भाग-1 / रंजना वर्मा

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मुन्नू ने जब से सुना था कि मनुष्य चंद्रमा पर पहुंच गया है उसकी कल्पनाएँ रंग बिरंगे वस्त्र पहन कर नाचने लगी थी। वह हर समय चंद्रमा की सुंदरता और चंद्रमा पर रहने वालों के विषय में कल्पना किया करता था। वह किसी भी प्रकार चंद्रमा पर पहुंच जाना चाहता था। उसका विचार था कि चन्द्रमा पर भी मनुष्य अवश्य रहते होंगे। उनके नन्हे मुन्ने प्यारे-प्यारे बच्चों से दोस्ती करने के लिए वह व्याकुल हो रहा था। अंत में अपनी चंद्रमा पर जाने की इच्छा पूरी करने के लिए उसने एक उपाय ढूंढ निकाला।

एक दिन मुन्नू ने अपने मित्र चंदू को बुलाकर कहा-

"चंदू! क्या तुम्हारे मन में चांद पर चलने की इच्छा नहीं होती?"

"होती क्यों नहीं, लेकिन चांद पर चलेंगे कैसे? मैं तो सोचता हूँ कि यदि वहाँ तक नहीं पहुंचा-पहुंचा जा सकता तो कम से कम वहाँ के बच्चों से पत्र मित्रता तो कर ही सकते हैं।" चंदू ने उत्तर दिया।

"हाँ, यह तो तुम ठीक कह रहे हो लेकिन पता नहीं वहाँ डाकखाना होता है या नहीं। यदि वहाँ हमारी पृथ्वी की तरह डाक व्यवस्था न हुई तो?"

"तो क्या? हमारे नन्हें दोस्त ऊपर चंद्रमा पर से हमें देख कर इशारा कर दिया करेंगे और हम उन्हें यहाँ से इशारों में ही जवाब दे दिया करेंगे।" चंदू बोला।

मुन्नू उसका उत्तर सुनकर हँस पड़ा था।

"पागल। इतनी दूर से क्या हम उन्हें और वह हमें देख सकेंगे?"

"तब क्या करें?" चंदू ने पूछा।

"मैंने एक उपाय सोचा है।"

"क्या?"

"यही कि हम लोग अपना एक छोटा-सा राकेट बनाएँ और उस पर बैठकर चाँद पर रहने वाले बच्चों से मिलने जायें।" मुन्नू ने बताया।

" सच। उपाय तो बहुत सुंदर है लेकिन राकेट बनेगा कैसे? उसके लिये बहुत-सा सामान आवश्यक होगा। वह सब कहाँ मिलेगा?

"सामान की चिंता मत करो। कल पहाड़ी पर खेलते-खेलते मैं पीछे चट्टान की ओर चला गया था। वहाँ मैंने एक हवाई जहाज का मलवा पड़ा देखा है। उस की सहायता से हम राकेट बनाएंगे। यह देखो, इस पुस्तक में लिखा है कि राकेट कैसे बनाएँ। सारी समस्या दूर हो गई." उस ने अपनी जेब से एक छोटी-सी पुस्तक निकाल कर चन्दू को दिखाई.

"क्या खूब!" चन्दू बोला।

उसी दिन से वे दोनों महत्त्वाकांक्षी बालक राकेट के निर्माण में लग गये। उनका जेब खर्च और मेहमानों या रिश्तेदारों के आने पर उनसे मिलने वाला धन राकेट निर्माण की भेंट होने लगा। दो वर्ष के कठोर परिश्रम के बाद उन का छोटा-सा राकेट अपने निर्माताओं की आकांक्षा का जीता जागता स्वरूप-स्वरूप बनकर तैयार हो गया।

