भाग 3 / हाजी मुराद / लेव तोल्सतोय / रूपसिंह चंदेल

Gadya Kosh से
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बैरकों की खिड़कियों और सैनिकों के कुटीरों में रोशनी बहुत पहले बुझ चुकी थी, लेकिन छावनी के भव्य-भवन की सभी खिड़कियाँ रौशन थीं। यह कुरियन रेजीमेण्ट के कर्नल प्रिन्स माइकल साइमन वोरेन्त्सोव का घर था, जो राज दरबार के एक उच्च अधिकारी और कमाण्डर-इन-चीफ का पुत्र था। वोरोन्त्सोव इस घर में अपनी पत्नी मेरी वसीलीव्ना के साथ रहता था, जो पीटर्सबर्ग की एक सुन्दरी थी। उसके रहन-सहन में एक प्रकार की ऐसी विशिष्टता थी जो काकेशस के इस छोटी छावनी वाले कस्बे में पहले कभी नहीं देखा गया था। वारोन्त्सोव और उसकी पत्नी सोचते कि वे अभावों से भरपूर बहुत साधारण जीवन जी रहे थे, फिर भी स्थानीय निवासी उनके असाधारण विलासितापूर्ण रहन-सहन से विस्मित थे।

आधी रात का समय था। वोरोन्त्सोव अपने विशाल ड्राइंग रूम में, जिसमें कालीन बिछा हुआ था और लंबे भारी परदे पड़े हुए थे, अतिथियों के साथ मेज पर ताश खेल रहा था, जिस पर चार मोमबत्तियाँ जल रही थीं। खिलाडि़यों में एक स्वयं कर्नल वारोन्त्सोव था। उसका चेहरा लंबा, बाल सुन्दर थे और उसने राज्याधिकारी होने के चिन्ह धारण कर रखे थे। उसका साथी पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय का एक स्नातक था, जिसे प्रिन्सेज ने अपने पहले पति से उत्पन्न पुत्र के ट्यूटर के रूप में नियुक्त किया हुआ था। वह उदास भावाकृतिवाला एक सांवला नौजवान था। दो अधिकारी उनके विरुद्ध खेल रहे थे। उनमें से एक चौड़े गाल, गुलाबी चेहरे वाला कम्पनी कमाण्डर पोल्तोरत्स्की था, जो गारद सेना से स्थानांतरित होकर आया था और दूसरा रेजीमंण्टल एडजूटेण्ट था, जो अपने सुन्दर चेहरे पर ठण्डी भावाकृति लिए सीधा तना हुआ बैठा था। बड़ी आंखों और काली भौंहोवाली सुन्दर महिला प्रिन्सेज मेरी वसीलीव्ना, पोल्तोरत्स्की के बगल में बैठी थी और उसके पैरों को अपने पेटीकोट से छू रही थी और उसके हाथों की ओर देख रही थी। उसके बोलने, उसके देखने और मुस्कराने, उसक शरीर के संचलन और उसके द्वारा प्रयोग किये गये परफ्यूम, से सम्मोहित पोल्तोरत्स्की उसका सान्निध्य पाने के अतिरिक्त सब ओर से बेखबर था। उसने एक के बाद दूसरी गलती की थी और इससे उसका साथी भड़क उठा था।

“नहीं यह तो हद है ! तुमने दूसरा इक्का बरबाद कर दिया।” लाल-पीला होता हुआ एड्जूटेण्ट बोला, क्योंकि पोल्तोरत्स्की एक इक्का फेक चुका था।

पोल्तोरत्स्की ने अपनी सौम्य बड़ी काली आंखों से क्रुद्ध एड्जूटेण्ट की ओर न समझने वाले भाव से ऐसे देखा मानो वह अभी-अभी सोकर उठा था।

“अच्छा, उसे क्षमा कर दें।” मुस्कराती हुर्ह मेरी वसीलीव्ना ने कहा। “मैनें तुमको इतना बताया था,” उसने पोल्तोरत्स्की से कहा। “लेकिन तुमने मुझे सब गलत बताया था।” पोल्तोरत्स्की ने मुस्कराते हुए कहा।

“सच? ” वह बोली, और मुस्कराई भी। पोल्तोरत्स्की इस मुस्कराहट से इतना उत्तेजित और प्रसन्न हुआ कि वह शर्म से लाल हो उठा और उत्तेजित-सा पत्ते फेटने लगा।

“तुम्हारे पत्ते नहीं।” एड्जूटेण्ट कठोरतापूर्वक बोला और अपने गोरे हाथों को घुमाते हुए पत्ते फेटने लगा मानो वह उनसे यथाशीघ्र मुक्ति पा लेना चाहता था।

