भारतीय लोकतंत्र: वाया सफरेज ऑफ अलवीरा / सविता पाठक

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वी.एस. नायपाल का नाम किसी के लिए भी नया नहीं है। त्रिनिदाद एंड टोबैगो में जन्में इस भारतवंशी को साहित्य का नोबल भी मिल चुका है। गोरखपुर के बाँसगाँव तहसील के एक छोटे से गाँव से विदेशी धरती पर विस्थापित उनके पुरखों ने वहाँ भी एक समाज की रचना की। जो काफी कुछ हमारे पूरब के किसी समाज जैसा ही है। उनकी प्रसिद्ध कृति द सफरेज आफ अलवीरा में इसी गाँव में चुनावी हलचलों की एक झलक है। विदेशी धरती पर स्पैनिश और नीग्रो लोगों के साथ भारतवंशियों की आबादी है। देखिए, शायद हमारे वहाँ चलनेवाले चुनावों के नजारे यहाँ भी दिख जाएँ -

'तो क्या हुआ हमें स्पैनिश वोट नहीं देते, हमारे पास तीन हजार हिंदू और एक हजार मुस्लिम वोट हैं। पादरी को तो कुल तीन हजार वोट मिलना है, दो हजार काले लोगों का और एक हजार हिंदुओं का। मुझे नहीं लगता कि हम हारेंगे।' पंडित धनीराम बोले, 'मुझे समझ में नहीं आ रहा कि एक हजार हिंदू वोट पादरी के खाते में कैसे जा रहे हैं। लखरूर तो इतने वोट कंट्रोल नहीं करता।' फोम तुरंत बोल पड़ा, 'ज्यादा माथापच्ची न करो, पादरी ने हिंदू परिवारों की मदद की है। दूसरे, हिंदू जब ये देखेंगे कि लखरूर हिंदू होकर पादरी की मदद कर रहा है तो वे भी उसी को वोट देना चाहेंगे। वैसे लखरूर प्रचार करता फिर रहा है कि लोगों को जाति-धर्म के बारे में नहीं सोचना चाहिए। वो यह भी समझाता है कि हिंदुओं को किसी दूसरे धर्म को वोट देने में कोई बुराई नहीं।'

'उसको तो लतियाए जाने की जरूरत है' बख्श खिसियाकर बोला। चितरंजन सुनार ने हामी भरते हुए जोड़ा कि चुनाव के समय इस तरह की बात बहुत खतरनाक है। लखरूर खुद नहीं जानता कि वह क्या कह रहा है।

हरबंश (प्रत्याशी) अपनी उँगली चटकाते हुए बोला मेरी तकदीर ही ऐसी है। ...पंडित धनीराम ने सिगरेट का एक कश खींचा, धोती थोड़ी ऊपर चढ़ाई और उछल पड़े 'आइडिया'। सब उनकी तरफ पलटे। 'थोड़ा रुपया खर्च करना पड़ेगा। यहाँ एलवीरा में चुनाव प्रचार कमेटी को सोशल वेलफेयर कमेटी की तरह काम करना पड़ेगा। जैसे अगर कोई काला आदमी बीमार पड़ता है तो भागकर उसके यहाँ हम पहुँचें, अपनी टैक्सी में उसको डाक्टर के यहाँ ले जाएँ, उसकी दवा-दारू का इंतजाम करें।' चितरंजन ने फिर दाँत भींचा - धनीराम तुम क्या बात कर रहे हो। तुमको नहीं पता कि ये काले लोग कितने चीमड़ होते हैं। तुमने कभी किसी नीग्रो को बीमार पड़ते देखा है। वो तो बस गिरते हैं और मर जाते हैं। वो भी अस्सी-नब्बे की उमर में। धनीराम बोले - चलो वैसे समझो कि किसी काले आदमी के मरने पर हम क्रिया-कर्म का जिम्मा ले लें। जैसे काफी-बिस्कुट का इंतजाम कर दें। बख्श तुरंत बोला - तुम्हें लगता है कि इससे हमें काले लोग वोट देंगे। धनीराम - दें न दें, कम से कम उन्हें शरम तो आएगी। महादेव तुरंत हाथ नचाकर बोला, बुड्ढा सेबेस्टियन पक्का चुनाव से पहले टपकेगा। फोम ने हामी भरी - हाँ, ये बात पक्की है...।

...चुनाव प्रचार ने जोर पकड़ लिया। पादरी घर-घर जाकर प्रचार कर रहा था। लखरूर ने अपने भोपे से पूरे जिले को दहला दिया था।

चितरंजन ने करबोडा का फिर से दौरा किया ताकि वोट पक्का कर सके। फोम भी पूरी वफादारी के साथ अपने लाउडस्पीकर वैन के साथ लगा रहा। हरीचंद को भी मनमाँगी मुराद यानी पोस्टर छापने का आर्डर मिल गया। पंडित धनीराम अपनी हर कथा-भागवत में हरबंश को वोट देने के लिए प्रेरित करने लगे। महादेव बूढ़े सेबेस्टियन पर पूरी निगाह गड़ाए रहा। शुक्र है सेबेस्टियन भी दिन ब दिन झुरा रहा था। महादेव उसे कभी पाँच सिलिंग तो कभी दो डालर हर हफ्ते दवा-दारू के लिए दे रहा था। हरबंश ने अब हिंदू बीमारों के यहाँ जाना बंद कर दिया था। वह जब भी एलवीरा आता, सीधे महादेव से ही हिसाब-किताब कर लेता। 'अच्छा बताओ, आज कितने बीमार हैं। और किसको-किसको कितना पैसा देना है।' महादेव तुरंत अपनी छोटी लालरंग की बही निकालकर शुरू हो जाता, 'आज मंगल कुछ ठीक सा नहीं है। उसको दो डालर देने होंगे। लक्ष्मन कह रहा था कि उसके पेट में दर्द है, काफी बड़ा परिवार है उसका, कुल छह वोट हैं उसके घर से, सोचता हूँ उसको दस डालर देना अच्छा होगा, चलो दस न सही तो पाँच पक्का ही। राम अतार भी बेवकूफ बना रहा है, वैसे तो वह इतना मूढ़ है कि कायदे से एक्स तक नहीं बना सकता, उसका वोट पक्का ही बेकार होगा, लेकिन फिर भी उसको एकाध डालर दे दो, इससे तुम्हारा अच्छा प्रचार होगा'

रामलोगन की दारू की दुकान चमक उठी थी। यहाँ हरबंश का दारू का एकाउंट तेजी से बढ़ रहा था। रामलोगन भी हर पीने वाले को बिना कहे-सुने दारू पिलाता था। 'इलेक्शन तो साला एक बार में ही खतम हो जाएगा, मुझे तो सभी के साथ रहना है, क्या फर्क पड़ता है कि कौन किसको वोट देता है' चितरंजन कभी दारू की दुकान में नहीं गया, उसने फोम के साथ मिलकर एक दारू का वाउचर तैयार किया था। जो कि रामलोगन से बदल सके। हरिचंद ने वो वाउचर छापा था...। ...और इस तरह एलवीरा में लोकतंत्र ने अपनी जड़ें जमाई। हरबंश चुनाव जीत गए। पादरी की जमानत जब्त हो गई।