इसी बीच मुन्नू के बड़े भाई जो इंजीनियर थे कुछ दिनों के लिए घर आए. एक दिन मुन्नू ने उन्हें पहाड़ी पर ले जाकर अपना राकेट दिखाया तो वे बच्चों के इस अद्भुत प्रयास को देखकर बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने मुन्नू और चंदू को अंतरिक्ष में आने वाली विभिन्न कठिनाइयों के विषय में बताया और कहा कि यदि वे दोनों अंतरिक्ष यात्रा के सम्बंध में विशेष ज्ञान प्राप्त करना चाहें तो वे अपने परिचित वैज्ञानिक मित्र का बनाया हुआ राकेट उन्हें दिखा कर उससे सम्बंधित पूरी जानकारी दे सकते हैं।

बस फिर क्या था? चंदू और मुन्नू उनके पीछे पड़ गये।

एक दिन वे अपने नन्हे निर्माताओं को साथ लेकर अपने मित्र से मिलने कोलकाता के लिए रवाना हो गये। चंदू और मुन्नू उनसे मिलकर बहुत प्रसन्न हुए. डॉ रमेन्द्र ने भी दोनों नन्हे जिज्ञासुओं का दिल खोल कर स्वागत किया। खाने पीने के बाद डॉ रमेंद्र चंदू, मुन्नू और प्रकाश को लेकर अपनी प्रयोगशाला में गये।

वहाँ चारों ओर विभिन्न उपकरण रखे हुए थे। उन्हें दिखाते डॉक्टर रमेन्द्र ने चंदू और मुन्नू को अंतरिक्ष यात्रा से सम्बंधित अनेक महत्त्वपूर्ण बातें बताईं। उसके बाद वे उन तीनों को लेकर प्रयोगशाला की पिछली दीवार के पास पहुंचे। दीवार में विभिन्न आकारों के कुछ फूलों की आकृतियाँ बनी हुई थी जिनका मध्य भाग प्रयोगशाला में प्रकाशित नियॉन लाइट के प्रकाश में चमक रहा था। डॉक्टर ने उनमें से एक फूल के मध्य भाग में स्थित चमकीला बटन दबा दिया। दूसरे ही क्षण प्रयोगशाला की दीवार दो भागों में बंट गई और उसमें एक द्वार दिखाई देने लगा।

डॉक्टर ने तीनों अतिथियों के साथ उस द्वार को पार करके पीछे दिखाई देने वाले लंबे गलियारे में प्रवेश किया। अभी वे कुछ ही दूर जा पाए थे कि हल्की-सी सू ऊँ-ऊँ की आवाज के साथ पिछली दीवार में स्थित द्वार अपने आप बंद हो गया और दीवार बिल्कुल सपाट दिखाई देने लगी। गलियारा लगभग 20 मीटर लंबा था। उसे पार करके वे लोग एक छोटे से लिफ्टनुमा कमरे में जा पहुंचे। उस कमरे की तीन दीवारों पर विभिन्न आकार के कई बटन लगे हुए थे और छत से 3 फुट की ऊंचाई तक तारों का जाल फैला हुआ था।

"यह मेरा कंट्रोल रूम है।" डॉक्टर ने उन्हें बताया।

"यहीं बैठकर मैं अपने विभिन्न उपकरणों को नियंत्रित करता हूँ।"

"डॉक्टर साहब! हमें प्रकाश भाई साहब ने बताया था कि आपने एक अंतरिक्ष यान भी बनाया है और उसके द्वारा आप चंद्रमा तक की यात्रा भी करना चाहते हैं। आप हमें अपना वह यान भी तो दिखाइए." उन्होंने आग्रह पूर्वक कहा।

"ओह, तो प्रकाश ने तुम लोगों को बहुत कुछ बता दिया है।" डॉ. रमेन्द्र ने मुस्कुराते हुए कहा।

"क्या करूं डॉक्टर! इन लोगों की लगन और उत्साह देखकर इन्हें मैंने तुम्हारे यान के बारे में बता दिया। तभी तो ये उसे देखने की इच्छा से तुम्हारे पास आए हैं।" प्रकाश ने कुछ संकोच के साथ कहा तो डॉक्टर हँस पड़े।

"कोई बात नहीं। मैं तुम लोगों को वह भी दिखाऊंगा लेकिन भाई! आज तो अब रात होने वाली है। शाम के साढ़े पाँच बज चुके हैं। यह काम अब कल पर छोड़ दिया जाए तो कैसा रहे?"

