भारतीय समाजवादी सभा / कांग्रेस-तब और अब / सहजानन्द सरस्वती
भारत के विभिन्न वामपक्षी, समाजवादी एवं प्रगतिवादी दलों तथा संगठनों ने, जिनकी संख्या 20 से अधिक थी, मिलकर सर्व-सम्मति से 'भारतीय संयुक्त समाजवादी सभा' की स्थापना अभी हाल ही में नेताजी-भवन, कलकत्ता में की। इसमें बहुसंख्य ऐसे व्यक्तियों और विद्वानों ने भी योग दिया, जो समाजवाद एवं साम्यवाद में विश्वास रखते हुए भी किसी वामपक्षी या समाजवादी दल के सदस्य नहीं हैं। विभिन्न दलों और संगठनों के प्रतिनिधि भारत के सभी प्रांतों से आए थे। शायद ही कोई प्रांत बचा हो। जिससे युक्त समाजवादी सम्मेलन में यह महान कार्य संपन्न हुआ, उसमें उपस्थित प्रतिनिधियों की संख्या प्राय: तीन सौ थी। श्री शरदचंद्र बोस ने इस सम्मेलन का आयोजन किया था। उद्धाटन भी उन्हीं ने किया। 28, 29, 30 अक्टूबर, 1949 को यह सम्मेलन क्रमश: स्वामी सहजानंद सरस्वती, श्री शंकरराव मोरे और जनरल मोहन सिंह की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। भारतीय संयुक्त समाजवादी सभा के अध्यक्ष श्री शरदचंद्र बोस चुने गए। सम्मेलन में शरीक सभी दलों के दो-दो प्रतिनिधियों को मिलाकर अस्थायी जनरल कौंसिल बनाईगई, जिसके लिए देश भर से 10 प्रतिनिधियों को सभापति उन व्यक्तियों में से नामजद करेंगे, जो किसी दल से संबध्द न होते हुए भी जन-प्रतिनिधित्व की हस्ती रखते तथा सम्मेलन के मंतव्यों को मानते हैं। इस प्रकार कम-बेश 50 सदस्यों की वह कौंसिल होगी, जिसकी पहली बैठक कलकत्ता में 4 दिसंबर, 1949 को होगी। उसी में मंत्रिायों आदि का चुनाव होगा। वही कौंसिल भारतीय संयुक्त समाजवादी सभा का विधान भी तैयार करेगी, जो उस सभा के अगले खुले अधिवेशन में स्वीकार होने के लिए पेश होगा। यह अधिवेशन अगले मार्च-अप्रैल तक होगा। सम्मेलन में श्री मावसेतुंग के नेतृत्व में चीनी जनता की विजय, वहाँ जनता की प्रजासत्ताक सरकार की स्थापना एवं च्यांग कैशेक के शासन के ध्वंस पर खुशी जाहिर की गई और चीनी जनता तथा उसकी नवीन सरकार को बधाई दी गई। भारत सरकार उसे फौरन मान ले, यह माँग भी की गई। कांग्रेसी सरकारों के द्वारा जो दमन की चक्की चालू है, उसकी निंदा भी इस सम्मेलन ने की। भारतीय संयुक्त समाजवादी सभा के लक्ष्य, नाम तथा कार्यक्रम के संबंध में नीचे लिखी घोषणा तैयार की गई ─
"द्वितीय विश्वयुध्द के खत्म होते-न-होते पूर्वी एशिया तथा यूरोप की जनता में भीषण क्रांतिकारी उफान नजर आया। क्रांति और नई सामाजिक व्यवस्था संभव हो गई। पश्चिमी यूरोप में साम्राज्यवादियों के सीधो हस्तक्षेप एवं चंद वामपक्षी राजनीतिक दलों के आगा-पीछा तथा वर्ग-सामंजस्यवाली चालों के फलस्वरूप किसी हद तक क्रांति का काम रुका सही; फिर भी दूसरे देशों में साम्राज्यवादी पूँजीवादी प्रणाली को निश्चित रूप से धक्का लगा। फलत: जनता के प्रयत्नों से राजनीतिक एवं सामाजिक बातों में मौलिक परिवर्तनों का श्रीगणेश संभव हो गया। यह भी बात है कि दक्षिण-पूर्व एशियावालों के विप्लवों पर हाल की चीन के स्वातंत्रय-आंदोलन की विजय ने पाश्चात्य साम्राज्यवादी प्रभुत्व को खोखला कर दिया है। समाजवाद तथा जनतंत्र का पलड़ा बेशक भारी हो गया है।
