भाभीजी सनीमा को बचाएं / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :07 अगस्त 2017
छोटे परदे पर 'बिग बॉस' नामक कार्यक्रम के ताजे संस्करण में शिल्पा शिंदे शामिल की जा रही हैं। 'भाभीजी घर पर हैं' नामक लोकप्रिय कार्यक्रम के प्रारंभिक दौर में शिल्पा शिंदे सबसे अधिक लोकप्रिय कलाकर सिद्ध हुई थीं परंतु निर्माता से विवाद के बाद वे हट गईं और उनके पात्र के लिए अन्य कलाकार को लिया गया। नई कलाकार भी पसंद की जा रही हैं परंतु शिल्पा शिंदे वाला जुनून वे नहीं जगा पाईं। सच तो यह है कि इस लोकप्रिय कार्यक्रम का श्रेय इसके लेखकों को है, जो इतना बढ़िया लिखते हैं कि किसी भी कलाकार को स्वीकार कर सकते हैं। जिस तरह 'जंजीर', 'दीवार', का श्रेय सलीम-जावेद को दिया जाता है, उसी तरह 'भाभीजी' का श्रेय भी लेखक को दिया जाना चाहिए। आर.के. लक्ष्मण ने अपने कार्टून के लिए आम आदमी का पात्र रचा था जिसके लिए वे उच्चतम पुरस्कार से हकदार थे परंतु नोबल पुरस्कार की श्रेणियां सीमित हैं।
एक दौर में 'धर्मयुग' में आबिद सूरती द्वारा बनाई गई शृंखला में 'ढब्बूजी' का पात्र अत्यंत लोकप्रिय रहा। इस क्षेत्र में आर्ची कॉमिक्स अजर अमर रचना है। 'आर्ची' में ही पिता अपने किशोरवय के पुत्र से कहता है कि 'यह तुम्हारी उम्र नहीं है प्यार के लिए, तुम अभी कम वय के हो' इसी संवाद से प्रेरित होकर राजकपूर ने 'बॉबी' फिल्म की रचना की थी। इसी फिल्म के लिए विट्ठलभाई पटेल का लिखा गीत 'वे कहते हैं उम्र नहीं है प्यार की, नादां हैं, वे क्या जाने कली खिल चुकी बहार की' रिकॉर्ड किया गया, परंतु किसी कारणवश फिल्म में समावेश नहीं किया गया। फिल्मों में कई गीत बने जिनका प्रयोग नहीं हो पाया। हर सृजनशील व्यक्ति अपने अवचेतन में जन्मे सारे विचारों को यथार्थ में अभिव्यक्त नहीं कर पाता और ये बाहरी सेन्सर के कारण नहीं होता। हमारा जीवन फिल्म की असंपादित रीलों की तरह है जिसमें अधिकांश का उपयोग ही नहीं हो पाता गोयाकि पहलाज निहलानी एक मात्र सेन्सर के तानाशाह नहीं हैं। हम सब लोगों में 'पहलाज' कहीं छुपे दुबके रहते हैं।
'भाभीजी' कार्यक्रम में कुल जमा नौ पात्र हैं, जिनमें आठ तो सशरीर मौजूद हैं परंतु नौवां मीनल नामक पात्र अदृश्य रहता है। गोरी मेम प्राय: उससे फोन पर बात करती है।
इस सीरियल में सक्सेना नामक पात्र को पिटने में आनंद मिलता है और वह पीटने वाले को धन्यवाद भी देता है। यह पात्र हमारे अवाम की तरह व्यवस्था द्वारा सदा पीटा जाता है और अवाम धन्यवाद स्वरूप चुनावी मत भी उसी को देता है। इस तरह की प्रवृत्ति वाले लोगों को 'मेसोचिस्ट' कहते हैं और त्रासद देने वाले को 'सेडिस्ट' कहते हैं परंतु ये शब्द सेक्स दायरे में सिमट गए हैं। सारा संसार शयन कक्ष में सिमट जाता है या कहें कि शयन कक्ष फैलकर संसार हो जाता है। शोषण, अत्याचार, इच्छा की हत्या या हत्या की बलवती होती इच्छा, ये सभी वहीं अंकुरित होती हैं। नपुंसक के तानाशाह बन जाने के अवसर बहुतेरे होते हैं।
यह लेखन एवं प्रस्तुतीकरण का कमाल है कि यौन संबंध जैसे 'प्रतिबंधित' विषय को भी इस कदर झीनी परदेदारी से प्रस्तुत किया जाता है कि सारे परिवार के साथ बैठकर देखने वाला कार्यक्रम बन चुका है। सैक्चुएल्टी की धारा सतह के नीचे प्रवाहित है। इन्सपेक्टर हप्पूसिंह का पात्र सबसे अधिक लोकप्रिय है। चरित्र चित्रण के साथ ही अदाएगी को भी बराबर का श्रेय दिया जाना चाहिए। वह भ्रष्ट होते हुए भी प्यारा लगता है क्योंकि वह कुटिल प्रवृति का नहीं है। दरअसल उसकी उर्वरक पत्नी व नौं ठइयां बच्चे भी अदृश्य पात्र की श्रेणी में आते हैं और गौर से देखें तो वह मोहल्ला भारत ही है। इतना ही नहीं, भारत अपने इतिहास व आदिम प्रवृतियों के साथ मौजूद है। सारे पात्र मन ही मन 'गोरी मेम' को चाहते भी हैं और उससे आतंकित भी रहते हैं। उसके द्वारा शासित होने की तमन्ना सभी की है। यह रिश्ता हमारा अपने पुराने 'आका' अंग्रेजों से भी है। मौजूदा व्यवस्था की असफलता भी इस कामना को जगाती है।
दरअसल भाभी नामक रिश्ता ही कमाल का है। इसी से जन्मी कहावत है 'गरीब की जोरू, सबकी भाभी'। हुक्म का लहराता कोड़ा हमेशा भाभी की पीठ पर पड़ता है। देवर-भाभी लाड़ औ शरारत का रिश्ता है। सम्मोहित देवर प्राय: अपनी पत्नी में अपनी भाभी की झलक खोजता रहता है।