"नहीं डॉक्टर साहब! हम तो आज ही यान देखेंगे। चलिए, दिखा दीजिए वरना रात में नींद नहीं आएगी।" चंदू ने ठुनकते हुए कहा।

"हाँ डॉक्टर साहब! आज ही दिखा दीजिए. अभी इतनी रात भी नहीं हुई है।"

मुन्नू ने भी चंदू का समर्थन किया।

"अब दिखा भी दो। ये लोग ऐसे नहीं मानेंगे। यान को बिना देखे इन्हें सचमुच नींद नहीं आएगी सारी रात।" प्रकाश ने कहा।

उनके आग्रह को देखकर डॉक्टर रमेन्द्र मान गए और उसी दिन उन्हें अपना यान दिखाने के लिए तैयार हो गए.

कंट्रोल रूम से निकल कर वे फिर उसी गैलरी में आ गए जिससे होकर वहाँ आये थे। डॉक्टर ने गैलरी की दाहिनी दीवार पर एक विशेष स्थान पर हाथ रख कर धीरे-धीरे चार बार दबाया और स्वयं पीछे हट कर खड़े हो गए. कुछ ही क्षणों में गलियारे की वह दीवार सू ऊ-ऊ की ध्वनि करती हुई छत में समा गई. सामने एक लंबा चौड़ा मैदान था जिसकी फर्श बहुत चिकनी और चमकदार दिखाई दे रही थी।

डॉक्टर रमेन्द्र ने एक ओर संकेत करते हुए कहा-

"वह रहा मेरा अंतरिक्ष यान।"

प्रकाश मुन्नू और चंदू ने उस दिशा की ओर दृष्टि डाली। मैदान में एक ओर एक यान तीन पैरों पर खड़ा था। यान बहुत छोटा था और उस में कठिनाई से तीन व्यक्ति सवार हो सकते थे। डॉक्टर धर्मेंद्र ने उन्हें अपने यान के पास ले गये। यान के अंदर जाने के लिए उसके द्वार से एक रस्सी की सीढ़ी लटक रही थी।

डॉक्टर ने पहले उन्हें यान का बाहरी आकार अच्छी तरह दिखाया और बताया कि उसका बाहरी आवरण ऐसे पदार्थ से बनाया गया है जो जल नहीं सकता। उन्होंने बताया कि जब यान पृथ्वी के वातावरण से गुजर कर शून्य की ओर बढ़ता है तब भयंकर घर्षण होता है जिससे यान के जल कर नष्ट हो जाने का खतरा उत्पन्न हो जाता है। इसीलिए उसका बाहरी आवरण ऐसे पदार्थों से मनाया गया है जो भीषण उर्जा के ताप को भी सोख कर यान को सुरक्षित रखें।

पृथ्वी का वातावरण छूट जाने पर यान शून्य में पहुंच जाता है जहाँ वह अपनी गति पर ही निर्भर हो जाता है। उस समय यान के भीतर कृत्रिम वातावरण उत्पन्न करना आवश्यक होता है अन्यथा उसके यात्री जीवित नहीं रह सकते।

डॉक्टर उन तीनों को लेकर रस्सी की सीढ़ियों से होते हुए यान के अंदर पहुंचे। यह सीढ़ी भी विशेष प्रकार की धातु से बनाई गई थी जो बहुत ही मजबूत थी। यान के अंदर तीन कक्ष थे। सामने एक चालक कक्ष था। उसके पीछे एक शयन कक्ष था जहाँ एक लंबी गद्देदार कुर्सी थी जिस पर एक व्यक्ति आराम से सो सकता था। उसके पीछे एक छोटा स्टोर था जिसमें अनेक प्रकार की वस्तुएँ रखी हुई थी।

