भारत का भाषिक वैविध्य और हिंदी का वर्तमान परिदृश्य / वीरेन्द्र परमार
स्वोतंत्रता प्राप्ति के साठ वर्षों के बाद भी हिन्दीे अपने संविधान प्रदत्तक अधिकारों से वंचित है। अब तक तो इसे संपूर्ण रूप से राजकाल की भाषा बन जाना चाहिए था परंतु दुर्भाग्य।वश आज भी अंग्रेजी ही शासन-प्रशासन की मुख्यप भाषा बनी हुई है। बार-बार लोगों को हिन्दी। की महत्ताग का स्मारण कराना पड़ता है, परंतु अनेक अवरोधों, मानसिक जड़ता और वैचारिक भिन्नबताओं के बावजूद हिन्दीज अपनी सरलता, आंतरिक ऊर्जा और जनता से जुड़ाव के कारण निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है। देश के दूरस्थल अंचल तक हिन्दीर का पुण्य़ आलोक विकीर्ण हो चुका है। कमोबेश संपूर्ण देश में यह संपर्क भाषा के रूप में स्थारपित हो चुकी है। इसमें अन्यह भारतीय भाषाओं-लोकभाषाओं के शब्दों को पचा लेने की अदभुत क्षमता है। इसी क्षमता के कारण हिन्दीा की स्वीमकार्यता में अभिवृद्धि हो रही है। हिन्दीक ऐसी महानदी है जो देश के सभी घाटों से गुजरती है एवं सभी घाटों के कंकड़-पत्थृर, मिट्टी, रेतकण आदि को समेटते तथा अपनी प्रकृति के अनुरूप उन्हेंस आकार देते हुए आगे बढ़ती है। इसकी धीर-गंभीर जलधारा के संस्प र्श से आंचलिक शब्दर भी हिन्दीइकृत होकर साहित्यिक गरिमा प्राप्तन कर लेते हैं। हिन्दीा का सानिघ्यर गुमनाम आंचलिक शब्दोंआ को भी राष्ट्रीकय पहचान देता है। लोकभाषाओं के शब्दन, शैली और चिंतन-सरणि से यह समृद्ध व समर्थ बनती है। महान कथाकार फणीश्वशरनाथ रेणु की सशक्ती लेखनी ने कोशी अंचल के असंख्य शब्दों को नई अर्थवता दी, जैसे कुकुरमाछी, कलेवा, पगहिया, हथछुट्टा, बत्तीथ, भुकभुकाना, टीशन (स्टे शन) , राकस (राक्षस) उड़नजहाज आदि ('लाल पान की बेगम' कहानी से उद्धृत) इसी प्रकार नागर्जुन ने मिथिलांचल के शब्दोंन, वचन-भंगिमाओं और मुहावरों को व्या पक क्षितिज प्रदान किया, शैलेश मटिमयानी ने कुमायूं के पर्वतीय अंचल के शब्द', लोकोक्ति आदि को राष्ट्री य फलक पर प्रस्तुदत किया, रांगेय राघव ने मथुरा के आसपास प्रचलित शब्दों को अपनी लेखनी द्वारा राष्ट्री य पहचान दी।
हिन्दीद कहीं तेलुगु से प्रभावित होती है, तो कहीं बंगला से, कहीं मराठी से प्रभाव ग्रहण करती है, तो कहीं असमिया से, कहीं नागामी से प्रभावित होती है, तो कहीं गुजराती से। इतना ही नहीं हिन्दी क्षेत्र की बोलियां भी हिन्दीग को प्रभावित करती हैं। इसलिए, भोजपुरी क्षेत्र में बोली जाने वाली हिन्दीर में भोजपुरी का पुट होता है, दिल्ली की हिन्दीभ में हरियाणवी की सुगंध होती है, मिथिलाचंल को हिन्दीम में मैथिली का माधुर्य होता है एवं विंध्यए क्षेत्र की हिन्दीह में निमाड़ी की छौंक होती है। यह ग्रहणशीलता ही हिन्दी की सबसे बड़ी शक्ति है। यह भी उल्लेिखनीय है कि इतनी भाषाओं-बोलियों से प्रभाव ग्रहण करने के बाद भी इसके मूल चरित्र में कोई बदलाव नहीं होता। यह जीवित व विकासमान