"वर्षों के युध्द के करते जीर्ण-शीर्ण तथा आर्थिक दृष्टि से छिन्न-भिन्न ब्रिटिश साम्राज्यवाद और उसके स्थिर स्वार्थ जो भारत एवं एशियाई देशों में फैले हैं, अपनी हस्ती की सबसे बड़ी उथल-पुथल का सामना कर रहे हैं। यूरोप तथा एशिया में सोवियत रूस का बढ़ता हुआ प्रभाव और संसार के बाजार पर अमरीका का प्रभुत्व ये दोनों ही इसे दोनों ओर से कतरने लगे। ऐसी दशा में ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने ठीक ही महसूस किया कि अपने लूट-खसोटवाले व्यापार के विशेष क्षेत्र के रूप में भारतीय बाजार को किसी भी मूल्य पर बचाना होगा; फलत: अमेरिका के संसारव्यापी प्रभुत्व तथा सोवियत रूस के पूर्व-पश्चिम (दोनों ओर) फैलनेवाले प्रभाव के विरुध्द भारतीय पूँजीपतियों के साथ साठ-गाँठ अनिवार्य रूप से आवश्यक है। भारतीय जनता के क्रांतिकारी विचारों में वृध्दि देखकर भी ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने अच्छी तरह मान लिया कि उसकी अपनी हस्ती के लिए भी भारतीय पूँजीवादियों से सट्टा-गुट्टा एक ऐतिहासिक आवश्यकता है और इसके लिए, जितना शीघ्र हो, अनिवार्य कदम बढ़ाना ही होगा।
"कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के नेताओं एवं ब्रिटिश साम्राज्यवाद के बीच सौदे के फलस्वरूप 1947 के अगस्त में शासन-सत्ता हस्तांतरित करने की रस्म अदाई हुई। इस प्रकार एक ओर ब्रिटिश साम्राज्यवाद और दूसरी ओर भारतीय पूँजीवादियों को मिलाकर एक मोर्चा भारतीय जन-क्रांति के विरुध्द तैयार हुआ। नेहरू सरकार, जो भारतीय स्थिर स्वार्थों की सरकार है, अपने वर्ग-स्वभाव के करते ही उन समस्याओं को सुलझा नहीं सकती, जो भारतीय जनता के सामने खड़ी हैं। भारत में विद्यमान पूँजीवादी सामाजिक व्यवस्था के रहते भारतीय जनता को गरीबी और भूख के पंजों से त्राण नहीं मिल सकता। नेहरू और पटेल की सरकार तो स्थिर स्वार्थों की है। अमीरों के हाथों गरीबों की लूट को यह सरकार क्षमा प्रदान करती है। उद्योग-धंधों के राष्ट्रीयकरण को इसने पाँव तले रौंद दिया है। जमींदारों के द्वारा चुराईगई चीज (जमीन) को उनसे उगलवाने-जमींदारी को मिटाने के लिए मुआविजा देने के ख्याल से यह सरकार किसानों से रुपए के रूप में उनका खून निचोड़ रही है। अमीरों पर जो अतिरिक्त आय-कर लगा था, उसके भार को यह कम कर रही है। लेकिन, श्रमजीवी वर्ग के द्वारा गुजारे लायक मजदूरी की माँग को इसने बेरहमी से दबा दिया है। शरणार्थियों एवं विपन्न मध्यमवर्गियों के सभी प्रतिवाद आंदोलनों के उभड़ने को इसने बर्बरतापूर्ण बहशियाना कामों के द्वारा दबा दिया है। जनता के स्वतंत्र भाषण तथा आजाद संगठन के अपरिहरणीय अधिकारों को इसने लूट लिया है और विशेष आईन-कानूनों के द्वारा शासन जारी कर दिया है।