वहीं कुछ ऑक्सीजन के सिलेंडर तथा खाने-पीने की वस्तुएँ भी रखी थी। एक ओर पानी की भरी हुई टंकी रखी थी। पास ही एक छोटी मशीन थी जिसका बटन दबाने पर काफी तैयार हो जाती थी। डॉक्टर प्रत्येक वस्तु को उन्हें दिखाने के साथ-साथ उसके गुण तथा कार्य भी बताते जा रहे थे। यान को कैसे स्टार्ट किया जाता है, कैसे नियंत्रित किया जाता है और फिर किस प्रकार से धरातल पर उतारा जा सकता है, यह भी डॉक्टर ने उन्हें विस्तार से समझाया।

उसका यान यात्रा के लिए पूरी तरह तैयार था। यह में एक ओर रखी दो विशेष पोशाकों को दिखाते हुए उसने बताया कि उन पोशाकों को पहन कर ही उस यान में यात्रा की जा सकती है।

आगे डॉक्टर ने बताया-

"मेरा यह अंतरिक्ष यान यात्रा के लिए तैयार है। मैं कुछ ही दिनों में अपने सहयोगी संजय के साथ चंद्रलोक तक यात्रा करने वाला हूँ इसीलिए इस यान को चंद्रमा की दिशा में केंद्रित कर दिया गया है।"

"डॉक्टर साहब! आप हमें भी अपने साथ ले चलिए." मोनू और चंदू ने प्रार्थना की।

"नहीं। अभी तुम लोग बहुत छोटे हो यद्यपि परिश्रम और लगन की तुम में इस उम्र में भी कमी नहीं है। फिर भी मैं तुम्हें अपने साथ नहीं ले जा सकता। इस यान में केवल दो व्यक्ति ही यात्रा कर सकते हैं इसलिए भी तुम लोगों को साथ नहीं ले जाया जा सकता। हाँ, यदि मेरी यह यात्रा सफल रही तो आगामी यात्रा में मैं तुम्हारे माता-पिता की अनुमति मिलने पर तुम्हें साथ ले जाने का प्रयत्न करूंगा।"

डॉक्टर की बात सुन कर दोनों मित्र उदास हो गए. रात के दस बज चुके थे। डॉक्टर उन्हें लेकर वापस हो लिए. रास्ते भर प्रकाश उन्हें समझाता रहा-

"दुखी और निराश क्यों होते हो? रमेंद्र ने तुम्हें अगली बार साथ ले जाने के लिए कहा तो है। बस थोड़े दिन प्रतीक्षा कर लो।"

लेकिन चंदू और मुन्नू उसी प्रकार मुँह लटकाए रहे।

उन्होंने घर में जाकर चुपचाप भोजन किया और अपने-अपने बिस्तरों में दुबक गये। प्रकाश और रमेंद्र भी कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद बगल के कमरे में सोने चले गये। उन सब के सो जाने पर भी मुन्नू और चंदू को नींद नहीं आई. रात बहुत धीरे-धीरे बीत रही थी।

मुन्नू ने अपनी रेडियम डायल की घड़ी में समय देखा। डेढ़ बजे थे। यह घड़ी उसे पिछले वर्ष प्रकाश ने परीक्षा में प्रथम आने पर उपहार में दी थी। तभी से वह उसे हमेशा कलाई पर बांधे रहता था।

"चंदू!" उसने धीरे से पुकारा।

"क्या बात है?" चंदू तुरंत बिस्तर पर उठ बैठा।

"अब क्या करें?" मुन्नू ने पूछा।

"क्या बताऊँ? अब तो इंतजार ही करना पड़ेगा डॉक्टर साहब की अगली यात्रा का। लेकिन यह भी तो निश्चित नहीं है कि वह हमें अपनी अगली यात्रा पर साथ ले ही जाएंगे। यदि हमारे माता-पिता ने जाने की अनुमति नहीं दी तब? यह भी तो हो सकता है कि डॉक्टर साहब दुबारा चंद्रलोक जायें ही नहीं।" मुन्नू ने शंका प्रगट की।