भाषा का लक्षण है। जहां अन्य भारतीय भाषाएं एक-दो प्रदेशों तक सीमित हैं, हिन्दीं व्या पक क्षेत्रों में बोली जाती है। इसलिए अन्यी भारतीय भाषाओं में धीमी गति से परिवर्तन होते हैं, परन्तुा हिन्दीर में परिवर्तन की प्रक्रिया बहुत तीव्र है। यह विशेष रूप से द्रष्टतवय है कि अन्यह भारतीय भाषाओं में तत्सिम शब्दोंं का बाहुल्यव है लेकिन हिन्दी् में बहुत बड़ी संख्याा में तद्भव, देशज एवं विदेशज शब्दक विद्यमान हैं।
भारतीय संविधान का अनुच्छेनद 351 देश में भाषायी सम्प्री ति स्थादपित करने की दिशा में महत्त्वयपूर्ण पहल करता है। यह अनुच्छेेद सभी भारतीय भाषाओं के विकास का मार्ग प्रशस्ति करता है। सभी भारतीय भाषाएं पुष्पित-फलित हों, अपने-अपने प्रदेशों में राजकाज की भाषा बनें एवं हिन्दीभ सभी भाषाओं के पराग को ग्रहण व आत्मभसात करते हुए राजभाषा एवं संपर्क भाषा के रूप में देश की सामसिक संस्कृ ति को प्रतिबिंबित करें, इसी मूल संकल्प्ना पर भारत की राजभाषा नीति आधारित है। जिस प्रकार देश के विशाल मानव संसाधन को उचित प्रशिक्षण एवं सही मार्गदर्शन देकर आर्थिक-सामाजिक उन्नायन का सबल उपकरण बनाया जा सकता है उसी प्रकार भारत की अन्यक भाषाओं में अंतर्भुक्त लोकतत्वोंण को स्वीहकृत तथा आत्म सात कर हिन्दी को सर्वस्वीओकार्य और इसके फलक को विस्तृोत बनाया जा सकता है।
भारत एक बहुभाषाभाषी विशाल देश है। यहॉं 1652 भाषाएं और बोलियॉं बोली जाती हैं जिनमें से 22 भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है। अष्ट म अनुसूची में शामिल 22 भाषाओं में से अधिकांश भाषाएं किसी न किसी प्रदेश की राजभाषा है, परन्तुि कुछ ऐसी भाषाओं को भी इस अनुसूची में सम्मिलित किया गया है जो किसी राज्यि की राजभाषा नहीं है, जैसे, सिंधी, डोगरी, संस्कृीत, मैथिली आदि। अंग्रेजी भाषा को अष्टजम अनुसूची में नहीं रखा गया है परंतु नागालैंड, मेघालय जैसे राज्यों में अंग्रेजी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है। कुछ राज्यों में वहॉं की राजभाषा के साथ-साथ अंग्रेजी के प्रयोग का भी प्रावधान किया गया है, जैसे, मणिपुर में मणिपुरी तथा अंग्रेजी, केरल में मलयालम तथा अंग्रेजी के प्रयोग की भी व्य्वस्थां है। कुछ भाषाएं ऐसी भी हैं जिन्हेंक विभिन्न प्रदेशों में राजभाषा का दर्जा दिया गया है परंतु उन भाषाओं को संविधान की अष्टाम अनुसूची मं् सम्मिलित नहीं किया गया है, जैसे मिजोरम में मिजो भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया गया है परंतु मिजो भाषा अष्टहम अनुसूची में शामिल नहीं है। सिक्किम की चार राजभाषाएं हैं- नेपाली, भूटिया, लेच्पा तथा लिम्बूर। इनमें से केवल नेपाली भाषा को आठवीं अनुसूची में रखा गया है, शेष तीनों भाषाओं को इस अनुसूची में स्थालन नहीं दिया गया है। त्रिपुरा की राजभाषा बंगला तथा काकबराक को इस अनुसूची में स्थाइन नहीं दिया गया है। बंगला तो अष्ट म