भारत-चीन रिश्ते और 'आवारा' / जयप्रकाश चौकसे

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भारत-चीन रिश्ते और 'आवारा'
प्रकाशन तिथि :30 अप्रैल 2018


भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बिना किसी पूर्वनिर्धारित एजेंडे के अनौपचारिक चर्चा हुई है। इसी तरह उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के हुक्मरान भी एक-दूसरे से मिल चुके हैं। इन दोनों मुलाकातों का कोई आपसी रिश्ता जरूर है। चीन और भारत में यह समानता है कि दोनों ही देशों में भीतरी अशांति का लंबा इतिहास है। भारत ने अंग्रजों से मुक्त होकर एक अजीबोगरीब गणतंत्र व्यवस्था चुनी परंतु चीन ने तानाशाही को चुना। हमारी गणतांत्रिक व्यवस्था हमारे सामंतवाद का ही नया मुखौटा है और चीन ने कम्युनिज्म को अपनाते हुए पूंजीवादी व्यवहार जारी रखा है। उसके साधन समाजवादी हैं परंतु साध्य पूंजीवाद है। चीन का धन पश्चिमी देशों के उद्योगधंधे में लगा है। चीन अंतरराष्ट्रीय मंच पर हमेशा अपने कमजोर पत्ते पहले दिखाता है और ताश के शक्तिशाली पत्तों को अपने सीने से लगाए रखता है। कोई कभी जान ही नहीं पाता कि उसके असली इरादे क्या हैं।

चीन का भोजन पूरे विश्व में लोकप्रिय है परंतु हर देश में वह अलग ढंग से पकाया जाता है। भारत में नितांत भारतीय तड़का लगाकर चीनी भोजन पकाया जाता है। चीन के भोजन में पकने के बाद अजीनोमोटो जैसे कुछ पदार्थ मिलाए जाते हैं, जो उसका स्वाद तय करते हैं। यही पैंतरा उसकी राजनीति का भी सार है।

आजकल चीन में अन्य देशों की फिल्में दिखाई जाती हैं परंतु आय का मात्र पंद्रह प्रतिशत फिल्मकार को मिलता है और सारा लेन-देन हॉन्गकॉन्ग स्थित बैंक के माध्यम से होता है। चीन में 45 हजार सिनेमाघर है, जबकि भारत में महज आठ हजार सिनेमाघर हैं। भारतीय राज्यों में नए सिनेमाघर बनाने के नियम कठोर और अव्यावहारिक हैं। कई प्रांतों ने मनोरंजन कर समाप्त कर दिया था। एक सरकारी दल विदेश गया था, वहां के मनोरंजन कर नीति का अध्ययन करने के लिए परंतु विदेश में लोगों को यह जानकर आश्चर्य हुआ था कि भारत में मनोरंजन पर कर है, क्योंकि वहां यह माना जाता है कि मनुष्य को मनोरंजन का अधिकार रोजी-रोटी और मकान की तरह सहज ही उपलब्ध होना चाहिए। इसी दौरे के हास्यास्पद अंत के बाद कुछ प्रांतों ने मनोरंजन कर लगाना बंद किया था परंतु अब नए सिरे से इस कर को थोपने का इरादा जाहिर हुआ है गोयाकि जीएसटी के साथ म्युनिसिपल द्वारा लगाए गए शो टैक्स इत्यादि के बाद अल्पतम धन वितरक व प्रदर्शक को आपस में बांटना है। सारा खेल अवाम को मनोरंजन उपलब्ध न हो सके- इसी बात पर टिका है। उसे वादे के मुताबिक रोटी, कपड़ा, मकान तो दिया नहीं गया और अब उसके मनोरंजन को इतना महंगा करने का मनसूबा है कि वह इस मौलिक अधिकार से भी वंचित कर दिया जाए।

ताज़ा खबर यह है कि चीन राज कपूर की 'अावारा' बनाना चाहता है। पृथ्वीराज कपूर अभिनीत भूमिका ऋषि कपूर को दी जाएगी और उनके पुत्र रणवीर कपूर वह भूमिका अभिनीत करेंगे, जो राज कपूर ने की थी। सुना है कि इस निर्माण में रूस को भी शामिल किया जाएगा। ज्ञातव्य है कि ख्वाजा अहमद अब्बास से 'आवारा' की पटकथा सुनने राज कपूर मुंबई के शिवाजी पार्क क्षेत्र में एक श्मशान भूमि के निकट बने होटल में गए थे। अपनी लोकेशन के करण इस होटल का किराया कम था अौर इसीलिए अब्बास वहां स्थायी तौर पर रहते थे। अलसभोर तक पटकथा सुनकर राज कपूर ने एक रुपया पेशगी देकर पटकथा खरीदी, क्योंकि उस रात उनके पास पैसे कम थे। क्या यह संभव है कि अलसभोर की उस बेला में वहां अदृश्य रूप से मौजूद किसी यक्ष ने आशीर्वाद दिया और इसीलिए यह फिल्म अपने पहले प्रदर्शन के लगभग सत्तर वर्ष बाद भी लोकप्रिय है और उसे पुन: बनाने के प्रयास में चीन, रूस और भारत शामिल होंगे।

ज्ञातव्य है कि फिल्म बनने के बाद राज कपूर ने कुछ उपदेशात्मक दृश्यों को हटाकर एक गीत की रचना का निर्णय लिया, जिस पर लगभग उतनी ही लागत आई, जितनी शेष फिल्म पर आई थी। उस गीत में धरती, स्वर्ग व नर्क का आकल्पन किया या था। क्या इसके प्रस्तावित नए स्वरूप में स्वर्ग का सेट चीन में और नरक सेट भारत में लगेगा और धरती वाले दृश्य डोकलाम में शूट करेंगे? पूरा विश्व ही किसी फिल्म सेट की तरह नज़र आ रहा है। सारा खेल कबीर की उलटबांसी की तरह हो चुका है।