"हाँ, हो तो सकता है ऐसा। फिर किया क्या जाये?" चंदू ने चिंतित होकर पूछा।

"एक उपाय है। क्यों न हम डॉक्टर साहब को बिना बताये उनके यान से यात्रा करें। यात्रा तो हमें करनी ही थी। उनका यान हमारे यहाँ से कहीं अधिक मजबूत और सुविधाजनक है। उससे हम निश्चित रूप से चंद्रमा पर पहुंच सकेंगे।" मुन्नू ने धीमे स्वर में प्रस्ताव रखा तो चंदू चहक पड़ा।

"बिल्कुल ठीक सोचा तुमने।"

"तो फिर आओ. दो बज रहे हैं।" कह कर मुन्नू दबे पांव बिस्तर से नीचे उतर आया। चंदू ने भी उसका अनुसरण किया। प्रकाश का सूट उसी कमरे में रखा था। मुन्नू ने उसकी जेब से जेबी टार्च निकालकर अपने हाथ में ले ली और दोनों नन्हे दोस्त दबे पांव शयन कक्ष से बाहर निकल आये।

बाहर कुछ देर रुक कर उन्होंने दूसरे कमरे की आहट ली। प्रकाश और रमेन्द्र गहरी नींद सो रहे थे। वे संभवतः चंदू और मुन्नू से इस प्रकार के दुस्साहस की बात सोच भी नहीं सकते थे।

कमरे से बाहर आकर मुन्नू ने खुली हवा में गहरी सांस ली और इधर उधर देख कर सावधानी से डॉक्टर की प्रयोगशाला की ओर बढ़ गया। प्रयोगशाला का द्वार एक विशेष स्थान पर दबाव डालने पर स्वतः खुल गया। मुन्नू ने डॉक्टर को वह द्वार को उसी प्रकार खोलते देखा था। प्रयोगशाला की पिछली दीवार के पास जाकर उसने दीवार पर बनी विभिन्न फूलों की आकृतियों के बीच गुप्त बटन को जेबी टार्च के प्रकाश में सरलता से ढूंढ लिया। बटन दबाते ही दीवार के बीच द्वार प्रगट हो गया। उसे पार करके दोनों मित्र गैलरी में जा पहुंचे।

गैलरी की बाई दीवार के उस विशेष भाग को मुन्नू ने थोड़े से प्रयास के बाद ही ढूंढ निकाला। दीवार पर उतनी दूर कुछ हल्का रंग किया गया था यद्यपि यह अंतर बहुत मामूली था। उसी स्थान पर हाथ रखकर मुन्नू ने चार बार हल्के-हल्के दबाया और चंदू के साथ पीछे हट कर खड़ा हो गया। थोड़ी ही देर में गैलरी कि वह दीवार छत में समा गई और सामने का मैदान दिखाई देने लगा।

मैदान में हल्की चांदनी फैली हुई थी। आकाश तारों से भरा था उन्हीं तारों के बीच हसियाकार चंद्रमा मुस्कुरा कर मानो उन बच्चों को मानो अपनी ओर आने का आमंत्रण दे रहा था। चंदू और मुन्नू ने एक दूसरे की ओर देख कर मानो अपनी सफलता का आश्वासन चाहा और फिर दोनों दौड़ कर अंतरिक्ष यान के पास जा पहुंचे।

एक दूसरे का हाथ पकड़ कर वे दोनो धीरे-धीरे रस्सी की सीधी के सहारे यान में प्रविष्ट हो गये। उन्होंने यान के द्वार के पास स्थित बटन दबाया। सीढ़ी हल्की-सी सरसराहट के साथ यान की दीवार में समा गई और द्वार बंद हो गया। मुन्नू और चंदू डॉक्टर रमेन्द्र से यान की पूरी जानकारी प्राप्त कर चुके थे।

मुन्नू ने चंदू को चालक सीट के पास स्थित दूसरी सीट पर बैठा दिया। उसके सामने यान की दीवार में एक सफेद रंग का पर्दा लगा था जो उस यान का राडार था। यह अन्य यानों की स्थिति तथा दिशा का ज्ञान करा सकता था। मुन्नू स्वयं चालक की सीट पर बैठ गया। एक बार उसने हाथ जोड़कर परमपिता परमेश्वर को प्रणाम किया और यान को स्टार्ट करने वाला बटन दबा दिया।