अनुसूची में शामिल है परंतु काकबराक नहीं। गुजरात एकमात्र ऐसा राज्या है जिसने गुजराती और हिन्दीे दोनों को राजभाषा घोषित किया है। कुछ राज्यों में उनकी राजभाषा के अतिरिक्तन कुछ प्रयोजनों के लिए अन्यक भाषाओं का प्रयोग करने की व्यंवस्थाा है। उत्तुर प्रदेश, बिहार, आन्ध्रर प्रदेश में कुछ विशिष्टओ प्रयोजनों के लिए उर्दू का प्रयोग करने का प्रावधान है। पश्चिम बंगाल में कुछ क्षेत्रों में नेपाली भाषा का प्रयोग करने की व्यएवस्थार है। पांडिचेरी में अलग-अलग क्षेत्रों में तमिल, मलयालम तथा तेलुगु राजभाषाएं हैं। गोवा में कोकणी के साथ ही मराठी भाषा का प्रयोग स्वीकार्य है। केरल में तमिल तथा कन्नजड़ भाषा के प्रयोग की भी व्येवस्था है। हरियाणा सरकार ने संस्कृात, उर्दू, तेलुगु तथा पंजाबी को भी द्वितीय भाषा का दर्जा दिया है। असम के बराकघाटी के लिए बंगला को राजभाषा बनाया गया है जबकि कार्बी आंगलांग तथा उत्तकरी कछार के पर्वतीय जिलों के लिए अंग्रेजी राजभाषा है। असम, कोकराझार, नालवाड़ी आदि बोडो बहुल जिलों के लिए बोडो को सहभाषा के रूप में प्रयोग करने का प्रावधान है। छत्तीोसगढ़ सरकार ने हिन्दी के साथ-साथ छत्तीनसगढ़ी भाषा के प्रयोग का भी प्रावधान किया है।
हिन्दी संघ की राजभाषा है और देश के व्याकपक भूभाग में बोली जाती है। देश के ग्याीरह राज्यों ने हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया है- बिहार, झारखंड, उत्त रप्रदेश, उत्तीराखंड, मध्यनप्रदेश, छत्तीासगढ़, हिमाचल प्रदेश, राजस्थाहन, हरियाणा, दिल्लीा तथा अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह। हिन्दी भाषा को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित भाषाओं में से लगभग आधी भाषाएं देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। हिन्दीं के अतिरिक्तस संस्कृीत, मैथिली, मराठी, डोगरी, संथाली, बोडो, सिंधी, कोंकणी की लिपि देवनागरी है। गुजराती भाषा की लिपि देवनागरी का ही एक रूप है। गुजराती लिपि में देवनागरी की शिरोरेखा से स्वकयं को मुक्तह कर लिया है तथा कुछ अक्षरों की आकृतियां बदल ली हैं। इसी प्रकार पंजाबी भाषा की गुरूमुखी लिपि भी देवनागरी का ही परविर्तित अवतार है। वैसे तो कोंकणी भाषा कन्नकड़, रोमन तथा मलयालम लिपियों में भी लिखी जाती है किंतु गोवा सरकार ने देवनागरी लिपि में लिखित कोंकणी को ही राजभाषा स्वीपकार किया है। इसी प्रकार सिंधी भी तीन लिपियों में लिखी जाती है- देवनागरी, गुरूमुखी और अरबी, लेकिन अधिकांश लोग सिंधी भाषा के लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग करते हैं। मणिपुरी भाषा के लिए 18वीं शताब्दी में बंगला लिपि को स्वीहकार किया गया लेकिन मणिपुरी भाषी अब बंगला लिपि को हटाकर मणिपुरी लिपि को अपनाने के लिए आंदोलनरत हैं। कुछ लोग मणिपुरी के लिए देवनागरी लिपि का भी प्रयेाग करते हैं।