"यह सरकार पूँजीपतियों, चोरबाजारियों तथा भ्रष्ट पुलिस अफसरों के, जो खुफिया विभाग के बैरकों में राजबंदियों के साथ अमानुषिक बर्ताव संबंधी साम्राज्यवादी परंपरा को जारी रखना चाहते हैं, उभाड़ने पर लोगों को गिरफ्तार करती है। इसमें आजाद हिंद फौज एवं दूसरे फौजियों के साथ, जिनने बहादुरी से भारतीय स्वतंत्रता के लिए युध्द किया, अपमानजनक व्यवहार किया है। जो ब्रिटिश साम्राज्यवाद आज राष्ट्रसंघ के बुर्के के नीचे मौजूद है, उसके सामने इसने आत्मसमर्पण किया है। नेहरू सरकार ने जो मुद्रा के मूल्य को घटाया है, वह ग्रेट ब्रिटेन के पूर्ण पिछलग्गू बनने का सबसे ताजा और जबर्दस्त नमूना है। यह चीज हमारी सारी राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के लिए घातक है। नेहरू-सरकार ब्रिटिश-अमरीका गुट का अर्दली बन गई है।
पूँजीवादियों, चोरबाजारियों, कंपनियों के हिस्सेदारों और जमींदारों की इस स्थिर स्वार्थवाली सरकार को खत्म करना होगा तथा इसकी जगह किसानों, मजदूरों एवं विपन्न मध्यवर्गीयों की सरकार स्थापित करनी होगी। जनतांत्रिक जनता की यह सरकार ही भारतीय राष्ट्रीय स्वार्थों की प्रगति कर सकती है। सिर्फ वही एक-एक कर के सबों को खाना, कपड़ा, शिक्षा तथा स्वास्थ्य निश्चित रूप से दे सकती है। केवल वही हमारे देश के जन-समूह का सर्वांगीण उध्दार कर सकती है।
(इसी दृष्टि से) भारतीय संयुक्त समाजवादी सभा नीचे लिखे लक्ष्य तथा कार्यक्रम के संबंध में अपने-आपको संकल्पबध्द करती है। यह लक्ष्य एवं कार्यक्रम भारतीय जनता के आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक जीवन के सभी पहलुओं को अपनाता है─
नाम-इस संस्था (संगठन) का नाम होगा, भारतीय संयुक्त समाजवादी सभा (युनाइटेड सोशलिस्ट ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया)।
लक्ष्य-(अ) भारत में समाजवादी प्रजासत्ताक राज्यों के संघ की स्थापना इसलिए करना कि यहाँ वर्गविहीन समाज की स्थापना हो जाए, जिसमें मनुष्य के द्वारा मनुष्य का शोषण लापता होगा और यह सिध्दांत मान्य होगा कि हरेक से उसकी योग्यता के अनुसार काम लिया जाए और उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति की जाए, यही इस सभा का लक्ष्य होगा।
(ब) समाजवादी प्रजासत्ताक राज्यों के इस संघ की बुनियादी रूपरेखा यही होगी कि उत्पादन, वितरण तथा विनिमय के साधनों पर समाज का अधिकार होगा और अन्यान्य बातों के सिवाय यह संघ फौरन ही आदेश जारी करेगा कि─
(1) बिना मुआविजा जमींदारी (भूमि का आधिपत्य) खत्म हो।
(2) पूँजीवादी ढंग का शोषण खत्म हो तथा बुनियादी, विस्तृत एवं मूलभूत उद्योग-धंधे समाज की संपत्ति हों।