अगले ही क्षण यान के जेट छूटे और एक तेज झटके के साथ यान आकाश में उड़ चला। अचानक मुन्नू को अपनी भयंकर भूल का एहसास हुआ। शीघ्रता और उत्तेजना के कारण उन्होंने अंतरिक्ष यान की विशेष पोशाकें नहीं पहनी थी। उसने चंदू को संकेत किया और दीवार पर हाथ रख कर संभल-संभल का स्टोर रूम के पास जा पहुंचा। यान की तीव्र गति के कारण पैर जमाना कठिन हो रहा था किंतु पोशाक न पहनने का सीधा अर्थ था मौत के मुंह में प्रवेश करना। एक बार वह लड़खड़ा कर गिरते-गिरते बचा। उसने धीरे-धीरे दोनों पोशाकें और गैसमास्क उठा लिया।

चंदू व्याकुल दृष्टि से उसकी ओर देख रहा था। उसने किसी प्रकार अपनी पोशाक पहन कर गैसमास्क मुंह पर लगा लिया और दूसरी पोशाक लेकर चंदू की ओर खिसकने लगा। पोशाक पहन लेने से यद्यपि कुछ असुविधा हो रही थी पर वह स्फूर्ति का भी अनुभव कर रहा था।

उस गतिशील यान में बिना मास्क तथा पोशाक के चंदू को अपना दम घुटता हुआ अनुभव हो रहा था। मुन्नू जब उसके पास पहुंचा वह सीट पर सर टिकाए आंखें मूंदे गहरी-गहरी सांसें ले रहा था। मुन्नू ने जल्दी से उसे गैस मास्क पहना दिया और फिर धीरे-धीरे पोशाक पहनाने लगा। कुछ ही क्षणों में चंदू ने आंखें खोल दी।

मुन्नू उसके पास ही खड़ा था। चंदू को स्वस्थ देख कर वह पुनः चालक सीट पर जा बैठा। यान उस समय बादलों के बीच से गुजर रहा था। जैसे-जैसे यह ऊपर बढ़ता गया उन्हें ठंड का अनुभव होने लगा किंतु थोड़ा और ऊपर जाने पर वातावरण सामान्य हो गया। कुछ देर बाद अचानक ही यान का तापमान बहुत अधिक बढ़ गया। उन्हें लगा जैसे उनका शरीर भयंकर ऊष्मा से पिघल जाएगा। वे समझ गए कि अब उनका यान पृथ्वी के वातावरण को पार कर रहा है। कुछ क्षणों बाद ऊष्मा कम हो गई और वातावरण फिर से सामान्य हो गया।

यान उस समय अंतरिक्ष में पहुंच चुका था और वह यान के अंदर स्थित कृत्रिम वातावरण का ही अनुभव कर रहे थे जो पृथ्वी के वातावरण के अनुसार था। अपनी इस अनोखी यात्रा से चंदू और मुन्नू बहुत प्रसन्न थे। उन्होंने स्टोर से कुछ टाफियाँ निकाल ली थी। दोनों मजे से टॉफियाँ खा रहे थे और राडार यंत्र की ओर देखते हुए अपनी अनोखी कल्पनाओं में डूबी बातें कर रहे थे।

चंदू कह रहा था- "डॉक्टर साहब कहते हैं कि चंद्रमा पर जीवन नहीं है। यदि यह सत्य है तब तो हमारी यह यात्रा व्यर्थ ही होगी।"

"व्यर्थ क्यों होगी? हम वहाँ जाकर अच्छी तरह पता लगाएंगे कि वहाँ जीवन है या नहीं। यदि नहीं तो क्यों और यदि है तो वहाँ के निवासियों का रहन सहन कैसा है। संभव हुआ तो हम वहाँ एक छोटी-सी प्रयोगशाला बनाएंगे और चंद्रमा पर पहुंचने वालों का स्वागत किया करेंगे। तब हमारे देश का मस्तक गर्व से ऊंचा हो जाएगा।" मुन्नू ने कल्पना में खोए हुए स्वर में कहा।