हिन्दीन तो अब लोगों की आवश्य कता बन चुकी है। इसके बिना कोई राजनेता अपनी राष्ट्री य पहचान नहीं बना सकता, कोई समाज सुधारक अथवा धार्मिक नेता हिन्दीअ ज्ञान के अभाव में पूरे देश में अपने विचारों को संप्रेषित नहीं कर सकता। इसलिए सफल राजनेता, धर्मप्रचारक और समाज सुधारक बनने के लिए हिन्दीि ज्ञान अनिवार्य है। हिन्दीि अब विज्ञापन की भी भाषा बन गई है। हिन्दीन के विस्तृञत बाज़ार को देखकर बहुराष्ट्रीवय कंपनियों ने भी महसूस किया कि यदि उत्पाहदों की बिक्री में उछाल लाना है तो अंग्रेजी का दामन छोड़कर हिन्दीव की शरण में जाना ही पड़ेगा। बाज़ार की विवशता ने ही इन कंपनियों को हिन्दीक में विज्ञापन देने के लिए बाध्यी किया है। इन कंपनियों को ज्ञात है कि एक-दो प्रतिशत अंग्रेजी जानने वाले लोग इसके उत्पापदों की बिक्री के ग्राफ को उत्कजर्ष पर नहीं पहुंचा सकते। इन विज्ञापनों ने हिन्दीइ को तराशने में महत्त्वीपूर्ण योगदान दिया है। ये विज्ञापन ऐसे मनोहर व कवित्वञपूर्ण होते हैं कि बच्चोंश के साथ-साथ व्यिस्कोंज की जुबान पर भी चढ़ जाते हैं। संगीतमय और अर्थगर्भित ऐसे विज्ञापनों ने हिन्दी को नई भाव-भूमि से परिचित कराया है। इन विज्ञापनों मंज भारतीयता की छाप होती है, इस लिए ये मन को स्पतर्श करते हैं। इसके विपरीत अंग्रेजी के विज्ञापनों में देशी छौंक देने के लिए हिन्दीभ-अंग्रेजी मिश्रित शब्दोंै का प्रयोग होने लगा है, यथा महालोन मेला, पटाका ऑफर, पक्कान प्राइज, मानसून महा ऑफर, फेस्टीयवल धूम, बेडसीट उत्सशव इत्यानदि।
आरंभिक अवरोधों को पारकर हिन्दी अब इंटरनेट के राजपथ पर कुलांचे भरने लगी है। हजारों हिन्दी पुस्तंकें, कविता कोश, गद्यकोश, जालपत्रिकाएं, ब्लॉटग इंटरनेट पर उपलब्ध् हैं। सी-डेक द्वारा विकसित जिस्टद प्रणाली से ऐसा कुंजीपटल उपलब्ध, हो गया है जिस पर एक साथ अनेक भारतीय भाषाओं में काम करना संभव है। इस प्रणाली में सभी भारतीय भाषाओं के लिए कुंजी पटल एक हैं। इसलिए एक भाषा की सामग्री को दूसरी भाषाओं में सफलतापूर्वक लिप्यंकतरित किया जा सकता है। 'अक्षर फॉर विंडोज' में वर्तनी संशोधक, शब्दाकोश, मेल-मर्जर आदि सुविधाएं उपलब्ध हैं जिससे हिन्दी प्रयोग को गति मिली है। आर.के. कम्यूया टर रिसर्च फाउंडेशन ने 'सुलिपि' नाम से अत्यंरत उपयोगी सॉफ्टवेयर विकसित किया है जो लेखा संबंधी कार्यों को आसान बनाता है। सी-डेक, पुणे द्वारा विकसित लीप ऑफिस 2000 भारतीय भाषाओं में कार्य करने का मार्ग प्रशस्ता करता है। इसके द्वारा अंग्रेजी व हिन्दी के अतिरिक्तओ अन्यन दस भारतीय भाषाओं की लिपियों में कार्य किया जा सकता है। सुरभि प्रोफेशनल, आई.लिप, बैंक मित्र, श्रीलिपि अंकुर आदि साफ्टवेयर का विकास हिन्दीय और अन्यु भारतीय भाषाओं में कार्य करने की दिशा में क्रांतिकारी प्रयास है। अनेक हिन्दी पोर्टल, वर्तनी जांचक, शब्देकोश, हिन्दी सर्च इंजन आदि ने हिन्दी को तकनीकी रूप से समर्थ बनाकर इसे विश्वोभाषा बनने में सक्षम बनाया है।