(3) जनता के उपयोग के सभी विभाग समाज के हाथ में हों।
(4) जमीन जोतने-कोड़नेवालों (किसानों) की ही हो। इस संबंध में वही और उतने ही बंधन हों, जो राष्ट्र तथा जोतने-कोड़नेवालों के हित-साधक हों।
(5) खेती संबंधी सभी ऋण माफ हों।
(6) बैंक तथा ऋण देनेवाली अन्य संस्थाएँ समाज की हों।
(7) विदेशी कारोबार पर राष्ट्र का एकाधिपत्य हो।
(8) देश के भीतर कारोबार और रोजगार के लिए नियम-कायदे राष्ट्र सरकार बनाए।
(9) मौजूदा विदेशी स्थिर स्वार्थ मिटा दिए जाएँ।
(10) जनता के निवास-स्थान की व्यवस्था सरकार करेगी।
(11) खानें, खनिज पदार्थ, जंगल, नदियाँ और समुद्री किनारे के जल जैसे प्राकृतिक पदार्थों पर राष्ट्र (सरकार) का अधिकार होगा।
(12) शक्ति के मूलभूत साधन विद्युत शक्ति कोयले, तेल एवं शक्तिदायक आसव (शराब) तथा इस शक्ति के उत्पादक कल-कारखाने राष्ट्र (सरकार) के हाथों में होंगे और वही उन्हें चलाए तथा नियंत्रण में रखेगा।
(13) जन-स्वास्थ्य संबंधी सभी विभाग समाज के हाथ में होंगे और सबों के लिए दवा-दारू का पूरा प्रबंध होगा।
(14) सबों को पूरा काम मिलेगा, भिखमंगी न रहेगी और ऐसी व्यवस्था होगी कि यदि दैवात बेकारी हो जाए, तो भी आराम का जीवन गुजरे। बुढ़ापे, बीमारी, शारीरिक अयोग्यता, संतानोत्पत्ति की दशा तथा अनाथ बच्चों के लिए भी वही व्यवस्था हो।
(15) सभी शिक्षा-संस्थाएँ समाज के हाथ में हों, जिनमें धार्मिक शिक्षा न दी जाए। सबों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था हो।
(16) सबों को सोचने-विचारने एवं पूजा-पाठ की पूर्ण स्वतंत्रता हो।
(17) समाजवादी राष्ट्र की आवश्यकताओं के अनुकूल सबों को सांस्कृतिक बातों में पूर्ण स्वतंत्रता हो।
(18) अस्पृश्यता एवं इसी तरह के जाति-भेद और ऊँच-नीच आदि के खयालों के नामोनिशान को बखूबी मिटा दिए जाने की व्यवस्था हो और सबों को समान अधिकार हों।
(19) स्त्री-पुरुषों के बीच पूर्ण समानता हो।
(20) सभी नागरिकों की नागरिक स्वतंत्रता अक्षुण्ण हो।
काम-भारतीय संयुक्त समाजवादी सभा का काम होगा साम्राज्यवाद तक सामंतवाद के सभी अवशेषों और पूँजीवाद के विरुध्द क्रांतिकारी संघर्ष चलाना, ताकि अप्रजातांत्रिक, अधिकनायकवादी एवं प्रतिगामी भारतीय स्थिर स्वार्थों की सरकार की जगह मजदूरों और किसानों की सरकार स्थापित हो।
कार्यक्रम-भारतीय संयुक्त समाजवादी सभा के संघर्ष का कार्यक्रम यों होगा कि वह─
(1) प्रतिनिधित्व-शून्य एवं अजनतांत्रिक मौजूदा विधान-परिषद के द्वारा निर्मित तथाकथित भारतीय विधान का अमान्य ठहराने के लिए जनता को ललकारेगी और कहेगी कि जनता की विधान-परिषद बुलाई जाए, जो सार्वजनिक बालिग मताधिकार के आधार पर चुनी जाए और भारत में समाजवादी प्रजासत्ताक राज्यों के संघ के लिए विधान बनाए, ताकि (अ) सरकार के संचालन में मजदूरों एवं किसानों को वाजिब स्थान मिले; (ब) संघ में सम्मिलित सभी भागों को पूर्ण स्वतंत्रता हो और (स) भाषा के आधार पर सभी प्रांतों के भू-भागों का फिर से बँटवारा हो।
