भारतीय दर्शन साहित्य में सार्वभौम जीवन मूल्य / कविता भट्ट

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वैश्विक कल्याण हेतु अतिप्राचीन भारतीय सभ्यता ने नैतिक मूल्यों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से युक्त जीवनशैली को सतत् जीवन मूल्यों के रूप में परिपोषित और व्याख्यायित किया। आज जब तथाकथित धर्म के नाम पर सर्वाधिक हिंसा और वैमनस्य का वातावरण निर्मित है; ऐसे में भारतीय साहित्य में निहित जीवन मूल्यों पर एक विहंगम दृष्टि अनिवार्य है। वैदिक युग से ही भारतीय ऋषि-मुनियों ने मनुष्य के कल्याण तथा सर्वार्थ सिद्धि हेतु अनेक उत्कृष्ट मार्ग निर्दिष्ट किए। भारतीय जीवन मूल्यों को सूत्रात्मक और व्यवस्थित रूप से स्पष्ट करते हुए वैदिक काल से ही उत्कृष्ट साहित्य श्रुतिरूप में प्रस्फुटित हुआ। उदाहरण के लिए यदि पर्यावरणीय जीवन मूल्यों की बात की जाए तो पीपल का वृक्ष सर्वाधिक प्राणवायु प्रदाता, तुलसी और हल्दी इत्यादि एन्टीबायोटिक हैं; यह पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने आज जाना; किन्तु वेदों में इसे सदियों पूर्व ही पूजनीय वृक्ष घोषित करके इसकी पूजा को नित्यप्रति की दिनचर्या का अंग बना लिया गया था। इसी प्रकार अनेक ऐसे उदाहरण हैं; जो भारतीय ऋषि-मुनियों की असीम मेधा को परिलक्षित करते हुए उद्धृत किए जा सकते हैं।

आचरणगत परिशुद्धि और नियमन को ध्यान में रखते हुए वेद, उपनिषद्, मनुस्मृति, ब्रह्मसूत्र, श्रीमद्भगवद्गीता, पातंजलयोगसूत्र, घेरण्ड संहिता और हठप्रदीपिका इत्यादि जैसे अनेक पौराणिक ग्रन्थों के आलोक में हम सार्वभौम नैतिक मूल्यों को अध्ययनोपरान्त कल्याण हेतु जीवनमूल्यों के रूप में ग्रहण कर सकते हैं। वैयक्तिक उन्नयन की दृष्टि से भारतीय मनीषियों ने सदैव मनोशारीरिक परिशुद्धि, आहार-विहार, इन्द्रिय-निरोध इत्यादि को केन्द्र में रखा। व्यक्तित्व में अन्तर्निहित शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान जैसे वैयक्तिक नियम हों या फिर यम के रूप में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह जैसे सार्वभौम नैतिक मापदण्ड हों; इन सभी को भारतीय मनीषियों ने प्रासंगिक साहित्य के द्वारा सांगोपांग विवेचित किया। भारतीय दर्शन (चार्वाक् को छोड़कर) सार्वभौम जीवन मूल्यों को ही कल्याण का हेतु मानता है। यों तो सार्वभौम जीवन मूल्य सम्पूर्ण भारतीय दर्शन साहित्य में निर्दिष्ट हैं; किन्तु सनातन सभ्यता के आधार ग्रन्थ गीता और पातंजलयोगसूत्र में इसका यथोचित व सर्वाधिक व्यवस्थित विवेचन प्राप्त होता है। विश्व गुरु की उपाधि से विभूषित भारत की सभ्यता का प्राचीन दर्शन यहाँ के साहित्य का मूल है; यदि यह कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। दुःख की आत्यंतिक निवृत्ति या मोक्ष को ही परमलक्ष्य मानते हुए मानव जीवन को चार आश्रमों में विभाजित भी किया गया है-धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष। मोक्ष ही सर्वोच्च जीवन मूल्य है; जिसे कैवल्य, अपवर्ग तथा मुक्ति इत्यादि भी कहा गया है। मानव वैयक्तिक और सामाजिक उन्नयन के साथ संतुलन बनाते हुए परम लक्ष्य मोक्ष के लिए अहर्निश प्रयास करे; यही भारतीय साहित्य में निहित जीवन मूल्यों के अनुपालन का निहितार्थ है।