौर पर नर्तकी बन चुकी थी। बारात पाटी के सट्टे में अन्य नर्तकियों के साथ जाने लगी थी। विभा अब बाईजी के नाम से जानी जाने लगी। एक बारात के सट्टे में अन्य नर्तकियों के साथ विभा बाई भी मंच पर नाच रही थी। उसी बारात में एक ऐसा युवक भी आमंत्रित था जो विभा को पूरे तौर से न पहचानता था। वह मौका का लाभ उठा कर विभा से बात करने लगा। उसने पूछा-तुम विभा हो, उसने पहले तो चुप्पी साध ली पर बहुत ध्यान से देखने के बाद बोली-हाँ। समय के अन्तराल के कारण दोनों के बीच के पहचान का धुन्ध छटने लगा। अब विभा ने पूरे तौर से पहचान लिया। युवक ने भी विभा को पहचाना। वह था विभा का सगा भाई विमल। विभा अपने भाई के गले से लिपटना चाह कर भी न लिपटने के लिए मजबूर थी। उधर भाई विमल का दिल भी खुशी और क्षोभ में डूबा था। विमल ने विभा से पूछा, तुम घर चल सकती हो उसने हां कहा। विमल उसे रात्रि के अंधकार में चुपके से लेकर निकल भागा। दूर जाकर वह अपनी मोटरसाईकिल पर बैठा कर उसे अपने घर ले आया। और घर वालों को कहा कि उसने उसे नारी निकेतन गृह के कैद से छुड़ा कर लाया है। वह रास्ता भटक जाने के कारण संवासिनी गृह में कैद थी।
सुबह यह खबर पानी में उठे तरंग की तरह पूरे इलाके में फैल गई। विभा को देखने के लिए उसके घर महिलाओं की भीड़ लगी थी। लोग कह रहे थे, बेटी पराया धन है अब इसकी शादी व्याह कर दो। विमल ने बहुत बड़ा राज परिजनों और सामाज से छिपा कर रखा और उस भागी हुई लड़की की शादी दूर के इलाके के एक अच्छे परिवार में कर दी।