एक नौकर ड्राइंगरूम में प्रविष्ट हुआ और बोला कि ड्यूटी अफसर ने प्रिन्स से भेंट करने का अनुरोध किया है।

“सज्जनों, क्षमा करें,” अंग्रेजी लहजे में प्रिन्स ने रशियन में कहा, “मेरी तुम मेरा स्थान ग्रहण कर लो।”

“मैं? ” फुर्ती से पूरी तरह खड़ी होती हुई प्रिन्सेज ने पूछा। उसके सिल्क के कपड़ों में सरसराहट हुई और एक प्रसन्न महिला की भाँति उल्लसित होती हुई वह मुस्काराई।

“मैं सदैव हर बात के लिए तैयार रहता हूँ,” एड्जूटेण्ट बोला। अपने विरुद्ध प्रिन्सेज के खेलने से वह बहुत प्रसन्न था, क्योंकि प्रिन्सेज को खेलने का बिल्कुल ज्ञान नहीं था। पोल्तोरत्स्की ने सहजता से बाहें फैलायीं और मुस्कराया।

प्रिन्स जब ड्राइंग रूम में वापस लौटा खेल समाप्त हो रहा था। वह बहुत उत्तेजित और प्रसन्न था।

“सोचो, मैं क्या सूचित करने वाला हूँ।”

“क्या? ”

“आओ हम शैम्पेन पियें।”

“मैं सदैव तैयार रहता हूँ, ” पोल्तोरत्स्की ने कहा।

“हां, कितना सुखद, ” एड्जूटेण्ट बोला।

“वसीली ! हम लोगों को शैम्पेन सर्व करो !” प्रिन्स ने कहा।

“तुम्हें क्यों बुलाया था?” मेरी वसीलीव्ना ने पूछा।

“ड्यूटी अफसर एक दूसरे आदमी के साथ आया था?”

“कौन? क्यों?” मेरे वीसीलीव्ना ने उत्सुकतापूर्वक पूछा।

“मैं नहीं बता सकता,” वारोन्त्सोव बोला।

“तुम नहीं बता सकते,” मेरी वसीलीव्ना ने दोहराया, “हम उस पर विचार कर लेगें।”

शैम्पेन सर्व की गई। अतिथियों ने एक-एक गिलास पिया, खेल समाप्त किया, व्यवस्थित हुए और जाने लगे।

“आपकी कम्पनी को कल जंगल के लिए तैनात किया गया है, क्या नहीं? ” प्रिन्स ने पोल्तोरत्स्की से पूछा।

“हाँ, मेरी ... वहाँ कुछ खास है? ”

“तब मैं आपसे कल मिलूंगा।” प्रिन्स ने फीकी मुस्कान के साथ कहा।

“मैं गौरवान्वित हूँ,” मेरी वसीलीव्ना से हाथ मिलाने के विचार के संभ्रम में पोल्तोरत्स्की प्रिन्स के शब्दों को पूरी तरह ग्रहण नहीं कर पाया था।

मेरी वसीलीव्ना ने, प्राय: की भाँति, उसके हाथ को न केवल दृढ़ता से दबाया बल्कि जोरदार ढंग से हिलाया भी। उसने उसे एक बार पुन: उस समय की त्रुटि की याद दिलाई जब वह क्लबों का संचालन किया करता था। वह उस पर मुस्कराई।

“एक मोहक, उत्तेजक और अर्थपूर्ण मुस्कान,” पोल्तोरत्स्की ने सोचा। वह ऐसी उल्लासपूर्ण मनस्थिति में घर गया, जिसे समाज में उसकी तरह पढ़े-लिखे, उसी की भाँति जन्मे और पले-बढ़े लोग ही समझ सकते थे जो उसी की तरह महीनों के एकाकी सैनिक जीवन के बाद अचानक अपनी किसी पूर्व परिचित महिला से मिलते हैं। और प्रिन्सेज वोरोन्त्सोव एक विशिष्ट महिला थीं।

जब वह अपने निवास पर पहुँचा उसने दरवाजे को धक्का दिया, लेकिन चिटखनी अंदर से बंद थी। उसने खटखटाया, लेकिन वह बंद ही रहा। उसका धैर्य चुक गया और उसने बूट और तलवार दरवाजे पर मारना शुरू कर दिया। अंदर पदचाप सुनाई पड़ी और पोल्तोरत्स्की के नौकर ववीला ने चिटकनी खोली।

“मूर्ख, तुमने बंद क्यों किया था? ”

“लेकिन सच, अलेक्सिस व्लादीमीर …।”

“दोबारा पी? मैं तुझे सबक सिखा दूँगा …।”

पोल्तोरत्स्की ववीला को लगभग मारने ही वाला था, लेकिन फिर उसने उसे सुधारने की सोचा।

