भारत-चीन सहयोग की फिल्म 'गोल्ड स्ट्रक' / जयप्रकाश चौकसे

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भारत-चीन सहयोग की फिल्म 'गोल्ड स्ट्रक'
प्रकाशन तिथि : 26 जून 2014


सबसे अधिक फिल्म दर्शकों की संख्या भारत और चीन में है। दुनिया के अन्य देशों में सिनेमा दर्शकों की संख्या घट रही है और अमेरिका में बच्चों के कारण विज्ञान फंतासी और कॉमिक्स पर आधारित फिल्में वहां के सिने उद्योग की एकमात्र ताकत है। क्या कारण है कि भारत और चीन में ही सिने दर्शक बढ़ते जा रहे हैं क्या दोनों पुरानी संस्कृतियों के इतिहास में लंबे सामंतवाद की समानता जन मानस को अलग ढंग से बनाती रही है। भारत और चीन में छोटी सामंतवादी रियासतों के आपसी झगड़ों का लंबा इतिहास रहा है। साथ ही ज्ञान की खोज के लिए भी समान बेकरारी रही है। दोनों ही देशों में पुरानी मान्यताएं और परम्पराएं रही हैं। दोनों देशों के पास किवंदतियां हैं, माइथोलॉजी है और दोनों ही कथा वाचकों और श्रोताओं के मुल्क हैं तथा किस्सागोई की आशनाई वाली प्रवृति उन्हें सिनेमा का दर्शक बनाती हैं। चीन का साम्यवाद को चुनना और भारत का गणतंत्र को चुनना भी समझा जा सकता है क्योंकि चीन साम्यवादी साधनों से पूंजीवाद को ही साध रहा है और हमारे गणतंत्र में सामंतवाद की झलक का होना और पूंजीवादी अर्थ व्यवस्था को अपनाना भी कोई इत्तेफाक नहीं है, समाजवाद इतने विभिन्न धर्मों और रीति रिवाजों को मानने वाले मुल्क में एक लंबी परछाई की तरह रहा और अब सिर के ऊपर सूर्य है और परछाई अदृश्य सी हो गई है।

बहरहाल लाइट हाऊस नामक निर्माण संस्था 'गोल्ड स्ट्रक' नामक फिल्म कोरी युएन के निर्देशन में बनाने जा रही है और इसमें अमिताभ बच्चन तथा अभय देवल काम करने जा रहे हैं, अन्य भूमिकाओं के लिए भारतीय और चीनी कलाकारों तथा तकनीशियनों का चयन होने जा रहा है तथा इसकी शूटिंग भारत, चीन तथा अमेरिका में होगी। यह एक एक्शन कॉमेडी की तरह रची जाएगी। फिल्म के नाम पर गौर करें तो सोने के प्रति मोह की बात सामने आती है और भारत तथा अमेरिका में सबसे अधिक सोना मौजूद है। इस मोह के मिथ को तोडऩे के लिए 'गोल्ड रश' जैसी फिल्म बनाने वाले चार्ली चैपलिन के समान मानवीय करुणा के फिल्मकार अब कम रहे हैं। इस फिल्म में मुंबइया फिल्मों की तरह गाने होंगे, भव्यता होगी। इसकी रचना एक मसाला मनोरंजन की तरह होगी।

भारत और जर्मनी के सहयोग से हिमांशु राय और निरंजन पॉल ने 'लाइट ऑफ एशिया' 1925 में बनाई थी जिसे पहली अंतरराष्ट्रीय सहयोग से बनी फिल्म होने का गौरव प्राप्त है और इन्हीं लोगों ने 'शिराज' तथा 'कर्मा' भी बनाई थी। सन 1957 में रूस और भारत के सहयोग से ख्वाजा अहमद अब्बास ने नरगिस अभिनीत 'परदेशी' बनाई थी। फकीरचंद मेहरा ने रूसी सहयोग से जीनत अमान अभिनीत 'अलीबाबा चालीस चोर' बनाई थी तथा शशिकपूर का हादसा 'अजूबा' भी रूसी सहयोग से बना था। सबसे सफल एवं ऐतिहासिक फिल्म रिचर्ड एटनबरो की 'गांधी' भी भारत के सहयोग से बनी थी।

आज यूरोप में फिल्मों की आर्थिक हालत खस्ता है, इसलिए अनेक देश मिलकर फिल्में बनाते हैं। शीघ्र ही अमेरिका और भारत के सहयोग से फिल्में बनेंगी क्योंकि अमेरिका की कुछ साधन संपन्न कंपनियों ने भारत में दफ्तर खोले हैं और वे भारत की फिल्मों में पूंजी निवेश कर रही है। यह उनका पहला प्रयास है। अमेरिकन फिल्म कंपनियों ने दशकों पूर्व भारत में कुछ सिनेमाघर खरीदे थे। दरअसल प्रदर्शन क्षेत्र में अमेरिका के स्वामित्व के सिनेमाघर अनेक देशों में मौजूद हैं। मनोरंजन क्षेत्र तो वह घाट है जिस पर शेर और बकरी सभी पानी के लिए आते हैं। इसीलिए विश्व सिनेमा का स्वरूप हमेशा धर्मनिरपेक्षता का रहा है और धार्मिक कथाओं पर भव्य फिल्में बनाना हमेशा लाभ का सौदा रहा है। यह कितनी अजीब सी बात है कि धार्मिक कथाओं और अपराध कथाओं पर बनी फिल्में प्राय सफल रही हैं। यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि चीन, जापान और यूरोप के उन्हीं फिल्मकारों को दुनिया भर के दर्शकों ने चाहा है जो फिल्मकार अपनी जमीन और संस्कृति से जुड़ी फिल्में बनाते रहे हैं। सिनेमा के डीएनए में ही जमीर होता है।