सभा माँग करेगी कि─
(2) भारत ब्रिटिश राष्ट्रसंघ से पूर्ण संबंध-विच्छेद कर ले।
(3) ब्रिटिश अमरीकी साम्राज्यवाद के साथ कोई सट्टा-गट्टा न होगा।
(4) अंग्रेजों के हाथों निर्मित साम्राज्यवादी नौकरशाही तथा फौजी यंत्र के रूप में मुल्की, फौजी और पुलिस विभाग की जो नौकरियाँ हैं, उन्हें खत्म कर के नए ढंग से शासन-व्यवस्था के यंत्र का निर्माण हो तथा भारतीय परिस्थिति एवं जनता की भावना के अनुसार जनता का फौजी दल तैयार किया जाए।
(5) अनिवार्य फौजी शिक्षा दी जाए और हथियार-कानून खत्म हो।
(6) आजाद हिंद फौज के सभी सिपाहियों को फिर से भर्ती किया जाए और उन्हें बसाया न जाए।
(7) कल-कारखानेदारों ने जो युध्द में नफा कमाया है, वह और चोरबाजारियों तथा सट्टेबाजों की संपत्ति जब्त हो।
(8) फौरन ही वे दमनकारी कानून और ऑर्डिनेन्स (फरमान) रद्द किए जायें, जो बिना वारंट गिरफ्तारी, बिना मुकदमा चलाए नजरबंदी, नागरिक स्वतंत्रता में बंधन तथा हड़ताल के हक पर रोक की आज्ञा देते हैं।
(9) राजबंदियों और नजरबंदों की फौरन ही बिना शर्त रिहाई हो।
(10) सभी राजनीतिक दलों एवं मजदूर-किसान संगठनों पर लगे बंधन हटाए जाएँ।
(11) सभी मीटिंगों और जलूसों की रोक हटाई जाए, ताकि बोलने एवं संगठन की पूरी आजादी हो।
(12) सभी प्रकार की जमींदारियों तथा किसान एवं सरकार के मध्यवर्ती सभी प्रकार के स्वार्थों का खात्मा बिना मुआविजा किया जाए।
(13) खेती संबंधी ऋण माफ किए जाएँ, खेती की उन्नति के लिए सस्ते कर्ज तथा अन्य प्रकार की सरकारी सहायता की व्यवस्था हो और अलाभकर जमीनों से लगान लिया जाए।
(14) किसानों की उपज का लाभदायक मूल्य निश्चित हो, जिसमें खेती के खर्च के अलावे-(अ) उचित मुनाफा भी शामिल हो, (ब) खेत-मजदूरों की गुजारे लायक कम-से-कम मजदूरी निश्चित की जाए, और (स) किसानों के जीवन एवं खेती के लिए आवश्यक चीजों का मूल्य घटाया जाए।
(15) कल-कारखाने के मजदूरों को गुजारे लायक वेतन मिले।
(16) कानून के जरिए40 घंटे का हफ्ता और 7 घंटे रोज काम करना तय हो।
(17) लोगों को काम पाने का हक हो, नहीं तो, बेकारी का भत्ता मिले।
(18) हड़ताल करने का हक हो।
(19) सामाजिक सुरक्षा का हक सबको हासिल हो, जिसमें कोई भूखा-नंगा न रहे।
(20) ठेकेदारी पर काम करना उठा दिया जाए।
(21) सबों को भोजन, वस्त्र, निवास और दवा-दारू मिलने की गारंटी हो।
(22) मैट्रिक्युलेशन तक की शिक्षा मुफ्त एवं अनिवार्य हो।
(23) चोरबाजारी, जीवन की जरूरी चीजें जमा कर के छिपा रखने और शासन के भ्रष्टाचार के विरुध्द सख्त-से-सख्त दंड आदि की व्यवस्था हो।
(24) शरणार्थियों तथा अपने स्थानों से हटे-हटाए अन्य लोगों के लिए जमीन, मकान और काम देकर सहायता पहुँचाने तथा बसाने का प्रबंध हो।
(28,29,30 अक्टूबर, 1949 कलकत्ता)