“तुझे लानत है, सुधरने की कभी मत सोचना। चल, मोमबत्ती जला।”

“इसी क्षण।”

ववीला बुरी तरह पिये हुए था। वह क्वार्टर मास्टर के जन्म दिन के आयोजन में शामिल हुआ था। जब वह घर लौटकर आया, वह अपने जीवन की तुलना क्वार्टर मास्टर इवान मैथ्यू के जीवन से करने लगा। इवान मैथ्यू की निश्चित आय थी, वह विवाहित था और आशा करता था कि एक वर्ष में पैसे देकर वह अपने को सेना से मुक्त कर लेगा। ववीला छोटी आयु में ही नौकरी में आ गया था, और इस समय वह चालीस से ऊपर था, अविवाहित था और अपने अनियंत्रित स्वामी के साथ यौद्धिक जीवन जीता आ रहा था। वह एक अच्छा मालिक था और कभी-कभी ही उसे पीटता था, लेकिन यह भी कोई ज़िन्दगी थी ! “जब वह काकेशस से लौटा था तब उसने मुझे स्वतंत्र करने का वायदा किया था, लेकिन मैं अपनी स्वतंत्रता का करूंगा क्या? यह एक कुत्ते जैसी ज़िन्दगी है,” ववीला ने सोचा था। वह इतना उनींदा था कि उसने इस भय से दरवाजा बंद कर लिया था और सो गया था कि कोई घर में घुस आ सकता था और कुछ भी चोरी कर सकता था।

पोल्तोरत्स्की उस कमरे में प्रविष्ट हुआ जहाँ वह अपने साथी तिखोनोव के साथ सोता था।

“अच्छा, तुम हार गये? ” उनींदे स्वर में तिखोनोव बोला।

“भगवन, नहीं ! मैनें सत्तरह रूबल जीते और हमने एक बोतल क्लिकोट पी।”

“और मेरी वसीलीव्ना को देखते रहे? ”

“और मेरी वसीलीव्ना को देखता रहा। ” पोल्तोरत्स्की ने दोहराया।

“जल्दी ही हमारे जागने का समय हो जाएगा।” तिखोनोव ने कहा, “हमें छ: बजे चल देने के लिए उठना है।”

“ववीला,” पोल्तोरत्स्की चीखा, “ध्यान रहे, मुझे ठीक पाँच बजे जगा देना।”

“मैं कैसे जगा सकता हूँ जब आप मुझसे झगड़ते हैं? ”

“मैं कहता हूँ, मुझे जगा देना। सुना तुमने?”

“बहुत अच्छा।”

ववीला अपने मालिक के जूते और कपड़े लेकर बाहर निकल गया।

पोल्तोरत्स्की बिस्तर पर गया और एक सिगरेट जलायी। उसने बत्ती बुझायी और मुस्कराया। अंधेरे में उसने मेरी वसीलीव्ना का मुस्कराता चेहरा अपने सामने देखा।

वोरोन्त्सोव दम्पति तुरंत बिस्तर पर नहीं गया था। जब अतिथि चले गये थे तब मेरी वसीलीव्ना अपने पति के पास आयी थी और चेहरे पर कठोरता ओढे़ उसके सामने खड़ी हो गयी थी।

“हाँ, तुम्हे मुझे बाताना ही है? ”

“लेकिन मेरी प्यारी …। ”

“तुम मुझे ‘मेरी प्यारी’ मत कहो। वह एक दूत है, क्या नहीं है? ”

“सच, मैं तुम्हें नहीं बता सकता।”

“तुम नहीं बता सकते? तब वह मैं तुम्हें बताऊंगी।”

“तुम? ”

“वह हाजी मुराद है? क्या वह नहीं है? ” प्रिन्सेज ने कहा, जिसने कुछ दिन पहले हाजी मुराद के साथ हुए समझौते के विषय में सुना था। उसने अनुमान लगाया था कि हाजी मुराद स्वयं उसके पति से मिलने आया था।

वोरोन्त्सोव इससे इंकार नहीं कर सका, लेकिन हाजी मुराद की उपस्थिति के विषय में पत्नी का भ्रम निवारण करते हुए उसने कहा, कि वह केवल एक दूत था जिसने उसे बताया था कि अगले दिन हाजी मुराद उससे वहाँ मिलेगा जहाँ जंगल काटा जा रहा था।

छावनी के उकताहटपूर्ण जीवन-चर्या में युवा वोरोन्त्सोव दम्पति इस उत्तेजनापूर्ण समाचार से प्रसन्न थे। वे इस विषय में बातें करते रहे कि इस समाचार से उसके पिता कितना प्रसन्न होंगे। और जब वे सोने के लिए बिस्तर पर गये रात के दो बज चुके थे।